nimmo (part-3) in Hindi Short Stories by Deepak Bundela AryMoulik books and stories PDF | निम्मो (भाग-3)

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निम्मो (भाग-3)

भाग-3

निम्मो को होश आ चुका था..उसके पास अम्मी, शाहिद, मौलवी और हकीम बैठे थे निम्मो उठने को हुई थी के उसे मौलवी ने उठने से रोका

मौलवी- आराम से लेटी रहो निम्मो ..तुम्हे अब और कुछ करने की ज़रूरत नहीं है...तुम मुझें बताओं क्या कहना चाहती हो.

निम्मो - मुझें आपसे कोई बात नहीं करनी.

मौलवी- ठीक है किससे करना चाहती हो शाहिद से या अम्मी से..

निम्मो रोने लगती है.. उसके आंसू झरने लगते है.. मौलवी खड़े होते हुए बोलता है

मौलवी- आपा ये आप से बात करना चाहती है हम लोग बाहर जाते है.

अम्मी-अब क्या बात करेंगी.. जो बात थी तो आप लोगों को बता दी.

मौलवी- फ़िर भी उसकी पूरी बात तो सुन लो आखिर वो कहना क्या चाहती है..?

और तीनो उठकर बाहर निकल जाते है

अम्मी- अब बता क्या कहना चाहती है..?

जाहिदा- अम्मी मुझें छोड़ दो मैं अपने अम्मी अब्बा के पास जाना चाहती हूं.

अम्मी- हाय अल्ला तूं ये क्या कह रही है.. अब ऐसा कैसे हो सकता है निम्मो.. जिन्नाद का दिल ऐसे ही हर किसी पर नहीं आता अब अगर हम मना करेंगे तो वो ना तुझें वख्शेंगे ना हमें बख्शेंगे... मैं तेरी तकलीफ समझती हूं. लेकिन अब पीछे मुड़ने का कोई रास्ता नहीं है हमारे पास बस कुछ दिन और निम्मो फिर सब ठीक हो जाएगा.

निम्मो - (गिड़ गिड़ते हुए )समझ तो आप लोग नहीं रहें हो अम्मी.. मेरा इस दौलत की चाह में बलात्कार हो रहा है अम्मी... इस तरह कोई दौलत हांसिल नहीं होती वो मौलवी नहीं है भेड़िया है.. वो आपको और शाहिद को ठग रहा है और मेरे जिस्म को नोच रहा है.. आप लोगों को बेवकूफ बना रहा है.. उसे सिर्फ मेरे जिस्म की चाह है मुझें छोड़ दो अम्मी आप मेरी अम्मी की तरह हो... कमसे कम आपतो मेरे दर्द को समझों अम्मी... (और निम्मो अम्मी का हाँथ पकड़ लेती है)

अम्मी को निम्मो की इस बात पर गुस्सा आ जाता है अम्मी निम्मो का हाथ झिडकते हुए उठती है

अम्मी- निम्मो एक बात कान खोल के सुन लें जब तूं हमारी बातनहीं समझ सकती तो मैं भी तेरी बात नहीं समझ सकती.

और अम्मी निम्मो के कमरे से बाहर निकल जाती है.. और कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर देती है..

निम्मो अंदर से सिर्फ चिल्लाती भर रह जाती है

निम्मो- अम्मी.. अम्मी.... मुझें जानें दो अम्मी... मुझें छोड़ दो अम्मी.. रहम करो अम्मी..

निम्मो रोते चीखते भर रह जाती है निम्मो की इस दशा पर कोई भी मरहम लगाने वाला नहीं था ना उसकी बात सुनने वाला था...

अम्मी बड़ बड़ाते हुए इन शाहिद, मौलवी और हकीम के पास आकर बैठ जाती है...

अम्मी- जाहिल.... गवार कहीं की उसे कोई बात समझ में ही नहीं आ रही..

ये लोग अम्मी को इस तरह झुंझलाते बड़बड़ाते हुए देख कर पूछ बैठते है.

शाहिद - अब क्या हुआ अम्मी..?

मौलवी- आपा बताओगी भी या यू ही बड़ बड़ाती रहोगी.

अम्मी- कमबख्त मारी जौनपुर जानें की ज़िद लें बैठी है.. कह रही है उसे उसके मइयो अब्बा के पास भेज दो.. जिंदिगी में कभी सुकून नसीब नहीं हो सकता कोई साथ नहीं दे सकता. अब आप ही बताये भाई जान क्या करें इसका..

कुछ देर को माहौल में शांति छा जाती है..

अम्मी- अब भाईजान आप ही बताये मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा.

मौलवी- मैं मानता हूं जब काम होने का वक़्त करीब आने लगता है तो जिन्नाद और ताकत वार होने लगता है.. अब जिन्नाद की ताकत को तो उसे सेहन करना ही पड़ेगा... अगर ऐसा है तो तकलीफ उसकी तो बड़ेगी ही हम सबकी भी बढ़ जाएगी.... इस काम को इस तरह आधा अधूरा नहीं छोड़ सकते इसके लिए कुछ और ही करना ही पड़ेगा.. हकीम सहाब आप आप मेरे साथ.. (अम्मी और शाहिद से) आप लोग अपना अपना काम करों निम्मो को मैं देख लेता हूं.. और दोनों उठते है अम्मी और शाहिद से थोड़ा दूर को जाकर कुछ आपस में बातें करते है.. और दोनों निम्मो के कमरे में चले जाते है और दरबाजा अंदर से बंद कर लेते है.. दरबाजा बंद होने के बाद अंदर से हल्की हल्की सी आवाज़े आती है... जिस के चलते अम्मी उठ कर अपने कमरे में चली जाती है और अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लेती है.. कुछ देर शाहिद बैठा रहता है निम्मो के कमरे से विरोधाभास की आवाज़े लगातार आ रही है जिनसे शाहिद सुनते सुनते परेशान सा हो रहा है उस आवाज़ को ना सुनने के लिए नज़र अंदाज़ करता है लेकिन जब नहीं रहा जाता तो वो उठ कर अम्मी के कमरे के दरबाजे के पास जाता है और अम्मी से बोलता है.

शाहिद- अम्मी मैं थोड़ा बाहर घूम कर आता हूं.

अम्मी- ठीक है.. ज्यादा वक्त मत लगाना.. और सुन ताला बहार से लगा कर चाबी अपने पास ही रखना..

शाहिद- जी.. अम्मी मैं चौराहे तक ही जा रहा हूं एकाध घंटे से आता हूं ....

इतना कह कर शाहिद भी चला जाता है...

काफ़ी देर हो चुकी थी लग भग एक डेढ़ घंटे हो चुके थे निम्मो की आवाज़ भी आना अब लगभग बंद हो चुकी थी अम्मी भी अपने कमरे से बहार आ कर मौलवी और हकीम का इंतज़ार कर रही थी इसी बीच अम्मी कई बार निम्मो के कमरे के दरवाज़े पर कान लगा कर सुन सुनने की कोशिश करके आ चुकी थी अंदर से बस धीरे धीरे कुछ बुद बुदबुदाने की आवाज़े भर आती थी.. लेकिन अंदर आने वाली आवाजे साफ सुनाई देने के कारण अम्मी समझ नहीं पा रही थी... वो यहीं सोच कर वापस आ जाती थी के उतरा चल रहा है अगर उसने कोई भी आहट की तो उतारे में खलल पड़ जाएगा यहीं सोच कर वो लौट कर अपनी जगह पर वापस आ बैठ जाती थी.. लेकिन अम्मी का दिमाग़ इस और से वाकिफ़ नहीं हो पा रहा था के रात को होने वाला अब ये उतरा दिन में कैसे हो रहा है दूसरा ये दो पराये मर्द बंद कमरे में निम्मो के साथ क्या कर रहें है.. अम्मी तो बस यहीं सोच रही थी के दौलत के रास्ते खुल रहें है... तभी निम्मो के कमरे का दरवाजा खुलता हुआ देख कर अम्मी के चेहरे पर थोड़ा सुकून सा दिखाई देने लगता है. वो दोनों अम्मी के पास आकर बैठ जाते है.

मौलवी- आपा निम्मो तो मानने को राज़ी बिलकुल नहीं थी इसीलिए हकीम सहाब ने उसे बेहोशी का इंग्जेक्सोन दे दिया है.. क्यों हकीम सहाब नोम्मो अभी एकाध घंटा तो बेहोश रहेंगी ना..?

हकीम-हां लगभग दो घंटे मान लो मौलवी सहाब.

अम्मी- निम्मो को बेहोश... क्यों..?

मौलवी- फिर क्या करते आपा अपना तमाशा बनवा लेते...आपने देखा नहीं वो कैसी घायल शेरनी सी हो रही थी वो.. खैर आपा आप फ़िक्र मत करों मैं सब सम्हाल लूंगा.. जो अभी इकतालीस दिन की आयते रह गई है.. उसके लिए निम्मो को मैं अपने साथ यहां से 20 किलोमीटर दूर जो हटिया गांव है वहां लें जाऊंगा वहां हक़ीम सहाब का फ़ार्म हाउस है अब आगे की सारी आयते वही पूरी होंगी..

अम्मी- ठीक है भाई जान हमें कोई एतराज़ नहीं बस ये काम पूरा करवा दो..

मौलवी- हां हां आपा.. ये सब उसी काम के लिए ही तो हो रहा है.

तभी शाहिद भी आ जाता है.

शाहिद- अब क्या हुआ मौलवी सहाब..?

मौलवी गुस्से से शाहिद को देखता है तभी हकीम बोल पड़ता है

हकीम- मौलवी सहाब मैं वेन लें आता हूं

मौलवी- (कुछ सोचते हुए) लेकिन हकीम सहाब अभी निम्मो को हम कैसे लें जा सकते है रात तक तो इंतज़ार करना ही पड़ेगा किसी ने पूछ लिया तो सब चौपट हो जाएगा..

शाहिद- एक रास्ता है मौलवी सहाब पीछे वाली गली से निकाल कर लें जाइए..

अम्मी- शाहिद बिलकुल वज़ह फरमा रहा है भाईजान आप ऐसा ही करो पीछे वाली गली से आप निम्मो को लेकर चले जाओ जाओ..

मौलवी- कोई खतरा तो नहीं होगा ना..?

अम्मी- अरे भाई जान बिलकुल नहीं है होगा आप चाहो तो एक नज़र देख लो..

मौलवी शाहिद की बात पर भरोशा करने के लिए पीछे के रास्ते को देखने के लिए उठता है साथ में शाहिद और हकीम भी जाते है शाहिद दौड़ कर पीछे के गेट की चाबी लेकर आता है और ताला खोल कर मौलवी को पीछे का रास्ता दिखता है जो वाकई में बिलकुल सून सान है मौलवी शाहिद से पूछता है.

मौलवी- यहां से कोई भी नहीं आता जाता..?

शाहिद- बिलकुल नहीं मौलवी सहाब.

मौलवी- क्यों हकीम सहाब रास्ता तो मेहफ़ूज़ लग रहा है..?

हकीम- हां मौलवी सहाब मुझें नहीं लगता यहां से जानें में हमें कोई परेशानी होंगी एक दम मेहफ़ूज़ रास्ता जान पड़ रहा है..

मौलवी- तो फिर हमें अब इंतेज़ार नहीं करना चाहिए आप जल्दी से गाड़ी लें आईये जब तक मैं निम्मो को ले चलने की तैयारी करवा लेता हूं.

हकीम शाहिद से

हकीम- शाहिद तुम मेरे साथ चलो

मौलवी- शाहिद क्यों..?

हकीम- अब इस रास्ते पर कहां से आना है मैं वाकिफ थोड़े ही हूं..

मौलवी- ठीक है.. लेकिन ज्यादा वक्त मत लगाना..

हकीम- आप तो तैयारी करके रखो हम अभी आते है..

शाहिद दरवाजा बंद करता है है और दोनों वहां से चले जाते है...
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कंटीन्यू पार्ट-4