Imagine the golden future in Hindi Short Stories by Dev Borana books and stories PDF | सुनहरे भविष्य की कल्पना

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सुनहरे भविष्य की कल्पना


प्रो - देवाराम पटेल
यह कहानी लेखक खुद सुना रहा है , लेखक कहता है कि गया था मैं शहर से गांव कुछ दिन बिताने । बहुत अच्छा भी लग रहा था और थोड़ा कुछ बदला हुआ भी । लोग सूरज के उगने से पहले ही जाग जाते थे और अपने अपने कामो में लग जाते थे । शहर में हमको योगा क्लास की जरूरत पड़ती है लेकिन यहाँ गांव में तो इनके कार्यो को देखकर लगता है इनको योगा क्लास की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ेगी । क्योकि सभी हट्टे कट्टे और स्वस्थ ही नज़र आ रहे थे । न शहर में सूरज उगते देखा और न ही शाम को ढलते । यह गांव था जिसमें लालिमा छाये आसमान व उसका स्वागत करते पक्षी जिनकी आवाज सुनते ऐसा लग रहा था जैसे सूरज दादा फिर एक बार शादी कर रहे हो और वो सभी गाना गा रहे हो ।
जैसे ही मैं वहाँ से थोड़ा आगे गया तो एक दीवार पर लिखा था विज्ञापन के रूप में "सुनहरे भविष्य की कल्पना" शायद देखकर और पढ़कर ऐसा लग रहा था जैसे गांव को भी शहरों सी उड़ान देनी हो ।
हा यह जरूर है कि गांव में नई तकनीकियों को आते थोड़ा वक्त लगता है और वही शहरों में जल्द ही आ जाती है ।
जैसे ही मैं वहाँ से बायीं ओर मुड़ा तो एक बूढ़ी माँ जो कबूतरों को दाना डालने आयी थी और मन ही मन कुछ बोल रही थी और चेहरा थोड़ा उतरा सा लग रहा था । मैं उस बूढ़ी माँ के पास गया और मैं कुछ पूछने वाला ही था उससे पहले उसने सामने से पूछा क्यो बेटा तुम भी "सुनहरे भविष्य " की तलाश में यहाँ आये हो । तभी मैन जवाब दिया ये आपको कैसे पता माँ , तब बूढ़ी माँ ने जवाब दिया

आपका चेहरा और पहनावे को देखकर मुझे लगा तुम शहर से ही आये होंगे और आपके तलाशी चेहरे को देखकर लगा कि तुम भी "सुनहरे भविष्य "की तलाश में हो ।
तब मैंने फिर सवाल किया क्यो माँ ये सब आपको सीधा कैसे मालूम पड़ा। तब बूढ़ी माँ ने फिर कबूतरों को एक - एक दाना डालते हुए जवाब दिया बेटा आज से पांच साल पहले मेरा बेटा भी इसी तलाश में शहर गया था जो आज तक नहीं आया क्या पता उसको वहाँ "सुनहरा भविष्य" मिल गया हो । तब मैंने सवाल किया क्यो माँ वो क्यों नही आया , आपसे मिलने भी नहीं आया , क्या आपकी याद उसको नहीं आती । तब बूढ़ी माँ ने जवाब दिया क्या पता बेटा, शायद याद आती तो वो एक बार अपनी माँ से मिलने तो जरूर आता या फिर माँ के लिए एक खत तो लिखता कभी । मेरा (लेखक) ध्यान माँ की ओर था लेकिन जब मैंने उस बूढ़ी माँ के चेहरे की तरफ देखा तो वो रो-रो कर बोल रही थी उसकी आँखों से आंसू गिर रहे थे ।
तभी मैंने माँ के आँसू पोछते हुए कहा , माँ आप रो क्यो रही हो ?
बूढ़ी माँ ने जवाब दिया बेटा जब वो तीन वर्ष का था तब उसके पापा हमे छोड़ कर चले थे तो मैंने उसका अच्छे से पालन पोषण किया ताकि उसका भविष्य सुनहरा हो ।
मुझे आगे बढ़ने का मन नहीं कर रहा था मैं उस बूढ़ी माँ के पास ही बैठा रहा फिर वो मुझे उसके घर ले गयी ।
सर्दी का मौसम था तो वो माँ अंदर से दो लड्डू मेरे लिए लेके आयी और बोली ये लो बेटा ये लड्डू खा लो फिर अपन ओर बाते करेंगे । मेरी नज़र माँ के चेहरे पर पड़ी तो देखा तो वो वापस से रो रही थी आंखों से आंसू आ रहे थे तो मैंने फिर पूछा कि माँ आप बार - बार

क्यों रो रही हो , तभी बूढ़ी माँ ने जवाब दिया कि बेटा,
मेरा बेटे के इंतज़ार में वो आज आयेगा कल आयेगा तो उसके लिए मैं हर वर्ष लड्डू बनाके रखती हूं । इतना कुछ सुनकर लेखक की आंखों से भी आंसू आने लगे । लेखक मन ही मन कहता है कि ऐसी माँ जिसके पास बेटा न होते हुए भी इतना कुछ कर रही है ऐसी माँ जग में कहा मिलेगी । ऐसी औलाद क्या काम की जो अपने परिवार और माँ की फिक्र न करती हो ।
माँ ने बहुत कोशिश की उसके मित्रो के द्वारा फोन करने की लेकिन जब उसका दोस्त कहता कि ले तेरी माँ से बात कर तभी वो फोन रख देता था । कहता था जब फ्री होऊंगा तब फोन करूँगा ।

वो माँ कैसी जिसको अपने बेटे से बात करने के लिए पांच वर्ष का इंतजार भी कम पड़ रहा था । माँ उसके दोस्तों के द्वारा सिर्फ उसकी एक बार आवाज सुनना चाहती थी कि मेरा बेटा आज कैसा है लेकिन ये बेटा नहीं चाहता था ।
फिर मैंने (लेखक) सवाल किया क्या वो भी "सुनहरे भविष्य" की तलाश में निकला था । तब बूढ़ी माँ ने कहा हा बेटा उसने भी ऐसा ही विज्ञापन पढा था और फोन करके चला गया था ।

तब बूढ़ी माँ ने फिर सवाल किया क्या तुम भी इसी चक्कर मे गांव आये हो ? , तब मैंने कहा हाँ माँ मैं भी "सुनहरे भविष्य की कल्पना" लिए आया था लेकिन अब "सुनहरा संकल्प " लेके यहाँ से जाऊंगा जिसमे आप और आपके बेटे को फिर एक बार मिलाना यहीं मेरा "सुनहरा संकल्प" है और शायद यही मेरे सुनहरे भविष्य की कल्पना

थी ।

मैं बूढ़ी माँ के पास ही बैठा था तब मेरी नज़र एक छोटे से डिब्बे पर पड़ी जिसके ऊपर छोटा सा छेद था उसको देखकर मैंने बूढ़ी माँ से सवाल किया माँ ये क्या है तभी माँ ने कहा बेटा यह गुल्लक है जब मेरा बेटा छोटा था तब वो रोज मेरे पास 1 रुपया मांगता था और इस गुल्लक में डालता था । आज मेरा बेटा मेरे पास नही है लेकिन पांच साल से रोज मैं एक - एक रुपया इस गुल्लक में डालती हु । ऐसा लगता है जैसे मेरा बेटा मेरे पास ही है और वो रोज मेरे पास पैसे मांगता है ।
ये सब सुनके लेखक (मेरी) की आंखों से फिर आंसू आने लगे सोच रहा था कि माँ का ह्दय कितना कोमल और नियत का साफ होता है औलाद कैसी भी हो माँ का दिल और व्यवहार उसके साथ कभी नहीं बदलता ।
इतनी कुछ बाते करके मैने उसके दोस्तो के पास फोन नम्बर लिए और अनजान बनके बाते की तब उसको उसका पता पूछा कि वो कहा कार्यरत है । उससे बाते करके मुझे पता चला कि वो मुम्बई में ही नॉकरी करता था ।

मैं भी मुम्बई का ही रहने वाला था मैं उसी दिन शाम को मुम्बई के लिए रवाना हो गया ।
मेरे दिमाग मे एक ही बात जो दिल से तड़फ रही थी माँ-बेटे को मिलाना । मैं अगले ही दिन मुम्बई पहुँच गया । मै अपने घर नहीं जाकर पहले उसने जो पता दिया था उसकी तलाश में निकल गया ।

मैं उसके पास पहुच गया । मैंने उसको बताया कि मैं वहीं हु जिसने आपसे फोन पे बात की थी मिलने की ।
उसने लेखक ( मुझे ) बैठने को कहा और पूछा आप मुझे कैसे पहचानते हो ? लेखक ने जवाब देने से पहले कहा कि ये लो पहले हम लड्डू कहा लेते है (जो उसकी बूढ़ी माँ ने लेखक को दिए थे) फिर हम आगे बाते करते है ।
लड्डू खाने के बाद वो कहता है कि लड्डू तो बहुत अच्छे थे थोड़े ओर मेरे लिए लेके आते ।
यह सुन लेखक की आंखों से आंसू आये तभी उसने पूछा क्या हुआ आपकी आंखों से आंसू कैसे आये ?
तभी मैंने (लेखक) जवाब दिया काश मैं भी गांव में रहता और रोज ऐसे ही लड्डू खाता ।
तभी उसने फिर सवाल किया क्या आप गांव गए थे मैंने कहा हा मैं भी "सुनहरे भविष्य की कल्पना" लिए गांव गया था ।
लेखक उसको धीरे धीरे परिवार और गांव का उसको आभास करा रहा था । लेखक कहता है कि मुझे तो वहाँ से यहाँ आने का मन भी नहीं कर रहा था लेकिन गांव से "सुनहरे संकल्प" लिए यहाँ आया हूं ।

लेखक सीधा सीधा कहता है जब मैं 'रोहिड़ा' गया था इतना सुनकर वो बीच मे बोला रोहिड़ा तो मेरा गांव है अच्छा आगे बताइये वहाँ कैसा है अब ' लेखक कहता है कि तुम नहीं जाते क्या अपने गांव ?
उसका जवाब आया नहीं मेरे पास इतना समय नहीं है ।

लेखक ने कहा क्या आपके परिवार , आपकी माँ के लिए भी आपके

पास वक्त नहीं है इतना सुनकर वह चुप हो गया , उसके आगे बोलने जैसा नही था ।
लेखक बताता है कि मैं आपके गांव गया था आपकी बूढ़ी माँ मुझे मिली थी बहुत तुम्हारी बातें कर रही थी । ये लड्डू उसी ने मुझे दिए थे तुम्हारे लिए की अगर मेरा बेटा आपको मिले तो उसे दे देना लेकिन मेरा नाम मत लेना क्या पता मेरा नाम सुनके वो खायेगा या नहीं ।
वो आज भी तुम्हारे लिए सर्दी ऋतु में लड्डू बनाती है कि क्या पता मेरा बेटा अगर आ गया तो ।
वो पिछले पांच साल से तुम्हारे लिए लड्डू बनाती है तुम्हारे आके खा जाने के इंतज़ार में , वो आज भी तुम्हारे उस गुल्लक में पैसे डालती है जिसमे तुम बचपन मे अपनी माँ के पास पैसे मांगते थे और आप उस गुल्लक में डालते थे ।

वो पिछले पांच साल से हर दिन हर घड़ी में तुम्हारा इंतज़ार करती है कि मेरा बेटा आयेगा ।
लेकिन तुम तो उससे फोन पर भी बाते करने के लिए तैयार नही हो जो तुम्हारे लिए इतना समय और इतना कुछ तुम्हारे न होते हुए भी खर्च कर रही है ।

इतना कुछ सुनके उसकी आँखों से आंसू निकल आए गए वो रोने लगा और मन ही मन पछताने लगा और कहता है कि जिस माँ के मुझे लड्डू आज भी इतने पसन्द है उसको मैं "सुनहरे भविष्य" के खातिर छोड़ आया ।
लेखक को वो कहता है कि मुझे मेरी माँ भी शहर लाना है वो मेरे पास

चाहिए लेकिन क्या मैं आज उसके पास जाऊंगा तो वो मुझे माफ़ करेगी या नहीं ।
तभी लेखक न जवाब दिया भाई , माँ का दिल अपनी औलाद के प्रति इतना कठोर नही होता , उसका दिल बहुत ही कोमल होता है वो माफ कर देगी आपको , अगर आप सामने से उसे मिलने जाते हो तो ।

और एक बात अगर उसका दिल कठोर होता तो वो तुम्हारे गुल्लक में पैसे व तुम्हारे लिए लड्डू बनाती क्या !

इतना कुछ सुनके वो और रोने लगा और कहता है कि मुझे आज ही घर के लिए रवाना होना है फिर वो घर के लिए रवाना होता है माँ से मिलने व बचपन की यादों को ताजा करने का "सुनहरा संकल्प" लेके ।
वो घर जाता है अपने घर के बाहर जा के पूछता है माँ में अंदर आ सकता हूं ,माँ को लगा कि लेखक वापस आ गया लेकिन लेखक के साथ उसका बेटा था उसने ये आवाज लगाई थी ।
माँ बाहर आयी तो उसने फिर कहा माँ क्या मैं अंदर आ सकता हूं ?

माँ आवाज सुनकर बहुत रोई और रोते हुए उसके बेटे के गाल पे एक थप्पड़ मारा और कहती है कि तु इतना पराया कैसे हो गया जो आज अंदर आने के लिए पूछ रहा है । दोनों खूब रोये और एक दूसरे को गले लगाया । माँ बहुत खुश हुई और कहती है की सभी माँ को तुम्हारे जैसा बेटा मिले ।
तो लेखक का भी "सुनहरा संकल्प" पूरा हो गया ।


"कहने का अर्थ है कि हम कुछ भी पाने के लिए निकले लेकिन अपने माँ-बाप को कभी न भूले , अगर उनका आशीर्वाद साथ है तो सफलता चरणों मे है । "