Baat bus itni si thi - 29 in Hindi Moral Stories by Dr kavita Tyagi books and stories PDF | बात बस इतनी सी थी - 29

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बात बस इतनी सी थी - 29

बात बस इतनी सी थी

29.

जिस दिन मैं लखनऊ पहुँचा, उसी दिन रात को डिनर की टेबल पर मेरी मुलाकात मेरे हमउम्र मधुर नाम के एक युवक से हुई । अपने स्वभाव से मधुर मेरे काफी करीब था, इसलिए पहली ही मुलाकात में हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे और दूसरी मुलाकात में हमारे दोस्ती इतनी घनिष्ठ हो गई कि मधुर ने मुझे होटल का कमरा छोड़कर उसके फ्लैट में उसके साथ रहने का प्रस्ताव दे दिया ।

हालांकि जिस होटल में मैं रह रहा था, वह फाइव स्टार होटल था । वहाँ पर लग्जरी लाइफ जीने की जिम, स्पा, बार, स्वीमिंग पूल वगैराह सभी सुविधाएँ थी और सभी सेवाएँ सन्तोषजनक थी । लेकिन मुझे हमेशा से किसी होटल की अपेक्षा घर में रहना ज्यादा अच्छा लगता है । परन्तु, मैं भाग्य इतना धनी कभी नहीं रहा कि जब जिस शहर में जाऊँ, मुझे रहने के लिए अपने घर जैसी सुविधा मिल सकती । यह अलग बात थी कि इस बार मेरे भाग्य ने मेरा साथ दिया और लखनऊ पहुँचने के अगले ही दिन मुझे मधुर का प्रस्ताव मिल गया । मधुर के प्रस्ताव को प्रभु का प्रसाद समझकर मैंने सोचा -

"ईश्वर जब देता है, छप्पर फाड़कर देता ! अब इसके आगे उसके भक्त की जिम्मेदारी बनती है कि भगवान की कृपा को आँचल पसारकर स्वीकार कर ले !"

अपने हृदय की इसी पवित्र प्रेरणा से प्रेरित होकर मैंने तुरंत मधुर का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उसी समय अपने कमरे जाकर अपना बैग उठा लाया । जब मधुर अपने घर चलने लगा, मुझे मेरे बैग के साथ देखकर मुसकुराया और बोला -

"चलो, दोस्त ! काफी रात हो चुकी है ! अब अपने घर चलें ?"

"हाँ ! बिल्कुल !"

कहकर मधुर होटल के मेन गेट की ओर बढ़ने लगा । मैं भी उसके फ्लैट में जाने के लिए उसके साथ-साथ चलते हुए उसकी गाड़ी में बैठ गया । मेरे बैठते ही मधुर ने गाड़ी स्टार्ट कर दी । पूरे रास्ते हम दोनों बाते करते हुए लगभग दस मिनट में मधुर के फ्लैट में पहुँच गये ।

मधुर का दो कमरों का लग्जरी फ्लैट था, जिसमें वह अकेला रहता था । मेरे आने के बाद अब उस फ्लैट में रहने वाले हम दो लोग हो गये थे ।

अगले दिन सुबह बिस्तर से उठकर फ्रेश होने के बाद वह किचिन में चला गया । कुछ ही देर बाद वह दो प्याले गर्मागर्म स्वादिष्ट चाय बनाकर ले आया । हम दोनों ने साथ बैठकर चाय पी और उसके बाद वह फिर किचिन में चला गया । काफी देर बाद भी जब वह वापिस नहीं लौटा, तो उसको खोजता हुआ मै भी किचिन में जा पहुँचा । वहाँ पहुँचकर मैंने देखा, मधुर नाश्ता बनाने की तैयारी कर रहा था ।

मधुर को किचिन में नाश्ता बनाते हुए देखकर शुरू के दो-चार पल मुझे अजीब-सा लगा । लेकिन मूझे वहाँ खड़ा देखकर भी मधुर अपना काम तन्मयता से करता रहा । उसको अकेला काम करते देखकर मैं भी उसकी सहायता करने लगा । नाश्ते के साथ ही उसने दोपहर के लिए खाना बना लिया और दो लंच बॉक्स पैक करके रख दिये । उस दिन मुझे यह पता चला कि मधुर एक अच्छा कुक है । वह किचन को औरतों की तरह एकदम साफ-सुथरी व्यवस्थित रखता था । उसने मुझे बताया -

"नाश्ता और लंच मैं हमेशा अपने हाथ से बनाया हुआ ही खाता हूँ ! रात में जब कभी थका होने की वजह से रसोई में काम करने का मन नहीं होता, तब होटल पर जाकर खा लेता हूँ !"

उस दिन शाम को ऑफिस से लौटने के बाद हम डिनर करने के लिए भी बाहर नहीं गये । मैंने ही मधुर को कह दिया था कि अगर थकान की वजह से उसका खाना बनाने का मन नहीं है, तो उसके दिशा निर्देश में मैं खाना बना दूँगा । मेरा प्रस्ताव सुनकर मधुर धीरे से हँस दिया था, क्योंकि वह भी जानता था कि उसके दिशा निर्देशों के बावजूद मैं इतना स्वादिष्ट खाना नहीं बना सकता था, जितना कि वह खुद बनाता था ।

मेरी घर का खाना खाने की इच्छा को भाँपकर उसने खुद ही खाना बनाया । यह अलग बात थी कि मैंने भी खाना बनाने में उसकी पूरी सहायता की थी । खाना बनाते-बनाते रात के दस बज चुके थे । खाना बनाने के बाद हम दोनों ने एक साथ बैठकर तसल्ली से खाना खाया । दिन भर की थकान के बावजूद घर लौटकर अपने हाथ से खाना बनाकर खाने का मजा कुछ अलग ही था ।

डिनर करने के बाद मधुर अपना बही खाता लेकर बैठ गया और लगभग आधा घंटा तक उसने दिन भर के खर्च-आमदनी और हानि-लाभ का हिसाब देखा । उसके दिन भर के खर्च-आमदनी को देखने-आँकने के तरीके से मैंने जाना कि वह एक अच्छा बिजनेस मैन भी था । डिनर करने के बाद वह हर रोज कम-से-कम आधा घंटा दिन भर के खर्च-आमदनी और हानि-लाभ का हिसाब देखता था।

हिसाब-किताब देखने के बाद वह गिटार लेकर बैठ गया । उसने गिटार बजाते हुए मोहम्मद रफी का गाया हुआ फिल्म 'हम दोनों' का एक गीत - 'मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को मैं धुएँ में उडाता चला गया' गाया । सोने से पहले वह हर रोज कम-से-कम एक घंटा तक संगीत का आनंद लेता था । उसका कंठ इतना सुरीला था कि उसका गाना सुनने वाला सम्मोहित हो जाए ! वह गिटार बहुत अच्छा बजाता था ! गाना-बजाना उसका शौक था ।

मधुर की जिंदगी बड़ी मस्त थी । कभी-कभी मुझे उससे ईर्ष्या होने लगती थी । विचित्र बात यह थी कि उसकी मस्त जिंदगी से प्रेरित होकर मैं उसके साथ रहते हुए बयालीस की उम्र में भी मैं उससे यह सीखने की कोशिश कर रहा था कि लाइफ को एंजॉय करते हुए कैसे जीया जाता है ? मधुर मेरे लिए प्रेरणा-पुरुष बन गया था ।

वह सुबह उठता, तो कानों में ईयर फोन लगाकर और जेब में मोबाइल रखकर बाथरूम से लेकर रसोई तक मस्ती भरे किसी गाने की धुन पर थिरकता फिरता रहता । गाना सुनते हुए गाने की धुन पर थिरकते हुए वह नाश्ता और लंच बनाने से लेकर कपड़े धोने तक के सारे काम चुटकी भर में पूरे कर लेता था । इतना काम करने के बावजूद वह हमेशा खुश रहता था और घर में हो या ऑफिस में दिन-भर चहकता रहता था । वह बहुत मेहनती था ।

एक दिन सुबह के समय मधुर बाथरूम में स्नान करने के लिए गया हुआ था । उसी समय उसके मोबाइल पर कॉल बेल बजी, तो अनायास ही मेरी नजर उसके मोबाइल की स्क्रीन से जा टकराई और फिर वहीं पर जम गई । मैं अपनी नजर उसकी मोबाइल स्क्रीन से जितना हटाना चाहता था, उतनी ही मेरी नजर उस पर गड़ी जा रही थी । दरअसल मधुर के मोबाइल की स्क्रीन पर जो फोटो लगा था, वह मंजरी का था ।

मधुर की मोबाइल-स्क्रीन पर मंजरी का फोटो देखकर मेरे मन में मधुर को लेकर कई तरह के प्रश्न उठने लगे थे और कई तरह की शंकाएं जन्म ले रही थी । मंजरी की फोटो मधुर की मोबाइल स्क्रीन पर देखकर अचानक मेरा चित्त इतना अस्थिर हो गया था कि अपनी खुद की और अपने काम की चिंता छोड़कर मेरा मन सिर्फ मंजरी और मधुर को लेकर कई तरह की काल्पनिक कहानियाँ गढ़ने लगा । इतना ही नहीं, मैंने उसी समय मधुर का फ्लैट छोड़ने मन बना लिया था । लेकिन उसका फ्लैट छोड़कर जाने से पहले मैं अपने इस.एक प्रश्न का उत्तर पा लेना चाहता था -

"आखिर मंजरी के साथ मधुर का क्या रिश्ता है ? और कब से है ?"

मंजरी और मधुर के रिश्ते को लेकर मैं अपनी वैचारिक दुनिया में खोया हुआ था । तभी मधुर की पदचाप से मेरा ध्यान भंग हुआ । मेरे विचारों की दुनिया से बेखबर मधुर ने कमरे में प्रवेश करते ही सबसे पहले मोबाइल उठाया और मिस्ड कॉल देखकर मिस्ड कॉल पर उंगली का पोर टच करके बातें करते हुए अ बातें करता हुआ रसोई में चला गया । ।

पिछले दस दिनों से, जब से मैं उसके फ्लैट में आया था, तभी से रसोई के हर काम में मैं भी उसका हाथ बँटाता रहा था, क्योंकि मधुर अपने फ्लैट की रसोई में खाना बनाता था, तो मुझे यह अच्छा नहीं लगता था कि मधुर रसोई में काम करता रहे और मैं निकम्मा बनकर बैठा रहूँ । न ही मुझे मेरा बाहर से ऑर्डर करके खाना मंगाना या खुद बाहर जाकर होटल में खाना ठीक नहीं लगता था ।

मैं यह भी चाहता था कि मैं भी मधुर की तरह एक अच्छा कुक बन जाऊँ और उसकी तरह मस्त जिंदगी जीऊँ । उसके साथ हर काम करना मुझे अच्छा लगता था और वास्तव में मैं भी उसके साथ रसोई में काम करते हुए उन पलों को एंजॉय करने लगा था । लेकिन उस दिन मैं उसके किसी काम में उसका हाथ बँटाने के लिए उसके साथ रसोई में नहीं गया ।

दरअसल, मेरा मन शक और आशंका के जाल के इस कद्र उलझा हुआ था कि मेरे मन में अभी भी मंजरी और मधुर के रिश्ते को लेकर अजीब-सी बेचैनी बनी हुई थी । मैं जानता था कि मेरी वह बेचैनी तभी कम होगी, जब मुझे मंजरी और मधुर के रिश्ते का सच पता चल जाएगा । इस सच का पता कैसे लगाया जाए ? मेरे सामने यह यक्ष प्रश्न था । सीधे-सीधे मधुर से इस बारे में पूछना मुझे ठीक नहीं लगता था । इसी विषय में सोचते-सोचते पूरा एक घंटा बीत चुका था ।

मधुर अकेले ही नाश्ता बना चुका था और साथ ही उसने दोपहर के लिए हम दोनों के अलग-अलग लंच बॉक्स तैयार करके रख दिए थे । सारा काम मधुर ने अकेले ही किया । नाश्ता बनाने और लंच बॉक्स तैयार करने का काम पूरा करने के बाद मधुर दो प्लेट्स में नाश्ता लेकर मेरे कमरे में आया । लेकिन मैं तब तक भी अपनी खुद की बनायी हुई वैचारिक संदेह की संकरी-अंधेरी गलियों में भटक रहा था । मुझे उसके आने का पता ही नहीं चला । मेरा ध्यान कहीं और देखकर उसने मेरा कंधा पकड़कर मुझे हिलाते हुए कहा -

"आज यार का ध्यान कहाँ मैराथन कर रहा है ? देख रहा हूँ, सुबह से यार का दिल चारों खाने चित है ! क्या बात है ? दिल कहीं अटक गया है क्या ? हम भी दिल की दुनिया के खिलाड़ी हैं ! इसलिए मशवरा दे रहे हैं कि यारों से दिल की बात बताकर बोझ हल्का कर लेना ठीक रहता है !"

यह कहकर मधुर हँस पड़ा । मधुर की बातें सुनकर अचानक मुझे मेरे सवालों का जवाब ढूँढने की युक्ति सूझी -

"यदि मधुर की जिंदगी के भीतरी कोनों में झाँककर देखा जाए, तो पूरा सच बाहर आ जाएगा !"

पिछले दस दिनों से हम दोनों एक साथ रह रहे थे । हम दोनों अपना-अपना काम भी कर रहे थे और साथ रहकर खूब एंजॉय भी कर रहे थे । लेकिन हम दोनों में से किसी ने भी अभी तक एक-दूसरे की व्यक्तिगत जिंदगी में झाँकने की कोशिश नहीं की थी ।

अब तक हम दोनों में इतनी घनिष्ठता हो चुकी थी कि उसके दिल की परतें खोलना मेरे लिए कोई कठिन काम नहीं था, लेकिन एकदम सीधे-सीधे मंजरी का नाम लेकर उससे उसके रिश्ते के बारे में पूछने पर वह आहत हो सकता था । वह नाराज भी हो सकता था । इतना ही नहीं, वह मुझ पर संदेह भी कर सकता था कि मैं मंजरी को कैसे जानता हूँ ? यह भी हो सकता था कि वह मंजरी के साथ अपने रिश्ते का सच अभी छिपाकर ही रखना जरूरी समझता हो ! ऐसी स्थिति में मेरे मुँह से मंजरी का नाम सुनकर वह असहज हो सकता था । मैं उस समय यह अनुमान लगा रहा था कि -

"हो सकता है, मुझसे अलग होने के बाद मंजरी ने मधुर के साथ शादी की हो ? ऐसी स्थिति में क्या मधुर से मंजरी के बारे में पूछना ठीक होगा ?"

मैं यह निश्चय नहीं कर पा रहा था कि मधुर से मंजरी के बारे में पूछूँ ? या न पूछूँ ? पूछूँ, तो किन शब्दों में ? और किस तरस से पूछूँ ? लेकिन मैंने यह पक्का निश्चय कर लिया था कि जैसे भी हो, मुझे मधुर की जिंदगी में झाँककर उसके दिल के पन्ने पर लिखी कहानी को पढ़ना ही होगा !

उस दिन से हर रोज मैं शाम को ऑफिस से फ्लैट में लौटने के बाद से लेकर अगले दिन सुबह ऑफिस के लिए निकलने से पहले तक हर पल मधुर की जिंदगी के उस अंधेरे कोने तक पहुँचने के लिए रास्ते की तलाश में लगा रहता था, जहाँ दुनिया के डर को छोड़कर और सांसारिक सामाजिक मर्यादाओं के सारे बंधन तोड़कर मधुर के दिल की सरगम गूंजती थी ।

क्रमश..