Locket in Hindi Short Stories by Mamta books and stories PDF | लाकेट

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लाकेट

लाकेट

सामने पड़ी किताबों के ढेर में आँखे गड़ाए ,अपने गले के लाकेट को उँगलियो से नचाती सी ना जाने कब से खोयी थी कि अचानक सामने प्रिन्सिपल महोदया को सामने देखकर वह अचकचा कर उठी ।उसने देखा वो मुस्कुरा रही थी ,उसकी जान में जान आयी ।नमस्कार मैडम ! प्रिन्सिपल वर्मा मुस्कुरायी ,” कोई चिंता है क्या जो फिर लाकेट से खेला जा रहा है ? नही नही मैडम बस ऐसे ही ,आदत सी हो गयी है ।माधुरी हंस पड़ी ।वैसे सच ही तो था जब भी वो गहन विचारों में खोती तो लाकेट पर हाथ चला ही जाता था उसका ।ये लाकेट जैसे सम्बल सा देने लगता था उसे ।


श्रीमती वर्मा अपने कठोर स्वभाव के लिए जानी जाती थी ,पर माधुरी के लिए जाने क्यूँ हमेशा से कोमल बनी रही थी ।उसे याद है जब पहली बार उसने यहाँ कदम रखा था ,कितना अजीब सा लग रहा था ।वो सुदूर एक छोटे से शहर से आयी भोली सी लड़की थी ,और ये बड़े से शहर कोलकाता का आलीशान स्कूल ।यह देश के नामी गिरामी लोगों की संताने पढ़ती थी । माधुरी को बड़ा डर था कि पता नही वो यहाँ के माहौल में ख़ुद को ढाल भी पाएगी या नही ? पर श्रीमती वर्मा से जब तत्कालीन प्रिन्सिपल ने मिलवाया तो उन्होंने बेहद आत्मीयता से उसका स्वागत किया ।तब श्रीमती वर्मा कोओरडीनेटर थी और चेयरमैन सर उन्हें बहुत मानते थे ।

“ आज से माधुरी आपकी ज़िम्मेदारी है ,देखिएगा इन्हें कोई तकलीफ़ ना हो “-प्रिन्सिपल ने माधुरी को उन्हें सौंपते हुए कहा ।तब से लेकर बीस वर्ष गुज़र गए माधुरी को उनके साथ काम करते हुए ।उन्होंने हर कदम पर उसका साथ दिया ,उसका आत्मविश्वास बढ़ाया ।आज स्कूल ही क्या शहर भर में उसकी एक अलग पहचान थी ।हिंदी विषय पढ़ने के साथ साथ , माधुरी अनेक गतिविधियों में अपने छात्रों को प्रशिक्षित करती थी ।चाहे नाटक में अभिनय हो या कविता लेखन ,किसी वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेना हो तो उसके छात्र भागे हुए उसके पास आते ।उन सबको लगता था कि अगर माधुरी मैडम ने उनकी सहायता की ,उन्हें प्रशिक्षित किया तो उन्हें कोई हरा नही पाएगा ।छात्रों का यही विश्वास और श्रीमती वर्मा का साथ ,माधुरी की जीवन शक्ति थी ,जिसके सहारे वो जीवन में मुस्कुराते हुए आगे बढ़ती चली गयी ।वरना तो शायद वो अब तक टूट कर बिखर गयी होती ।श्रीमती वर्मा अब प्रिन्सिपल थी ,जब भी कोई विशेष कार्य आन पड़ता उन्हें सबसे पहले माधुरी की याद आती ।

जी मैडम ! आपने मुझे बुलवा लिया होता ,आपको तो पता ही ख़ाली समय में मैं हमेशा यही लाइब्रेरी में होती हूँ ।श्रीमती वर्मा मुस्कुरा पड़ी ,” अरे माधुरी ! कोई बात नही मैं इधर से गुज़र ही रही थी कि कुछ याद आ गया ,सोच लगे हाथ तुमसे भी मशवरा कर लूँ।” सामने पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए वो बोली ।

जी कहिए ! माधुरी ने बड़ी सौम्यता से मुसकुराते हुए कहा।श्रीमती वर्मा बड़ी गम्भीरता से बोली ,” इस बार स्थापना दिवस समारोह विशेष महत्वपूर्ण होगा क्यूँकि इस स्कूल ने अपने पचास वर्ष पूरे कर लिए हैं ।इसी सिलसिले में हमें कार्यक्रम की रूपरेखा बनानी है ,जिसमें हमेशा की तरह तुम्हारा सहयोग अपेक्षित होगा ।” ये तो सदैव ही मेरा सौभाग्य रहा है मैडम ,आपका मुझमें यही विश्वास और प्रेम मेरा सबसे बड़ा सहारा है ।आप आज्ञा करे ,सब हो जाएगा ।माधुरी ने पूर्ण आत्मविश्वास से कहा ।

मुझे मालूम है जब तक हमारी माधुरी हमारे साथ है ,हमें चिंता करने की आवश्यकता नही ,कहते कहते श्रीमती वर्मा मुस्कुराने लगी ।फिर बोली ,” इस बार सोच रहे है विशेष अतिथि के रूप में शायद फ़िल्मी दुनिया से किसी को आमंत्रित करे ।तुम तो जानती ही हो यह कैसे कैसे उद्योगपतियों के बच्चे पढ़ते है ,उन्ही की तरफ़ से ये विशेष आग्रह आया है ।माधुरी मुस्कुराते हुए बोली ,”। मैडम आप तो जानती ही है मेरी तो फ़िल्मों में कभी रुचि ही नही रही और ना ही कभी कोई फ़िल्म मैंने देखी है ।मेरे लिए तो मेरी किताबें ही सब कुछ है ,इस विषय में मेरी कोई ख़ास जानकारी भी नही है ।अरे इसकी चिंता तुमने करने की ज़रूरत नही तुम तो बस कार्यक्रम की रूपरेखा बनाओ बाक़ी सब मैं देख लूँगी ।मैं तो बस इतना चाहती थी कि इस बार संगीत नृत्य के साथ साथ कोई छोटा पर प्रभावशाली नाटक भी रखो ।” बड़ी आत्मीयता और गम्भीरता से उन्होंने कहा ।

माधुरी तो वर्षों से अपने छात्रों को इसी में प्रशिक्षित करती आयी थी ,उसे पूर्ण विश्वास थ कि वो बेहतर परिणाम देगी ।बस माधुरी ने अपनी सहायक अध्यापिकाओं के साथ कार्य की रूपरेखा बनायी और श्रीमती वर्मा को दिखाकर काम शुरू कर दिया ।

स्थापना दिवस के दिन पूरे स्कूल की रौनक़ देखते बनती थी ।बच्चे रंगबिरंगे कपड़ों में सजे कार्यक्रम प्रस्तुत करने को आतुर हो रहे थे । उनका उत्साह देखते ही बनता था ,मशहूर कलाकार सुदीप जी जो आ रहे थे ।माधुरी ने भी उनके बारे में सुना तो अवश्य था पर कभी ना कोई फ़िल्म देखी थी ना ही इस तरफ़ कोई ख़ास ध्यान दिया था ।उसके लिए हर साल की तरह वो केवल एक माननीय अतिथि थे जिनका ख़याल रखना उसकी ज़िम्मेदारी थी ।

आख़िरकार समय आ गया ,सुदीप जी के स्वागत की सब तैयारी हो चुकी थी ।श्रीमती वर्मा के निर्देशानुसर उसे ही मंच पर सुदीप जी को माला पहनाकर ,उनका स्वागत कर दीप जलाने में सहायता करनी थी ।माधुरी पूर्ण आश्वस्त थी ,हमेशा से यही करती आयी थी ।उसने सारे इंतज़ाम कर लिए थे बस अब तो स्टेज पर सुदीप जी के पधारने की देर थी । ख़ूबसूरत लाल पाड़ की बंगाली सफ़ेद साड़ी ,लम्बे बालों की वेणी में फूल लगाए माधुरी की गरिमायुक्त छवि ने सबको मुग्ध कर रखा था ।बेहद आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी माधुरी का रूप जैसे उम्र के साथ और भी निखर चला था ।

थोड़ी ही देर में गहमागहमी शुरू हो गयी ,वो अभी स्टेज पर अपनी तैयारियों को अंतिम रूप दे रही थी ,भारी भीड़ और अनगिनत फोटोग्राफ़रो से घिरे मुख्य अतिथि को दूर से आते देख थोड़ी सी उत्सुकता उसे भी हुई कि कैसे दिखते होंगे सुदीप जी ? कुछ ही पल में चेयरमैन, श्रीमती वर्मा के साथ सुदीप जी स्टेज पर पदार्पण हुए ,हाथ की थाली में दीपक को जलाकर वो सुदीप जी के सामने आयी और जैसे ही उसने नज़रें उठायी उसका हृदय बल्लियों उछाल गया ,हाथ काँपने लगे ,उसके सामने और कोई नही उसके बचपन का साथी सूरज खड़ा था । नही - नही ! ऐसा नही हो सकता ,ये मेरा भ्रम है । भला कहाँ सूरज और कहाँ सुदीप जी ? उसने जैसे ख़ुद को संयत कर समझने की कोशिश की ।तभी उसके कानो में श्रीमती वर्मा की आवाज़ पड़ी ,” माधुरी ! माला पहनाओ ।” बड़ी मुश्किल से उसने ख़ुद को सम्भाला और माला सुदीप के गले में डाल दी ।जैसे ही दोनो की आँखे चार हुई तो सुदीप भी हतप्रभ सा रह गया ।पर वो एक कुशल कलाकार था ,मन के भाव चेहरे पर नही आने दिए और मुस्कुराते हुए सिर झुका दिया ।

सबके साथ वो दीप जलाने को आगे बढ़ा ,माधुरी ने जलती हुई मोमबत्ती उसके हाथ में दे दी ,जैसे ही वो दीपक जलाने को झुका उसका चेहरा माधुरी के बहुत नज़दीक आ गया ।माधुरी की गाले दहकने लगी थी ,वो छटपटा कर वहाँ से निकलने को आतुर होने लगी ,लगा जैसे अभी नही गयी तो यही गिर पड़ेगी ।तभी सूरज धीरे से बोला माधुरी! तुम ही हो ना? माधुरी के गले में जैसे कुछ फँसने लगा ,शब्द ही गले से नही निकले ।सुदीप ने दीप जलाया ,तालियों की गड़गड़ाहट ने उसका स्वागत किया ।

सुदीप ने सबके साथ अपना स्थान ग्रहण किया और कार्यक्रम आरम्भ हो गया । माधुरी ने किसी तरह ख़ुद को सम्भाला ,पर्दे के पीछे जाकर एक कुर्सी पर बैठ गयी ।उसका चेहरा ऐसा हो रहा था मानो किसी ने रक्त निचोड़ लिया हो ।उसकी अंतरंग सहेली और साथी अध्यापिका रीमा भी उसकी हालत देखकर घबरा गयी ,जल्दी से लाकर पानी दिया ।माधुरी थोड़ा संयत हुई ।रीमा के लाख पूछने पर भी वो कुछ ना कह सकी बस इतना ही बोली कि शायद काम की अधिकता से चक्कर सा आ गया था ।रीमा ने उसे आश्वस्त किया कि यहाँ का सारा कार्यभार अब वो ख़ुद सम्भाल लेगी , और माधुरी को उसने ज़बरदस्ती घर भेज दिया ।

घर आकर बिना साड़ी बदले ,बिना लाइट जलाए निढाल सी वो अपने कमरे में बिस्तर पर जा गिरी ।अतीत की भूली बिसरी स्मृतियाँ जिन्हें वो मन से निकाल चुकी थी ,दंश सा देती हुई उसके सामने आ खड़ी हुई । वो अतीत जिसे वो कब का दफ़ना चुकी थी ,याद करके भी क्या होता सिवा पीड़ा के कुछ ना मिलता ।सहज नही था उसके लिए भूलना ,पिछले बीस सालों में अनगिनत बार रातों को अपना तकिया भिगो चुकी थी ।फिर मन को समझाती कि वो परछाईं के पीछे भाग रही है ,उसे याद कर रही है जिसने कभी पलट कर नही देखा ,जिसने उसकी कभी सुध ना ली ।

फिर आज क्यों वो इस तरह उसके सामने आ खड़ा हुआ क्यों आख़िर क्यों ? मन में कितने ही प्रश्न आन खड़े हुए थे ,आँखो से अविरल अश्रुधार बह चली थी ।मन हो रहा था अभी उसे झकझोर कर पूछे कि आख़िर उसकी क्या गलती थी ? उसे ही जीवन भर ये संताप क्यों झेलना पड़ा ?

मानो कल ही की तो बात है जब दोनो एक साथ हंसते मुस्कुराते स्कूल जाते ,घर आकर भी दोनो का साथ बना रहता ,पड़ोसी जो ठहरे ।स्कूल से कॉलेज तक पहुँच गए और कब एक दूसरे के प्रति आकर्षण जागने लगा दोनो को ही पता नही चला ।मन ही मन साथ साथ सुखद भविष्य की कल्पना संजोने लगे ।माधुरी के लिए सूरज उसकी दुनिया बन चुका था । दोनो के परिवार भी उनके रिश्ते के लिए सहमत हो गए ।तभी सूरज को एम बी ए करने के सिलसिले में अहमदाबाद जाना पड़ा ।माधुरी भी बी एड कर रही थी ।माधुरी इस आशा से कि सूरज जैसे ही पढ़ाई ख़त्म कर लेगा तो वापस आएगा और दोनो हमेशा के लिए एक सूत्र में बांध जाएँगे ,वो दिन गुज़ारने लगी । पर सूरज लौट कर नही आया ,उसका केवल एक ख़त आया कि वो अभी किसी बंधन में नही बंधन चाहता है ,उसे पहले अपने जीवन के कुछ सपने पूरे करने है ।फिर सुना कि वो मुंबई चला गया उसको मायानगरी की माया ने ऐसा घेरा कि उसने फिर पलट कर नही देखा ।सारे सम्पर्क जैसे तोड़ लिए ,किसी को पता नही कि वो कहाँ था ,कैसा था ? माधुरी पर जैसे वज्रपात हो गया ,उसने सूरज के बिना जीवन जीने की कल्पना भी नही की थी ।वो बुरी तरह टूट गयी बिखर गयी ।उसके पापा को उसकी बहुत फ़िक्र थी ,फिर एक दिन वो अपने शहर से नाता तोड़ कर सब कुछ बेच कर कोलकाता आ गए ।उनकी इकलौती बिटिया ही अगर खुश नही थी तो वो क्या करते वहाँ रहकर ।उन्होंने माधुरी को समझाने की बहुत कोशिश की कि वो सूरज को भूल जाए और अपना घर बस ले शादी कर ले ,पर माधुरी नही मानी ।ख़ुद को उसने काम में झोंक दिया ,स्कूल में पढ़ाने लगी ।और इस तरह ज़िंदगी के बीस साल गुज़र गए ।इस बीच ना उसे सूरज की कोई ख़बर मिली ना उसने कभी जानने की कोशिश की ।बस अपने दिल के गहरे ज़ख्मों को भरने की कोशिश करने लगी ,जिसमें हमेशा नाकाम रही

कुछ साल पहले माँ पापा भी उसे अकेला छोड़ इस दुनिया से चले गए । उसके बाद से अकेली ही वो अपनी ज़िंदगी की उलझनो को सुलझाती हालातों से लड़ती रही ।कभी कभी मन विचलित होता ,सूरज के बारे में जानने की इच्छा जागृत होती ,लेकिन फिर सोचती जब उसे ही ख़याल नही रहा ,जब उसने ही पलट कर नही देखा तो वो क्यों दुखी होती है ?

इस स्कूल ने उसके प्यारे प्यारे छात्रों ने और सबसे बढ़कर श्रीमती वर्मा और रीमा ने उसे इतना प्यार और सम्मान दिया कि वो धीरे धीरे सब भूलने लगी । अपनी पिछली ज़िंदगी के बारे में उसने कभी किसी से बात नही की ।अगर कोई प्रश्न भी करता कि विवाह क्यों नही किया ? तो वो बस मुस्कुरा कर टाल जाती ।रीमा ने कई बार पूछा कि वो गले में एस अक्षर का लॉकट क्यों पहनती है तो वो हंस कर बोलती ये माधुरी शर्मा का एस है और कुछ नही ।अपनी अंतरंग सखी से सभी नही कह सकी कि आज तक सूरज के नाम को अपने दिल से लगाए हुए थी वो ।

ना जाने कब तक माधुरी अश्रु बहाती अपने ही अतीत में की परछाइयों में डूबी रही ।अंधेरा हो चला था ,अचानक दरवाज़े की घंटी की आवाज़ से वो चौंकी ।कौन हो सकता था इस वक्त ? ख़ुद को सम्भाल कर उसने दरवाज़ा खोला ,सामने सूरज खड़ा था ।उसके पैर जम गए ,कलेजा उछलकर जैसे बाहर आने लगा ।” अंदर आने को नही कहोगी ? बाहर ही खड़ा रखोगी क्या ? “ सूरज बोला । वो दो कदम पीछे हट गयी ,मुँह से शब्द नही निकल रहे थे ।जाने कितने वर्षों के उपालम्भ होंठों पर आकर रुक गए ,ना जाने कितने टूटे हुए वादों की किरचें चुभने लगी ।सूरज भीतर आकर बैठ गया । तुम आज भी उतनी ही ख़ूबसूरत दिखती हो माधुरी ! वो सहज भाव से बोला ।माधुरी ने नज़रें उठायी ,ना जाने क्या था उसकी आँखो में जैसे कुछ ना कहकर भी सब कुछ कह दिया उसने । सूरज विचलित हो उठा ,उठकर उसके पैरों के पास बैठ गया।मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ ,तुम्हारी तो माफ़ी का भी हक़दार नही हूँ मैं ।प्लीज़ हो सके तो मुझे माफ़ कर दो ,मैंने तुम्हारा बहुत दिल दुखाया है । माधुरी ने कहना चाहा ,दिल दुखाया ? ये क्यूँ नही कहते कि ज़िंदगी बर्बाद कर दी ,कही का ना रहने दिया ।पर शब्द ही नही निकल रहे थे ,वो जैसे पत्थर सी हो गयी थी ।कहते है दुःख जब पूरी शक्ति से आघात करता है तो जड़ कर जाता है ।इस समय माधुरी की भी कुछ ऐसी ही हालत थी ।

सूरज बोलता गया ,मैंने तुम्हारे साथ बहुत ग़लत किया ।उस समय ना जाने मुझे क्या हो गया था ।पैसे की लालसा ,दुनिया की चकाचौंध में मैं खो गया था ।बस एक जुनून सा सवार हो गया था मुझ पर ,कुछ भी नही सूझ रहा था ।मुंबई में फ़िल्मों में काम करने की चाह ,रातों रात बहुत नाम कमाने की लालसा ने मुझे दीवाना कर दिया था ।क़िस्मत भी शायद मुझ पर मेहरबान होने लगी थी ,काम मिलने लगा ।और मुझे कोई होश ना रहा ,ये भी याद नही रहा कि इस दुनिया में कोई है जिसे मेरा इंतज़ार है ।मुझ पर जैसे नशा सा सवार हो गया था ,लगता था बहुत सा पैसा कमा लूँ फिर तुम्हें ले जाऊँगा ,पर ये भूल गया कि मेरी इस हरकत का तुम पर क्या असर होगा ?

ज़िंदगी की दौड़ में तो बहुत आगे निकल गया पर बहुत कुछ पीछे छूट गया ।पूरे दो वर्ष बाद जब मैं जब वापस गया तो तुम जा चुकी थी ,कहाँ किसी को नही पता था । उन्हें बहुत ग्लानि हुई ,कैसा अनमोल हीरा मैंने अपने हाथों से गवा दिया था ।मैं अपनी ही गलती की सज़ा भोगता हुआ वापस उसी नक़ली दुनिया में लौट गया । दो साल बाद मुझे अपनी ही फ़िल्म के डायरेक्टर की बेटी से शादी करनी पड़ी ,उनके बहुत एहसान थे मुझ पर ।पर तुम्हें कभी नही भूल पाया माधुरी ! क्या मुझे माफ़ कर सकोगी ?

कैसी है तुम्हारी पत्नी ? क्या खुश हो तुम ? “ माधुरी जैसे स्वप्निल सी अवस्था में बोली ।सूरज ने कहा,” हमारी एक बेटी है पंद्रह वर्ष की ।उसी को देखकर जीता हूँ ।तुमने शादी नही की ? उसने माधुरी से पूछा ।“ शादी ! माधुरी के होठों पर एक वेदना भरी मुस्कुराहट तैर गयी ।ये तुम पूछ रहे हो ? वो

बोली । सूरज ने सिर झुका लिया ।कुछ ना कह सका ।कह भी क्या सकता था ।दोनो के बीच फिर खामोशी छा गयी ।

तभी सूरज के फ़ोन की घंटी बजी ,उसने चौंक कर वक्त देखा और बोला ,” मेरी फ़्लाइट का वक्त हो रहा है ,मुझे अब जाना होगा ।मैं फिर मिलूँगा तुमसे । माधुरी ने कुछ नही कहा ,बस अपने गले से लाकट उतार कर सूरज की हथेली पर रख दिया ।फिर बोली जब तुम्हारी बेटी का विवाह हो तो उसे दे देना और अब जीवन में मुझसे कभी ना मिलना ।मेरा तुम्हारा साथ तो कब का छूट गया था ये तो बीते वक्त की परछाईं थी जो अब तक हमारे साथ चल रही थी ।तुम जाओ ! ये कहकर वो मूड गयी और तेज़ी से भीतर जाकर अपना कमरा बंद कर लिया ।