एक पाती माता पिता के नाम
अन्नदा पाटनी
पूज्य बाबूजी व अम्माँ,
सादर प्रणाम ।
यह जानते हुए भी कि आप हमारे बीच में नहीं है, न हीं आप हमें देख सकते हैं और न ही सुन सकते है, फिर भी आपको पत्र लिखने को मन कर आया ।
आज हमारे पौत्र राघव के दसवीं के बोर्ड के एग्ज़ाम शुरू हो गए । जितनी घबराहट उसको थी, उस से कहीं ज़्यादा अकुलाहट हम को थी । पर सोचा दही चीनी उसे खिला कर आशीर्वाद दे देंगे तो परीक्षा में बढ़िया नंबर आ ही जाएँगे । कमरे में बैठी राघव का इंतज़ार करती रही कि वह स्कूल जाने के पहले आशीर्वाद लेने तो ज़रूर आयेगा । जब वह नहीं आया तो उठ कर बाहर आई तो पता चला, वह तो चला गया । अच्छा नहीं लगा । मन उदास हो गया । पर किस को कहे।
याद आया कैसे अम्माँ दही चीनी खिलाकर हमें परीक्षा के लिए भेजतीं थीं । हम भी निश्चिंत हो जाते कि अब तो पेपर अच्छा होगा ही । हम लोग स्कूल जाते समय भी रोज़ आवाज़ देते," अच्छा अम्माँ-बाबूजी, हम स्कूल जा रहे हैं ।" तभी बाबूजी की आवाज़ आती,"अच्छा बेटे, गुडलक ।"। यह गुडलक हमारे पूरे दिन को ख़ुशनुमा बनाने के लिए काफ़ी होती ।
कितना समय अम्माँ,तुम हमें पढ़ाने में देती थीं । हमारा होम-वर्क करवातीं, क्लासवर्क कॉपी जाँचती और भी जाने क्या क्या ध्यान रखतीं । विभिन्न प्रतियोगिताओं की तैयारी करवाती, स्कूल के समारोहों में सक्रिय भाग दिलवातीं । आजकल तो कोचिंग कक्षाओं की बाढ़ सी आ गई है । मनमानी फ़ीस वसूल करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि माता-पिताओं के पास समय ही नहीं है बच्चों के लिए । उन्हें अपने मनोरंजन, मित्र मंडली और सिनेमा आदि से फ़ुरसत मिले तब तो । आजकल नौकरानियों यानी मेड की हैसियत घर के बडे बूढ़ों से ज़्यादा हो गई हैं । भले ही घर के लोग बीमार हो जाएँ पर मेड की तबीयत का पूरा ख़्याल रखा जाता है । मेड के बिना एक दिन काम नहीं चल सकता । घर की हैड अब गृहिणी से ज़्यादा ये मेड होती हैं ।
एक समय था कि रात का खाना सब साथ खाते थे । वही एक समय ऐसा होता था जब सब दिन भर की अपनी बातों को शेयर करते थे । अब या तो सब अपने अपनी सुविधानुसार अलग अलग समय पर खाते हैं या फिर टीवी के सामने प्रोग्राम देखते देखते । बात करने की ज़रूरत ही नहीं समझी जाती । खाना भी अच्छा बुरा जैसा भी नौकर चाकर बना दें, चुपचाप खा लो, बिना मीन मेख निकाले ।
बाबूजी -अम्माँ, याद है कहीं भी जाते तो सब साथ जाते थे । गर्मी की छुट्टियों में किसी न किसी हिलस्टेशन पर सब परिवार वालों के साथ घूमने का आनंद ही कुछ और होता था । अब हम बूढ़ों को तो कोई गिनता ही नहीं है । ठीक भी है । पीना, पिलाना, धमचक,धमचक गानों पर नाचना, यह हमारे सामने कैसे संभव हो सकता है । पिक्चर भी अब दोस्तों के साथ देखी जाती हैं । क्या करें पिक्चरें भी तो ऐसी बन रहीं हैं कि परिवार के साथ देख नहीं सकते । हमें भी समझना चाहिए ज़माना बदल गया है । परिवार,रिश्तेदारों से ज़्यादा दोस्तों की अहमियत हो गई है । हमें समझाया जाता है कि दोस्तों के साथ फ्रीक्वेंसी अधिक मैच होती है ।
समय के साथ अपने आपको ढाल लेने में ही समझदारी है । वही हम कर रहे हैं । सोचती हूँ, अच्छा है कि आप यहा नहीं हैं यह सब देखने को, नहीं तो बहुत कष्ट होता । जो संस्कार, पारिवारिक मूल्य, मानवीय मूल्य आपकी पीढ़ी ने हमें दिए उनका तिरस्कार होते देख आपको बड़ा दुख होता । चारों तरफ़ लूटपाट, हत्या, बलात्कार, भ्रष्टाचार का तांडव देख कर आप लोग विचलित हो जाते । हम सब लाचार हैं यह सब देखने और सहने को क्योंकि जो रक्षक हैं वही भक्षक बन गए हैं ।
इसका अर्थ यह नहीं कि हम दुखी हैंऔर आपसे शिकायत कर रहे हैं । बल्कि देश की प्रगति के साथ साथ हमारे बच्चों ने जो प्रगति की है, वह अत्यंत सराहनीय है । आप लोगों के आशीर्वाद से बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर ऊँचे ऊँचे पदों पर आसीन हैं ।हमें अपने देश और नई पीढ़ी पर गर्व है । समय के साथ मापदंड बदल जाते हैं पर प्रवाह के साथ बहने की नसीहत भी आपने ही दी है इसलिए हम ख़ुश हैं ।
आप लोग हमेशा कहते थे न कि इतिहास अपने आपको दोहराता है । कितना अच्छा होगा जब वह पुराने दिन वापस आजायेंगे और सुख शांति का साम्राज्य फिर से स्थापित हो पायेगा । आप लोगों की तरह हम यह सब देखने के लिए उस समय नहीं होंगे पर आगे आने वाली पीढ़ी के लिए कल्पना कर, प्रसन्न और आश्वस्त तो हो ही सकते हैं ।
काश ! आज की तरह वीडियो कैमरे उस समय होते तो आपके जीवन की पूरी फ़िल्म क़ैद कर लेते और बच्चों को दिखाते कि आपने और अम्माँ ने कितने श्रम से, तन, मन, धन और त्याग से हमारी परवरिश की और हमें हमारे पैरों पर खड़ा किया । जो बातें उन्हें बेमानी लगती हैं, उनका जीवन में कितना महत्व है, वे यह समझ पाएँ तो कितना अच्छा हो ।व्यक्तित्व के विकास और एक अच्छा इंसान बनने के लिए आप लोगों के दिए संस्कार इसकी पृष्ठभूमि और आधारशिला हैं ।
आपसे बात कर मन का बोझ हल्का हो गया । एक दिन ऐसा नहीं जाता जब आपकी याद न आती हो । बराबर यह महसूस होता है कि आप भी हमें देखते रहते हैं और आशीष देते रहते हैं । हमारे हर सुख दुख में हमारे साथ होते हैं । नहीं मिल पाते तो क्या, जुड़े रहने का एहसास ही काफ़ी है ।
एक बार पुन: आपको नमन,
आपकी प्यारी बेटी,
अनामिका