Page in Hindi Short Stories by Shubham Rawat books and stories PDF | कागज

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कागज

मोहित को अपनी पढाई पूरी करे पाच साल हो चुके है और आज तक वो बेरोजगार है। वो हमेसा से पढाई में ठीक-ठाक रहा है ना ज्यादा होशियार ना ही कमजोर। उसके पास पहले डिवीजन की डिग्री है फिर भी बेरोजगार है।
मोहित एम.कॉम पास है। उसने १२ पास करने के बाद पहले तीन साल बी.कॉम की पढाई करी और फिर एम.कॉम की पढाई करी। आज वो २८ साल का हो चुका है। इतने सालों में उसने बहुत कुछ सहा, देखा, सीखा और ना जाने क्या-क्या किया। चलो फिर अब 'मैं' आपको 'मोहित' की कहानी बताता हूँ।
मोहित ने बारवी फर्स्ट डिवीज़न से पास करी, उसने ६४ परसेंट बनाई थी। वो खुश था क्योंकि उसके लिए नंबर काफी थे। उसके पापा उसके नंबर से खुश नहीं थे। वो चाह रहे थे की वह और अच्छे नंबर लाता। पर जो होना था वह तो हो चूका था।
मोहित ने कॉलेज में एडमिशन ले लिया था, पढाई भी शुरू हो गयी थी। वो बड़ा खुश था। नए-नए बच्चे देखने को मिल रहे थे। खाश कर की लड़कियॉ। मोहित और उसके दोस्त अपने-अपने के लिए एक-एक लड़की चुन लेते। आपस में एक दूसरे से कहते, 'भाई ये वाली मेरी और ये वाली तेरी!' हालाकि इस बात पे वो खुद झगड भी जाते। फिर इस बात पे आते की चलो उन लड़कियों से ही पूछ ले कि वो किसकी? असल में किसी की इतनी हिम्मत थी नहीं की वो लड़कियों से जाकर बात करे। लड़कियों से बात करने में वो ज़रा सरमाते थे। अगर कोई लड़की आकर उनसे बात करती तो उनके गाल लाल हो जाया करते थे।
मोहित के पापा अपने वक़्त में दस पास करके सरकारी नौकरी में लग गए थे। उन्हें बस ये लगता है की अब भी वैसा ही समय है जैसा उनके वक़्त पे था। उनका विचार था की लड़के ने बारवी पास कर ली है, तो अब ये कोई सरकारी नौकरी में लग जाता। पर उस वक़्त और इस वक़्त में काफी अंतर आ चुका है।
मोहित ने अपने पापा के मुताबिक़ डाक घर में नौकरी के लिए फॉर्म भरे। पर वो निकल न सका। जिनका जुगाड़ था वो लग गए और जिनकी कोई पहचान नहीं थी वो बेचारे रह गए। वह दो-तीन बार फ़ौज की भर्ती में भी गया पर वहा भी नाकाम रहा। मोहित के पापा को बेटा नाकारा लगने लगा था। तीन साल की पढाई पूरी कर लेने के बाद उसने कई सरकारी फॉर्म भरे, शायद कही-न-कही नौकरी मिल ही जाऐ इस सोच से। रात-रात भर की मेहनत के बाद भी वो किसी भी जगह न निकल सका। उसने फिर आगे की पढाई करी। दो साल की पढाई और पूरी हो चुकी थी और सफलता थी की हाथ को झुके निकल जा रही थी।
मोहित ने कुछ प्राइवेट नौकरिया भी करी। वो कामों को बीच में ही छोड़ दिया करता था। उसे वो काम अपनी काबिलियत से कम लगता था और सैलरी भी कम मिलती थी। उसके कुछ दोस्त सरकारी नौकरी में लग भी चुके थे। ये बात उसे मन-ही-मन उदास भी कर देती।
मोहित ने और उसके कुछ बेरोजगार दोस्तों ने मिलकर एक किराने की दुकान भी खोली। एक साल तक दुकान करने के बाद भी उन्हें नुकसान ही उटाना पडा था। इसलिए उन्होंने वो दुकान भी बंद कर दी और दूकान का सारा सामान थोक में दूसरे दुकानदारों को दे दिया। वो फिर से बेरोजगार हो गये थे। जब की उसकी छोटी बहन अपनी पढाई पूरी करके नौकरी में लग गयी थी वो भी सरकारी। इसलिए उसके पापा हर समय उसे बातें सुनाने में रहते। उसके पापा ने अब उसका नाम 'नाकारा' रख दिया था।
एक साल के बाद उसकी छोटी बहन की शादी तय हो गयी। शादी का सारा खरजा अंजलि और उसके पापा के रूपए से हुआ। मोहित को ताना देते हुए उन्होंने कहा, 'इतने बडे हो गए है और इनको आज तक पाल रहे है, इनके लिए कपडे भी हमें ही बनाने पड़ते है। किसी ने कहा बड़ा भाई है पर शादी का खर्चा खुद दुल्हन के पैसो से हुआ है।'
शादी के एक हफ्ते बाद, मोहित रात को नौकरी की तैयारी के लिए पढ रहा था। उसका मन बिलकुल भी किताबों पे नहीं था। थोड़ी देर तक वो अपने दोनों हाथों को सर पे रख कुछ सोचने में लग जाता है। असल में वो क्या सोच रहा है, उसे खुद समझ में नहीं आ रहा था। थोड़ी देर के बाद वो अपने कॉपी में से एक कागज का पन्ना फाड़ता है और उसमे लिखता है, 'बड़ा अकेलापन महसूस हो रहा है। कुछ समझ में नहीं आ रहा है की क्या कर रहा हूँ। मुझे नाफ कर देना मम्मी-पापा, मैं आप लोगो के लायक ना बन सका।'
शादी में जो कपडे उसके पापा ने उसके लिए बनाये थे। उन कपड़ो से वो खुद के लिए एक फंदा बनता है और खुद को पंखे से लटका देता है।