EK OR EK in Hindi Comedy stories by Ramnarayan Sungariya books and stories PDF | एक और एक

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एक और एक

कहानी--

एक और एक

--आर. एन. सुनगरया

‘’सेठजी गेहूँ क्‍या भाव है?’’

‘’साड़े 30 रूपये किलो।‘’

‘’अभी तो 25 रूपये किलो था!’’

‘’ थोड़ी देर बाद यह भी नहीं रहेगा। माल थोड़ा ही है।‘’

‘’हर जगह यही हाल है। लाओ बीस किलो तौल दो।‘’

महेश बहुत देर से ये बातें सुन रहा था। अपने पिताजी को गौर से देख रहा है, जो तौलने में कलाकारी करने की जुगाड़ लगा रहे हैं।

‘’हर जगह यही हाल है।‘’ ग्राहक के ये शब्‍द शत-प्रतिशत सत्‍य हैं। उसे गत वर्ष की पूरी झॉंकी याद आ गई। पिताजी का राशन दबाना, फिर उसे मुँह माँगें दामों पर बेचना यानि दोगुना-तिगुना मुनाफा कमाना और कम तौलना, वह तो अलग ही।

आज भी ऐसे लोग मौजूद हैं, जो ईश्‍वर से प्रार्थना करते हैं कि उन्‍हें खूब मुनाफाखोरी, रिश्‍वतखोरी, मिलावट और शोषण करने का मौका मिले। मौका मिले क्‍या, उन्‍होंने ऐसा माहौल ही बना रखा है कि उनकी मारी हलाल हो रही है।

कुछ ही प्रतिशत लोगों ने शेष लोगों के राशन पर अधिकार जैसा जमा रखा है। वे जिस भाव चाहते हैं, बेचते हैं, जितना चाहते हैं, बेचते हैं, जितना चाहते हैं, मिलावट करते हैं और मुनाफा, बहुत कमाने की तो मानों उन्‍हें हवस ही है।

ऊफ! सारा समाज कितनी गहरी नींद में सोया हुआ है कि मुठ्ठी भर स्‍वार्थी लोग सारे लोगों को निचोड़ रहे हैं। नंगे कर रहे हैं।

‘’सेठ जी मुझे बीज के लिए कुछ गल्‍ला दे दीजिये। भाव चाहे कुछ भी लगा लीजिये, फसल पर एक-एक दाना चुका दूँगा।‘’

ये शब्‍द सुनते ही महेश ने दुकान के सामने पटियों पर देखा, बहुत ही चिन्तित ऑंखें, आस लगाये पिताजी के सामने पटियों पर देखा, बहुत ही चिन्तित ऑंखें, आस लगाये पिताजी की ओर टुकुर-टुकुर घूर रही हैं। लेकिन पिताजी कड़क आवाज में कह रहे हैं, ‘’अब तुम्‍हारे पास रखा क्‍या है? घर तो मेरे पास ही डूब चुका है। दो खेतों की टुकड़ी ही मटक रही है। उन पर भी उधार लेकर खा चुके हो, फसल कितनी फट पड़ेगी, जो......’’

‘’बीज की कृपा कर दीजिये सेठजी, अब की बार अच्‍छी फसल होगी, क्योंकि मैंने मॉंग-चूँग कर खाद का भी इन्‍तजाम कर लिया है।‘’

‘’अच्‍छा, अभी तो गल्‍ला है नहीं, अगले महिने में आयेगा तो ले लेना।‘’

‘’लेकिन तब तक तो बोनी के दिन ही निकल जायेंगे।‘’

‘’तो मैं क्‍या करूँ?’’

टका सा जवाब सुनकर वह गरीब चलता बना।

लेकिन महेश को मालूम था कि पिताजी ने अगले महिने का बहाना किया है, जबकि बीज का गल्‍ला मौजूद है। उससे रहा नहीं गया, ‘’पिताजी।‘’ वह उनके सम्‍मुख आकर पूछने लगा, ‘’गल्‍ला होते हुये भी आपने मना क्‍यों कर दिया? समय पर बोनी नहीं होगी, तो उसके बच्‍चे भूखे नहीं मर जायेंगे?’’

‘’तुम्‍हें क्‍या!’’ वे कुछ अजीब नजरों से उसकी ओर देखने लगे, ‘’तुम तो अपनी पेंट की प्रेस देखो और ये देखो कि कौन से रंग की पेंट नहीं है।‘’

‘’ताकि आप बहुत से बदन वस्‍त्रहीन करके मुझे नई पेंट सिलवा सकें।‘’ महेश व्‍यंगात्‍मक बोला, क्रोध में।

‘’महेश!’’ सेठजी की क्रोधित आवाज गूँजने लगी, ‘’मैं जो भी कुछ करता हूँ, सिर्फ तुम्‍हारे ऐशो-आराम के लिये। मैं चाहता हूँ तुम हर साल पास होकर जल्‍दी से जल्‍दी एक बहुत बड़े आदमी बन जाओ। तुम गुलछर्रे उड़ाने का तो ध्‍यान रखते हो, मगर पास होने के नाम पर जीरो हो।‘’ अब उनकी आवाज कुछ धीमी हो गई, ‘’जाओ, जहॉं जाना है।‘’

‘’पिताजी मैं भूल से पास भी हो जाता तो मुझे जिन्‍दगी भर पछताना पड़ता।‘’ महेश की भयभीत सी आवाज है, ‘’क्‍योंकि गरीबों के खून के कतरे-कतरे का हिसाब मुझे देना पड़ता।‘’

इससे पूर्व कि सेठजी चिड़कर उसे ललकारते, एक भिन्‍न आवाज वहॉं लहरा गई, ‘’क्‍या बात है महेश, बाप-बेटे लड़ रहे हो?’’

‘’ओह श्‍याम!’’ महेश उसकी और बढ़ गया, ‘’बड़ी देर कर दी यार, आओ चलें।‘’

वे दोनों तो चले गये, लेकिन सेठजी बड़बड़ाते ही रहे, ‘’इस श्‍याम के बच्‍चे ने ही महेश के कान भरे हैं। खुद तो हर साल अव्‍वल नम्‍बर पास होता है, लेकिन महेश को पास होने को प्रेरित नहीं करता, कपटी कहीं का। इसी को ठीक करवाना चाहिए।‘’

सबको शोषक लोगों से बचाने के लिये श्‍याम और महेश ने बहुत कुछ विचार-विमर्श करने के बाद यह निर्णय लिया कि एक सहकारी उपभोक्‍ता भण्‍डार खोल दिया जाये, जिससे लोगों को सही कीमत पर, सही तौल पर, समय पर सुविधा पूर्वक और शुद्ध आवश्‍यक राशन प्राप्‍त हो सके।

उपरोक्‍त योजना को क्रियाशील करने हेतु पैसे की समस्‍या आई, तो श्‍याम-महेश ने एक सभा बुलाई और उसमें अपने विचार पेश किये।

करीब 20 आदमी इस काम में सहयोग देने को समर्थ हुये और चन्‍दे द्वारा कुछ रूपये एकत्र किये।

श्‍याम और महेश ने सहकारिता विस्‍तार अधिकारी से सम्‍पर्क करके उनकी उपस्थिति में अपने यहॉं एक समिति का गठन करा लिया और कुछ ही दिनों में उसका पंजीयन भी हो गया। दोनों सर्वसम्‍मति से उस समिति के मुख्‍य कार्यकर्ता घोषित हुये। ऐजेन्‍ट से मिलकर कुछ ऋण भी प्राप्‍त हो गया और निकट ही सहकारी उपभेक्‍ता भण्‍डार खोल दिया गया, जिसके उद्घाटन हेतु सहकारिता अधिकारी को बुलवाया था।

सभी के हृदयों में खुशी लहर-लहरा गई, लेकिन महेश के पिता और उनके साथी किलप गये। अब उनकी दुकान पर केवल वे ही लोग जाते, जिन्‍हें उधार की आवश्‍यकता पड़ती यानि मजबूरी होती और जो उनके कर्जदार होते हैं। बल्कि अब वे लोग भी उनसे छुटकारा पाने के लिये प्रयत्‍नशील हैं।

महेश के पिताजी और उनके अन्‍य साथियों की ऑंखें केवल श्‍याम पर ही लगी थीं, क्‍योंकि वे समझते थे श्‍याम ने ही लोगों को भड़काकर उनकी दुकानों पर मक्‍खी भिनकवाई हैं।

वे लोग श्‍याम से बदला लेने के लिये अवसर की ताक में रहने लगे। एक दिन महेश के पिताजी ने नन्‍दा, रमेश, भवानी आदि लोगों को बुलवाकर श्‍याम की चटनी बनवाने की योजना बनाई।

श्‍याम कुछ लड़कों के साथ बैठकर उपभोक्‍ता भण्‍डार में ही पढ़ता रहता था। सभी मिलकर एक-दूसरे की कठिनाइयों को हल करते थे। लेकिन आज केवल महेश और श्‍याम ही कुछ खास योजनाएं बना रहे थे। दरवाजा अर्धखुला होने के कारण बाहर से केवल श्‍याम ही धुँधली रोशनी में दिखाई दे रहा था। सेठ जी को खबर मिली कि श्‍याम अकेला है और उपभोक्‍ता भण्‍डार में ही बैठा है।

उनके लिये यह एक अच्‍छा मौका था, एक तीर से दो निशाने, श्‍याम की चटनी करने में सफलता मिलेगी।

जब सब लोग पूर्ण तैयारी करके आघी रात में पहुँचे, तो उन्‍हें श्‍याम की आवाज सुनाई दी, ‘’इस सहकारी समिति के गठन करवाने पर नन्‍दा, रमेश, भवानी आदि लोगों को फायदा होगा, जो कुछ ही रूपयों में हर किसी को मारने पीटने के लिये तैयार हो जाते हैं।‘’

‘’और दूसरी कौन-सी समिति होगी?’’

‘’दूसरी? कृषि सहकारी समिति होगी, जो उन लोगों को राहत देगी, जिन्‍हें समय-बे-समय यहॉं हाथ फैलाना पड़ता है। बीज और कृषि के औजारों के मोहताज रहते हैं।‘’

वे लोग एक दूसरे की सूरतें ताकने लगे। वहॉं से दबें पॉंव ही पीछे हट गये। उनमें से किसी ने कहा, ‘’जानते हो हम उस दीप को बुझाने आये हैं, जिसकी रोशनी कुछ घरों को तो रोशन कर चुकी है, शेष को रोशन करने हेतु प्रयत्‍नशील है, उनमें हमारे घर भी शामिल हैं समझे? हम सारे घरों में अँधेरा करने आये हैं।‘’

‘’सच है।‘’ दूसरे ने समर्थन किया, ‘’अगर हमें तरक्‍की प्यारी है, तो हमें शीघ्र लौट चलना चाहिए।‘’ यह सुनते ही उन्‍होंने लौटने में देर नहीं की।

‘’ओह, श्‍याम आओ-आओ।‘’ महेश कुर्सी पर से उठकर तुरन्‍त दरवाजे तक श्‍याम को लेने आ गया, ‘’मुझे तो मालूम है, मैं अब की बार भी फैल हो जाऊँगा।‘’

‘’वाह यार, खूब सुनाया।‘’ श्‍याम बैठते हुये बोला, ‘’तुम फर्स्‍ट डिवीजन पास हुये हो।‘’

‘’सच!’’ महेश को जैसे आश्‍चर्य हुआ, ‘’मजाक मत करो यार।‘’

‘’ये देखो अखबार!’’ श्‍याम ने उसकी ओर अखबार बढ़ाया।

इससे पूर्व कि महेश अपना रोल नं. देखकर कुछ कहता।

उसके पिताजी पूछ बैठे, ‘’क्‍या कहा महेश पास हो गया?’’ वे तुरन्‍त उनके करीब आ गये।

‘’हॉं, मगर आपके पैसों और ऐशो-आराम से नहीं।‘’ महेश पूर्ववत्त बड़ी नाराजगीपूर्ण बोला, ‘’मैं श्‍याम के पढ़ाने से पास हुआ हूँ।‘’

‘’कैसे भी हुये हो बेटा, गुस्‍सा थूक दो।‘’ वे महेश की जुल्‍फें सहलाने लगे।

‘’मगर एक शर्त पर पिताजी।‘’ महेश ने उनका हाथ हटा दिया।

‘’मैं तेरी हर शर्त मान लूँगा बेटे।‘’

महेश ने एक सॉंस में कहा, ‘’आज सभी लोग खुशी में उत्‍सव मना रहे हैं। वहॉं जाकर कह दीजिए कि मैंने आपका बहुत शोषण किया। अब मैं अपनी किराने की दुकान उपभोक्‍ता भण्‍डार को देता हूँ और जिस पर मेरा जो ऋण है सब माफ करता हूँ।‘’

कुछ सोचकर उन्‍होंने स्‍वीकार किया, ‘’तेरे बदले मैं यह कोई बड़ी बात नहीं है बेटे।‘’

वे तीनों उत्‍सव मैदान में पहुँचे। वहॉं लगभग सभी लोग मौजूद थे और नये-नये कपड़े पहनकर आये हुये थे। जब सेठजी पर उनकी नज़रें पड़ीं तो सबको कुछ आश्‍चर्य हुआ। जब मंच पर जाकर सेठजी ने अपना बयान सुनाया तो उन्‍हें और भी आश्‍चर्य हुआ।

थोड़ी देर में सबने तालियॉं बजाना शुरू कर दिया। तालियों की गड़गड़ाहट गगन छूने लगी।

सेठजी बहुत ही खुशी मेहसूस कर रहे हैं। जिनके प्रति लोग घृणा करते थे। पल भर में ही सभी के हृदयों में उनके प्रति श्रद्धा हो गई। जो अनन्‍त तक ज्‍यों के त्‍यों सुरक्षित रहेगी। इस कर्म से उन्‍हें बेटा ही, सभी लोग उनके हो गये।

जब सब लगभग शॉंतिपूर्वक उनकी तरफ देखने लगे, तो उन्‍होंने कहा, ‘’ऐसे खुशी के मौके पर मेरे बेटे का ही दोस्‍त नहीं, बल्कि पूरे गॉंव का मित्र है।‘’

सेठजी की बात का गॉंव के सभी लोगों ने समर्थन किया। तो श्‍याम बोला, ‘’मुझे आप लेागों का स्‍वागत करना चाहिए। आपने पूर्ण मेहनत ईमानदारी और लगनपूर्वक काम किया और हम सबकी समस्‍याऍं, एक दूसरे ने मिलकर सुलझा लीं।‘’

‘’लेकिन तुम्‍हीं ने।‘’ महेश मुस्‍कुराते हुये बोला, ‘’तुमने एक और एक मिलाकर ग्‍याहर कर दिये।‘’

♥♥♥ इति ♥♥♥

संक्षिप्‍त परिचय

1-नाम:- रामनारयण सुनगरया

2- जन्‍म:– 01/ 08/ 1956.

3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्‍नातक

4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से

साहित्‍यालंकार की उपाधि।

2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्‍बाला छावनी से

5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्‍यादि समय-

समय पर प्रकाशित एवं चर्चित।

2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल

सम्‍पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्‍तर पर सराहना मिली

6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्‍न विषयक कृति ।

7- सम्‍प्रति--- स्‍वनिवृत्त्‍िा के पश्‍चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं

स्‍वतंत्र लेखन।

8- सम्‍पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)

मो./ व्‍हाट्सएप्‍प नं.- 91318-94197

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