चयन
किसी भी नये उद्योग की स्थापना की जानकारी संबंधित अधिकारियों तक ही सीमित रहनी चाहिए। कभी कभी अधिकारी अपने आप को महत्वपूर्ण, बुद्धिमान और चतुर बताने के लिए दूसरों से बातचीत में कारखाने की योजनाओं के विषय में भी चर्चा करने लग जाते हैं जिससे गोपनीयता भंग होकर प्रतिस्पर्धी उसका लाभ उठा सकते हैं। इसलिये कहा जाता है कि कम बोलना और मौन रहना बुद्धिमानों का गुण है। किसी भी उद्योग, व्यापार, नौकरी में समय की प्रतिबद्धता, कार्य के प्रति समर्पण, नैतिकता, ईमानदारी आदि आधारस्तंभ होते हैं। सही समय पर सही निर्णय लेना ही प्रगति के पथ पर अग्रसर करता है और सुअवसर हाथ से निकल जाने पर हम केवल अफसोस ही कर सकते है। हमें लोगों की बातों से विचलित ना होकर अपने लक्ष्य की ओर निर्बाध गति से बढते रहना चाहिए।
एक बुद्धिमान व्यक्ति अपने प्रतिस्पर्धीयों से भी लाभ प्राप्त कर लेता हैं लेकिन मूर्ख व्यक्ति अपने हितैषियों से भी कोई लाभ नही उठा पाता। जीवन में अपने इरादों और योजनाओं को हमेशा गुप्त रखना चाहिए। हमें किसी की आलोचना ना करके उसके अनुभवों का लाभ उठाना चाहिए। ये अनुभव अनमोल है एवं इनमें सफलता के सूत्र छिपे है जो अगली पीढी को मार्गदर्शन देते है। बुजुर्गों के अनुभव और नई पीढी की रचनात्मकता से विकास होता है इसलिये अनुभवों को अतीत की बातें ना मानकर सम्मान देना चाहिये।
मुझे कुछ वर्ष पूर्व बिहार के मुंगेर में स्थित स्वामी सत्यानंद जी के आश्रम में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। वहाँ पर मेरी मुलाकात एक युवा व्यक्तित्व से हुई जो कि मैकेनिकल इंजीनियरिंग से स्नातक था वह अपना स्वयं का उद्योग स्थापित करना चाहता था। उसका चिंतन था कि उद्योग को सही ढंग से चलाने के लिए हमें अनेक निर्णय लेने होते है और ऐसे समय में मन, मस्तिष्क में एकाग्रता और शांतिपूर्वक निर्णय लेने की क्षमता होना आवश्यक है इसके लिए योग साधना सबसे उत्तम साधन हैं और इस हेतु मैं यहाँ पर आया हूँ और अगले माह वापस जाकर अपने उद्योग के संचालन में इसका प्रयोग करूँगा। उस आश्रम में लिखे एक वाक्य से मैं बहुत प्रभावित हुआ कि किसी भी कार्य को चाहे वह कितना भी छोटा और मामूली क्यों ना हो उसे अपनी पूर्ण क्षमता, लगन एवं समर्पण से करना चाहिए ताकि हमारे मन में कार्य सर्वश्रेष्ठ रूप से करने की क्षमता का विकास हो सके।
किसी भी उद्योग की मूलभूत आवश्यकता धन, कच्चा माल और मशीन है जिनकी उपलब्धता सही समय पर कराना अधिकारियों का कर्तव्य है। उद्योग में चाहे पाँच कर्मचारी कार्यरत हो या पाँच हजार उनसे काम कैसे करवाना है यह गुण उच्च अधिकारियों में होना चाहिए और उन्हें टेबिल पर बैठकर नही बल्कि कार्यक्षेत्र में स्वयं उपस्थित होकर निर्देशन देना चाहिए ताकि कोई समस्या उत्पन्न ना हो और मजदूरों के साथ सीधे संपर्क रहे। यदि अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को उनके नाम के साथ आप जानते हों तो यह आपकी एक महत्पूर्ण उपलब्धि रहेगी।
किसी भी उद्योग में दो वर्ष के अंदर 100 प्रतिशत उत्पादन क्षमता आ जानी चाहिए। पहले वर्ष कम से कम 70 से 80 प्रतिशत क्षमता का उपयोग होना चाहिए। हमें आत्मविश्वास से काम करना चाहिए पंरतु अतिआत्मविश्वास से बचना चाहिए। आधुनिकीकरण के संबंध समय समय पर उचित परामर्शदाताओं से मार्गदर्शन प्राप्त करने हेतु प्रयासरत रहना चाहिए। बैंक या किसी भी वित्तीय संस्थानों से लिए गए कर्ज की किस्तों एवं ब्याज का भुगतान समय सीमा के भीतर कर देने से अन्य अधिभारों से मुक्ति मिल जाती है। कर्मचारियों एवं श्रमिकों के हित के लिए ग्रेच्युटी ट्रस्ट बना देना चाहिए इससे आयकर में छूट तो मिलती ही है परंतु इसके साथ साथ विपरीत परिस्थितियाँ में यदि कारखाने को बंद करना पडे तो ग्रेच्युटी का भुगतान हो जाने से श्रमिकों और कर्मचारियेां को कोई असुविधा नही होती और कंपनी के उपर भी वित्तीय बोझ कम हो जाता है।
किसी भी उद्योग में कार्यरत मजदूरों की संख्या आवश्यकता से अधिक नही होना चाहिए अन्यथा काम न रहने के कारण उत्पादकता व गुणवत्ता में कमी आ जाती है। मजदूरों को अनुशासित रहते हुए अधिकारियों की बातों का पालन करना चाहिए और उनके प्रति पूर्ण सम्मान रखना चाहिए। किसी भी कर्मचारी की नियुक्ति करते समय नियुक्त पत्र पर नियमावली में यह स्पष्ट होना चाहिए उसका स्थानांतरण देश के भीतर स्थित कंपनी के अन्यत्र कारखाने में किया जा सकता है अन्यथा शासकीय नियमानुसार आप उसे 8 किमी. से अधिक दूरी पर स्थानांतरित नही कर सकते है। अधिकारियों एवं कर्मचारियों के वेतन का निर्धारण करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि कुल वेतन की 35 प्रतिशत के लगभग राशि उसे अन्य सुविधाओं जैसे बोनस, प्रोविडेंट फंड,ग्रेच्युटी आदि के रूप प्राप्त होती है।
सामान्यतः उच्च अधिकारी पांच प्रकार के होते है। पहला जो अपने कर्मचारियों को उच्च पदों पर बढाने हेतु संकल्पित रहता है और वे स्वयं बहुत कम बात करते हुए अपने ध्येय को पूरा करते है। दूसरे जो केवल अपनी उन्नति के विषय में सोचकर संस्था की आने वाली जरूरतों को पूरा करने के लिए समर्पित रहते हैं। तीसरे वो जो अपने आप से ही मतलब रखते है उन्हें किसी के लाभ या हानि से कोई मतलब नही होता हैं। चौथे वे जो कंपनी की समस्याओं का निदान करते है सिर्फ समस्याओं के विषय में चर्चा भर नही करते। पांचवे वे जो अधिक जवाबदारी लेने के लिए एवं अधिक कार्य करने के लिए सदैव तत्पर रहते है।
किसी भी उद्योग में जो पूंजी निवेश करता है वह चेयरमैन के रूप में जाना जाता है। वह मैनेजिंग डायरेक्टर और जनरल मैनेजर को वह नियुक्त करता है उनकी स्थिति चेयनमैन के पश्चात द्वितीय और तृतीय वरीयता के रूप में रहती है। ये तीनों सामूहिक रूप से आवश्यकता अनुसार विभिन्न विभागों के लिए अधिकारियों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति करते हैं। सामान्यतः मैनेजिंग डायरेक्टर एवं जनरल मैनेजर में जिन गुणों की आवश्यकता होना चाहिए वे संक्षिप्त में इस प्रकार हैं -
ऽ चेयरमैन को मैनेजिंग डायरेक्टर एवं जनरल मैनेजर के पदों पर नियुक्ति करते समय ध्यान रखना चाहिए कि वे अनुभवी एवं कारखाने के संचालन के संबंध में अच्छा ज्ञान रखते हो।
ऽ उनका व्यवहार, कार्यशैली एवं व्यक्तित्व प्रभावशली होना चाहिए क्योंकि इन अधिकारियों पर ही कंपनी की छवि निर्भर रहती है।
ऽ उच्च पदों पर नियुक्ति करते समय आवेदनकर्ता की पारिवारिक एवं आर्थिक स्थिति को समझना चाहिए। यदि वह आर्थिक रूप से बहुत सक्षम है तो संभव है कि वह अनुभव प्राप्ति हेतु ही आपके पास आया है, उसे वास्तव में नौकरी की आवश्यकता नही है। हम ऐसे योग्य व्यक्ति का चयन करे जिसे वास्तव में धनोपार्जन के लिए नौकरी की आवश्यता हो।
ऽ उसमें अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को अनुशासित और अपने कार्य के प्रति समर्पित रहने की भावना को जाग्रत करने की क्षमता हो।
ऽ वह कंपनी की कार्ययोजना को अधीनस्थ अधिकारियों एवं कर्मचारियों के सम्मुख इस प्रकार से प्रस्तुत कर सकें कि सभी उसे आसानी से समझकर उस दिशा में कार्यरत हो सके।
ऽ उसमें यह गुण होना चाहिए कि वह छोटे से छोटे स्तर के कर्मचारी की बात पर भी ध्यान देकर समुचित निर्णय लेने में झिझक महसूस ना करे।
ऽ इस बात का ध्यान रखें कि मैनेजिंग डायेरक्टर और जनरल मैनेजर आधार स्तंभ रहते है और उनमें कार्य के प्रति गहरी अभिरूचि तथा उत्पादित माल की गुणवत्ता के संबंध में ज्ञान होना चाहिए ।
ऽ उन्हें स्वयं को अनुशासित रखना चाहिए तभी वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर नियंत्रण रख सकेंगें।
ऽ उनमें उद्योग या व्यापार के विषय में निर्णय लेने और उस पर दृढ रहने की क्षमता होनी चाहिए।
ऽ उनमें अपने अधीनस्थ सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के प्रति सदभावना, सहानुभूति और विनम्रता रखते हुए उनकी कारखाने से संबंधित समस्याओं को समझकर उसका समुचित निदान करके सही दिशा में दिशानिर्देश देकर सबको साथ लेकर चलने का गुण होना चाहिए।
ऽ उनके मन में उद्योग एवं व्यापार के आधुनिकीकरण की प्रबल इच्छा होनी चाहिए।
ऽ उनमें अपने उद्योग को जहाँ तक संभव हो सके प्रतिस्पर्धा से बचाना चाहिए क्योकि इससे विक्रय मूल्य में कमी होकर नुकसान होता है।
ऽ उन्हें समय समय पर कारखाने की मशीन और तकनीक को बदलाव करने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।
ऽ उनका दृष्टिकोण सदैव सकारात्मक होना चाहिए। कंपनी के कार्य को अपना कार्य समझकर कार्यरत रहना चाहिए और प्रयासरत रहना चाहिए कि अधीनस्थ कर्मचारी भी ऐसा ही दृष्टिकोण अपने कार्य के प्रति रखे।
ऽ उनका दृष्टिकोण इतना व्यापक हो कि वह भविष्य में आने वाली समस्याओं को समझकर उनके निराकरण के लिए पहले से ही तैयार रहे।
ऽ कंपनी में कार्यरत श्रमिकों के सुझावों को ध्यानपूर्वक सुनकर उसे महत्व देकर यदि आवश्यक हो तो तुरंत ही अपनाना चाहिए।
ऽ उनका संपर्क सभी कर्मचारियों तक रहना चाहिए ताकि वे अपने मन की बात बिना झिझक के खुलकर कह सके ऐसा सौहार्दपूर्ण वातावरण होना चाहिए।
ऽ इन सभी उच्च पद पर कार्यरत अधिकारियों को गणित का अच्छा ज्ञान होना चाहिए ।
ऽ इन पदों पर आसीन लोगों को विभिन्न प्रकार की कारखाने से संबंधित विवरणी जो कि विभिन्न शासकीय विभागों को भेजना अनिवार्य है आदि की जानकारी भी होना चाहिए।
ऽ कारखाने में किसी कारणवश यदि कर्मचारियों द्वारा आंदोलन किया जाये तो उसे कानूनी रूप से एवं आपसी समझाइश द्वारा निदान करने की योग्यता होना चाहिए।
ऽ यह एक कटु सत्य है कि किसी भी उद्योग या व्यापार को चलाने के लिए अनेक शासकीय विभागों से संपर्क रखना पडता है जिससे अपने ही कार्य को विभिन्न शासकीय व्यवधानों से बचाने के लिए सुविधा शुल्क देना होता है, जो कि एक सामान्य प्रक्रिया है इन कार्यों को संपन्न कराने के लिए किसी एक उच्च अधिकारी को यह जवाबदारी स्वीकार करके इन कार्यों को गोपनीयता रखते संपन्न कराने की क्षमता होना चाहिए।
ऽ कारखाने से संबंधित प्रत्येक चुनौती का डटकर सामना करते हुए संघर्ष से समस्याओं के निवारण का रास्ता खोजने की क्षमता होनी चाहिए।
उपेक्षा और अवहेलना से कभी भी विचलित नही होना चाहिए।
किसी भी उद्योग में अधिकारियों की संख्या उस उद्योग के प्रकार एवं उत्पादन क्षमता पर निर्भर रहती है। लघु उद्योग में कम अधिकारियों की आवश्यकता होती है क्योंकि इसमें मूलतः मालिक को ही उत्पादन से लेकर बिक्री तक का नियंत्रण करना होता है। मध्यम एवं बडे उद्योगों में प्रत्येक विभाग जैसे उत्पादन, वितरण, विक्रय, गुणवत्ता, कर्मचारी प्रबंधन आदि विभागों के लिए अलग अलग अधिकारी रहते है ताकि उद्योग का प्रबंधन सुचारू रूप से संचालित हो सके। आज उच्च पदों पर नियुक्त अधिकारियों का वेतन एवं अन्य सुविधाएँ इतनी अधिक हो गई है कि छोटा उद्योग इसे वहन करने में असमर्थ हो जाता है। मध्यम एवं बडे उद्योग ही इन्हें वहन कर पाने की क्षमता रखते है।
कारखाने में होने वाली नई नियुक्तियों में यह ध्यान रखना चाहिए कि वे पहले कहाँ कार्यरत थे और क्यों नौकरी छेाडकर आपके पास रोजगार हेतु आ रहे है। मेरे एक मित्र के साथ इस संबंध में बहुत गंभीर दुर्घटना हुई। उसके उद्योग के एक प्रतिद्वंदी ने अपने ही एक वरिष्ठ अधिकारी और मशीनों का काम करने वाले एक फिटर को वहाँ पर नौकरी दिलवा दी। वे वहाँ की सभी गोपनीय बातें अपने पुराने मालिक के पास पहुँचाने लगे। इससे उनके उत्पादन की गुणवत्ता का पूरा रहस्य उनके प्रतिद्वंदी के पास पहुँचने लगा। उस फिटर ने एक दिन जानबूझकर एक नट बोल्ट खोलकर उसे मशीन के ऐसे अंदरूनी स्थान पर पहुँचा दिया जिससे मशीन खराब हो गयी। मशीन को ठीक करने में लगभग तीन माह का समय लग गया जिस कारण समय पर माल न दे पाने के कारण बाजार में उनकी साख को बहुत धक्का पहुँचा। कुछ समय बाद वे दोनो कर्मचारी नौकरी छोड कर अपने पुराने मालिक के पास वापिस चले गये। यह उनके प्रतिद्वंदी की चाल थीं हालाकि नैतिकता के मापदंड से यह बहुत गलत बात थी परंतु आजकल प्रतिद्वंदिता के कारण कोई भी किसी भी स्तर तक गिर सकता है।
किसी भी उद्योग या व्यापार में स्थान का चयन सबसे महत्वपूर्ण होता है। हमें किसी भी उद्योग या व्यवसाय के लिए ध्यान रखना चाहिए कि उसकी स्थापना कच्चे माल की उपलब्धता, बिजली सुविधा और विक्रय बाजार उसके आसपास हो तभी हमारी लागत कम होकर अधिकतम लाभ मिल सकेगा। इसके साथ ही साथ यह ध्यान रखे कि कारखाने के आसपास ही अच्छे स्कूल, बाजार एवं मनोरंजन के केंद्र एवं स्वास्थ्य संबंधी सुविधायें भी उपलब्ध रहे। वर्तमान समय में अधिकारीगण दूरदराज के क्षेत्रों में जाकर नही रहना चाहते है। हमारे कारखाने के आसपास ही मजदूरों की उपलब्धता आसानी से हो जाए इसका ध्यान रखना बहुत आवश्यक है अन्यथा कारखाने का संचालन कठिन हो जाता है।