Dah-Shat - 53 in Hindi Thriller by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | दह--शत - 53

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दह--शत - 53

एपीसोड -----53

समिधा के घर के ओवरहैड टैंक से पानी न आने से बाथरूम ,वॉशिंग प्लेस व वॉश बेसिन्स का पानी बंद है। बहुत परेशानी हो रही है। वह पड़ौस में पता करती है, सभी के यहाँ पानी आ रहा है। उसे ध्यान आता है कि उनके ऊपर रहने वाले पड़ौसी एक शादी में शहर से बाहर गये हैं। तो कौन गवाही दे सकता है कि समिधा को पानी के लिये तंग किया जा रहा है ?

उसका गुस्सा कार्मिक विभाग के प्रमुख पर निकलता है, “हमारी लेन में सभी के यहाँ पानी आ रहा है सिर्फ़ हमारे यहाँ तीन दिन से पानी नहीं आ रहा। आपके यहाँ के लोग चैक कर गये हैं। टंकी का वॉल्व भी ठीक है। ज़रा पता करिए कोई जान बूझकर हमें तंग तो नहीं करवा रहा।”

सुबह अभय को वॉटर वर्क्स के पानी की सप्लाई के नल से तीन-चार बाल्टी पानी बाथरूम में डालना पड़ता है। समिधा गुस्से में बोले बिना नहीं रहती, “और गुंडों में रहो। वे पानी बंद करवा रहे हैं, मुसीबत तुम्हारी आ रही है।”

“तुम हर बात को उस बात से जोड़कर क्यों देखती हो? तुम साइकिक हो रही हो।”

“सबके यहाँ पानी आ रहा है, हमारे यहाँ नहीं, इसका मतलब क्या है? उस दिन मैं ज़ेरोक्स करवा रही थी तो एक कार्टून को मेरे पीछे लगा दिया कि मेरा नाम ‘कातिल बड़ौदवी’ है। उन्हें लग रहा होगा कि मैं कत्ल के डर से निकलना बंद कर दूँगी। तीसरे दिन एक साधु घर पर आ गया, जो पढ़ा-लिखा सुरक्षा विभाग का कर्मचारी लग रहा था।”

“सब तुम्हारे लिए ही खाली बैठे हैं, उन्हें कोई काम नहीं है?”

“अपने गुंडे साथियों और अमित कुमार तक ये बात पहुँचा देना मैंने मैडम के पास लिखकर दिया है यदि मुझे कुछ हो जाये तो इस केस का सी.बी.आई. को दे दें।”

“तुम क्या ऊट पटाँग सोचती रहती हो, तुम साइकिक हो रही हो।”

“सुन लो, यदि मुझे कुछ हुआ तो इस शिकायत से चार परिवार बर्बाद हो जायेंगे।” ये समिधा का गुंडों को धमकी देता कौन सा रूप है ?

दूसरे दिन ही सुबह बाथरूम में पानी आने का संगीत बजने लगता है, फिर एक दो दिन के अंतराल बाद पानी रोका जाता है जिससे दो तीन बाल्टी पानी ही भरा जा पाता है। इस पानी से काम चल ही जाता है क्योंकि घर में दो ही प्राणी हैं, ऊपर के पड़ौसी जब बीस दिन बाद लौटते हैं तो पानी नल से बह उठता है छलछला-छल-छलछला-छल।

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दस ग्यारह दिन बाद समाचार पत्र को पकड़ने वाला हाथ थरथरा जाता है एक सुरक्षा संस्था न की निदेशक रीमा भल्ला ने आत्महत्या करने की कोशिश की क्योंकि उसने अपने जिस बॉस के शारीरिक शोषण करने के प्रयास के विरुद्ध आरोप लगाया था उसकी सुनवाई कहीं नहीं हो रही थी। छानबीन करने वाली महिला ने उससे कहा है कि प्रमाण लेकर आये। क्य़ा ऐसे शोषण करने के इरादे का कोई भी महिला प्रमाण जुटा सकती है ? उससे भी तो अमित कुमार फ़ोटो मांगते थे रीमा भल्ला से भी यही कहा गया था जो वर्मा के ब्रांच ऑफ़िसर ने उससे कहा था, “आई डोन्ट विश टु बी डिस्टर्ब्ड ऑन सच एन इश्यु।”

रीमा भल्ला ने घबरा कर प्रधानमंत्री के सचिव से समय माँगा तो उनके पास हफ़्तों तक उनकी बात सुनने का समय नहीं था- वह इतनी टूट चुकी हैं कि मौत को गले लगाना चाह रही हैं। वो हताशा क्या होती है ? प्रशासन के पास शिकायत के लिए भागते रहो। प्रशासन के कान पर जूँ भी न रेंगे। अपराधियों की यानि की दुश्मनों की संख्या बढ़ती जाये-समिधा भाव विह्वल होकर रो पड़ती है। उस अनदेखी रीमा भल्ला के लिए, उन लाचार स्त्रियों के लिए जो चक्रव्यूह में फँसा दी जाती हैं। उनकी कहीं सुनवाई नहीं होती। समिधा की नज़र एक और समाचार पर पड़ती है कि एक पति ने अपने दोस्त के साथ मिलकर अपनी पत्नी की हत्या कर दी। क्या ऐसे समाचार में उस दोस्त में किसी भी तरह का नशा देते विकेश जैसा भेड़िया नहीं छिपा होता?”

रीमा जो पद और पैसा होते हुए भी कुछ महीनों में हिम्मत छोड़ बैठी है, समिधा के पास क्या है? वह बरसों से रणभूमि में डटी हुई है। बच्चों की चिंता-उनका प्यार-सामाजिक रिश्ते जिन्हें सींचने में उसने उम्र बिताई है वही अपने उत्सवों में बुलाकर उसे ऊर्जा से भर देते है। आश्चर्य है समिधा जो कभी अपने लिए नहीं रोई उस अनदेखी रीमा भल्ला के लिए आँसुओं से हिचकी भर-भर कर रोये जा रही है।

“तू इस कॉलोनी में है या डरकर भाग गई?” नीता का खनकता स्वर फ़ोन पर है।

“तू क्या मुझे इतना कमज़ोर समझती है?”

“मैं तो यही समझी थी कि तू शहर छोड़ गई।” वह मज़ाक करती है।

“ओ नो।”

“कुछ याद है?”

“क्या?”

“आज पाँच जुलाई है।”

“ओ माई गॉड ! वैरी सॉरी, वैरी वैरी सॉरी। हेपी बर्थ डे टु यू। मैं अपने ही ‘टेन्शन’ में थी।”

“मैं सुबह से तेरे फ़ोन का इन्तजार कर कही थी जब फ़ोन नहीं आया तो शाम को तुझे फ़ोन कर डाला। किस उलझन में हैं?”

“वही किस्सा ख़त्म होने पर नहीं आ रहा। हमारे ओवर हेड टैंक में पानी की सप्लाई बंद करवा कर हमें यहाँ से भगाने की कोशिश कर रहे हैं।”

“वॉट? वह भी एक रंडी के लिए?” नीता व्यग्र हो जाती है।

“देख ले इस भयानक औरत ने हमें ये शब्द कहना सिखा दिया है।”

“ये ऐसा मामला फँस गया है। मैं तेरे लिए कुछ भी नहीं कर सकती। मैंने पेपर में पढ़ा था कि गांधीनगर के पुलिस भवन के सामने एक लड़की ने कपड़े उतारने की कोशिश कर, विरोध प्रदर्शन किया क्योंकि उसने कुछ गुंडों के खिलाफ़ रिपोर्ट की थी। पुलिस कोई कार्यवाही नहीं कर रही थी।”

“और मेरे साथ क्या हो रहा है? दिल्ली से कमप्लेन नम्बर भी मिल गया था। यहाँ जाँच करने वाले खुद ही गुंडे हैं।”

फ़ोन पर उन दोनों के बोझिल मन कुछ क्षण मौन रहते हैं। नीता भरे गले से कहती है,“अपने को सम्भालना।”

“ओ.के. बाय ऽऽऽ......।”

अभय के साथ रात में घूमते समय समिधा का मन अवसाद से भरा है। अभय आदतन आगे घूमने निकल गये हैं। वह रोज़ की तरह लौट रही है। सामने दुकानें दिखाई देने लगी हैं। तभी आगे जाता ट्रक सड़क के बाँयी तरफ उसने सामने रुक जाता है। इस ट्रक में ऊपर तक सामान भरा है जिसे भूरी त्रिपाल से ढककर रस्सियों से बाँधा हुआ है।

इतने भारी भरकम ट्रक को अचानक सामने खड़ा देखकर समिधा अचकचा जाती है। यहाँ न चौराहा है न तिराहा है। ये ट्रक फिर क्यों खड़ा हो गया है क्या करे वह? सड़क के बाँयी तरफ खड़े ट्रक के बाँयी तरफ़ के कच्चे रास्ते से आगे निकल जाये? न बाबा न। कहीं सच ही दुश्मनों का भेजा ट्रक हुआ तो? ट्रक की आगे की खिड़की से कोई धारदार चीज उस पर फेंकी जा सकती है। अरे...... अरे...... ये कोई फ़िल्म या कोई टी.वी. सीरियल थोड़े ही चल रहा है? वह अभी सोच ही रही है कि ये क्या? ट्रक बैक होने लगता है। समिधा हैरान है उसकी उम्र देखकर भी ड्राइवर बिना हॉर्न बजाये ट्रक को पीछे की तरफ़ चला रहा है।

समिधा फ़ुर्ती से ट्रक के पीछे से सड़क क्रॉस करके दाँयी तरफ चलती फ़ुटपाथ पर चढ़ जाती है। उसका दिल धड़ धड़-धड़ करना चाहिये। उसे डरना चाहिये लेकिन वह कितनी शांत व सहज है वह हल्के से मुड़कर देखती है। ट्रक की हैड लाइट्स की चकाचौंध रोशनी के अलावा उसे कुछ नहीं दिखाई देता।यदि वह ऐसा नहीं करती तो ?धड़कते दिल से घबराहट में कुछ सोचना भी नहीं चाहती।

सामने कविता का घर अंधकार में डूबा हुआ है। नीम के पेड़ के नीचे रोज़ की तरह कुछ लोग खड़े हैं। ऐसा हो नहीं सकता कि उन लोगों ने ये दृश्य नहीं देखा हो लेकिन ये कौन सोच सकता होगा कि ये समिधा को मारने की साजिश है? क्या सच ही?

दूसरे दिन इतवार है। एक गुजराती शब्द का अर्थ जानने वह शाम को कागज़ पेन लेकर पीछे आऊट हाऊस के सामने आ जाती है। शाम के झुटपुटे में सामने की छत पर कविता की धुंधली परछाई उसे देख पीछे हट जाती है। वर्मा छत पर घूमता हुआ छत की मुंडेर के पास आता है। समिधा को अपने काले चश्मे में से देखकर सकपका कर पीछे हट जाता है।

समिधा के अब रीड़ की हड्डी में एक थरथराहट रेंग जाती है। महीनों उसने शाम को इन दोनों को छत पर नहीं देखा है। तो कल सच ही समिधा को कुचल देने के लिए ट्रक पीछे की ओर चल दिया था। यदि समिधा ट्रक के मोटे पहियों से कुचल दी गई होती तो उसकी मौत की ख़बर आग की तरह केम्पस में फैल जाती। तो ये गुंडे छत पर आकर क्या जानने की कोशिश कर रहे हैं? समिधा के हाथ पैर टूटे हैं या नहीं। उपर वाले का ये कैसा खेल है? कौन उसे सद्बुद्धि देकर बार-बार बचा रहा है?

सोमवार को वह एम.डी. मैडम के पी.ए. को फ़ोन करती है,“गुंडे मज़ाक समझ रहे है कि मैंने मैडम के पास लिखकर रख दिया है। यदि मुझे कुछ हो जाये तो मैडम केस सी.बी.आई. को सौंप दें।”

“हाँ मैडम बता रहीं थीं आप लिखकर दे गई है।”

वह एक झूठा एस.एम.एस. अभय के नये मोबाइल पर कर देती है-‘विकेश को भक्त प्रहलाद की कहानी याद आ गई होगी, वह ट्रक पकड़ा गया है।’

एक ट्रक का इंतज़ाम तो एक व्यवसायी ही कर सकता है। केम्पस के किसी एक्सीडेंट को सुरक्षा विभाग झुठला ही सकता है, यदि वह चाहे तो। समिधा इस भयानक खेल के बीच इतनी शांत क्यों हो चुकी है? सच ही ऊपर वाले ने उसके दिमाग़ व शरीर को रक्षा कवच पहना दिया है। एक मामूली स्त्री तो अब तक अपना मानसिक संतुलन खो बैठी होती।

अभय का चेहरा निर्विकार है। उन्हें इस भयानक खेल की ख़बर होगी भी या नहीं एम डी मैडम टूर पर हैं। समिधा एक पत्र में ये घटना लिखकर व पानी की सप्लाई बंद करने की बात लिखकर उनके पी.ए. को दे आती है। समिधा के यहाँ अभय के रिश्तेदार एक-एक करके रहने आ रहे हैं। उनकी मेहमान नवाज़ी में वह मैडम से मिलने निकल नहीं पाती।

उधर अलसाती हुई हवायें बारिश में भीगकर अलमस्त हो चुकी हैं। कोयल कू ऽऽ...... कूऽऽ.....करके बता रही है मोर तुम मचलकर नाचो.... पपीहा पीयू..... पीयू.... तो बोलो..... इस सुरमई सावन में झूमो। वैलफेअर इंस्पेक्टर का समिधा के पास फ़ोन आता है, “मैडम !गुडमॉर्निंग !”

“गुडमॉर्निंग ।”

“मैडम अणिमा आपको याद कर रही है। वह महिला समिति की नई सेक्रेटरी बनी है।”

“गुड ! मेरे यहाँ गेस्ट हैं इसलिए मैं मीटिंग में नहीं आ पाई थी।”

“तीज के फ़ंक्शन में आप कुछ प्रोग्राम देना चाहे तो उन्हें फ़ोन कर लें।”

उसके एक्सीडेंट की साज़िश को संरक्षण देने वाले अमित कुमार की पत्नी उसे नृत्य करने के लिए निमंत्रित कर रही हैं। वह तुरंत अनुभा को फ़ोन करती है, “हलो अनुभा।”

“गुड मॉर्निंग, और बता क्या हाल है?”

“तीज के फ़ंक्शन में इस बार क्या करना है?”

“अरे यार ! नीता के पैर में फ़्रेक्चर हो गया है।”

“वॉट?”

“हाँ, पता नहीं हमारे ट्राइएंगिल को किसकी नजर लगी है।”

“सुन ये नज़र बहुत गहरी लगी है किसी ओझा को बुलाना पड़ेगा हा.... हा..... हा....।”

“अच्छा ऽ ऽ.....।” वह भी हँस पड़ती है।

“कौशल बंगलौर ड्यूटी पर गये हैं। मैं भी उनके पास जा रही हूँ। तू किस गाने पर डाँस करेगी?”

“देवदास के गाने पर सोच रही हूँ।”

“गुड, अपन तो बाद में सीडी देखकर दिल बहला लेंगे।”

समिधा केम्पस के पास वाली सीडी शॉप पर जाती है। इस कोने की दुकान पर तीन-चार सीढ़ी नीचे उतर कर पहुँचना होता है। दुकान के काउंटर के पास एक लंबे कद का व्यक्ति खड़ा है। समिधा को देखकर दो-तीन सीढ़ी चढ़ता ऊपर पहुँच जाता है। दुकानदार समिधा से कहता है,“देवदास की डीवीडी आपको डेढ़ सौ में मिलेगी।”

“वॉट? इतनी महँगी?”

उसके चेहरे पर शरारती मुस्कान है, “ये ओरिजिनल है न।”

`` मुझे बेवकूफ़ समझते हैं ?क्या ओरिजिनल सी डी इतनी महंगी होती है ?

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नीलम कुलश्रेष्ठ

ई -मेल – kneeli@rediffmail.com