Suljhe Ansuljhe - 5 in Hindi Moral Stories by Pragati Gupta books and stories PDF | सुलझे...अनसुलझे - 5

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सुलझे...अनसुलझे - 5

सुलझे...अनसुलझे

कभी सोचा है

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पांच-छ: महीनों से एक मरीज़ा का हर महीने ही आना हो रहा था| वह अपना प्रेगनेंसी टेस्ट करवाने हमारे ही सेंटर पर आती थी। जब भी आती तो मुझे अभिवादन करना नही भूलती थी। उसका नाम आशी नाम था।

सैकड़ो मरीज़ो के बीच, जब कोई चला कर अभिवादन करने जैसी आदत बना लेता है तो हमेशा ही स्मृतियों में रहता है| ऐसे में औपचारिक रिश्तों में भी अनायास ही एक अनजानी-सी आत्मीयता जुड़ जाती है| जहाँ प्रश्नों को पूछने और उत्तर देने में सहजता रहती है| ऐसा ही कुछ आशी और मेरे बीच हुआ|
आशी तीन दिन पहले ही आकर गई थी| पर आज जब उसे वापस सेंटर की सीढ़ियाँ पर चढ़ते देखा तो मुझे अपनी कुर्सी से उठकर रिसेप्शन पर आना पड़ा। वह अपनी रिपोर्ट लेने आई थी|

मैंने उसे अपने चेम्बर में अंदर बुलाया और अपने पास बैठने को कहा| मेरे अचानक ही अंदर बुला लेने पर उसने प्रश्नसूचक दृष्टि मेरे चेहरे पर डाली| तो मैंने उससे पूछा...

“क्या हुआ आशी....आज आपने वापस प्रेगनेंसी टेस्ट क्यों करवाया।”…

“कुछ नही मैम| तीन दिन पहले प्रेगनेंसी टेस्ट वीकली पॉजिटिव आया था| तो सोचा वापस करवा लूँ। आज सवेरे वापस करवाया था तो पॉजिटिव आया है|’...आशी ने कहा।

“फिर तुमने क्या सोचा है आशी!....एक बात पूछूँ बुरा मत मानना| तुम कुँवारी हो या शादी शुदा?”...मैंने झिझकते हुए उसके मन की टोह लेटे हुए पूछा।

चूँकि आजकल किसी को भी सामने से देखकर कुँवारे होने या शादीशुदा होने का अनुमान लगा पाना बहुत ही मुश्किल होता है। सो बहुत ही स्वाभाविक-सा यह प्रश्न मैंने पूछ लिया। वह मुझे एकटक देख रही थी और मैं उसके चेहरे पर आते-जाते भावों को पढ़ने की चेष्ठा कर रही थी क्यों कि मुझे उसके उत्तर की प्रतीक्षा थी।

“जी मेम! अभी मेरा विवाह नही हुआ है| पर मेरा एक बहुत करीबी दोस्त है| उनके साथ मेरी बहुत गहरी मित्रता है| हम दोनों विवाह भी करेंगे|”

अपनी बात बोलकर आशी ख़ामोशी से मुझे तकने लगी। इतने लोगों को रोज ही देखते, सुनते और उनके चेहरों को पढ़ते मुझे भी एक अरसा हो चुका था| बहुत कुछ उस अनकहे को पढ़ने की आदत हो गई थी, जो अक्सर लोग कहने में हिचकिचाते हैं| मुझे उसकी आँखों में ख़ुद के लिए कुछ तनाव-सा महसूस हुआ। अब उसका चेहरा भावशून्य हो गया था|

आजकल इस तरह के संबंधों को स्वीकारने में युवाओं को हिचक लेशमात्र भी नही महसूस होती है। यह बात मैं बहुत अच्छे से समझती थी| आज के युवा इसको आधुनिकता की श्रेणी में रखते हैं या फिर इसे आज की सच्चाई और जरूरत मानकर स्वीकारते हैं|

“साथ रहते हो तुम दोनों?...क्या करती हो तुम? कहीं नौकरी या घर पर ही रहती हो।"...
"जी हम दोनों इसी शहर में नौकरी करते है...एक ही कंपनी में काम करते हैं। सो मिलते ही रहते है|" ...
"आशी यह टेस्ट तो तुम घर पर भी कर सकती हो| फिर यहां आने की क्यों जरूरत पड़ी तुम्हें..."

मैं आशी को वो महसूस करवाना चाहती थी जो वह भावों में बहकर महसूस नहीं कर पा रही थी|

"जी करती हूं घर पर भी| पर क्रॉस चेक करने के लिए यहां आती हूँ|.."

" टेस्ट पॉजिटिव आया है| अब क्या करोगी तुम?

"जी अभी शादी नही हुई है...तो गर्भपात ही करवाना होगा|" ...आशी ने कुछ तनाव भरी आवाज़ में ही जवाब दिया। बात करते समय उसके चेहरे पर से मुस्कुराहट बिल्कुल गायब थी|

वैसे तो आज का युवा-वर्ग विवाह को भी गैर जरूरी समझता है| इस बीच बच्चे पैदा हो जाए तो उसको भी सही ठहराने में नही चूकता| पर शायद अभी भारतीय परिवेश में इसको पूरी तरह स्वीकार पाना व्यवहार में नहीं आया है।अपनी बात को जारी रखते हुए मैंने आशी से पूछा....

"कितनी बार ऐसा निर्णय ले चुकी हो तुम?

"जी दो बार ..क्यों पूछा आपने?

उसके प्रश्न का जवाब देने के बजाए,मैंने अगला प्रश्न ही पूछ लिया।

"आशी! कभी तुम्हारा दोस्त साथ नही आया। बहुत प्यार करते हो न तुम दोनों? तभी तो वक़्त भी साथ में गुजारते हो।..कब से साथ हो?

"जी प्यार तो करता है ...हम दोनों दो साल से साथ हैं।

'हाँ! करता तो होगा ही तुमको वो प्यार| तभी साथ में वक़्त गुज़ारते हो|...मुझे सोच कर बताओगी कि पिछले कुछ महीनों से ही तुम्हें प्रेग्नेंसी टेस्ट को क्रॉस चेक करने की जरूरत क्यों पढ़ रही है? ...

आशी अब ज़वाब देने में असमर्थ थी और किसी गहरे सोच में होने से चुपचाप ही मुझे देखती रही| न जाने क्यों मुझे आभास हुआ वह भी कहीं न कहीं बहुत कुछ सोचना चाह रही है| पर लड़के के लिए उसका लगाव सोचने नहीं दे रहा है| फिर मैंने ही अपनी बात पुनः शुरू करते हुए उससे कहा.…

"आशी कभी सोचा है तुमने....जो तुम कर रही हो उसका नतीज़ा भविष्य में क्या होगा?...तुम अपने लिए खाई खोद रही हो| जिसमें गिरने के लिए सिर्फ तुम आती हो| ...आखिर कब तक ख़ुद पर यह टॉर्चर करोगी? सोच कर देखना। यह शरीर तुम्हारा है जिसके साथ तुम अत्याचार कर रही हो|"....

काफी देर तक आशी निःशब्द ही मुझे देखती रही| मानो उसके सोचने-विचारने की शक्ति,उसके दोस्त की सोच से टकराकर शून्य में कहीं गुम हो गई हो| या फिर मेरी कही बातों में, वह अपनी गुज़री ज़िन्दगी का आकलन करके स्वयं को ख़ोज रही हो ऐसा प्रतीत हुआ|

खुद से प्रेगनेंसी टेस्ट करने के बाद भी क्रॉस चेक करना उसके अपने अंदर दबे डर को भी इंगित कर रहा था।

बढ़िया नौकरी होने के बाद भी आज का युवा अपनी भावनाओं से हार रहा है| आज के इस भागदौड़ वाले समय में युवावर्ग आधुनिकता के नाम पर जिस होड़ में जुटा है,उसमें शरीर की पूजनीयता से जुड़े मानदंड कहीं खो गए है। सिर्फ क्षणिक सुख ही सर्वोपरि होता जा रहा है। जब भावनाओं से जुड़ी परिभाषाएं बदलती है या तब शरीर से जुड़ी प्राथमिकताएं उनकी जगह लेती हैं| ऐसे में मानसिक विकृतियों का बहुत खराब रूप सामने आता है। यह भी पहलू बहुत सोचनीय है।

इतनी अच्छी जगह, अच्छे ओहदे पर काम करने के बाद भी अक्सर हमको जिन भावों से जुड़े पहलुओं पर भी सोचना चाहिए ,सोच नही पाते| बस बहते जाते है एक अंतहीन बहाव में। जब होश आता है तो अपना ही नुकसान कर बैठते है।

आज आशी भी कुछ कुछ ऐसे ही द्वन्दों को महसूस कर रही थी।मेरे से बात करने के बाद उसकी उलझन पर से शायद कुछ धुंध हटी थी तभी वह मेरे से बोली.....

“ह्म्म्म आप ठीक कह रही हैं.....पर अब नहीं भटकूँगी|...मैं भी अपने इस रिश्ते की असल दिशा को जरूर सोचूंगी|....जरूर सोचूंगी …

शुक्रिया मेम! कहकर आशी मुझ से विदा लेकर चली गई| साथ ही मुझे भी एक अनकही-सी सांत्वना देकर ,काफी हद तक निश्चिंत कर गई।

प्रगति गुप्ता