इंस्पेक्टर सोहराब को घूरते देखकर सलीम दूसरी तरफ देखने लगा।
सोहराब, कैप्टन किशन के सामने दूसरे सोफे पर बैठ गया। सार्जेंट सलीम भी सोहराब की बगल में आकर बैठ गया।
“जी बताइए, कैसे आना हुआ।” सोहराब ने नर्म लहजे में पूछा।
“सोहराब साहब, शेयाली मेरी भतीजी थी। मैं एफआईआर लिखाने कोतवाली गया था। वहां से पता चला कि इस केस को आप देख रहे हैं। इसलिए इधर चला आया।” कैप्टन किशन ने गमगीन लहजे में कहा।
“जी हां, यह केस खुफिया महकमे को ट्रांसफर हो गया है।”
“यह तो अच्छी बात है कि अब केस जल्दी साल्व हो जाएगा।” कुछ देर खामोश रहने के बाद कैप्टन किशन ने पूछा, “क्या कुछ खास मैटर है, जिसकी वजह से खुफिया विभाग इसकी जांच कर रहा है... मेरा मतलब है कि क्या यह खुदकुशी नहीं है।”
“यही बात हम आपसे समझना चाहते हैं।” इंस्पेक्टर सोहराब ने सिगार का कोना तोड़ते हुए पूछा।
“आप क्या जानना चाहते हैं।”
“कैप्टन साहब, आपको क्या लगता है कि शेयाली खुदकुशी कर सकती है?”
“मेरे ख्याल से वह ऐसा नहीं कर सकती। वह थोड़ा जिद्दी जरूर थी, लेकिन उसमें जिंदादिली थी।” कैप्टन किशन ने ठंडी आह भरते हुए कहा, “मैं उसके लिए एक फिल्म भी बना रहा था। इस फिल्म से उसे बतौर अभिनेत्री लांच करने की तैयारी थी। वह बहुत खुश भी थी, लेकिन सब कुछ खत्म हो गया।”
कुछ पल के लिए ड्राइंग रूम में खामोशी छा गई।
“कौन सी फिल्म बना रहे हैं आप?” सार्जेंट सलीम ने पूछा।
“एक हॉरर मूवी।” कैप्टन किशन ने कुछ दूर बैठ दुबले-पतले युवक की तरफ इशारा करते हुए कहा, “यह शैलेष जी अलंकार हैं। यही फिल्म के राइटर और डायरेक्टर हैं।”
युवक ने हाथ जोड़कर उन्हें नमस्कार किया। सार्जेंट सलीम का पहली बार उसकी तरफ ध्यान गया था। उसके पूरे चेहरे पर दो ही खास बाते थीं। पहली उसकी फ्रेंच कट दाढ़ी, और दूसरी उसकी आंखें। ऐसा लगता था कि ऊपर वाले ने उसके चेहरे में बाद में दोनों आंखें बाहर से फिट कर दी हों। दोनों आंखें बाहर की तरफ निकली हुई सी थीं। उसकी आंखें देखकर सार्जेंट सलीम को हंसी आ गई।
शैलेष अलंकार सलीम को हंसते देख कर तीखी नजरों से उसे घूरने लगा।
“क्या नाम है आपकी फिल्म का?” सार्जेंट सलीम ने पूछा।
“शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर।” शैलेष अलंकार ने घूरते हुए ही जवाब दिया।
“बहुत अजीब नाम है।” सलीम ने मुंह बनाकर कहा।
“जी हॉरर फिल्मों के नाम ऐसे ही होते हैं।” शैलेष जी अलंकार ने तल्खी से कहा।
“इससे पहले आपने कौन सी फिल्म बनाई थी?” सार्जेंट सलीम ने उसे फिर छेड़ा।
“यह मेरी पहली फिल्म है।” यह बात कहने के बाद शैलेष अपने होंठ दांतों से चबाने लगा। जैसे गुस्सा जब्त करने की कोशिश कर रहा हो।
“सोहराब साहब, क्या कल भी समुंदर में सर्च आप्रेशन चलाया जाएगा? कम से कम हमें उसकी लाश ही मिल जाती।” कैप्टन किशन ने दर्द भरे लहजे में कहा।
“इफ यू डोंट मांइड... लेकिन लाश मिल पाना बहुत मुश्किल लग रहा है। लगता है कि समुंदर की लहरें उसे काफी दूर बहा ले गईं।” सोहराब ने कहा, “हम पूरी कोशिश करेंगे कि शेयाली का पता चल सके।”
“आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।” यह कहते हुए कैप्टन किशन उठ खड़ा हुआ। सलीम ने नोट किया कि मोटे होने के बाद भी उसमें गजब की फुर्ती थी।
“आपके सुप्रिटेंडेंट साहब हमारे दोस्त हैं।” कैप्टन किशन ने इंस्पेक्टर सोहराब से हाथ मिलाते हुए कहा।
“नाइस टु मीट यू कैप्टन किशन।” सोहराब ने गर्मजोशी से हाथ मिलाते हुए कहा। उसने सुप्रिटेंडेंट के दोस्त वाली बात को नजरअंदाज कर दिया था।
कैप्टन किशन के उठते ही शैलेष जी अलंकार भी उठ गया। दोनों ड्राइंग रूम से बाहर निकल गए। सार्जेंट सलीम भी उनके साथ था। वह उन्हें छोड़ने नहीं बल्कि छेड़ने के लिए बाहर तक आया था।
जब कैप्टन किशन कार में बैठने लगा तो सार्जेंट सलीम ने उससे पूछा, “क्या आप फौज में कैप्टन थे?”
“यह मेरा नाम है।” कैप्टन किशन ने सपाट लहजे में जवाब दिया।
सार्जेंट सलीम समझ नहीं सका कि यह बात उसने तंज में कही थी या ऐसा सचमुच था।
“अजब नमूने हैं यह दोनों।” सलीम ने ड्राइंग रूम में घुसते हुए कहा।
“यह क्या बदतमीजी थी?” सोहराब ने डपटते हुए पूछा।
जवाब देने के बजाए सलीम दाएं-बाएं देखने लगा। उसकी इस अदाकारी पर सोहराब मुस्कुराए बिना नहीं रह सका।
“पिटोगे अभी।” सोहराब ने कहा, “मंगल सूत्र वाली बात क्यों कही थी।”
“ओह अच्छा वह...।” सलीम ने हंसते हुए कहा, “देखा नहीं आपने... उसने कैसे औरतों जैसे जेवर पहन रखे थे।”
“फिल्म इंडस्ट्री शो बिजनेस है। यहां जो दिखता है वही बिकता है। यह उनकी जरूरत भी है और मजबूरी भी।” सोहराब ने कहा।
इसके बाद सोहराब उठकर चला गया। सार्जेंट सलीम ने जेब से पाइप निकाला और उसमें वान गॉग तंबाकू भरने लगा। वह वहीं बैठा धुंए के छल्ले उड़ाता रहा।
फोन की घंटी की आवाज से सार्जेंट सलीम की नींद खुल गई। उसने फोन रिसीव किया। दूसरी तरफ सोहराब था। वह नाश्ते पर उसका इंतजार कर रहा था।
सलीम ने घड़ी देखी, सुबह के सात बजे थे। ‘इतनी भी क्या जल्दी है...।’ सलीम बड़बड़ाया। इसके बाद वह सीधे वाशरूम में घुस गया।
सोहराब डायनिंग टेबल पर बैठा अखबार पढ़ रहा था। सभी अखबारों के पहले पेज पर पुलिस के हवाले से शेयाली की मौत की खबर छपी थी। इंस्पेक्टर सोहराब ने पहले ही मनीष को समझा दिया था कि प्रेस को ज्यादा डिटेल न दी जाए। कुछ अखबारों ने खुदकुशी की खबर छापी थी। कुछ ने फिल्म अभिनेत्री के समुंदर में डूबने की खबर लगाई थी।
सलीम आकर एक कुर्सी पर बैठ गया। सोहराब ने अखबार समेट कर एक तरफ रख दिया और दोनों नाश्ता करने लगे।
“क्या छापा है अखबारात ने?”
“अखबार पढ़ने की आदत डालिए। मैं आपका पीए नहीं हूं।” सोहराब ने बनावटी गुस्से से कहा।
“जो हुक्म मेरे आका!” सलीम ने आवाज को भारी बनाते हुए जवाब दिया।
“एक बात बताइये....?” सार्जेंट सलीम ने कटलेट का पीस मुंह में डालते हुए कहा।
“जी पूछिए।”
“यह भी तो हो सकता है कि शेयाली की मौत महज हादसा हो। वह ज्यादा गहरे पानी में खड़े होकर तस्वीरें उतारना चाह रही हो और लहर का कोई थपेड़ा उसे साथ बहा ले गया हो।”
“बिल्कुल मुमकिन है।”
“सीधा-सादा केस है। या तो हादसा है या फिर खुदकुशी। इसमें दो दिन की तफ्तीश के बाद फाइनल रिपोर्ट लगानी थी पुलिस को। खामखा के लिए केस खुफिया महकमे के सुपुर्द कर दिया गया।”
“बरखुर्दार, राजधानी में इस तरह के छह और केस हुए हैं एक हफ्ते के भीतर।”
“मतलब?”
“एक अच्छा-भला नौजवान सड़क के किनारे चलते-चलते अचानक बीच रोड पर आ गया और मारा गया। इसी तरह से एक लड़की स्कूटी को एक गड्ढे में बड़े आराम से कुदा ले गई। लड़की की जान बच गई, लेकिन उसे काफी गंभीर चोटें आई हैं। एक नौजवान छत पर वाक करते हुए नीचे आ गिरा। इसी तरह के तीन और मामले सामने आए हैं।”
“हो सकता है सभी हादसे हों।” सार्जेंट सलीम ने कहा।
“शुरू में एक जैसी घटनाओं को महज इत्तेफाक समझा गया था, लेकिन शेयाली की मौत के बाद अब लगने लगा है कि मामला गंभीर है।” सोहराब ने कप में ब्लैक कॉफी उंडेलते हुए कहा, “जब एक जैसे इत्तेफाक बढ़ जाएं तो उनकी तहकीकात जरूरी हो जाती है।”
जवाब में सलीम कुछ नहीं बोला।
नाश्ता खत्म करने के बाद सलीम ने टिशू पेपर से हाथ साफ किए और काफी पीने लगा।
सलीम के काफी खत्म करते ही सोहराब उठ खड़ा हुआ।
“कहां जा रहे हैं आप?” सलीम ने पूछा।
“तुम भी चल रहे हो।”
“लेकिन जाना कहां हैं?”
“शेयाली के ब्वायफ्रैंड विक्रम से मिलने।”
“इतनी सुबह!”
“हां... इससे पहले की वह आंख खुलते ही फिर से शराब पीने लगे, हमें उससे पूछताछ करनी है।”
दोनों उठकर कोठी से बाहर आ गए। कुछ देर बाद घोस्ट कंपाउंड से बाहर आ गई। घोस्ट को सलीम ड्राइव कर रहा था। कार का रुख विजडम रोड की तरफ था। यह पाश इलाका था। यहां ज्यादातर फिल्म इंडस्ट्री के लोगों की ही रिहाइश थी।
सोहराब ने रात ही शेयाली की असिस्टेंट श्रेया से घर का पता मालूम कर लिया था। शेयाली ने पिछले साल ही यहां एक बैंग्लो खरीदा था।
कार तेजी से आगे भागी चली जा रही थी। एक मोड़ के बाद घोस्ट विजडम रोड की तरफ मुड़ गई।उनकी गाड़ी एक बड़े से गेट से अंदर चली गई। बहुत खूबसूरत इलाका था। हर तरफ हरियाली थी। कुछ आगे जाने पर रिहाईशी इलाका शुरू हो गया। काफी चौड़ी सड़क थी। इसके दोनों तरफ खूबसूरत कोठियां और बैंग्लो बने हुए थे।
“येलो जोन... बैंग्लो नंबर 25।” सोहराब ने सलीम को शेयाली के घर का पता बताया।
कुछ आगे जाने के बाद घोस्ट एक बड़े से गेट के सामने रुक गई। गेटमैन आकर उनकी कार के पास खड़ा हो गया। सोहराब ने अपना आईकार्ड उसे दिखाते हुए बताया कि वह विक्रम से मिलने आया है।
“वह तो अभी सो रहे हैं।” गेटमैन ने कहा।
“हम इंतजार करेंगे उनके जागने का।”
अभी यह बात हो ही रही थी कि एक पुलिस कांस्टेबल ने आकर सोहराब को सैल्यूट मारा। उसने गेटमैन से कुछ कहा और उसने गेट खोल दिया।
घोस्ट बैंग्लो के कंपाउंड में दाखिल हो गई। कार से उतरने के बाद सार्जेंट सलीम ने चारों तरफ एक भरपूर नजर से देखा। गेट की दीवार से सटा हुआ आर्टिफिशियल पांड था। उसमें दो काले हंस तैर रहे थे।
पांड से सटा हुआ लॉन था। उस पर लाल और हरी रंग की घास को काफी खूबसूरती से उगाया गया था। दरअसल लाल और हरी घास से एक औरत का चेहरा बनाया गया था।
वह दोनों ड्राइंग रूम की तरफ बढ़ गए। कांस्टेबल ने आगे बढ़कर दरवाजा खोल दिया।
“दूसरा कांस्टेबल कहां है?” सोहराब ने पूछा।
“सर वह साहब के बेडरूम के बाहर निगरानी कर रहा है।”
“अंदर जाओ और विक्रम को जगाकर बुला लाओ।” सोहराब ने कहा।
तभी सलीम की पीठ से कोई भारी चीज टकराई। सलीम उठकर खड़ा हो गया और उसकी आंखें फैल गईं। उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हो रहा था।
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शेयाली के ब्वायफ्रैंड ने सोहराब को क्या बताया?
क्या शेयाली की लाश मिल सकी?
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