revti raman - 6 in Hindi Fiction Stories by RISHABH PANDEY books and stories PDF | रेवती रमन- अधूरे इश्क की पूरी कहानी. - 6

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रेवती रमन- अधूरे इश्क की पूरी कहानी. - 6

“क्या हुआ रेवती आज इतना अपसेट क्यो हो”- मोहनी

“नही कुछ नही”- रेवती (फीकी सी मुस्कान के साथ)

“बधाई हो रेवती रानी टॉप की दूसरी हो चलो कुछ खिलाओ पिलाओ”- मोहनी

“धन्यवाद मोहनी ड्रार्लिंग लेकिन टॉप तो नही की हू ना”- रेवती

“अच्छा चलो कुछ खा के आते है बाहर से, पार्टी मेरी तरफ से”- मोहनी

(दोनों ही बाहर जाती है और कुछ रेस्टोरेंट से रात का खाना खा कर वापस आ जाती है। बीएस सी पूरी हो चुकी थी अब रेवती अब घर कानपुर जाने वाली थी तो आज रात वो मोहनी के साथ उसके हास्टल में रूक गयी। रेवती की बुआ और फूफा जी शहर से बाहर भी गये हुये थे।)

“मोहनी एक बात बता तेरे इतने अच्छे नम्बर कैसे आये?”- रेवती

“कहा मेरे कहाँ अच्छे नम्बर है यार तुम्हारे आगे तो कुछ भी नही है हमारा मौज ले रही हो क्या रेवती रानी?”- मोहनी

“नही यार सच में तेरे नम्बर बहुत अच्छे है.... बता ना कैसे आये?”- रेवती

(रेवती के ऐसा कहने में जो शब्द मौन थे वो ये कि जितने नम्बर रेवती के आये है वो रेवती की क्षमता के बाहर थे या सामान्य शब्दों में कहे तो औकात से बाहर लेकिन मोहनी रेवती की दोस्त थी तो रेवती सीधे शब्दों में ये कह नही सकती थी।)

“यार मैंने रमन के नोट्स से पढ़ाई की बहुत ईजी और आसान भाषा में थे सिर्फ मैं ही क्या शुक्ला और किशन भी तो उसी से पास हुए अच्छे नम्बरो से.........रमन देवर जी इज ग्रेट”-मोहनी

“कौन रमन वही जो टॉप किया है”- रेवती

“ हाँ वही”- मोहनी

“तुम्हारा देवर है वो?”- रेवती

“अब किशन जी के दोस्त है तो हुए ना हमारे देवर जी”- मोहनी

“ओहहहहहह तो ये बात है, सही है”- रेवती

रेवती ये तो जता रही थी कि वो ठीक है लेकिन वास्तव में रेवती अन्दर से जल रही थी वजह यह थी कि पहली बार जीवन में वो सेकेन्ड आयी थी। उसका मन यह बात स्वीकार नही कर रहा था कि वो टॉप नही कर पायी है। उसे लग रहा था कि रमन ने टॉप कहीं से पेपर्स चींटिंग करके किया होगा क्योंकि रेवती को पूरा विश्वास था कि उससे बेहतर कोई हो ही नही सकता है। उसके मन की खलबली को मोहनी महसूस कर रही थी लेकिन अनजान बनने का नाटक कर रही थी। बल्कि मन ही मन खुश थी कि आज पहली बार रेवती ने रमन का जिक्र तो किया था। मोहनी सो गयी लेकिन रेवती करवटे बदल रही थी जब उसे लगा कि मोहनी सो गयी तो चुपचाप उठी और मोहनी के टेबल से नोट्स चेक करने लगी जो कि वास्तव में बहुत अच्छे थे रेवती को पता ही नही चला की नोट्स देखते देखते कब सुबह हो गयी। रेवती रमन के नोट्स देख कर कायल हो गयी।


(अगले दिन सुबह)

“यार रेवती इतने दिन हम साथ में रहे अब अलग हो जायेंगे तुम मुझे भूल तो नही जाओगी रेवती रानी”- मोहनी

“नही मोहनी यार कैसी बाते करती हो तुम्हे कैसे भूल सकती हूँ”- रेवती ( जबकि मन ही मन रेवती कह रही थी क्या नाटक है यार ये तुम्हे कौन याद रखना चाहता है)


(सेमेस्टर के साथ – साथ बीएससी खत्म हुई तो सभी ने मिलकर इलाहाबाद घूमने का प्लान बनाया क्योंकि बहुत से लोग जो बाहर के थे वे अब वापस जाने वाले थे। मोहनी के फोर्स करने पर रेवती भी तैयार हो गयी। रमन उधर उदास था क्योंकि रेवती अब हमेशा के लिये कानपुर जाने वाली थी लेकिन आज आखरी मौका था रेवती के आस पास रहने का तो घूमने से मना करने का कोई सवाल ही नही था।)
रेवती ने रमन के नोट्स देखे थे जिनसे वो बहुत ज्यादा प्रभावित हो गयी थी। जिसके चलते वो बार बार रमन की हरकतों को नोटिस कर रही थी। जब कभी रमन मुस्कराता तो वो उसे दबी नजरों से देखती। ना चाहते हुये भी रेवती रमन की तरफ खींची चली जा रही थी। सारे दोस्त इलाहाबाद के भारद्वाज पार्क, संगम तट, बडे हनुमान जी इत्यादि जगहों पर पूरा दिन घूमते रहे।


“बधाई हो रमन तुमने टॉप कर दिया....कमाल है”- रेवती ( बहुत हिम्मत करके)


“धन्यवाद........”- रमन


(उस दिन रमन और रेवती के बीच बस इतनी ही बात चीत हो पायी। मोहनी ने कई बार रमन को इशारा किया की वो रेवती को बोल दे कि वो रेवती को पसन्द करता है लेकिन रमन कुछ बोल नही पाया। मोहनी खुद बोल देना चाहती थी लेकिन रमन ने उसे अपनी कसम देकर रोक दिया। शाम हुई सभी अपने अपने घर/रूम के लिये लौट गये रमन आज बहुत उदास था क्योंकि उसे पता था कि अब वह रेवती को जिन्दगी में कभी देख नही पायेगा। उधर रेवती के दिल में रमन घर कर चुका था लेकिन अभी एहसास होना बाकी था। रेवती अपनी पढाई में कभी भी किसी को खुद से आगे नही जाने देती थी और अगर गलती से कोई उससे आगे निकल भी जाये तो वो बहुत रोती और परेशान हो जाती थी।





लेकिन रमन से हार कर जाने क्यों उसे उतना बुरा नही लग रहा था। बल्कि रमन की मुस्कान उसके मन मस्तिष्क में कहीं जाकर बैठ गयी थी। उसने अभी तक एम एस सी के लिये इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के बारे में सोचा तक नही था। लेकिन आज मोहनी, रमन और दोस्तों के साथ घूमने पर वह इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से एम एस सी के बारे में सोचने लगी थी। लेकिन ये फैसला बड़ा था रेवती को अपने माता पिता की अनुमति लेनी जरूरी थी। रेवती अगले दिन अपने भाई के साथ कानपुर को रवाना हो गयी। कानपुर आये उसे दो दिन हुये थे कि उसका मन नही लग रहा था। कानपुर यूनिवर्सिटी कैम्पस से एम एस सी का फार्म रेवती ने भर दिया था।






“पिता जी मैं सोच रही थी कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से भी एम. एस. सी. के लिये आवेदन कर दूँ क्या पता यहाँ मैं पास हो पाऊ या नही”- रेवती



“क्या बात कर रही हो रेवती कानपुर यूनिवर्सिटी का पेपर नही पास हो पाओगी और इलाहाबाद का हो जाओगी? लेकिन फिर भी एन्ट्रेन्स देने का मन हो तो दे दो लेकिन अब कानपुर रह कर ही पढ़ाई करनी है। अब बड़ी हो गयी हो पराये घर में बहुत दिन नही रखेंगे तुम्हे बिटिया”- सुरेन्द्र (रेवती के पिता जी)



“ठीक है पिता जी, मैं आवेदन कर देती हूँ”- रेवती

रेवती की माँ सुलोचनी नही चाहती थी कि अब रेवती आगे पढ़े क्योंकि फिर वर ढूढने में भी दिक्कत होगी। लेकिन सुरेन्द्र जी पढ़े लिखे थे वे हर कदम पर रेवती का साथ देते आये थे। रेवती ने आवेदन किया कानपुर में रेवती ने जानकर पेपर अच्छा नही लिखा क्योंकि वो इलाहाबाद की तरफ खींची जा रही थी। एक तो इलाहाबाद एक सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी दूसरे रमन के प्रति अनजाना खिंचाव उसे इलाहाबाद खींच रहा था। रेवती ने मोहनी या किसी भी अन्य को एम एस सी के बारे में नही बताया पिता जी के साथ गयी और एन्ट्रेन्स दे आयी। पिता जी के साथ जब रेवती एग्जाम सेन्टर से गुजर रही थी तभी रमन की नजर उस पर पड़ी।

“अबे शुक्ला हमको लगा रेवती गयी है इधर बाइक से.....”- रमन (आश्चर्य के साथ)

“अबे रमन तुम बौरा गये रेवती गयी हमेशा के लिये कानपुर, वो यहाँ कहाँ से आ जायेगी। और तो और मोहनी बता रही थी कि वो कानपुर यूनिवर्सिटी से एम. एस सी. करने जा रही है। ये तुम्हारा रेवती के लिये प्यार है भाय जो तुम्हे हर जगह वही दिख रही है”-शुक्ला

“तुम्हारे लिये बहुत दुख लागत है भाय”- शुक्ला

“काहे बे काहे दुख लागत है?”- रमन

“तोहार प्यार पूरा नही हो पाया ना इसी बात से, बताओ रेवती हमेशा के लिये गयी”- शुक्ला

“प्यार पूरा नही हुआ है अभी तक लेकिन ये कहानी ऐसे खत्म नही होगी शुक्ल, हमाई कहानी लिखने वाला इश्क का पुजारी है का समझे?”- रमन

“का मतलब बे? जब रेवती यहाँ से चली गयी तब कैसे पूरी होगी तोहार कहानी”-शुक्ला

“अरे शुक्ल द बकलोल........रेवती इलाहाबाद नही आ सकती तो का हम कानपुर नही जा सकते है का बे?”- रमन

“अच्छा बेटा अब तुम कानपुर जाओगे”-शुक्ला

“और का शुक्ले हम कानपुर यूनिवर्सिटी का एम. एस. सी. एन्ट्रेन्स दे आये और पेपर टॉप क्लास बना बा। हमार कानपुर जाये के टिकट पक्की है”- रमन

“अबे साला तुम तो बड़के आशिक के बाप निकले बे, लोग दूर दूर से आते है इलाहाबाद पढ़ाई करने तुम जा रहे हो कानपुर इश्क का पाठ पढ़ने ठीक है जाओ जाओ”- शुक्ला


(इस तरह से रेवती और रमन अब दोनो के दिल में एक दूसरे के लिये प्यार पनपने लगा था अनजाने में ही सही एक दूसरे के लिये दोनो प्रयास कर रहे थे। कानपुर यूनिवर्सिटी का एन्ट्रेन्स रिजल्ट आया रेवती का नही हो पाया। रमन का नाम लिस्ट में था। उधर लगे हाथ इलाहबाद यूनिवर्सिटी का भी एन्ट्रेन्स रिजल्ट आ गया रेवती और रमन दोनो को सीट मिल गयी थी। रमन रेवती के इलाहाबाद आने की संभावना से अनजान था इस लिये वो निकल पड़ा चौरीचौरा से कानपुर अपना प्रवेश लेने रमन के जाने से शुक्ला मिले जुले असर में था क्योंकि एक तो सबसे प्यारे दोस्त रमन के जाने का दुख था तो वही रमन को उसका प्यार मिल पायेगा इसकी खुशी थी। रमन पहले दिन लेट हो गया दूसरे दिन किसी कानपुर यूनिवर्सिटी के किसी कर्मचारी की मृत्यु होने से कोन्डोलेन्स हो गया अगले दिन रविवार था। रमन एक होटल में रूक गया। कानपुर के विभिन्न स्थानों पर सिर्फ इस आस में घूमने लगा कि शायद कहीं रेवती की एक झलक मिल जाये वह जेड एस्वायर , रेव मोती, आन्देश्वर मन्दिर जहाँ जहाँ जा पाया दो दिन में गया उसे ये तक नही पता था कि रेवती कानपुर के किस इलाके में रहती है।



उधर रेवती के घर में रेवती का चयन न हो पाने से तनाव का माहौल था। रेवती अपने पिता से इलाहाबाद जाने की अनुमति मांग रही थी।



“देखो जी साफ साफ बता दे रही हूँ जवान लड़की है अब और मालती के यहाँ नही रखूँगी कुछ ऊँच नीच हो गयी तो क्या मूँह दिखायेंगे चार समाज को। इस लिये पढ़ना हो तो यही पढ़े कही जाने की जरूरत नही है”- सुलोचनी देवी




“लेकिन इसमें हर्ज ही क्या सुलो जी मालती भी तो इसी घर की बेटी है ना उसके रहते हमे चिन्ता करने की क्या जरूरत है। बच्ची पढ़ना चाहती है तो जाने दो वैसे भी अब जल्दी ही उसकी शादी हो जायेगी फिर कहा आजादी मिल पायेगी।”- सुरेन्द्र



“इसी लिये कह रही हूँ अब शादी करनी है रेवती की जिन्दगी भर पढ़ती ही रहेगी क्या?”- सुलोचनी


“रेवती बेटा इधर आओ”- सुरेन्द्र

आंखों में आँसू लिये रेवती बाहर आती है वह सुलोचनी और सुरेन्द्र की बात सुनकर भावुक हो गयी थी। रेवती की आंखों में आंसू देखकर सुरेन्द्र जी उसे दुलारने लगे।

“मैं कहीं नही जाऊँगी पापा हमेशा आपके पास ही रहूँगी”- रेवती (इतना कहकर रेवती सुरेन्द्र जी के सीने से चिपक गयी।)

सुरेन्द्र जी उसे प्यार से दुलारते हुए बोले बेटा कौन रख पाया है बेटियों को.....सबको जाना होता है तुझे भी जाना पड़ेगा।
“अच्छा तो पापा मेरी आखरी इच्छा पूरी कर दीजिये मैं इलाहाबाद से एम एस सी पूरा करना चाहती हूँ आपने इतना पढ़ाया प्लीज पापा आखरी इच्छा प्लीज प्लीज”- रेवती




रेवती के बाल हठ के आगे सुरेन्द्र जी इन्कार न कर सके।

“अच्छा ठीक लेकिन मेरी एक शर्त है अगर इस दौरान अगर कोई अच्छा रिश्ता मिल गया तो शादी के लिये मना नही करोगी तय कर देंगे फिर जब तुम्हारा एम एस सी पूरा हो जायेगा तब शादी कर देगें”- सुरेन्द्र

“ठीक है पापा तो मैं सोमवार को जाकर एडमिशन ले लू?”- रेवती

“हा ठीक है”- सुरेन्द्र

पिता पुत्री की बात सुनकर सुलोचनी देवी बर्तन पटकते हुये गुस्साती है लेकिन दोनो पिता पुत्री उनकी हँसी ले लेते है।


मन में उमंग लिये सोमवार की सुबह रेवती चल पड़ती है इलाहाबाद एम . एस सी में एडमिशन के लिये..............लेकिन ये वो रेवती नही थी जो बीएससी में रमन के साथ थी । ये तो नवयौवन को पहली बार महसूस करती एक नव युवती थी।
..................क्या होगा जब रमन कानपुर और रेवती इलाहबाद में एडमिशन ले लेगें.... कैसे बढेगी ये प्रेम कहानी पढे अगले अंक में...............