Kaisa ye ishq hai - 11 in Hindi Fiction Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग - 11)

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग - 11)

प्रशांत की आवाज सुन कर अर्पिता के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान खिल जाती है।वो तुरंत ही पीछे मुड़ती है और धीरे से कहती है, आप आ गये प्रशांत जी। प्रशांत सफेद शर्ट काली पैंट पहने होठों पर मुस्कुराहट रखे चलता चला आ रहा हैं।उनके पीछे परम और श्रुति भी चले आ रहे हैं। प्रशांत को देख अर्पिता के मुख से जगजीत जी की गाई गजल के बोल निकल पड़ते हैं।जो वो हौले हौले गुनगुनाने लगती है –


तुमको देखा तो ये ख्याल आया। तुमको देखा तो ये ख्याल आया। जिंदगी धूप तुम घना साया।धीमी आवाज मे गाने पर भी प्रशांत सुन लेता है।वो आकर अर्पिता के पास ही खड़ा हो जाता हैं।त्रिशा प्रशांत को देख फौरन उसके पास आने को मचलने लगती है।


चाचू। चाचू। कह त्रिशा चित्रा की गोद से प्रशांत के पास आने के लिये लटक जाती है।जिसे देख प्रशांत के साथ साथ बाकी सभी की भी हंसी छूट जाती है।


हाँ हाँ अब काहे मम्मा याद रहेगी इन्हे ! अब तो बस ये और इनके चाचू बस यही दो बचेंगे।चित्रा मुस्कुराते हुए कहती है।और त्रिशा को प्रशांत की गोद में दे देती हैं।


तो मेरी एंजेल कैसी है। और मै कुछ देर बाहर क्या रुक गया भाई आपने तो शरारते ही शुरू कर दी हाँ।प्रशांत ने बच्ची की ओर देखकर उससे कहा।


उसकी बात सुन कर नन्ही त्रिशा कहती है – चाचू आप को कैछे पता कि हमने छलालत छुलु कल दी है। नही चाचू हमने कुछ नही किया। आप ना इन नयी वाली छ्वीट छि दीदी से पूच लो। दीदी आप बताओ न चाचू को कि एंजेल ने कुच नही किया है।त्रिशा ने अर्पिता की ओर इशारा कर कहा। त्रिशा की प्यारी सी आवाज सुन अर्पिता मुस्कुराते हुए कहती है।ह्म बच्ची बिल्कुल सही कह रही है प्रशांत जी कि उसने कुछ नही किया है।गलती तो हमारी थी और उसके लिये हम सॉरी हैं लिटिल एंजेल्। कह कर अर्पिता दाये हाथ से अपना कान पकड़ लेती है।


अले दीदी आप भी कितनी जल्दी भूल जाती हो न अभी अभी मम्मा ने कहा था कि कोई बात नही।लेकिन आप फिर भी छॉली कह लही हो। और प्रशांत के कान के पास जाकर धीरे से कहती है देख लो चाचू दीदी आपकी नकल कल लही हैं।एसे ही आप भी तो छॉली कहते हैं न्।क्या हम दीदी छे कहे कॉपी कैट।




श...श्श्श्श्श....चुप रहिये आप ! अगर उन्होने सुन लिया तो आपको बहुत डांटेगी और साथ ही साथ मुझे भी।प्रशांत ने धीमे से नन्ही त्रिशा से कहा।जिसे सुन त्रिशा अपने होठों पर उंगली रख लेती है। जिसे देख अर्पिता मुस्कुरा देती है।




मुझे अच्छा लगा जो तुम मेरे एक बार कहने पर यहाँ आई अर्पिता।प्रशांत अर्पिता से कहता है और त्रिशा को लेकर आगे बढ जाता है।प्रशांत के जाने के बाद अर्पिता सोचती है आप तो पूरी बात सुने बिना ही यहाँ से चले गये प्रशांत जी। एक बार हमारी बात तो सुन लेते तब ही आगे बढ्ते।प्रशांत के वहाँ से जाने के बाद श्रुति अर्पिता की ओर देखती है।


हाय अर्पिता। मुझे बहुत अच्छा लगा तुझे यहाँ देख कर।श्रुति ने आगे बढ कर अर्पिता को गले लगाते हुए कहा। श्रुति की बात सुन कर अर्पिता मुस्कुराते हुए उसके गले से अलग होती है और कहती है अच्छा तो हमें भी बहुत लगा श्रुति। लेकिन तुमने अभी तक बाकि सदस्यो से हमारा परिचय नही करवाया है।अरे बस इतनी सी बात चल अभी परिचय करवा देती हूँ। तो सबसे पहले मिलो मेरी सबसे प्यारी भाभी की सबसे प्यारी दोस्त चित्रा से।


चित्रा दी ये मेरी कॉलेज में बनी नयी नयी दोस्त है अर्पिता! अर्पिता व्यास्।


चित्रा: नाम तो बहुत प्यारा है आपका। अर्पिता।


अर्पिता: जी धन्यवाद ।हमारे दादाजी ने रखा था।


चित्रा: तो आपको भी मैं कहने की जगह हम कहना पसंद है।


अर्पिता चित्रा की बात का आशय समझ नही पाती है वो चित्रा से कहती है हम कुछ समझे नही?आपको भी से आपका क्या आशय है।


चित्रा: अर्पिता ! कुछ खास आशय नही है ये तो बस इसिलिये कहा कि मेरी दोस्त भी बिल्कुल आपकी तरह ही बाते करती हैं।हम, हमारे इन शब्दो का इस्तेमाल करते हुए। आपकी बात सुनी तो बस राधिका की याद आ गयी अगर वो यहाँ होती न तो आपसे मिल कर बेहद खुश होती।


कोई बात नही चित्रा जी अगर ईश्वर ने चाहा तो हमारी मुलाकत भी उनसे अवश्य होगी। जैसे आज आप सभी से हुई है वैसे ही कभी कोई संयोग बना तो हम उनसे भी अवश्य मिलेंगे। अर्पिता चित्रा से कहती है जिसे सुन चित्रा कहती है संयोग, अवश्य इतनी शुद्ध हिंदी और ये पोजिटिव सोच लगता है काफी कुछ एक जैसे गुण है दोनो में।


हो सकता है कहते हुए अर्पिता मुस्कुरा देती है। अर्पिताऔर चित्रा आपस में बातचीत कर ही रही होती है कि तभी एक पांच बरस का छोटा सा बालक एक बड़ी सी बॉल से खेलते हुए वहाँ आ जाता है।उससे कुछ ही पीछे उस बालक के माता पिता होते है जिन्हे वो बीच बीच मे मुड़ मुड़ कर देख लेता है।बच्चे को अपनी तरफ देखता पाकर उसके माता पिता हाथ हिला देते हैं जिससे वो मुस्कुराते हुए वापस से खेलने लगता है।अर्पिता बच्चे की ये हरकत देख कर मुस्कुरा देती है।


श्रुती: दोनो की बातें हो गयी हो तो मै अब परम भाई से भी परिचय करवा देती हूँ।


हाँ हाँ बिल्कुल श्रुति बातें तो चलती ही रहती है।कभी खत्म नहीं होती।और अभी तुम इनका परिचय करवाओ मै जरा त्रिशा को देखती हूँ। कहीं प्रशान्त को परेशान न कर दे चित्रा श्रुति से कहती है।


ओके दी आप देखिये ह्म लोग भी आते हैं। श्रुति ने चित्रा से कहा।चित्रा वहाँ से चली जाती है और श्रुति अर्पिता का परम से परिचय करवाती है।


परम जो अब तक अर्पिता को ध्यान से सुन रहा होता है।उसे उसमे एक झलक राधिका की दिखती है।राधू यहाँ? कैसे? कह परम दोनो हाथ उठा कर अपनी आंखे मलने लगता है।और फिर हाथ हटा कर आंखे बड़ी कर अर्पिता को देखने लगता है।




अर्पिता ये है मेरे परम भाई।ह्म दोनो ही सेम एज ग्रुप के हैं।प्रशांत भाई हम दोनो से लगभग छ महीने ही बडे होंगे।श्रुति ने अर्पिता की ओर देख कर कहा। श्रुति की बात सुन अर्पिता परम से हेल्लो कहती है।जिसे सुन परम एक गहरी सांस ले मन ही मन कहता है थैंक गॉड मेरा कंफ्युजन दूर हो गया। एक पल को तो मुझे लगा कि ये राधू की कॉपी है।गॉड ने मुझ पर तरस खाकर इन्हे यहाँ भेज दिया। बेकार में मुझे इतनी बड़ी गलत फहमी हो जाती।




अर्पिता की हेल्लो का जवाब न देने पर श्रुति परम के कान के पास जाकर धीरे से कहती है कहाँ खो गये आप भाई। कहीं आप भी तो नही मेरी दोस्त में राधु भाभी को ढूढने लगे। परम भाई दोनो लगभग एक जैसी है लेकिन फिर भी बहुत अलग हैं।ओके।


ह्म ओके। समझ गया मैं।परम ने धीरे धीरे कहा जिसे सुन कर श्रुति को हंसी आ जाती है।किरण जो उन तीनो से कुछ ही दुरी पर खड़ी होती है चलकर अर्पिता के पास आ जाती है। वहीं वो बालक खेलते हुए बॉल पर एक किक लगा देता है और बॉल सीधा किरण के सामने आकर रूक जाती है लेकिन उस पर ध्यान नही दे पाती है।


अर्पिता यार मैं कब से देख रहीं हूँ तुझे तू मां के पास तो नही जा रही है बल्कि यहाँ खड़े हो......... बॉल मे उलझती है और गोल गोल घुम कर परम को स्पर्श करते हुए नीचे गिर जाती है किरण का परम से टकराते समय श्रुति का फोन रिंग करने लगता है।जो किरण के गिरने के बाद भी रिंग करता ही रहता है।श्रुति फोन उठा कर देखती है जो सात्विक का होता है।वो एक तरफ चली जाती है।




किरण परम को देखती है और उठ कर खड़ी हो जाती है। परम के स्पर्श से उसे कुछ अह्सासो की अनुभूति होति है जिस कारण वो उससे कुछ नही कहती है।वहीं परम भी खडा हो जाता है और किरण से सॉरी कह वहाँ से चला जाता है।श्रुति भी फोन रख वहाँ चली आती है।परम को वहाँ न देख वो कहती है ये परम मुझे बिन बताये ही चला गया मेरे लिये रुका भी नही।इसे तो मैं घर जाकर देख लूंगी।वो किरण की ओर देखती है और अर्पिता से कहती है, “ अर्पिता ये किरण है न तुम्हारी मासी की की बेटी उस दिन ये तुम्हारे साथ ही आइ थी न फंक्शन में।हम अर्पिता ने कहा।ओके तो फिर अर्पिता अभी के लिये बाकि सब के पास चलते हैं। श्रुति कुछ सोचते हुए अर्पिता से कहती है।


अर्पिता - सॉरी यार यही तो हम कबसे बताना चाह रहे थे कि आज हम यहाँ मूवी देखने नही आये हैं। बल्कि हम तो यहाँ अपनी मासी और किरण के साथ शॉपिंग के लिये आये हैं।


क्या....। और मैंने समझा कि तुम यहाँ ..। खैर कोई नही तो एक काम करो न तुम भी अपनी मासी से कहो कि वो भी मूवी देख ले। तब तो तुम हम सबके साथ फिल्म देखोगी न्।श्रुति ने अर्पिता से कहा।


हाँ फिर तो हमें कोइ परेशानी नहीं है।अर्पिता ने मुस्कुराते हुए कहा।


अर्पिता तुम्हे भले ही परेशानी नही हो लेकिन मां को जरुर होगी।क्युंकि उनके अनुसार अभी ये समय फिल्म देखने का नही हैं। बल्कि अभी समय है घर जाकर अपनी जिम्मेदरियां निभाने का।किरण ने उदासी भरे स्वर में कहा। जिसे सुन कर श्रुति उदास हो जाती है।वो अर्पिता से कहती है ठीक है फिर तुम जाओ। कल मिलते हैं कॉलेज में।


ओके श्रुति बाय्। अर्पिता ने कहा और किरण को साथ लेकर दोनो ही बीना जी के पास जाने के लिये बढ जाती हैं। वहीं श्रुति प्रशांत चित्रा और परम के पास चली आती है।उसे अकेले आता हुआ देख प्रशांत और चित्रा दोनो एक साथ कहते हैं, “ श्रुति तुम अकेले आई हो” तुम्हारी दोस्त अर्पिता कहाँ है। दोनो के एक साथ अर्पिता के बारे में पूछने पर श्रुति उदास होकर कहती है, “ वो, वो तो अपनी मासी के पास गयी” वो तो अपनी मासी के साथ शॉपिंग के लिये आई थी हम सब के साथ फिल्म देखने के लिये थोड़े ही आई थी।तो इसमें उदास होने की क्या आवश्यकता है श्रुति आफ्टर ऑल फैमिली फर्स्ट।प्रशांत ने श्रुति से कहा। सो तो है भाई तो फिर चलिये हम सब चलते हैं शो शुरू होने वाला होगा श्रुती मुस्कुराते हुए कहती है और सभी वहाँ से आगे बढ जाते हैं।प्रशांत का फोन रिंग होता है वो नम्बर देखता है जो घर से होता है।


चित्रा परम मै अभी आता हूँ घर से कॉल आ रहा है इसे अटैंड करना आवश्यक है।ये लो एंजेल को सम्हालो वैसे भी ये सो चुकी है तो ज्यादा परेशान नही करेगी प्रशांत ने त्रिशा को परम को देते हुए कहा और वहाँ से बाहर चला जाता है।


वहीं जब अर्पिता और किरण दोनो आगे बढती है और एक फ्लोर पर उन्हे वही मासूम सा प्यारा सा बच्चा दिख जाता है जो मस्ती में खेलते हुए बॉल के पीछे पीछे दौड़ता हुआ ईलेक्ट्रॉनिक सीढियो की तरफ चला जा रहा है।


अर्पिता और किरण दोनो ही उसे देखती है ओह नो दोनो एक साथ तेज अवाज में कहती हैं। किरण वहीं खड़े होकर उसके पेरेंट्स को देखने लगती है और अर्पिता बिन एक पल गंवाये उस बच्चे के पीछे दौड़ लगा देती है और समय रहते बच्चे तक पहुंच कर उसे उठा लेती है।


प्रशांत फोन से अपने घर बात कर रहा होता है आवाजे सुन फोन कान से हटा कर आसपास देखता है लेकिन उसे सामने कोइ नही दिखता है तो वो वापस से फोन को कान से लगा बातचीत करने लगता है।बात करने के साथ साथ वो आसपास के दृश्यों को भी देखता जाता है।बात करते करते उसकी नजर सामने लगे शीशे पर पड़ती है जिसमें उसे अर्पिता एक बच्चे को हाथों में पकड़े हुए होती है।बच्चा डर की वजह से रो रहा होता है।अर्पिता उसे गोद से नीचे उतार देती है।और स्वयं घुटनो के बल बैठ कर उसके आंसू पोंछते हुए कहती है।


अरे आप तो डर रहे है आपकी मां तो हमसे कह रही थी कि आप तो काफी ब्रेव हैं आप को तो डर नहीं लगता और आप तो यहाँ रो रहे हैं।इसका मतलब आपकी मां आपके बारे में गलत बोल रही थी।अर्पिता की बात सुन वो बच्चा धीरे धीरे चुप हो जाता है और कहता है दीदी मुझे डर नही लगता वो तो मै इसिलिये रो रहा था काहे कि मेरी गेद वहाँ नीचे चली गयी है।बच्चा हाथ के इशारे से बताते हुए कहता है। ओ तभी हम सोचे...। अर्पिता अपने माथे पर अंगुली रख सोचते हुए कहती है।प्रशांत जो नीचे से दोनो के बीच हो रही बातचीत को ध्यान से देख रहा होता है बच्चे के इशारा करने पर उसकी नजर नीचे लुढक रही बॉल पर पड़ती है। प्रशांत सारी बात समझ कर बॉल को उठा लेता है और उसे लेकर सीढियों के जरिये उपर चला जाता है।


हे लिटिल चैम्प। आपकी बॉल !कह प्रशांत बॉल उस बालक की ओर बढा देता है।


बच्चा थैंक्यू अंकल् कहता है और मुस्कुराते हुए बॉल को हाथ मे ले लेता है।इस समय उसके चेहरे पर इतनी खुशी होती है जैसे उसे ग़ढा हुआ खजाना मिल गया हो। किरण भी वहाँ आ जाती है उस के साथ उस बच्चे के माता पिता भी आ जाते हैं। मां कहते हुए वो बच्चा दौड़ कर उनके पास चला जाता है।वो बच्चे को अपनी गोद मे उठा लेते हैं और अर्पिता से धन्यवाद कहते हैं।अर्पिता उनकी बात सुन कहती है।माना की इस व्यस्त जीवन मे कुछ पल अपने लिये चुराना बहुत मुश्किल हैं हम जैसे तैसे निकाल लेते हैं तो इसका अर्थ ये तो नही कि हम उन पलों में बाकी जिम्मेदारियां भूल जाये।


अर्पिता की बात सुन वो सॉरी कहते हैं और और बच्चे को लेकर वहाँ से चले जाते हैं।अर्पिता प्रशांत को वहाँ देख मन ही मन खुद से कहती है एक ही दिन में आपको दोबारा देख हमारी तो शाम ही सुहानी हो गयी प्रशांत जी। वो चोरी चोरी प्रशांत की ओर देखती है और सोचती है काश हमारे पास आपके साथ व्यतीत करने को कुछ लम्हे और होते !!!वो वहाँ से चली जाती है।अर्पिता के व्यव्हार को देख प्रशांत के चेहरे पर मुस्कुराहट स्वयं आ जाती है और वो खुद से कहता है ---


जब जब मैं मिलता हूँ तुमसे !! तुम मुझे बिल्कुल अलग सी लगती हो !! कभी नये से रंग में दिखती हो तो कभी नये से ढंग में मिलती हो।


क्रमश.....