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‘पहला सुख निरोगी काया’ और काया को निरोग रखने के लिए स्वास्थ्य के नियमों की जानकारी देने की जिम्मेदारी है स्वास्थ्य-पत्रकारिता की । पिछले लगभग 100 वर्षों से भारत में स्वास्थ्य-पत्रकारिता निरन्तर गति से अपना मार्ग तय कर रही है । रास्ते में रुकावटें आयीं, लेकिन स्वास्थ्य-पत्रकारिता का मार्ग अवरुद्ध नहीं हुआ ।
सच पूछा जाये तो स्वास्थ्य-पत्रकारिता हिन्दी-पत्रकारिता के विकास के साथ-साथ चल रही है । आज शायद ही कोई ऐसा पत्र-पत्रिका है जो स्वास्थ्य-संबंधी सामग्री प्रकाषित नहीं कर रही है । स्वास्थ्य-पत्रकारिता एक रचनात्मक आन्दोलन है, जिससे सभी को लाभ मिलता है, इस क्षेत्र में पीत-पत्रकारिता की सम्भावनाएँ कम हैं ।
स्वास्थ्य-पत्रकारिता की परिभाषा निम्न प्रकार से दी जा सकती है-‘समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, आकाश वाणी, टीवी तथा अन्य प्रकार से विभिन्न माध्यमों के लिए स्वास्थ्य संबंधी समाचारों, विचारों, सूचनाओं, जानकारियों की रिपोंर्टिंग, लेखन-सम्पादन और प्रस्तुतिकरण से संबंधित विभिन्न कार्य करना, स्वास्थ्य-पत्रकारिता है ।
वास्तव में, व्यक्तिगत स्वास्थ्य, सामुदायिक स्वास्थ्य तथा स्वास्थ्य के अन्य क्षेत्रों में होने वाली हर घटना, जानकारी को हासिल करना तथा उसे संषोधित, सम्पादित करके जन-जन तक पहुँचाने की कला ही स्वास्थ्य-पत्रकारिता है । हिन्दी-पत्रकारिता के विकास के साथ उसमें जो विभिन्न शाखाएँ बनी और पल्लवित हुईं उनमें खेल-पत्रकारिता, कृषि-पत्रकारिता, विज्ञान-पत्रकारिता आदि क्षेत्रों में विभिन्न विद्वानों ने अपना योगदान किया । मगर हिन्दी-पत्रकारिता के क्षेत्र में स्वास्थ्य-संबंधी पत्रकारिता का अभाव रहा है । कुछ छुटपुट प्रयास विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं द्वारा निकाले गये स्वास्थ्य-विषेषांक हैं । इस क्रम में ‘धर्मयुग’ के हृदय-रोग, एड्स और कैंसर विषेषांकों की गणना की जा सकती है । तक सबके लिए स्वास्थ्य की कामना करते समय सभी के लिए स्वास्थ्य षिक्षा की कामना करना भी बहुत आवष्यक है । पूरे समाज को यदि स्वास्थ्य-षिक्षा उपलब्ध हो जाए तो स्वस्थ राष्ट्र के क्रम की एक बड़ी कमी पूरी हो सकती है ।
इस क्रम में आयुर्वेदीय स्वास्थ्य-पत्रकारिता की चर्चा समीचीन होगी । आयुर्वेद का सर्वप्रथम पत्र सन् 1901 में कलकत्ता से राजवैद्य पं. श्री नारायण शर्मा के सम्पादन में आरोग्य सुधानिधि के नाम से निकला । 1901 में ही पं. मुरलीधर शर्मा के सम्पादन में फरुखनगर से आरोग्य सुधाकर पत्र निकला । मगर ये दानों अल्पजीवी रहे । 1905 में शंकर दा शास्त्री ने सद्वैद्य कौस्तुभ नामक पत्र निकाला । 1907 में राजवैद्य वैद्यनाथ शर्मा ने प्रयाग से सुधानिधि पत्र निकाला । 1909 में इसी नाम से पं. जगन्नाथ प्रसाद शुक्ल ने भी एक पत्र निकाला । यह पत्र काफी लोकप्रिय रहा तथा शुक्ल जी ने अपने जीवनपर्यन्त इसे निकाला । पं. शुक्ल ने आयुर्वेदिक पत्रों का इतिहास नामक पुस्तक का प्रणयन भी 1953 में किया था । 1924 में धन्वन्तरि नामक आयुर्वेदिक पत्र अलीगढ़ से निकला । इस पत्र ने समय-समय पर कई विषिष्ट अंक भी प्रकाषित किये । 1927 में नागपुर से वैद्य स्वामी हरिषरणानंद ने आयुर्वेद विज्ञान नामक पत्र निकाला । 1928 में वैद्य सम्मेलन पत्रिका दिल्ली से शुरू हुई । कानपुर से रामनारायण वैद्य शास्त्री ने 1928 में प्राणाचार्य निकाला । इसी नाम से 1948 में एक पत्र वैद्य बाकेंलाल गुप्त ने भी निकाला । बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन ने सचित्र आयुर्वेद नामक पत्र का प्रकाषन 1948 में कलकत्ता से आरम्भ किया था । आजकल यह पत्र पटना से प्रकाषित हो रहा है । 1952 में पं. गोवर्धन शर्मा छांगाणी ने आयुर्वेद नाम का पत्र निकाला । आयुर्वेद विकास नामक पत्र का प्रकाषन 1952 में डाबर ने कलकत्ता से शुरू किया । कृष्ण गोपाल आयुर्वेद भवन, अजमेर से 1953 से स्वास्थ्य नामक पत्र निरंतर निकल रहा है । इसी प्रकार अन्य पत्र जैसे आरोग्य दर्पण (ऊंझा), चिकित्सक (कानपुर), राकेष (इटावा), स्त्री-चिकित्सक (इलाहाबाद), आयुर्वेद संदेष (लखनऊ), जीवन सुधा (दिल्ली), आयुर्वेद केसरी (लखनऊ), आयुर्वेद मार्तण्ड (मुम्बई), जय आयुर्वेद (जोधपुर), आदि अनेक पत्र समय-समय पर निकलते रहे हैं ।
हिन्दी के अलावा बंगला भाषा में आयुर्वेद पत्रिका आयुर्वेद संजीवनी, आयुर्वेद, आयुर्वेद जगत; मराठी में आरोग्य मित्र, मधु जीवन, आयुर्वेद; गुजराती में धन्वन्तरि, आयुर्वेद विज्ञान, आरोग्य सिन्धु; तमिल में आयुर्वेद कलानिधि पत्र निकले । अंग्रेजी में नागार्जुन, वाग्भट आदि पत्र निकले । आयुर्वेद विष्वविद्यालय, जामनगर से आयु तथा आयुर्वेदालोक का प्रकाषन हुआ । जर्नल ऑफ रिसर्च इन इडियन मेडिसिन का प्रकाषन वाराणसी से हुआ । केन्द्रीय आयुर्वेद सिद्ध अनुसंधान परिषद ने भी पत्रों का प्रकाषन किया । जयपुर के राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान से भी जर्नल ऑफ आयुर्वेद का प्रकाषन हो रहा है । कई आयुर्वेद महाविद्यालय भी समय-समय पर आयुर्वेदिक पत्रों का प्रकाषन करते हैं । आन्वीक्षिकी नाम पत्रिका भी जयपुर से निकाली गयी थी ।
इन आयुर्वेदीय पत्रों के अलावा पिछले कुछ समय से स्वास्थ्य-पत्रकारिता में जो एक नयी और सुखदायी स्थिति आयी है, वह है त्रैमासिक स्वास्थ्य-पत्रिकाओं का प्रकाश न । निरोगधाम, निरोगसुख, निरोगी दुनिया, आयुर्वेद लाइन्स, जीवन धारा, आरोग्य, आरोग्य संजीवनी, आरोग्य धाम, जैसी अनेकों ऐसी नयी पत्रिकाएँ आयी हैं जो जनता को स्वास्थ्य-संबंधी शिक्षा दे रही हैं । मगर इन पत्रिकाओं के अवलोकन से पता चलता है कि इनमें छपने वाली अधिकांश सामग्री सतही होती है तथा अधिकांष पत्रिकाएँ यौन, सैक्स, मानस-विकार आदि विषयों पर विषेषांक निकाल कर अपना वर्चस्व स्थापित करने का प्रयत्न कर रही है ।
स्वास्थ्य-पत्रकारिता एक नाजुक और संवेदनशील मसला है और इस क्षेत्र में केवल विषेषज्ञों द्वारा ही पहल की जानी चाहिए । आयुर्वेद के अलावा होम्योपैथी, प्राकृतिक चिकित्सा, योग, एलोपैथी आदि क्षेत्रों में भी हिन्दी पत्रकारिता के विकास की विपुल सुभावनाएँ हैं । एक समय था जब आयुर्वेद अकेला सभी के स्वास्थ्य का समुन्नयन कर सकता था । अब यह काम सभी के सहयोग से स्वास्थ्य-पत्रकारिता को करना चाहिए । सबके लिए स्वास्थ्य का नारा तभी फलीभूत हो सकेगा जब स्वास्थ्य-पत्रकारिता पर भी पूरा ध्यान दिया जाएगा ।
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यशवंत कोठारी 86 ,लक्ष्मी नगर ब्रह्मपुरी जयपुर.३०२००२ मो.९४१४४६१२०७