विरहिणी राधा-. राजा मीरेन्द सिंह
;मगरौरा. ग्वालियर
चिंतन झरोखे से एक दृश्य
वेदराम प्रजापति मनमस्त
पृष्ठांकन सहित अस्सी पृष्ठीय काव्य कृति विरहिणी राधा राजा मीरेन्द सिंह जू देव जी की साहित्यिक अनूठी धरोहर बन पड़ी है। जिसकी शालीनता और व्यापकता पर राष्ट कवि मैथलीशरण गुप्त जी की बधाई के दो शब्द ही साहित्य की गरिमा में बहुत कुछ है। यह आशीर्वाद कवि की अन्तर दृष्टि को इतना प्रभावी बना गया कि जीवन काव्यधारा में कई कृतियों का सृजन हो गया। कवि ने दो शब्दों मे अपने जीवन के सभी उदगाारों की संक्षेपिका रख दी।
काव्य कृति का शुभारम्भ.भक्ति भाव की भूमि मंगलाचरण से चलकर जीवन की अमर कथा तक जाता है। मन की सारी अकिंचनताओं का इस मंगलाचरण से मन की भाव भूमि की अनन्त गहराई मापी जा सकती है। काव्य कृति का अनेक स्तम्भों में विभाजन कर सरलता प्रदान की गई है। यथा. राधा गोपी आलाप उद्धव आमंत्रण प्रस्थान यज्ञोत्सव रास सूर्य ग्रहण अनुपम दान कृष्ण विक्रय तथा पुनर्मिलन। इस प्रकार कृति को बारह सर्गो द्वारा.भाव. विशालता प्रदान की गई है। प्रत्येक सर्ग नवीन भाव व्यंजना से संदर्भित है। प्रारम्भ विरह की गहरी और असह वेदना से होता है। जहाँ विरह अर्णव उच्च तरंगों से तरंगित हो रही है जिसमें भावना की टटोल एकल्पना का चिर अनुसंधान बना हो अथवा प्रणय दीपक की अच्छर ज्योति. व्यथा का सरसंधान सा है।
निद्रा का न होना पीड़ा की अच्छुण परिणिति हो किन्तु विरह व्यथा डुवो न दे इसके लिये राधा अपने आप में सभ्ँल जाती है और सहारा लेती है मुरली की पतवार का। यथा.ष्मधुर मुरली की ले पतवार लगी खेने जीवन की नावँ।
जीतने लगी विश्व का हृदय लगाकर अपने पन का दाव।। पृष्ठ 11
गोपी सर्ग में. संबाद को विविधता दी गई है। अनेक भाव संबादों क माध्यम से विरह वेदना के अहसास को हल्का करने की मार्मिक दृष्टि प्रदान की गई है। जिसमें प्रेम की पराकाष्ठा पर गहरा कथन कवि ने इस प्रकार उकेरा है।
यथा.उद्धव आये संदेश लिये या पाप पुण्य का वेद सखी।
अवशाए अबला हम क्या जानें रे ज्ञान ध्यान का भेद सखी।।
पृष्ठ 15
इसी संदर्भ कोष् अलाप सर्ग भी और अधिक गहराई प्रदान करता दिखा जिसमें जीवन की मर्मान्तक वेदना प्रखरता पाती है।
सर्ग उद्धव में. कृष्ण के सामने उद्धव ज्ञान दीप को बुझा बुझा सा दर्शा रहे हैं। उनका ज्ञान घमन्ड गोपियों क प्रेम के सामने चूर चूर हो जाता है। उद्धव कृष्ण कें सामक्ष नत मस्तक होते हैं प्रेम की विजय पर।
यथा. कहूँ कैसे मैं मन की बात
ब्रज रज कण कण डहकि डहकि राधा राधा वरसात। पृष्ठ 17
प्रेम के विराट चित्रण का गहरा अनुनाद इसी सर्ग में भी पाया जाता है।
आमंत्रण सर्ग. में कृष्ण मिलन की आशा को अनेक दृश्यों के माध्यम से सरलता प्रदान की गई है। प्रकृति के साथ साथ विहगों के उन मधुर स्वरों में भी विरह की वेदना को नया स्थान दिया गया है। विरह धरती को आप्लावित करता दिखा। अनेक उत्कंठाओं में मिलन उत्कंठा भी अपना स्थान बनाये रखे है। राधा कह रही है प्यारी सखियो ध्यान से सुनो.यथा. मिलनोत्कंठा में व्याकुल है मेरा यह अन्तर अत्यन्त।
कह सुन ले दुःख सुख हम अपना अजाये जाने कब अन्त।।
पृष्ठ 26
विरह वेदना चित्रण को सोलह पृष्ठों में दर्शाया गया है। विरह और मिलन का सागर अनूठा बन पड़ा है।
प्रस्थान सर्ग. पूर्व यादों को नये स्वर प्रदान करता हैए जिसमें बनी ब्रज दूल्ह विरल बारात के साथ परसि परसि हरि रूप राशि रस लोचन मीन अन्हात।
यज्ञोत्सव कें साथ ही रास की अभिव्यंजना काफी मर्मान्तक बन पडी है। अनेक दृश्यों ने जीवन आनन्द वर्षाया है। सूर्य ग्रहण और अनुपम दान की जीवन झाँकी सार्थकता को प्रदान करती है। अनुपम दान में भगवान कृष्ण का तुलादान. अनूठा दृश्य प्रस्तुत करता है। इसका मर्मान्तक चित्रण इस सूक्ति से सार्थक सिद्ध होता है.
यथा.बोले कृष्ण प्रिए फिर इसमेंए लड़ने की है ही क्या बात।
मिलकर क्यों न करो फिर मेरा दान. देवर्षि के ही हाथ।।
कृष्ण विक्रय और पुनर्मिलन सर्ग.जीवन की पराकाष्टा का सजीव चित्रण उपस्थित करता है। इस जीवन की सार्थकता का संबाहक बनकर.मोक्ष की स्थिति दर्शाता है. प्रेम प्रणय । अनंत अनुभूतियों कं साथए जीवन यात्रा का यहाँ पड़ाव पाया जाता है। कवि हृदय कं अंतिम उदगार काव्य कृति को अमरता प्रदान करते से लगे।
यथा. हुई प्राणों की गलतानी याद का आँखों में पानी।
जगत ने अमर कथा मानी याद का आँखों में पानी।। पृष्ठ 78
अन्ततः काव्य कृति. अनेक छन्दों के रथ पर आरूढ होकर नव. अनन्त जीवन की धाऱ बहाती हुई. भावों को सरसता प्रदान करती है। कवि.कृष्ण रसोपभोगी रहे हैं। भाषा सााहित्यिक होने के साथ संस्कृत निष्ठ है। कृति की सार्थकता पर हृदय से बन्दन। 00000
मो0.9981284867 सम्पर्क सूत्र.गायत्री शक्तिपीठ रोड़
गुप्तापुरा. ;डबरा भवभूति नगर
ग्वालियर म प्र 475110