A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt - 2 in Hindi Horror Stories by Sarvesh Saxena books and stories PDF | A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt - 2

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A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt - 2

हॉरर साझा उपन्यास

A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt

संपादक – सर्वेश सक्सेना

भाग – 2

लेखक - सर्वेश सक्सेना

दरवाजे की धड़ाम से अखिल अपनी यादों के बवंडर से बाहर निकला, वह पूरी तरह चौंक गया था, उसे ऐसा लगा जैसे सब कुछ उसकी आंखों के आगे अभी-अभी हुआ हो|

उसने सीने पर अपना हाथ रखा तो दिल की धड़कन ऐसे चल रही थी मानो दिल निकल कर बाहर आ जाएगा| उसके माथे पर पसीना था, उसने उठकर एक नजर फिर छत की चित्रकारी पर डाली और खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया, बारिश अभी भी जोर पर थी उसका दम घुट रहा था इसलिए उसने खिड़की खोल दी, खिड़की खोलते ही बारिश का पानी तेज हवा के साथ उसके चेहरे को भिगाते हुए सीने और पेट तक चला गया, उससे उसे कुछ राहत महसूस हुई तभी बड़ी जोर से बिजली कौंधी और उसने फिर डर कर खिड़की बंद कर ली|

यह आज उसे क्या हो गया था, मेघा को गए एक साल हो गया था लेकिन उसकी इतनी ज्यादा याद उसको आज तक नहीं आई थी, उसने चारों ओर फिर नजर दौड़ाई हवेली मे रोशनी जैसे और धीमी हो गई थी, उसके होंठ सूख रहे थे, उसने तय किया अब वह किसी कमरे में जाकर लेट जाएगा|

इससे पहले उसे पानी तलाशना होगा, तभी उसे याद आया कि वह तो उत्कर्ष के पास जा रहा था, उत्कर्ष उसकी राह देख रहा होगा, उसने जल्दी से फर्श पर पड़ी गीली पैंट को उठाया और दोनों जेबें टटोलने लगा तब उसे याद आया कि उसका फोन तो उसकी कार में ही रह गया था और कार.....ओह...|

उसकी घबराहट और बढ़ गई उसे लगा कि शायद इस हवेली में कोई टेलीफोन हो तो वह अपने दोस्त को फोन करके बता दे, यही सोचकर उसने कई कमरों मे देखा पर वहां कोई फोन नही था| इसके बाद वो एक अन्य कमरे मे घुस गया जहां उसे एक आलीशान बिस्तर के पास मेज पर एक जग और पानी का ग्लास दिखाई दिया, उसने जल्दी से पानी का ग्लास अपने सूखे हुए गले में उड़ेल लिया और बिस्तर पर लेट गया|

अभी उसकी आंख लग ही पाई थी कि तभी उसे ऐसा लगा जैसे ऊपर के कमरे में कुछ गिरा है, वह बिस्तर पर उठ कर बैठ गया और बिस्तर की मखमली चादर को सहलाने लगा, कुछ देर के लिए उसे ऐसा एहसास हुआ जैसे यह उसी का घर हो तभी उसने ऊपर जाने के लिए सीढ़ियों को ढूंढ़ना शुरू कर दिया, हल्की पीली धीमी धीमी रोशनी सीढ़ियों पर चढ़ने के लिए पर्याप्त नहीं थी, इसलिए अखिल सीढ़ियों की रेलिंग पकड़ पकड़ कर अपने चोटिल पैरों से चढ़ने लगा |

घुमावदार सीड़ियों से होते हुए वो ऊपर आने लगा, सीढ़ियों के बाहरी ओर रंगीन शीशों पर पानी की धार बह रही थी जो बिजली की चमक से बार बार चमक उठ्ते| ऊपर आते ही वो चुपचाप खामोश खड़ा हो गया, वहां बिल्कुल अंधेरा था, वह उस कमरे के दरवाजे की ओर चला गया जिसका दरवाजा हवा से बार-बार खुल और बंद हो रहा था|

अन्दर बहुत हल्की रोशनी थी, दरवाजे की खटखट उसके दिल की धड़कनों से तेज नहीं थी, वो दबे पांव कमरे के अंदर घुस गया और सामने देख कर उसका दिल कांपने लगा, उसकी आंखें जैसे एक ही दिशा में रुक गई|

उस कमरे के अंदर बेड के नीचे कोई लेटा था| वो मन ही मन बुदबुदाया, "हे भगवान!!! ये कौन है..?? कहीं मैं किसी मुसीबत में तो नहीं फंस गया|”

उसके माथे से पसीने की बूंदे उसकी गर्दन तक आ रही थीं| उसने घबराते हुये आवाज लगाई, “ क....क...कौन है वहां” ???

आवाज का हमेशा की तरह कोई जवाब नहीं आया| उसने फिर कहा, "देखिए.. अगर आप किसी मुसीबत में हैं तो मैं आपकी मदद करता हूं, बिस्तर के नीचे भला कौन लेटता है, अ...आप बाहर निकलिये|”

वो बेड के पास आया और हाथ के नाखूनों में सुर्ख लाल नेल पॉलिश देखकर बोला, "हांथ से तो ये.... कोई औरत लग रही है... |”

उसको यह समझने में देर न लगी की हो ना हो यह जरूर इस हवेली की मालकिन होगी जो शायद शराब के नशे मे बिस्तर से गिर गई होगी, या फिर बीमार भी हो सकती है, कहीं ये... मर तो नही गई...नही नही...यही सब खयाल उसके अन्दर आने लगे|

उस महिला का सिर्फ हाथ बेड से बाहर था| अखिल ने फर्श पर बैठकर उस औरत की नब्ज टटोली और बोला, “ ओह !! यह तो मर चुकी हैं|”

वो पहले तो घबराया और फिर मन ही मन मुस्कुरा कर बोला, “ मुझे लगता है अब मेरी जिंदगी बदलने वाली है और यही कारण था कि भगवान ने मुझे इस हवेली में भेजा, चलो कोई बात नहीं मैं तुम्हें बाहर निकालता हूं, घबराना मत.....|”

यह कहकर उसने उस हाथ को पकड़ कर जोर से खींचना चाहा लेकिन यह क्या वो तो पीछे की तरफ झुक गया क्योंकि हाथ के बाद बाकी का धड़ तो था ही नहीं, वह केवल किसी औरत का हाथ था जो इस तरह से बेड के नीचे रखा था कि जैसे बेड के नीचे पूरा धड़ हो|

उसके शरीर में करंट सा दौड़ गया उसने घबराकर उस हांथ को फर्श पर पटक दिया| अब उसको किसी अनहोनी के होने का डर लग रहा था, उसका सर चकरा गया और वह फर्श पर बैठ गया, उसने फर्श पर हाथ रखे तो उसको फर्श गीला सा लगा तभी बिजली फिर जोर की गड़गड़ाहट के साथ कौंधी और उसकी रोशनी में जो अखिल ने देखा वह बेहद खौफनाक था, जिसको देखकर किसी का भी दिल फट सकता था, दिल की धड़कन रुक सकती थी, उसका मुंह खुले का खुला रह गया, ऐसा लगा जैसे उसका कलेजा मुंह से बाहर आ जाएगा|

वह एक तरह के षटकोण के बीचो बीच बैठा था और वह षटकोण खून से बनाया हुआ गया था उसने फर्श पर बने षटकोण को छू कर देखा तो खून एकदम ताजा था|

“ इसका मतलब यह है कि यह जिसकी भी लाश है, वो अभी-अभी..... नहीं.. नहीं.. ऐसा नहीं हो सकता, य....यह मुझे क्या हो रहा है....??”

वो यही सब सोचकर इधर उधर देखने लगा तो पाया, उस षटकोण के हर एक कोने पर मानव अंग रखे थे, किसी पर आंख, किसी पर कान, किसी पर पैर, तो किसी पर उंगलियां... उसके सोचने और समझने की शक्ति बिल्कुल छूमंतर हो गई थी| उसका पेट खौफ के मारे हड़बढ़ाने लगा और उसे उल्टियां होने लगी|

उल्टी करते करते वो वहीं फर्श पर लेट गया| बिजली की चमक में वह षटकोण के हर एक कोने को देखता जिसमें बड़ी बेरहमी से काटे गये अंग रखे थे, अखिल को एक बेहोशी सी आ रही थी, वह लेटा कमरे की छत की ओर देख रहा था कि तभी उसे कुछ आवाजें सुनाई देने लगी जैसे कई सारे लोग उसकी ओर आ रहे हों|

तभी उसने देखा उसके चारों ओर बहुत सारे लोग खड़े हुए हैं लेकिन यह क्या वह सब तो एक काले साए की तरह थे, बेहद खौफनाख साये, जिनके चेहरे की जगह कई सारे जानवरों के सिर लगे हुये थे|

उनके पैरों और हाथों के नाखून चमक रहे थे और आंखें मानो कोई जलते हुए अंगारे रखें हो, वह सारे साए उसे घेरे हुए खड़े थे, ऐसा लग रहा था जैसे वह सब लोग कुछ मंत्र से पढे जा रहे हों लेकिन न जाने किस भाषा में, अखिल फिर चिल्लाया, " चले जाओ यहां से.. चले जाओ.... कौन हो तुम लोग...?? मुझे छोड़ दो.....|”

उसकी आवाज का जैसे उन सायों पर कोई असर ही नहीं पड़ रहा था और तभी वो हिम्मत बांध के सीढ़ियों की तरफ भागा|

अखिल सीढ़ियों पर तेजी से उतरने लगा और तभी उसका पैर फिसला और वह चिल्लाता हुआ नीचे गिरा जाकर| लुढ़कते लुढ़कते अचानक वह किसी चीज से टकराया और एक भारी-भरकम चीज उसके ऊपर गिर गई, वह दर्द से चिल्लाया "बचाओ ....कोई है...???" लेकिन अखिल को कौन बचाता .... वहां तो कोई था ही नहीं|

अखिल इस भारी-भरकम चीज के नीचे दबा चिल्ला रहा था, उसकी पीठ और पैर दबे हुए थे, वह अपना एक हाथ बाहर निकाल कर मदद के लिए गुहार लगा रहा था और तभी उसने देखा कि सीढ़ियों से वही काले सायों का झुंड धीरे धीरे उतर रहा था| वह सब एक साथ कोई मंत्र जैसा पढ़ते हुये धीरे धीरे पास आ रहे थे|

मंत्रों का उच्चारण और तेज हो रहा था लेकिन अखिल उस भारी-भरकम चीज से बाहर ही नहीं निकल पा रहा था, वो और तेज चिल्लाया, "बचाओ....कोई है..?? बचाओ......बचाओ.... |”

दूर दूर तक उसकी चींखें गूंज रही थीं जिन्हे सुनने वाला कोई नहीं था... या शायद कोई सुन रहा था| वो चिल्ला चिल्ला कर बेहोश हो गया|

आसमान से लेकर जमीन सब जगह काला सन्नाटा, बारिश का शोर और दूर-दूर तक कोई रोशनी या इंसान नजर नहीं आ रहा था| सड़क के उस पार खड़ी अखिल की कार पानी से पूरी तरह भरती जा रही थी कि तभी कार के इंडिकेटर जलने लगे और उसका एफएम अपने आप चालू हो गया “ अब आप सुनेंगे लता मंगेशकर जी का गाया हुआ बेहद लोकप्रिय गाना फिल्म “महल” से, तो आइए सुनते हैं "आयेगा... आयेगा... आयेगा... आयेगा आनेवाला... आएगा.... दीपक बगैर कैसे परवाने जल रहे हैं..... कोई नहीं जलाता और दीप जल रहे हैं...... |”

अचानक रेडियो में गाना बंद हो गया और उससे उन काले सायों की मंत्र पढ़ने जैसी आवाजें आने लगीं और उसी के साथ साथ कई सारे लोगों के चलने की और चीखने चिल्लाने की दर्दनाक आवाजें आ रही थी, जैसे कोई किसी को काट रहा है... खच.. खच... खचाक...... |

आवाजें इतनी तेज हो गई कि रेडियो फट कर एकदम बंद हो गया| कार के इंडिकेटर भी बुझ गए, हवेली के चारों ओर बड़े बड़े और घने पेड़ जो तूफान में हिल रहे थे वो एकाएक बिल्कुल स्तब्ध से हो गए, ऐसा लग रहा था जैसे सब कुछ पत्थर का बन गया हो|

तभी कुछ पल बाद सब कुछ पहले के जैसा हो गया तूफानी बारिश, बिजली का कौंधना, सब जारी था|

कुछ देर बाद अखिल को होश आया उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसका पैर टूट गया हो और कमर एक तरफ मुड़ सी गई हो, जैसे तैसे उसने खुद को उस भारी-भरकम चीज़ से निकाला और राहत की सांस ली|

उसने अपने आसपास देखा वह काले साये दूर-दूर तक नहीं थे लेकिन हवेली के अन्दर और बाहर का माहौल बिल्कुल वैसा ही था|

उसके शरीर पर लिपटी चादर उस भारी-भरकम चीज़ के नीचे फंस गई थी, चादर को काफी कोशिशों के बाद भी वो नहीं निकाल पाया जिससे चादर फट गई लेकिन अभी भी चादर पर्याप्त थी जिससे वो खुदको लपेट सकता था|

अखिल ने गुस्से में उस भारी भरकम चीज को ध्यान से देखा तो पता चला कि वो एक लकडी की अल्मारी के नीचे था जो सामान से भरी हुई थी| वो कुछ देर वहीं बैठा रहा|

उसकी नजर फैले सामान पर पडी, जिनमे एक बहुत भारी भरकम किताब ठीक उसके सामने पडी थी|

अखिल ने उठ कर उस भारी-भरकम किताब को टटोला तो उसे ऐसा लगा जैसे वह किसी चमड़े की बनी हो, उसने बडी मुश्किल से उस किताब को थोडा खिसकाया कि तभी किताब अपने आप खुल गई|

वो उससे दूर हट गया और घबराने लगा, उसे डर के साथ साथ किताब के प्रति एक आकर्षण सा हो रहा था|

उसने फिर हिम्मत करके उस किताब को खोल कर देखा, तो छूने से वो एक अनजान और रहस्यमई भाषा लग रही थी जो किताब के पन्नों पर उभरी हुई थी| अखिल सोच में पड़ गया था उसे लग रहा था ये किताब जरूर किसी खज़ाने के बारे मे होगी|

कमरे मे इतनी रोशनी नही थी कि वो ये किताब पढ़ सके, इसलिये वो किताब को धीरे धीरे खिसकाते हुये एक खिड़की के पास ले गया, उसने बिजली की चमक में गौर से देखा तो उसके होश उड़ गए, ऐसा भयावह और डरावना चित्र उसने आज तक नहीं देखा था, उसको देखते ही उसके अंदर एक अजीब सी बेचैनी होने लगी मानो कोई उसे अपने वश में कर रहा हो, कोई है जो उसे देख रहा हो.. उस चित्र में एक विकृत राक्षस की आकृति बनी थी| जो अपने पंजों के बल बैठा हुआ था, उसके हाथ और पैरों के नाखून इतने लंबे और घूमे हुए थे जैसे कोई धारदार हथियार हो, उसके सर पर दो नुकीले सींघ थे जो एक दूसरे को छू रहे थे, उसकी आंखें किसी लाल अंगारे सी थीं, जिनसे आग की लपटें निकल रही थी, उसके मुंह से निकलने वाले लंबे दांत किसी वनमानुष से कम नहीं थे और उसकी जीभ दो हिस्सों में बटीं थी, मन को अधीर कर देने वाला यह कैसा चित्र था..??

आखिर इसको क्यों बनाया गया होगा और किसने बनाया होगा| उसने खिड़की से बाहर देखा तो उसे ऐसा लगा कि वो राक्षस बाहर ही खडा हो जिसे देख वो सहम गया और उसी किताब के पास बैठ गया| डरते डरते वो फिर किताब को खोल उसके पन्नों को छूने लगा, वो उन अक्षरों को छूकर किसी मदहोशी में खोया जा रहा था, अब उसे पूरी तरह विश्वास हो गया था की आज की रात उसकी आखिरी रात है|

एकाएक अखिल को बहुत जोर से ठंड लगने लगी, वह कांपने लगा और किताब छोड़कर एक कमरे मे घुस गया जहां उसने बिस्तर पर कपडे रखे देखे जो किसी पुरुष के थे, उसने जल्दी से कपडे पहने और बिस्तर पर आंखें बंद कर के लेट गया|

कुछ देर बाद उसे फिर से वही आवाजें सुनाई देने लगी, वही दर्दनाक चीखें और कुछ काटने की आवाजें, उसने डर से अपने चेहरे पर चादर तान ली, पर वो आवाजें और साये उसके पास आने लगे कि तभी आवाज आई "क्या हुआ..?? तुम इतने डरे हुये क्युं हो..?? अखिल ...अखिल... |”

अखिल ने आंखें खोली तो सामने उसकी पत्नी मेघा थी, उसने कांपते हुए कहा, "तु..तु.. तुम यहां कैसे..” ?

मेघा ने मुस्कुराकर कहा "मैं तो हर जगह हूं, तुम्हारे आसपास... तुम्हें प्यार जो करती हूं ना लेकिन तुम अजीब हो तुम मुझे देख कर घबरा क्यों रहे हो, क्या तुम्हें मुझसे प्यार नहीं करते.. |”

अखिल को बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि सामने उसकी पत्नी है, वह ऐसे बर्ताव कर रही थी जैसे अखिल और वह उनके अपने घर में हो और तलाक से पहले की खुशहाल जिंदगी जी रहे हों|

यह सब सच था या फिर कुछ और पता नहीं लेकिन जो भी था बिल्कुल भी अच्छा नहीं था| अखिल उठ कर बैठ गया तभी दूर से मेघा की आवाज आई, "तुम बहुत भूखे होगे ना.. ऑफिस से अभी अभी आए हो, सुबह लंच भी तो यहीं भूल गये थे, मैने आज तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंदीदा चीज बनाई है, तुम बैठो मैं लेकर आती हूं” |

मेघा के बोले हुए शब्द अखिल के कानों में गूंजने लगे वो हक्का बक्का सा बस इधर उधर देख रहा था तभी मेघा ने आकर एक बडा सा ढका हुआ कटोरा उसके आगे रख दिया और बोली, "लो.. खाओ |”

अखिल ने डरते डरते उस बड़े से कटोरे का ढक्कन हटाया तो डर के मारे ढक्कन उसके हाथों से छूटकर फर्श पर जा गिरा, जिसकी आवाज से पूरी हवेली गूंज उठी, कटोरे में कटे हुए सूअर का सिर रखा था, जिसकी आंखें हिल रही थीं, मेघा पास आकर रहस्य्मय ढंग से धीरे से बोली, "खाओ ना... देखो कितना लजीज है, तुम्हें जरूर पसंद आएगा, घबराओ नहीं... चलो इसे खाते हैं|”

ये कह्कर उसने अपनी एक उंगली सूअर की आंख में घुसा दी और उसे निकाल कर अपनी लंबी जीभ से चाटकर खाने लगी और सूअर का खून अखिल की आंखो मे लगाने लगी|

वो डर कर उठ खडा हुया और उस कटोरे को जोर से फेंककर बोला, "मुझे पता है यह सब मेरा वहम है, यह सब कोई काला जादू है, चली जाओ....|”

मेघा उसके सामने खड़ी जोर जोर से हंसती रही "हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा" और तभी फिर एक बार बिजली कड़की, बिजली की आवाज के साथ ही उसके हंसने की आवाज बंद हो गई और वह भी कहीं गायब हो गई|

अखिल उठकर कमरे से बाहर आया जहां वह किताब पड़ी थी, उसे किताब की तरफ से एक सम्मोहन सा महसूस हो रहा था इसलिए उसने किताब के पहले पेज को खोला और शब्दों को फिर छुआ तो उसके शब्द सुनहरे रंग मे चमकने लगे और उसे अब किताब की भाषा भी समझ आ रही थी, अचानक ये कैसे हो गया उसे समझ ही नही आ रहा था पर उसकी आखें अभी भी उस सुअर के खून से गीली थीं|

बारिश अभी भी हो रही थी और बिजली भी कौंध कौंध कर इस रात को और खौफनाख बना रही थी|

अचानक हवेली की वो धीमी रोशनी भी अन्धेरे मे बदल गई और हर तरफ सन्नाटा छा गया|