पहली माचिस की तीली
अध्याय 13
मुस्कुराहट हंसी में बदल गई।
"क्या बात है तीनों जने एकदम आश्चर्य में पड़ गए...? काला गाउन पहनकर हाई कोर्ट जज अंतरात्मा को उतार कर एक तरफ रख कर तुम लोगों को रिहाई दिलवाई मैं वही सरवन पेरूमाल हूं । तुम तीनों जनों का केस कोर्ट में आया जिस दिन से मुझे टेलीफोन पर धमकियां मिलती रही। पैसे का जोर, अधिकार का बल रखने वाले तुम्हारे अप्पा लोग अलग-अलग तीनों मुझसे मिलकर जो अधिकार से क्या बोला पता है.....?"
तीनों जने बिना पलके झुकाए देख रहे थे - सरवन पेरूमाल फिर बोलना शुरू किया।
"सुरेश, कमल कुमार और एल्बोस इन तीनों को निर-अपराधी का मोहर लगाकर इनकी रिहाई होनी चाहिए। अगर इसके उल्टे उन्हें मृत्यु दंड मिला, तो उनके मृत्युदंड की पालना होने के पहले तुम्हारे परिवार की तुम्हारी पत्नी अमृतम, बेटी अजंता और लड़का सुरेश तीनों को हम मृत्यु दंड दे देंगे। यह सिर्फ धमकी नहीं है। सचमुच होने वाली सच्चाई है। ऐसा मैंने सोचा। वे लोग सरकार चलाने वाले राजनीतिक दल के थे। आप लोगों को आशीर्वाद देकर इस तरह घूमने की छूट उन्होंने दे रखी थी। आप लोगों को पैदा करने वाले मुझे कुछ भी कर सकते हैं। उनका सामना करने का साहस या बल मुझ में नहीं। शांति पूर्वक विचार करके आखिर में मैं एक फैसले पर आया। तुम तीनों के अप्पाओं से मैंने बात नहीं की और मैंने पांच लाख दे तो आप के लड़कों की रिहाई करवा दूंगा बोला । उन्होंने उसे बड़ी खुशी से स्वीकार किया। मैंने उस हाईकर्ट में तुम तीनों के रिहाई का फैसला दे दिया। परंतु इस खुले अंधेरे कोर्ट में तुम तीनों को मृत्यु दंड का फैसला देता हूँ।"
सुरेश, कमल कुमार और एल्बोस तीनों एकदम सहम से गए - सरवन पेरूमाल आगे कहने लगे।
"ई. पी. को. सेशन 302-के आधार पर एक कॉलेज की छात्रा की अस्मिता को खत्म कर उसे मार डालना इस अपराध के लिए तुम तीनों को मौत की सजा ही निधि मंडप आज्ञा देती है "
जज फैसला दे रहे थे - अंधेरे में दो लोग सुरेश, कमल कुमार और एल्बोस के पास जाकर कंधे को पकड़ कर उठाया।
सरवन पेरूमाल बात को थोड़ा रुक कर फिर से शुरू किया।
"एक साल के पहले शुरू किए इस संस्था में अभी हम 41 लोग हैं, जो कानून से सही फैसले से वंचित लोग, रिटायर वकील लोग, आखिर तक न्याय में रहकर रिटायर हुए पुलिस अधिकारी लोग आदि। तुम तीनों को फांसी की सजा देने वाले लोग कौन है पता है? फांसी की सजा होने वाले कैदियों को फांसी देने के लिए नियुक्त जैकअप।"
सुरेश, कमल कुमार और एल्बोस तीनों अंधेरे में जाने लगे।
चलते चलते कोई जंगल जैसे दृश्य बदला। बड़े-बड़े पेड़ थे।
बड़े-बड़े घुटनों तक झाड़ियों के बीच में से हो कर चलना पड़ा।
दस मिनट चलने के बाद एक बड़ा बरगद का पेड़ अपनी कई शाखाओं के साथ खड़ा रास्ते को रोका, सब लोग खड़े हुए।
उनके बड़े-बड़े शाखाओं के बीच में आड़ा एक बड़ा लकड़ी का तख्ता जैसे लगा था - उसमें तीन गांठ लगे हुए फांसी के फंदे जैसे एक ही उनके आई में गांठ लगाकर लटक रहे थे।
नीचे -
एक लंबा बेंच।
टॉर्च की रोशनी में सुरेश, कमल कुमार और एल्बोस तीनों को बेंच पर चढ़ा दिया गया । उनके हाथों को पीछे बांध दिया।
वे चीखने चिल्लाने लगे।
"नहीं.... नहीं सर...."
सरवन पेरुमाल हंसे। "वह लड़की भी ऐसे ही 'नहीं .... नहीं... नहीं चाहिए चिल्लाई होगी।"
"अब गलती नहीं करेंगे सर।"
"जो गलती किया है उसी का यह दंड है।"
चेहरों को काले कपड़े से ढक दिया। सिर को फंदे के अंदर डाला।
"एक लड़की को तुम तीनों ने मिलकर स्वाद चखा। अब तीनों मिलकर एक साथ इसका स्वाद भी चखो...."
"सर.... सर... नहीं... नहीं चाहिए..."
तीन और लोगों के चिल्लाते समय ही - उनके खड़े लंबे बेंच अंधेरे में खड़े दो लोगों द्वारा लुडका दिया गया।
"बस…..."
टॉर्च की रोशनी को ऊपर किया -
तीनों का शरीर 'कांपता हुआ दिखाई दिया।
ठीक से आधे मिनट का समय।
तीनों जनों का शरीर तड़पना बंद होकर निशब्द हो लटक रहा था।
"बुक में लिखो...."
"सर...! आवाज देता हुआ अंधेरे में दूर खड़ा एक युवक सामने आया।
"कल पेशी है क्या ?
"है सर...."
"किसकी पेशी....?
"चंदन के तेल के गोदाम में आग लगने से करोड़ों रुपए का डाका डाला कृष्णकांत, मुकुट पति और नवनीत इन तीनों जनों से पूछताछ करना होगा। यह अपने सुंदरपांडियन का लाया हुआ केस है।"
"सुंदरपांडियन कहां है...?"
"साहब ! मैं यहां हूं...." अंधेरे में एक कोने में दिखाई दिया सुंदरपंडियन।
"कल उन लोगों के ऊपर जिरह शुरू करके फैसला सुना दे....?"
"सुना दीजिए साहब...."
"ठीक... कल रात 11:00 बजे फिर से खुले कोर्ट में इकट्ठा होंगे।"
"साहब.....! इन तीनों के बॉडी को कैसे डिस्पोज करें....?" एक आवाज अंधेरे में से आई तो सरवन पेरूमाल बोले।
"हाथी के गड्ढे में डालकर दफन कर दो।"
कहकर सरवन पेरूमाल ने चलना शुरू कर दिया।
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