360 DIGREE KA KON in Hindi Short Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | 360 डिग्री का कोण

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360 डिग्री का कोण

360 डिग्री का कोण

मैं प्लेटफार्म पर खड़ी अपनी ट्रेन का इंतजार कर रही थी । गाड़ी करीब दो घंटे लेट थी और हमे यहाँ खड़े डेढ़ घंटा तो हो ही गया था सो इन्तजार करते करते बुरी तरह से थकावट महसूस हो रही थी इसलिए चाय पीने के लिये फेरी वाले को आवाज़ लगाई । चाय वाले तक तो शायद आवाज़ नहीं पहुँची पर आवाज़ सुन कर जो पलटी उसे मै देखती ही रह गयी -लगा इसे कहीं देखा है पर कहाँ । याद ही नही आ रहा था पर दिमाग पर ज़ोर डालने से पहले ही वह औरत .......दीदी तुम कहती कहती गले से चिपक ही तो गयी थी । बड़ी मुश्किल से उसे अपने से अलग कर पाई थी । मेरी आँखों मे प्रश्न देख उसने मेरी शंका का समाधान करना चाहा - दीदी पहचाना नहीं मै आपकी गुड्डो । वो आपकी क्लास मे भारती थी न मै उसकी ..... । उफ यह रेणु है गुड्डो ।
भारती मेरे बचपन की सबसे प्यारी सहेली थी - एकदम शांत , धीर गंभीर । और रेणु एकदम उलट । परले सिरे की शरारती । मक्खन जैसी गोरी ,चुलबुली । खाती या बोलती , बोलती या खाती । हँसती तो बटन जैसी आँखें और भी चमकीली हो जाती । वह रेणु और आज की रेणु , दोनों मे समानता -गधे के सींग ढूँढ्ने जैसा ही था । आँखे बिलकुल बेरौनक़ , रंग उड़ा उड़ा , उखड़ी सी वह । केवल आवाज से ही उसे पहचान पाई । हाँ दीदी हम यहीं रेलवे क्वाटर मे रहते है । इनकी पोस्टिंग यहाँ रेलवे मे है ।
मेरा मन पुलक उठा । वाह ! यह तो ठीक हुआ । मिलना जुलना होता रहेगा । मै अनारदाना चौक मे रहती हूँ यहीं पटियाला में ।
वाह फिर तो मज़ा रहेगा दीदी - खुशी का वेग आँखों तक पहुंचा ही था कि उसे खांसी का दौरा पड़ गया । ऐसा भयानक कि मै तो घबरा ही गयी । दौड़ कर नल से पानी लाई । उसे पिलाया , पीठ सहलाई तब जा कर वह सामान्य हुई ।
तभी एक चालीस पैंतालीस साल का अधेड़ आदमी अपनी किशोर होती बेटियो के साथ प्रकट हुआ । माफ कीजिये , आप को तकलीफ हुई , मै जरा बच्चियों को कुछ दिलाने चला गया था । पर उसकी बात तो मेरे कानों तक पहुँची ही नहीं ।
"यह रामखिलवान जीजा हैं न आरती दी के पति । इनकी शादी में तो मै भी आई थी तुम्हारे तिलक नगर वाले घर ।"
मेरी सारी पुरानी यादें ताजा हो गयी थी । तब भारती और मै दसवीं में थे और यह रेणु पाँचवी में । आरती दी ने बी ॰ ए ॰ किया था । शादी धूमधाम से हुई थी । और आज यह आदमी पति होने का दावा कर रहा था । कहाँ रामखिलावन और कहाँ मुश्किल से सत्ताइस साल की रेणु । यहाँ तो बेटियाँ ही तेरह साल के आस पास होंगी ।
रेणु ने अपनी नजरें झुका ली थी । चुप्पी को राम खिलावन ने ही तोड़ा । नहीं जी आपने सही पहचाना मै राम खिलावन ही हूँ आपकी आरती दी का पति । पाँच साल पहले आरती एक एक्सीडेंट में चल बसी , तब ये बच्चियाँ 8 और 9 साल की थी कैसे पालता । बाबूजी भी रेणु के लिए दहेज नहीं जुटा पा रहे थे । सो रेणु को मैंने माँग लिया । सोचा था बच्चियों को फिर से माँ मिल जाएगी पर ये तो पिछले चार साल से बीमार ही चल रही है ..... ।
गाड़ी आ जाने से बात वहीं टूट गई और मै सामान सँभालती अपने डिब्बे की ओर बढ़ गई । पर मन उलझा ही रहा । मेरे सामने वाली सीट है 36 । मुझे लगा 3 है रेणु और 6 उसका पति । दोनों विपरीत ध्रुव । बीच में है विशाल हिंम शिलाएँ जिनकी ठिठुरन से रेणु तिल तिल गल रही है ।