bajar me ramdhan-kailash banvasi in Hindi Book Reviews by राज बोहरे books and stories PDF | बाजार में रामधन - कैलाश बनवासी

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बाजार में रामधन - कैलाश बनवासी

कैलाश वनवासी का कथा संग्रह

भौंचक खडे रामधन और बाजार में बदलता समाज

पुस्तक समीक्षा- राजनारायण बोहरे

कथा संग्रह- बाजार में रामधन

कहानीकार- कैलाश बनवासी

प्रकाशकः भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली

कैलाश बनवासी हिन्दी साहित्यकारों की उस पीढ़ी मे से आते हैं जो कम उम्र में ज्यादा परिपक्व और समझदार कही जा सकती हैं । इधर उभरते ऐसे रचना कर्मियों में जहां कविता में नीलेश रघुवंशी, पवन करण, पंकज चतुर्वेदी, हरिओम राजोरिया जैसे ऊर्जावान और कल्पनाशील युवा है वहीं कहानी में गौरीनाथ, श्री धरम और कैलाश वनवासी जैसे धैर्यवान और पर्याप्त होमवर्क के साथ आये कहानीकारों के नाम लिये जा सकते हैं ।

कैलाश वनवासी का कथा संग्रह बाजार में रामधन दरअसल ऐसी कहानियों का संग्रह कहा जा सकता है, जिनमें आज के बाजारी कल्चर में भौंचक खड़े तमाम देशी रामधन मौजूद हैं जो अपने आप को नई बयार में ढालने का माद्दा विकसित नहीं कर पा रहे हैं ।

संग्रह में कुल बारह कहानियां शामिल हैं, जिनमें एक लम्बी कहानी ‘एक अ-नायक की अधूरी कहानी’ और सामान्य आकार की कहानियाँ हैं ।

बाजार में रामधन संग्रह की पहली कहानी है जिसमें रामधन नाम के उस कृषक का द्वंद्व है, जिसके पिता ने दो बछड़ों को पाल-पोस के बैल बनाया था और रामधन उन्हीं के सहारे अपनी छोटी सी खेती संभाल रहा है कि उसका छोटा भाई ‘मुन्ना’ धंधे के लिए पूंजी जुटाने हेतु बैल बेच देने की जिद्द कर बैठता है । बहस मुबाहिसा के बाद रामधन बाजार में अपनी बैल जोड़ी ले जाता है लेकिन मनमाफिक दाम नहीं मिलने की वजह से वापस लौट आता है, ऐसा कई बार होता है, बैल न बेच पाने का मूल कारण असल में रामधन का बैलों के प्रति मोह और लगाव (थोड़ा-थोड़ा स्वार्थ भी) है । कहानी के अंत में लेखक एक फंतासी संवाद देता है ...मुंह मांगे दाम मिल जाने पर खुद को बेच दिये जाने के निर्णय के बारे में दोनों बैल रामधन का मंतव्य पूछते हैं तो रामधन कहता है ‘‘शायद नहीं ! फिर भी नहीं बेचता उनके हाथ तुमको’’ लेकिन परिस्थितिवश वह स्वीकार करता है कि...’’ अगली हाट में शायद मुन्ना तुम्हें लेकर आये ’’ यह कथा कई आयामों के साथ पाठकों के समक्ष आती है जिनमें कृषक के जीवन में खेतिहर मवेशियों का महत्व, नई पीढ़ी की स्वार्थपरता, गांवों का बदल रहा महौल और जानवरों के सौदे जैसे ग्रामीण बाजार तक में घुस आये बाजारवाद और दलाली तो स्पष्ट रूप से दिखती है । ‘बारात’ कहानी जिस जमीन से उठाई गई है उससे हम आप रोज दो-चार होते हैं लेकिन हमारी नजर से वे चरित्र अदृश्य रहते हैं । वर्मा नामक एक व्यक्ति अपने अफसर के बेटे की बारात में अनमना सा होकर शामिल होता है और निष्पक्ष व निर्लिप्त भाव से ही बारातियों की ऊटपटांग उछलकूद अर्थात डांस देखता है और उससे ऊबकर बारात के बिल्कुल आगे चला आता है, जहाँ झुग्गी-झापड़ीवासी कुछ बच्चे बैण्ड की धुन पर उम्दा तरीके से डांस कर रहे हैं, जिनमें से फिरोज खान नामक नन्हें बच्चे का डांस वर्मा को बेहद भा जाता है और वह जबरन ही उस बच्चे को बारात के बीच ले आता है जहां बेहूदे ढंग से बाराती और उनके बच्चे नाच रहे हैं । फिरोज का डांस देख के सब हतप्रभ रह जाते हैं फिर सहसा उनका अभिजात्य चेतता है और बेचारे फिरोज खान को पीटकर बारात के उजले घेरे से बाहर फेंक दिया जाता है । लेकिन फिरोज अर्ध बेहोशी की हालत से उबरकर स्वाभाविक स्थिति में लौट आता है और वह मुस्कराते हुए बारात के आगे नाच रहे अपने साथियों के साथ पुनः नाचने लगता है यह देख वर्मा आपा खो बैठता है और उसे विरोध करने की प्रेरणा देता है ।

प्रतीक्षा में कहानी में शहरी मध्यवर्ग के एक घर के आपसी नेह की तुलना ग्रामीण निर्धन वर्ग के पारस्परिक स्नेह से (यात्रा वृत्तांत के माध्यम से) की गई है, भौंचक बी.एल.मंडावी यानी भ्ूरा लाल मंडावी (सरकारी क्लर्क) अपने परिवार का ध्यान उनके बजाय टेलीविजन की विज्ञापनी दुनिया में एकाग्र देखकर आपा खो बैठते हैं । वे डेली अप डाउन करते हैं और उस दिन एक ग्रामीण बाप बेटी के आपसी नेह को देख उनके मन में ऐसा ही नेह पाने की नन्हीं सी इच्छा उनके मन में अंकुरित हुई है । कथा लोहा और आग... और वे....’ में उन लोहपीटे बंजारों के अप्रासंगिक होते चले जाने का जिक्र है जो दूसरे हुनरमंद बढ़ई, लोहार, मोची और साइकिल मैकेनिकों की तरह विस्थपित और बेरोजगार हुये हैं।

लम्बी कहानी एक अ-नायक की अधूरी कहानी के शिल्प में उपशीर्षक लिखने की प्रचलित शैली का उपयोग हुआ है । अब्दुल नामक युवक के बचपन की अजीबोगरीब दास्तान से शुरू इस कहानी में स्कूल की परीक्षा अब्दुल की बस कंडेक्टरी, प्रेम कहानी और अंत में पत्रकार बन जाने व एक पुरस्कार जुगाड़ लेने की कथा है, जिसके अलंकरण समारोह से अब्दुल आत्मशक्ति से बाहर आ जाता है । व्यक्तित्व के बिखरावों और अनेक व्यक्तित्वों के ठहरावों की इस कहानी में जहां लम्बी कहानियों की अपठनीयता की अनिवार्य कमजोरी है वहीं उपन्यासों का वैविध्यपूर्ण चित्रण कथा लेखक की सृजनात्मकता का परिचय देता है यह कथा ना-कुछ कहानी में भी बहुत कुछ कह देने की संभावनाशीलता की परिचायक है ।

‘प्रक्रिया‘ कहानी कई लम्बे अर्थ देती है । अरविंद नामक युवक बचपन में मानसिक संतुलन खो बैठा था, जिसके इलाज या आराम के लिए उसके बाल सखाओं को बुलाया गया था, बाल सखा कुछ देर के विमर्श के बाद जान जाते हैं कि अरविंद के इस विचलन के मूल में किशोरावस्था का उद्दाम प्रेम और देहाकर्षण के बावजूद बीना सभरवाल की अप्राप्ति है । वहीं अरविंद जब बड़ा होकर अफसर बनता है तो भारी रिश्वतखोर बन जाता है और इस लेन-देन से वह अपने बालसखाओं को भी नहीं बख्शता । प्रक्रिया का एक अर्थ सामान्य व्यक्ति के असामान्य होते चले जाने की क्रिया से है तो दूसरा अर्थ विकृत मनोवृत्ति के लोगों के ही रिश्वतखोर अफसर/प्रशासक बन जाने की संभाव्य परिणति दर्शाती है ।

‘वह एक कालम की खबर’ में बैंक अधिकारी नीता जायसवाल के साथ बलात्कार का प्रयास करने वाले डॉक्टर के खिलाफ उफने जनाक्रोश और उसे उम्दा मैनेजमैंट के दरिये दबा देने की कथा है, तो एक गांव फुलहार में गांव के दो अध्यापकों के अपने अपने स्तर से गांव की चरोखर व झुग्गीवासियों की रहवासी भूमि पर गांव के पुराने वासी एक सेठ द्वारा कारखाना लगाने के प्रयासों व उसके दूरगामी परिणामों को देखने की कथा है तो ‘गुरूजी और लोकेश’ की कहानी में भी एक गांव के तंगहाल लोगों के बच्चों को पढ़ाई से वंचित होने की कथा है । जिनकी मदद के वास्ते खुद गुरूजी को आना पड़ता है और बच्चों को आगे पढ़ाते हैं ।

‘मोहल्ले का मैदान और खाड़ी युद्ध’ दरअसल ताकतवर द्वारा सरकारी और कमजोर आदमी के जर-जमीन पर कब्जा करने और ऊपर से आंखें दिखाने की कथा है ।

इस तरह इस संकलन की सभी कथाओं में हमारे देश और समाज में आहिस्ता से दाखिल हो चुका बाजार अपने पूरे रंग-ढंग के साथ आया है । जहां तमाम रामधन भकुआ उठे हैं । संकलन की कहानी ‘‘बाजार .....’’ का रामधन प्रतीक्षा में के मंडावी, बारात का वर्मा , ‘लोहा और आग और वे... ’का मैं, एक गांव फुलहार के साहू गुरूजी व और ... ’ के गुरूजी ‘‘वे जो देख ...’’ की दीक्षा दीदी , जैसे चरित्र अभी इस बाजार में तब्दील हो रहे समाज को ठिठक कर देख रहे हैं, उसके साथ स्वयं को बदल नहीं पा रहे ।

लेखक के पास आंचलिकता तो है लेकिन वह दुरूह आंचलिक भाषा प्रयोग न करने की वजह से वे सहज बोधगम्य है ।

पर्याप्त तैयारी के बाद कथाकारों की पांत में दाखिल होने वाले कैलाश वनवासी की उम्दा कथाओं के बीच ‘वह लड़का ... ’ तथा ‘लोहा, आग और...’ जैसी अपेक्षाकृत कमजोर कहानियां संग्रह के समग्र प्रभाव व प्रवाह में असर तो नहीं डालती लेकिन इनके जगह यदि दूसरी सशक्त कहानियां शामिल की जाती तो वनवासी द्वारा इस बीच किए जा रहे गंभीर काम की झलक पाठकों को देखने को मिलती । वैसे यह कथा संग्रह समग्र रूपेण पठनीय व संग्रहणीय है ...और गंभीर चिंतक प्रभाकर श्रोत्रिय के संस्थान ( भारतीय ज्ञान पीठ) से प्रकाशित पुस्तक से ऐसी ही आशा थी

पुस्तक: बाजार में रामधन राजनारायण बोहरे

लेखक: कैलाश वनवासी एल. 19 हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी प्रकाशकः भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली दतिया म.प्र.