Kamnao ke Nasheman - 12 in Hindi Love Stories by Husn Tabassum nihan books and stories PDF | कामनाओं के नशेमन - 12

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कामनाओं के नशेमन - 12

कामनाओं के नशेमन

हुस्न तबस्सुम निहाँ

12

‘‘मैं जा रहा हूँ मेडिकल कॉलेज।‘‘ अमल ने बहुत तेजी के साथ कहा।

‘‘कैसे जाएंगे आप...? उन्होने थोड़ा ठिठकते हुए कहा- ‘‘इस वक्त टैक्सी भी मिलना बहुत मुश्किल है। मैं औरत थी किसी तरह पुलिस पी.एस.सी. से गिड़गिड़ा कर यहाँ चली आई। इस जमाने में किसी की नीयत का क्या भरोसा।‘‘

तब अमल ने जैसे उनकी बातों से निरपेक्ष होते हुए कहा- ‘‘पैदल जाऊँगा...वहाँ बाबू जी न जाने किस हालत में हों। ऐसे मौकों पर वहाँ बड़ी लापरवाही होती है। मन बहुत डर रहा है।‘‘

‘‘चलो, मैं भी साथ चलती हूँ।‘‘ उन्होंने बहुत ही ठोस आवाज में कहा। अमल ने उन्हें निहारते हुए कहा- ‘‘आप मेरे साथ कहाँ जाएंगी। आपका यही एहसान क्या कम है कि आप जान को दांव पर लगा कर यहाँ तक खबर करने आईं। दोबारा फिर आपको मुसीबत में कैसे डाल सकता हूँ‘‘

‘‘नहीं...नहीं कुछ नहीं होगा मुझे। अभी हिम्मत है मेडिकल कॉलेज तक जाने की।‘‘ उन्होंने बहुत ही ठोस लफजों में कहा। अमल ने उनकी चलने की व्यग्रता को महसूस करते हुए कहा- ‘‘आप इतनी रात में यहाँ आ गई हैं। इस हालत में आपके घर वाले भी बहुत परेशान होंगे आपके न लौटने से। पहले तो मुझे आपको ही आपके घर पहुँचाना चाहिए।‘‘ वह क्षणों तक चुप रहीं फिर धीरे से बोलीं- ‘‘मैं तो यहाँ बहुत ही हिफाजत में हूँ।...मेरे ख्याल से कल सुबह चला जाएगा, इस वक्त बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं है। केशव नाथ जी बिल्कुल ठीक होगें। कोई जयादह घाव नहीं था उन्हें। हो सकता है कि कल ही उन्हें छुट्टी मिल जाए।‘‘

कुछ पलों के लिए एक लंबी खामोशी तन गई। शायद मजबूरन सभी उनकी बात से सहमत हो गए। तभी उन्होंने बेड पर लेटी बेला की ओर निहारते हुए एक संकोच के साथ कहा- ‘‘क्या आप एक कप चाय बना के पिला देंगी मुझे...बहुत थक गई हूँ।‘‘ अमल ने एक बार बेला की ओर देखा फिर बोले- ‘‘मैं बना लाता हूँ‘‘

‘‘अरे...आप कहाँ बनाएंगे...‘‘ फिर बेला की ओर देखते हुए कहा- ‘‘लगता है आप ज्यादह बीमार हैं।‘‘ बेला ने बहुत ही सहज भाव में कहा- ‘‘अपाहिज हूँ मैं। उठ नहीं सकती।‘‘

कभी-कभी अंतर की विवशताएं व्यक्ति को बहुत ही सहज बना डालती हैं कि उन विवशताओं को उजागर करने में मन कहीं बिंध नहीं पाता। अभी जिस सहजता से अपने अपाहिजपन को बेला ने स्वीकार किया था वह अमल को अंदर तक चीर सा गया था। वह उठ कर बेला के पास बैठ गईं और बहुत गहरी सहानुभूति के साथ बेला के बालों को सहलाते हुए बोली- ‘‘यह खुदा भी बहुत अजीब है। तुम्हें इतनी खूबसूरती दे कर भी तुमसे बहुत कुछ छीन लिया है।‘‘ अमल ने शायद इस वक्त इस संदर्भ को काटने का प्रयास करते हुए कहा- ‘‘मैं चाय बना कर लाता हूँ। आप फ्रेश होना चाहें तो बाथरूम उधर है।‘‘

उन्होंने अमल के चेहरे पर तिर आए एक पीड़ा के भाव को निहारते हुए बहुत ही आत्मीय लहजे में कहा- ‘‘आप पीड़ित लोग हैं। अगर मेरी बनायी चाय पी लें तो मैं ही बना लाती हूँ। मैं एक मुसलमान औरत हूँ। नाम रजिया बेगम है।‘‘ फिर उन्होंने हँस कर कहा- ‘‘वैसे खिदमतगार की कोई जात या मजहब नहीं होता। वह सिर्फ खिदमतगार ही होता है।‘‘ अमल ने बहुत संकोच के साथ कहा-

‘‘क्या कह रही हैं आप।...आप यहाँ इस वक्त हम लोगों की खिदमत करने नहीं आई हैं। हम लोग आपके एहसान से वैसे ही दबे हुए हैं कि आप अपनी जान पे खेल कर आई हैं...वैसे हम लोग जात-पात या मजहब में विश्वास नहीं करते। फिर भी आप बहुत थकी हुई हैं...चाय बना कर मैं ले आता हूँ।‘‘ रजिया बेगम ने अमल को रोकते हुए कहा-‘‘आप रहने दीजिए। अभी मेरी जेहनियत से यह बात निकल नहीं पायी है कि औरत के सामने मर्द चाय बना कर दे। औरत बहुत मुहब्बत की तासीर रख कर मर्दों की खिदमत करती है। गुलामी की तरह नहीं। ...अब मर्द उसे कुछ भी समझता रहे।‘‘

तभी बेला ने कहा- ‘‘मुझे अपने अपाहिजपन से उतनी तकलीफ नहीं होती जितनी कि इस बात से कि मैं किसी की भी खिदमत के लायक नहीं रह गई हूँ।‘‘

बेला की बात रजिया बेगम को अंदर तक छू गई। वे उसके बालों को सहलाती बोली- ‘‘यह तो तुम्हारी मजबूरी है। अंदर से खिदमत का जज्बा है, वही काफी है। कम से कम तुम गुलाम बनना तो नहीं चाहतीं न...‘‘इतना कह कर शायद बेला को ढांढ़स देने की गरज से हँस पड़ी और फिर बोलीं- ‘‘किचेन किधर है। बस इतना बता दीजिए। शायद मेरे हाथ की बनी चाय आप लोगों को पसंद आ जाए।‘‘ उन्होंने अमल की तरफ इशारा करते हुए कहा।

पहले वह बाथरूम फ्रेश होने गईं और फिर किचेन में अमल के साथ चली गयीं। थोड़ी देर में वह अमल के साथ चाय की केतली लेकर वापस आयीं। अमल चाय की प्यालियां ले कर आए। जिस अपनत्व से रजिया बेगम ने अभी बेला को सहारा दे कर चाय पीने के लिए उठाया है, यह महसूस ही न हुआ कि वे कुछ ही देर पहले बहुत अजनबी थीं इस घर में। लूसी अभी फिर उनकी साड़ी खींचने लगा था। चाय पीते-पीते अमल ने बहुत कुतुहल से रजिया बेग़म से पूछा- ‘‘वैसे तो आप जरूर इस घर से बहुत अजनबी सी हैं। लेकिन यह लूसी आपसे बहुत पुराना परिचित लगता है।‘‘ रजिया बेगम सहसा चुप हो गई थीं। उनके चेहरे पर एक अजीब सा भाव तैरने लगा था। फिर वह अपने को जैसे पूरी तरह सहज बनाती हुई लूसी को सहलाते हुए बोली थीं- ‘‘यह जानवर कभी नहीं भूलते। इनसे एक बार नाता बन गया तो ये ताउम्र उस नाते को बहुत संभाल कर रखते हैं। यह कभी पहचान नहीं खोते।‘‘

रजिया बेगम ने जैसे उस जानवर के नाते-रिश्ते से कहीं कुछ गहरी बात कहना चाह रही थीं और उस सवाल को टाल रही थीं जिसे अमल ने अभी पूछा था। फिर वह इतना ही कह कर चाय पीने लगीं थी। अमल बहुत ही रहस्यमयता से उनकी ओर निहारते भर रह गए थे। फिर जैसे वह लूसी के बारे में कुछ और कहने का साहस नहीं कर सके। सिर्फ वे उनकी आँखों से लेकर उनके सारे व्यक्तित्व को टटोलने लगे चुपचाच। सचमुच में वह बहुत ही खूबसूरत थीं, उनकी आवाज में जो खनक थी वह बहुत बांधने वाली थी। उनकी बेहद आकर्षक कद काठी से यह अंदाजा लगाना मुश्किल था कि वे किस उम्र की होगीं। कभी-कभी कुछ स्त्रियां अपनी उम्र छिपाने का प्रयास भी करती हैं वहीं कुछ-कुछ की बनावट ही ऐसी होती है कि बिना उनके बताए सही उम्र का पता नहीं चलता। यानी वे जिस मोहक मौसम की दहलीज पर खड़ी रहती हैं, हमेशा उसी दहलीज पर खड़ी रह जाती हैं। उम्र अपनी ही पहचान खो देती है। उन कुछ फूलों की तरह जिनकी गमक हमेशा बनी रहती है...खिलने और मुर्झाने के सवालों से हट कर।

तभी शायद रजिया बेगम उस अचानक सधी हुयी चुप्पी को जैसे वे कहीं से झेल नहीं पा रही थीं। उन्होंने कमरे की एक तरफ चौकी पर रखे सितार की ओर निहारते हुए पूछा- ‘‘तुम्हें भी सितार बजाने का शौक है?‘‘

‘‘शौक नहीं..., यह मेरा पेशा है। मैं यहाँ संगीत कॉलेज में नौकरी करता हूँ।‘‘ अमल ने जवाब दिया। उन्होंने अमल को एक आकर्षक भाव से निहारते हुए मुस्कुरा कर कहा- ‘‘ओह...अब तो सुनूंगी कभी तुमसे भी। मेरा बहुत ही प्रिय साज है यह सितार।‘‘

तभी बेला बोल पड़ी-‘‘बहुत ही मशहूर सितारवादक हैं यह। शायद आपको कभी मौका न मिला हो इन्हें किसी समारोह में सुनने का...। अमेरिका जा रहे हैं जनवरी में एक शिष्ट मंडल के साथ, सरकार की ओर से निमंत्रण मिला है।‘‘

‘‘मुबारक हो...‘‘ रजिया बेगम ने अमल की ओर बहुत ही आत्मीय ढंग से देखते हुए कहा।- ‘‘मेरी सारी थकान जाती रही अपने को एक ऐसे कलाकार के सामने पा कर। मैं बहुत वर्षों तक ढाका में रही, यहाँ होती तो जरूर सुनती।‘‘

इस बार अमल ने उनके चेहरे पर फैली एक रहस्यमयता को थहाते हुए पूछा- ‘‘आप यहाँ कहाँ रहती हैं?‘‘

वह थोड़ा सहमी इस सवाल पर फिर वे जैसे कहने को मजबूर सी हुई हों। वह बहुत सीधी आवाज में बोलीं- ‘‘मैं भी एक कलाकार हूँ, गायकी पहले मेरा शौक रहा बाद में हालात ने इसे पेशा बना दिया। पुरानी मुंबई में रहती हूँ पिछले आठ साल से।‘‘ थोड़ा ठिठक कर वह जैसे अमल के चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया टटोलतीं बोलीं- ‘‘कोठे पर मुजरा सुनाने से फुर्सत ही नहीं मिलती कि बाहर आकर जानूं कि संगीत की दुनिया में कितने नए-नए सितारे चमक रहे हैं। नहीं तो भला आपको न जान पाती...‘‘

अमल और बेला इस बात से जैसे सन्न से रह गए। एक अजीब चुप्पी दोनों के अंदर सध गई थी। फिर इस चुप्पी का अर्थ जैसे निकालते हुए रजिया बेगम ने हँस कर कहा- ‘‘यह जान कर हैरत हुई क्या...कि मैं एक मुजरे वाली औरत हूँ।....वैसे पेशा अलग चीज है और औरत होना एक अलग चीज। दोनों को साथ जोड़ने से एक अलग पहचान बन सकती है।‘‘ फिर उन्होंने हँस कर कहा- ‘‘कहीं मेरे हाथ की बनी चाय कसैली तो नहीं हो उठी है सारा कुछ मेरे बारे में जान लेने के बाद।‘‘

‘‘क्या कहती हैं आप...‘‘ अमल ने बहुत ही आदर भाव से कहा जैसे- ‘‘मैं भी एक कलाकार हूँ। कलाकार की इज्जत करना जानता हूँ। अब जरूर सुनूंगा आपसे कभी।‘‘

‘‘जरूर सुनाऊँगी कभी आप सबको‘‘ रजिया बेग़म ने हँस कर एक मोहक अंदाज में कहा- ‘‘लेकिन यहीं, इसी घर में। अपने कोठे पर नहीं...‘‘

अमल ने भी हँस कर कहा- ‘‘वह कोठा आपके ग्रहकों के लिए होगा, लेकिन मेरे लिए तो वह एक साधना का घर होगा। अपने घर जैसा ही बहुत ही आत्मीय..घर।‘‘ रजिया बेगम अमल का चेहरा तकती भर रह गयीं और फिर एक उजास भरी सांस लेकर बोलीं- ‘‘वाकई में तुम एक बहुत बड़े कलाकार ही नहीं...एक बहुत बड़े इंसान भी हो। फन की भी कद्र करने वाले और औरत की भी कद्र करने वाले।‘‘ फिर उन्होंने बेला के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- ‘‘बहुत ही खुशकिस्मत हो तुम तुम्हारी सारी तकलीफें बेमानी हैं ऐसे बड़े इंसान को पति के रूप में पाकर।‘‘ बेला उनकी बात पर बोली- ‘‘मुझे भी बहुत नाज़ है इन पर। लेकिन मैं क्या दे पा रही हूँ इन्हें सिवाए दुःख और तकलीफ के।‘‘ रजिया बेगम ने कुछ भी नहीं कहा आगे। वह बेला का गाल थपथपा के उठ खड़ी हुईं और उठते हुए बोलीं- ‘‘तुम दोनों केशव नाथ जी की चिंता मत करना। वे मजे में होंगें। सुबह जा कर हम लोग उन्हें लिवा लाएंगे। सुबह शायद कर्फ्यू में ढील मिल जाए..‘‘ वे फिर अमल के साथ बगल वाले कमरे में चली गईं। अमल लौट कर आए तो बेला चुपचाप उनका चेहरा तकने लगी। ढेर सारे शब्द जैसे भीतर उबल रहे थे लेकिन वह कुछ बोल नहीं पाई। वह सिर्फ इतना ही बोलीं- ‘‘लूसी को बाहर फाटक पर कर आओ।‘‘

बेला अभी भी लूसी को उसकी पहचान पर जैसे कुतुहलता से लदी हुई थी। वह लूसी को निहारती रही जब तक अमल उसको बाहर छोड़ने नहीं गए।

शायद बाबू जी की चिंता में अमल रात भर सो नहीं पाए। सुबह होते ही वह तैयार हो गए। रजिया बेगम भी नयी जगह की वजह से रात भर सो नहीं पायी थीं। वह भी अमल की आवाज सुन कर कमरे में आ कर बोलीं- ‘‘मैं भी साथ चलती हूँ‘‘

‘‘कहाँ, पुरानी मुंबई...?‘‘ अमल ने पूछा और फिर थोड़ा ठहर कर कहा- ‘‘मेरे ख्याल से पुरानी मुंबई आपका जाना अभी ठीक नहीं है। क्या पता, उधर का क्या हाल हो। आप अभी यहीं रूकिए। बेला के पास रहें। अकेली रहेगी यह...घबराएगी।‘‘ तब रजिया बेगम ने बेला की ओर देख कर कहा- ‘‘चाय बना लाती हूँ...पी कर जाओ। अगर हो सके तो यह भी पता करते आना कि पुरानी मुंबई के क्या हालात हैं?‘‘ कह कर रजिया बेगम चाय बनाने चली गईं। कुछ देर में चाय बना कर लायीं और अमल चाय पीने के बाद चले गए।

/////

टैक्सी में केशव नाथ जी को लाते वक्त अमल ने रास्ते मे कहा- ‘‘अगर पुरानी मुंबई वाली रजिया बेग़म आकर न बतातीं कि आप जख्मी हो गए हैं और अस्पताल में हैं तो हम जान ही न पाते और परेशान रहते‘‘

‘‘अरे...., बेचारी पहुँच गई कहो जैसे ही मैं पुरानी मुंबई पहुँचा दंगा शुरू हो गया।...टैक्सी से खींच कर दंगाईयों ने मुझे बाहर निकाल लिया और छुरेबाजी शुरू कर दी। बेचारा टैक्सी वाला शायद मारा गया। बुरी तरह अगजनी हुई। तभी पुलिस आ गई। मुझे वैन पर लेकर जाने लगे। वहीं रजिया बेगम अगजनी से बचने के लिए नीचे आ गई थी। जाते-जाते मैंने घर का पता दिया और तुम लोगों को खबर कर देने के लिए कहा।‘‘ केशव नाथ जी ने अपनी बात खत्म की।

‘‘बहुत अच्छी हैं वह। उनका बहुत एहसान है हम लोगों पर। वे जान की बाजी लगा कर बहुत रात में आयीं, पता नहीं उनका कोठा बचा कि नहीं।...अगर कहें तो रास्ते में उधर चल कर पता लगाते हुए चलें।‘‘ अमल ने बहुत ही कृतज्ञयता और चिंता के भाव में कहा।

‘‘कहीं फिर न फंस जाएं उधर जा कर।‘‘ केशव नाथ जी ने एक साहस के साथ कहा। फिर टैक्सी ड्राईवर से पूछा-‘‘क्यों...पुरानी मुंबई की तरफ से हो कर चल सकते हो क्या...? उधर तो इस वक्त कोई गड़बड़ी नहीं है।‘‘

टैक्सी ड्राईवर ने पीछे मुड़ कर केशव नाथ जी की तरफ एक कटाक्ष भरी निंगाह से देखा और फिर बोला- ‘‘पुलिस वाले इस वक्त वहाँ जाने से अपने को रोक तो नहीं रहे लेकिन वहाँ रूकने नहीं दे रहे।...वैसे साहब वहाँ की सारी दुकानें फूंक चुकी हैं। चाहे वो दुकानें सोने चांदी की हों या मुजरे वालियों की हों। कहें तो उधर ही घुमा लूं..‘‘ केशव नाथ जी को उस ड्राईवर की यह टिप्पणी अच्छी नहीं लगी शायद। फिर भी उन्होंने बहुत गंभीर लहजे में कहा- ‘‘उधर से ही निकाल लो।‘‘

टैक्सी ड्राईवर ने गाड़ी घुमा दी और पुरानी मुंबई की ओर बढ़ गया। रास्तें में खिड़की के बाहर सिर निकाल कर केशव नाथ जी ने ऊपर की तरफ कोठे की ओर झांक कर देखा। वह मकान ही पूरी तरह जल कर राख हो गया था। वह बहुत ही बुझे स्वर में अमल से बोले- ‘‘यहीं से मुझे पुलिस वाले ले गए थे। रजिया बेगम का तो कोठा जल कर राख हो गया। जिस तरह जला है लगता है बेचारी का एक सामान भी नहीं बचा होगा। बहुत बुरा हुआ बेचारी के साथ।‘‘

शायद टैक्सी वाला उनकी बातें सुन रहा था। वह बीच में टोकते हुए बोला- ‘‘पता नहीं इन मुजरे वालियों ने क्या बिगाड़ा था इन लोगों का।...सारे कोठे लूट भी लिए और उन लोगों को जान से भी मार दिया। अब तबले की ठनक और सुरीली आवाजें इस इलाके में नहीं सुनाई देंगी।‘‘

टैक्सी वाला इस बात को एक सहानुभूति के साथ कह रहा था या फिर व्यग्ंय से पता नहीं चला। उसकी बात पर दोनों ही चुप से रहे।

////////////

फाटक के अंदर घुसते ही लूसी कूदने लगा और केशव नाथ जी से लिपट गया। उसकी आवाज सुन कर रजिया बेगम अंदर से बाहर आ गईं। केशव नाथ जी की बांहों पर पट्टी बंधी देख वह बोलीं- ‘‘खुदा का लाख-लाख शुक्र है कि आपको हल्के जख्म ही हैं।...यहाँ सब बहुत परेशान हो रहे थे।‘‘

‘‘मैं तुम्हारा बहुत शुक्र गुजार हूँ बेग़म।‘‘ केशव नाथ जी ने रजिया की ओर निहारते हुए कहा- ‘‘यहाँ खबर देने के लिए तुमने बड़ी तकलीफ उठाई। नहीं तो ये सब परेशान रहते। बहुत मुश्किल से मेडिकल कॉलेज वाले आज ही डिस्चार्ज करने के लिए राजी हो पाए।‘‘

अमल केशव नाथ जी को सहारा देकर कमरे में ले जाने लगे तो उन्होंने कहा-‘‘..पहले बेला के पास ले चलो।‘‘ फिर वह केशव नाथ जी को लिवा कर अपने कमरे में ले गए। बेला देखते ही रोने लगी। उसके पास बैठते हुए केशव नाथ जी ने उसके बालों को दूसरे हाथ से सहलाते हुए भींगे स्वर में कहा- ‘‘सिर्फ मेरा एक ही हाथ जख्मी हुआ है। दूसरा तुम्हारे सिर पर हाथ फेरने के लिए बिल्कुल साबुत बचा हुआ है। यह जख्म भी कुछ दिनों में भर ही जाएगा।‘‘

पास खड़ी रजिया बेग़म ने केशव नाथ जी की ओर निहार कर गहरी सहानुभूति के साथ कहा- ‘‘आप वापस लौट आए, आपके इन दोनों बच्चों की किस्मत है।...बाकी ये जख्म थोड़े दिनों में भर ही जाएगा।‘‘ फिर उन्होंने थोड़ा गंभीर होते हुए पूछा- ‘‘हमारी तरफ गए थे न...क्या हाल है उधर?‘‘

अमल ने रजिया बेग़म की ओर एक कातर दृष्टि से देखा और फिर केशव नाथ जी की तरफ। शायद वह इस क्षण यह भयावह सूचना देने में खुद को असमर्थ पा रहे थे। केशव नाथ जी भी कुछ कहने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पा रहे थे। कई पल तक चुप्पी सी तनी रही। फिर रजिया बेग़म ने विस्फारित आँखों से अमल की ओर देखते हुए दोबारा दोहराया- ‘‘उधर नहीं गए थे क्या..?‘‘

फिर अमल ने ही बहुत साहस बटोरते हुए धीमी आवाज में कहा- ‘‘...उधर से ही आए हैं। आप जिसमें रहती थीं वो पूरा तीन मंजिला मकान ही जल कर राख हो गया है। बाबू जी की तरह आप भी बहुत ही खुशनसीब थीं कि बच कर वहाँ से चली आईं।...अब वहाँ सिर्फ राख भर ही बची है।