भभूत ललाट ब्रहमभट्ट.
जो बाप ऐसा खतरनाक नाम अपने बेटे का रख दे उस बाप से बेटे का जन्म भर का बैर तो रहेगा ही.
शुक्र था कि दादी ने शुरू से ही कह दिया था-इसे हम ओम कह कर पुकारेंगे. पिता बैंक की नौकरी करते थे और कड़क धार्मिक थे. मूलाधार, सात चक्र, कुंडलिनी, इंगला-पिंगला, ओह्म उनकी डिक्शनरी के रोजाना के शब्द थे.
बरकोट जैसे कस्बे में उनके घर-आंगन में ओह्म शब्द यूं गूंजता था कि पता लगाना मुश्किल होता था कि भभूत ललाट ब्रह्मभट्ट को पुकारा जा रहा है या ईश्वर की आराधना हो रही है.
बचपन से ही ओम के लिए ध्यान पर बैठना और सात चक्रों को साधना या उसका ढोंग करना अनिवार्य था.
इसलिए सातवीं कक्षा में पहुंचते-पहुंचते वह पिता को शत्रु मान बैठा था.
मगर पिता सदाचारी थे.
और ऐसा व्यक्ति एक दिन अचानक मर जाए तो जबरदस्त झटका लगता है.
शमशान से लौटने तक वह गुमसुम ही रहा. फिर चुपचाप जंगल की तरफ चला गया.
एक पत्थर पर चुपचाप बैठा रहा. फिर धीरे-धीरे दो आंसू बहने लगे.
पिता ने बगावत का मौका ही नहीं दिया. पहले ही चले गए. बस हमेशा डांटते रहे.-पदमासन में बैठ. मूलाधार में ध्यान दे. गहरी सांस ले और नाभि से बोल-ओहमऽऽऽ!
ले बाप , आज सुन मेरा ओहमऽऽ! वह आंसू पोंछकर जोर से शंख की तरह बोल उठा-ओहमऽऽऽ!
एक बार फिर -ओहमऽऽऽ!
और बार-बार बोलता चला गया. सुध-बुध खोकर. उसका सारा शरीर झनझनाने लगा.
उसकी आवाज के साथ अनेक पक्षी भी चीं-चीं कर उठे.
और तभी हुआ एक चमत्कार. शंख जैसी ओम की ध्वनि के साथ एक विशाल वृक्ष का तना बीच से फट गया.
ओम ने चौंक कर देखा-अंदर एक गहरी गुफा थी. उसमें से रोशनी बाहर आ रही थी.
ओम हैरानी से उस तरफ बढ़ गया. नजदीक पहुंचते ही रस्सी ने हाथी की सूंड की तरह आगे बढ़कर उसे लपेट कर गुफा में खींच लिया और साथ ही साथ गुफा का द्वार बंद हो गया.
आगे सीढ़ीदार रास्ता था और उस पर मखमल बिछी थी. वह आगे बढ़ता गया. सामने ही एक दरवाजा था. दरवाजे पर एक सिंह का सिर था, जिसकी जीभ बाहर लटक रही थी. अनायास ही उसका हाथ सिंह की जीभ पर चला गया और जीभ को खींचते ही दरवाजा गड़गड़ाते हुए खुल गया.
अब वह एक विशाल कक्ष में था, जहां अनेक पिंजरे लटक रहे थे और हर पिंजरे में एक प्राणी कैद था., कुछ भूत-पिशाच जैसे और कुछ आधे इंसान और आधा जानवर जैसे.
उसे देखते ही सब के सब पिंजरा खोलने की फरियाद करने लगे.
ओम चकरा गया. पिंजरे के प्राणियों का चींखना-चिल्लाना बढ़ते जा रहा था. तभी हरे धुंए के पीछे से एक लंबी सफेद दाढ़ी वाला बौना प्रकट हुआ और बोला, ‘‘ मैं जादूगर गोगिया का सेवक हूं. मैं तुम्हारे तीन सवालों के जवाब दे सकता हूं.
ओम अपनी घबराहट पर काबू होते हुए बोला, ‘‘ यह सब क्या है? मैं यहां कैसे आया हूं और कैसे वापस जाऊंगा!’’
बौने सेवक ने जवाब दिया, ‘‘ तुम ब्रहमांड के एक दूसरे लेवल या आयाम पर हो. तुमने ओहम मंत्र की चाभी से इसका द्वार खोला है और यही तुम्हें वापस ले जाएगा. मगर अभी तुम्हें और तीन द्वार खोलने हैं’’
ओम ने अपना दूसरा सवाल पूछा, ‘‘ जादूगर कहां है?’’
बौना बोला, ‘‘ उसे बड़ा जिन्न उठाकर ले गया है. अगला महल उसी का है. तुम्हें उसे आजाद करना है. उसे जिन्न से आजाद कराते समय यह वचन लेना न भूलना कि वह इन सभी पिंजरे में कैद प्राणियों को भी आजाद कर दे.
ओम ने अब तीसरा प्रश्न पूछा, ‘‘ क्या तुम मेरी मदद के लिए साथ चल सकते हो?’’
यह सुनते ही सेवक चकरा गया. थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोला, ‘‘ एक शर्त पर चल सकता हूं. तुम मुझे अपने कंधे पर बिठाकर ले चलोगे. बोलो मंजूर है?’’
ओम ने पिंजरे पर लटके बंदियों की तरफ देखा और फिर कहा- मंजूर है.
इतना सुनते ही बौना कूद कर ओम के कंधे पर बैठ गया.
अब वे एक विशाल कक्ष से निकल कर एक बार फिर सीढ़ीदार मार्ग से आगे बढ़ रहे थे.
बौना सेवक मस्ती से गुनगुनाने लगा था. और गुनगुनाते हुए वह ओम को दूसरे द्वार को खोलने का संकेत दे रहा था.
अगले द्वार पर बीचों-बीच कुंडली मार कर तीन सांप उभरे हुए थे.
बौने के संकेत के अनुसार ओम ने तीनों सांपों के मुंह में उनकी पूंछ घुसेड़नी शुरू कर दी.
तीनों सांपों के मुंह में उनकी पूंछों के समाते ही द्वार कड़कड़ कड़कड़ करता हुआ खुल गया.
अब वे एक विशाल कक्ष में थे. जहां बड़ी-बड़ी कांच की बोतलें थी. कुछ लंबी, कुछ गोल-गोल. उनमें रंगीन पानी भरा था. तरह-तरह के प्राणी.
कुछ इंसान, कुछ हैवान, कुछ भले, कुछ बुरे.
बौना सेवक अपने मालिक गोगिया जादूगर को ढूंढने लगा, मगर वह किसी भी बोतल में नजर नहीं आया.
तभी पीले धुंए के पीछे से एक लाल दाढ़ी वाला बौना प्रकट हुआ और बोला, ‘‘ मैं जानता र्हूं
गोगिया जादूगर कहां कैद है?’’
ओम को उसे देखकर हैरानी हुई, उसने फौरन पूछा, ‘‘ कौन हो तुम?’’
बौना बोला , ‘‘मैं बड़ा जिन्न का गुलाम हूं. मैं तुम्हें तीन सवालों के जवाब दे सकता था. एक तुम पूछ चुके हो. बाकी दो सवाल भी पूछ सकते हो?’’
‘‘ ओम ने अगला सवाल पूछा, ‘‘ बड़ा जिन्न ने इन सब को क्यों कैद कर रखा है. और वो खुद कहां है?’’
बौना बोला, जिन्न के वश में कुछ काली ताकते हैं, वह उनको इन प्राणियों का जीवन रस पिलाकर अपने काबू में रखता है और उनसे उल्टे-सीधे काम करवाता है. मगर इस जिन्न को भी अब ब्रह्म पिशाच उठा ले गया है.’’
ओम ने आगे पूछा, ‘‘ तो इनकी मुक्ति कैसे होगी? क्या तुम हमारी मदद करोगे?’’
बौना अपनी लाल दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘ उसके लिए तुम्हें बड़ा जिन्न को ब्रह्म पिशाच से छुड़ाना होगा. मैं साथ में चल सकता हूं. मगर कंधे पर बैठकर ही जाऊंगा ’’.
मरता क्या न करता. ओम ने कहा-‘‘ मंजूर है’’
और इसके साथ ही लाल दाढ़ी वाला बौना कूद कर ओम के कंधे पर लद गया.
चलते-चलते बौना बोला, ‘‘ जिन्न को छुड़ाने से पहले उससे इन लोगों की आजादी का वचन ले लेना. और ये लो,इस बोतल में बंद गोगिया जादूगर को अपनी जेब में भर लो.’’
ओम दोनों बौनों को उठाए, धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा. ब्रह्म पिशाच के महल की तरफ.
दूर से ही सड़ी गंध और चीखने-चिल्लाने की अजीब आवाजें सुनाई देने लगी थी.
थोड़ी दूर चलने के बाद वे एक सपाट से द्वार के सामने पहुंच गए.
ओम ने पूछा, ‘‘ अब’’
बौना बोला, ‘‘ पिशाच अंधा है, उसे बोलो कि तुम नूरानी अंजन आए हो. इसलिए द्वार खोलो.’’
ओम, ‘‘ फिर?’’
बैना, ‘‘ फिर मैं तुम्हारे कान में जो कहूं, वही करना, मगर ब्रह्म पिशाच के नजदीक हर्गिज न जाना.’’
ओम ने वैसा ही किया. ब्रह्म पिशाच को पुकारते ही वह द्वार चर्रमर्र चर्रमर्र करता हुआ खुल गया.
ओम ने देखा पांच हाथियों जितना विशाल ब्रह्म पिशाच एक पलंग पर लेटा थाउसके पैर नहीं थे. बस एक लंबी सी दुम थी. कमरा खाली था, मगर उससे तरह-तरह की आवाजें आ रही थी.
ब्रह्म पिशाच बोला,‘‘ नजदीक आओ और मेरी आंखों में नूरानी अंजन लगाओ. अगर मेरी दृष्टि लौट आई तो तुम्हें मुंहमांगा इनाम दूंगा नहीं तो कच्चा ही खा जाऊंगा’’.
बौना फुसफुसाकर बोला, ‘‘ उसके नजदीक हर्गिज मत जाना. पहले उससे बड़ा जिन्न के बारे में पूछो.’’
ओम ने वैसा ही किया. वह ब्रह्म राक्षस से बोला, मेरे पास नूरानी अंजन है, मगर पहले तुम बताओ कि बड़ा जिन्न कहां है?’’
ब्रह्म पिशाच एक अट्टाहस करता हुआ बोला, ‘‘ मैंने सबको आवाज बनाकर यहां कैद कर रखा है. मैं वादा करता हूं अपनी आंखें ठीक होते ही मैं जिन्न को आजाद कर दूंगा. अब मेरे नजदीक आओ और मेरी आंखों में अंजन लगाओ.’’
‘‘ यह काम हमें करने दो.’’ दोनों बौने एक साथ बोला. और साथ ही साथ उन्होंने दूर से ही ब्रह्म पिशाच की आंखों पर थूक दिया. उनकी थूक के खारेपन से ब्रह्म पिशाच की आंखों से धुंआ निकलने लगा और वह दर्द से तड़फने तथा उन्हें पकड़ने की कोशिश करने लगा.
अब दोनों बौने बोले, ‘‘ भागो यहां से’’
वे वहां से निकलने का रास्ता ढूंढ ही रहे थे कि तभी एक काली दाढ़ी वाला बौना वहां आ गया और रास्ता दिखाते हुए बोला, ‘‘ यहां से जाओ, सीधे नरक सागर के मुख तक पहुंच जाओगे.’’
ओम के पैर ठिठक गए, ‘‘ नरक सागर? फिर?’’
बौना बोला, ‘‘ वहां तुम सबकी मौत इंतजार कर रही है.’’
ओम ने लाचार होकर पूछा,, ‘‘ तो बचने का कोई रास्ता नहीं!’’
बौना बोला, ‘‘ नरक सागर को पार कर जाओ, तो घर पहुंच जाओगे, मगर यह आसान होता तो वहां हड्डियों का अंबार न लगा होता और मैं भी एक अत्याचारी का दास न बना होता’’.
ओम हताश होकर बोला, ‘‘ मित्र तुम भी हमारे साथ चलो, शायद हम सब मिलकर कोई रास्ता निकाल लें.’’
यह सुनकर काली दाढ़ी वाला बौना खुश होकर बोला, ‘‘ तुम बच्चे अच्छे हो. चलो मुझे सिर पर बिठा लो!’’
मरता क्या न करता. ओम ने तीसरे बौने को सीधे सिर पर बिठा लिया.उस बौने ने हवा में उछल कर कुछ लपका और कहा -मैंने जिन्न को पकड़ लिया है,अब चलो’’.
अब तीनों नरक सागर की तरफ बढ़ने लगे. काली दाढ़ी वाला बौना उन्हें रास्ता दिखाता गया. तीनों का बोझ ढोते हुए ओम का बुरा हाल हो रहा था.
जल्दी ही वे हड्डियों के पहाड़ से गुजरने लगे. फिर पीले पहाड़ शुरू हुए और उसके बाद दिखाई दिया लाल पानी वाला नरक सागर.
अब तीसरा बौना बोला, ‘‘ मैं इसके आगे कुछ नहीं जानता. सुना है यहां तेज हवाओं में एक दीपक जलता रहता है, जिस दिन वह बुझ जाएगा, यह नरक सागर सूख जाएगा, तभी सब कुछ बदलेगा.’’
उसकी बात सुनकर पहला बौना बोला, ‘‘ जिस दीपक को तेज हवाएं न बुझा सके उसे कौन बुझाएगा?’’ दूसरा बौना बोला, ‘‘ वह दिया तो बारिश और बर्फवारी में भी जलता रहता है.’’
ओम धीरे से बोला, ‘‘ चलो उस दिए को ढूंढते हैं.’’
कुछ देर भटकने के बाद उन्हें नरक सागर में एक कछुवे की पीठ पर वह दिया जलता नज़र आया. कछुआ बीच-बाच में पानी में डुबकी लगा रहा था. मगर दिया फिर भी जल रहा था.
ओम निराश होकर जमीन पर बैठ गया.
बदमाश बौने तब भी उसके कंधों और सिर से नीचे नहीं उतरे.
ओम को लगा अब जीवन का अंत आ गया है. तो क्या पिता की तरह वह भी .....
पिता याद आते ही मन भरभरा उठा और मुंह से एकएक निकल पड़ा...ओहऽऽम
पहली बार आज्ञा चक्र में ओहऽऽम.
दूसरी बार विशुद्धि चक्र में ओहऽऽम.
तीसरी बार अनाहत चक्र में ओहऽऽम
चौथी बार मनिपुर चक्र में ओहऽऽम
पांचवी बार स्वाधिष्ठान चक्र में ओहऽऽम
सारा शरीर कांपने लगा. नाभि से उठी गूंज से रोम-रोम झंकृत हो गया.
तीनों बौने छटक कर दूर जा गिरे. तेज हवाएं चलने लगी, फिर अंधड़ सा आ गया. और नरक सागर का लाल जल हिलोरे लेने लगा. फिर एकाएक कछुवे की पीठ पर जलता दीपक धप्प से बुझ गया.
उसके साथ ही सब कुछ शांत हो गया.
तीनों बौने कलाबाजियां खाते हुए ओम के पास आकर बोले, ‘‘तुमने कर दिखाया. यह शापित स्थान अब शाप मुक्त हो गया है.’’
बोतल और आवाज में बंद जादूगर और ब्रह्म पिशाच बोले, ‘‘ हम भी अपने बंदियों को आजाद करते हैं. अब हमें भी आजाद कर दो.’’
दोनों बौनों ने झटपट अपने-अपने मालिक को आजाद कर दिया.
सब आजाद होकर अदृश्य हो गए.
ओम की आंखें बंद होने लगी.
सब शांत होने लगा.
थोड़ी देर बाद आंखें खुली तो उसने अपने को जंगल में बैठा पाया. सामने विशाल वृक्ष खड़े थे. उसने खुद से पूछा, ‘‘ क्या ये नरक सागर... मन में था पिता के प्रति बैर का नरक?’’
सब कुछ साफ हो गया था.
पिता को हाथ जोड़कर ओम शांति से घर की तरफ लौट पड़ा.
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