Aapki Aaradhana - 10 in Hindi Moral Stories by Pushpendra Kumar Patel books and stories PDF | आपकी आराधना - 10

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आपकी आराधना - 10

भाग - 10

" चुप पगले ! पापा को थैंक यू बोलता है। तेरे लिए तो जान भी हाजिर है "

" नही पापा ! जान बचाकर रखो अभी मम्मी और शीतल को भी मनाना है "

" बदमाश ! अरे आरधना बेटी ,अंदर तो आओ अब "

मिस्टर अग्रवाल ने मुस्कुराते हुए आराधना को अंदर बुलाया।

धीरे - धीरे आराधना अपने कदम बढ़ाने लगी। भले ही ये घर किराये का हो और स्वागत के लिए उसकी सास मौजूद न हो पर किस्मत मे जो लिखा है उसे स्वीकार तो करना ही पड़ेगा।

" देखो बेटी ये अग्रवाल हाऊस जितना बड़ा तो नही है, पर अभी समझो तुम्हारा ही है। अगल बगल मे कुछ और लोग रहते हैं देख लेना अगर जान पहचान बन जाये तो "
मिस्टर अग्रवाल ने चाबी देते हुए आराधना को समझाया।

दो कमरे, किचन और बाथरुम और एक छोटा सा आँगन आराधना की नजरों मे ये किसी महल से कम न था क्योंकि उसके लिए तो मनीष का साथ ही सब कुछ था।

" पापा कुछ दिनों तक आप भी रुक जाओ न, मै अकेले कैसे मैनेज कर पाउँगा "
मनीष ने मिस्टर अग्रवाल का हाथ पकड़ते हुए कहा।

" नही बेटा ! मुझे आज ही जाना होगा, तुम्हारी मम्मी तो यही समझ रही होगी न कि हम घूम फिर कर वापिस घर चले जायेंगे "

" वो मुझ पर बहुत गुस्सा करेंगी है न पापा "

" मै सब सँभाल लूँगा बेटे, बस अब तुम आराधना का ख्याल रखना "

मिस्टर अग्रवाल जाने की तैयारी करने लगे पर आराधना ने उन्हे रोका और बताया कि वो अपनी पहली रसोई मे खीर बनाएगी जिसका भोग लगाकर ही उन्हे जाना होगा,
तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई।

आराधना ने दरवाजा खोला लगभग 24- 25 साल का युवक चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिए खड़ा था।
सफेद शर्ट, फार्मल ट्राउजर, फॉर्मल शूज और जेब मे ब्लू, रेड कलर की पेन ऐसे लग रहा था जैसे वह पेशे से टीचर हो।

" कौन है आरु "
मनीष ऐसा कहते हुए आया।

" जी ! बाहर जो कार खड़ी है वो आपकी है क्या सर
दरसल मुझे अपनी बाइक पार्किंग करनी थी "
बड़ी शालीनता के साथ उस युवक ने मनीष से पूछा।

आराधना अब चुपचाप अंदर आ गयी, इतने मे मिस्टर अग्रवाल वहाँ आये और उन्होंने मनीष को कार साइड मे खड़ी करने कहा।

" बैठो बेटा अंदर आ जाओ, कहाँ से हो "
मिस्टर अग्रवाल ने अंदर बुलाते हुए उससे कहा।

" थैंक यू अंकल, मेरा नाम अमित है मै यहाँ के आई टी एस कॉलेज मे असिस्टेंट प्रोफेसर हूँ और आपके बगल वाले मकान पर रहता हूँ "

" ओ ऐसा क्या "

" जी अंकल ! और आप कहाँ से "

" वैसे तो हम भिलाई से हैं ये मेरा बेटा मनीष और मेरी बहु आराधना, अब ये दोनों कुछ दिनों के लिए यहीं रहेंगे "

अमित ने भी अपना परिचय देते हुए बताया कि उसके पेरेंट्स गाँव मे रहते हैं और उसे गरियाबंद आये अभी 3 महीने ही हए है। अमित और मनीष मे भी अच्छी जान पहचान हो गयी,
आराधना सभी के लिए खीर लेकर आई, ये देखकर मिस्टर अग्रवाल की आँखों मे आसूँ आ गए। काश कमला और शीतल ने उनकी बात मान ली होती तो ये दिन न देखना पड़ता। एक बहु की पहली रसोई हो और उसकी सास ही मौजूद न हो ये कैसी परिस्थिति है।
कुछ देर बाद अमित वहाँ से चला गया अब वह भी कुछ - कुछ समझ गया कि मामला लव मैरिज वाला है।

दोपहर के 2 बज रहे थे मिस्टर अग्रवाल ने कुछ पैसे निकालकर आराधना को देते हुए कहा - " ये शगुन है बेटी रख लो आज तो बहुत अच्छी खीर बनायी तुमने "

" थैंक यू पापा जी "
आराधना ने उनके पैर छूते हुए कहा।

मिस्टर अग्रवाल अब जाने के लिए आगे बढ़े मनीष उनके गले लग गया और बोला- " मै आप लोगों से बहुत प्यार करता हूँ पापा, प्लीज मम्मी को मना लेना न "

" हाँ बेटा बिल्कुल, तुम इस बार घर आओगे वो भी आराधना के साथ "

मिस्टर अग्रवाल ने उन्हें समझाते हुए कहा कि वे अपने पुराने नंबर को चालू न ही रखे इससे बात बिगड़ सकती है और एक न्यू सिम दिया जिसका नंबर सिर्फ उनके पास ही था। जैसे ही वे कार मे बैठे आराधना को ऐसा लगा जैसे कि कुछ छूट रहा हो शायद एक पिता का प्यार, मानो आज उसकी बिदाई हो रही हो क्योंकि ससुर के रूप मे उसे पिता जो मिल गये थे। वो पिता जो निःस्वार्थ अपने बच्चों की खुशी चाहते हो, जो बच्चों की खुशी के लिये जमाने से क्या खुद अपने परिवार से लड़ने की हिम्मत रखते हो और जो घमण्ड से रहित हो।
उसके तो भाग ही खुल गये पति जो इतना प्यार करने वाला मिला और ससुर तो पूजा करने लायक।
मनीष दूर तक जाती हुई कार को निहारता रहा और उम्मीद लगाता रहा काश इस बार पापा आये तो मम्मी और शीतल को लेकर आये या फिर कुछ ऐसा चमत्कार हो जाये कि वो इस बार आराधना को लेकर घर ही चले जाये। आराधना एक कोने मे जाकर रोने लगी, न जाने क्यों उसे ऐसा लग रहा था सब पाकर भी उसने अभी बहुत कुछ नही पाया है पता नही क्या रंग दिखायेगी उसकी किस्मत।

शाम को मनीष और आराधना बाजार गये, एक दिन बाद दिवाली होने से वहाँ की रौनक बढ़ ही गयी थी। गरियाबंद कोई बहुत बड़ा शहर तो नही था पर हाल मे ही नया जिला घोषित होने से यहाँ विकास की प्रक्रिया जारी थी। तभी उन्हे अमित मिला जिसके हाथों मे दोनों ओर थैले थे, मनीष ने उसका एक थैला अपने पास रखा। फिर वे बातचीत करते हुए आगे बढ़ने लगे। अब तो मनीष ने खुद ही अमित को अपनी शादी के बारे मे बताया, अमित की पर्सनालिटी ही ऐसी थी कि उस पर आसानी से भरोषा किया जा सकता था। अमित ने अपने बारे मे बताते हुए कहा कि वह भी अच्छी लड़की की तलाश मे है जैसे ही उसकी तलाश पूरी हो जाये फिर तो शादी मे देर ही नही।

रात के 9 बज रहे थे आराधना और मनीष डिनर के लिए बैठे, न जाने दोनों की भूख कहाँ गायब थी पर आराधना ने इतने प्यार से आलू और भिंडी की सब्जी बनाई है यही सोचकर ही मनीष ने प्लेट उठाई और पहला निवाला आराधना को ही खिलाया। मनीष के मोबाइल मे रिंगटोन बजने लगा शायद उसके पापा का ही कॉल हो...

क्रमशः......