Peacock - 8 in Gujarati Fiction Stories by Swati books and stories PDF | Peacock - 8

The Author
Featured Books
Categories
Share

Peacock - 8

चारों तरफ़ हरियाली और पहाड़ों के बीच डूबते सूरज के श्रृंगार से चमचमाती, यह धरती पालमपुर बड़ी ही सुन्दर प्रतीत हो रही थीं । हालाँकि जन्नत कश्मीर है, मगर इस जगह को देखकर कोई जन्नत कह दें तो कुछ गलत नहीं होगा । परी को भी यहाँ लाऊंगा । अब जाना कहा हैं ? आ तो गए, हम यहाँ खूबसूरत वादियों में। ‘पीकॉक’ अब बता आगे कहाँ चले?? सोनू ने पीकॉक को देखते हुए कहा । चारों तरफ़ हरियाली और पहाड़ों के बीच डूबते सूरज के श्रृंगार से चमचमाती, यह धरती पालमपुर बड़ी ही सुन्दर प्रतीत हो रही थीं । हालाँकि जन्नत कश्मीर है । मगर इस जगह को देखकर कोई जन्नत कह दें तो कुछ गलत नहीं होगा । “परी को भी यहाँ लाऊंगा । अब जाना कहा हैं ? आ तो गए, हम यहॉ खूबसूरत वादियों में। पीकॉक अब बता आगे कहाँ चले?” सोनू ने पीकॉक को देखते हुए कहा । “बताती हूँ कि कहाँ चलना है,” दोनों एक अलग दिशा की तरफ चले गए।

आज आरव के घर हर दिशा में रौनक थीं । उसकी बहन अरुणा की शादी दो दिन बाद होनी थीं। चहल-पहल के साथ हँसी मज़ाक भी चल रहा था, उसके रिश्तेदार आ चुके थें, उसके मामा राकेश चड्डा ने सारा काम संभाल रखा था । मामी रेनू भी विवाह से जुड़ी हर रस्म निभा रहीं थीं । आख़िर कन्यादान उन्होंने ही करना था । “मामी मैं ज़रा थोड़ी देर के लिए कैफ़े हो आओ । फिर आता हूँ।“ कहकर आरव कैफ़े चला गया । कैफ़े को उसने वहाँ काम करने वाले श्यामू के हवाले कर रखा था । दो लोग और कैफ़े में काम करते थे, मगर वो घर में मदद करा रहे थें । जैसे ही वहाँ पहुँचा तो देखकर हैरान हो गया कि पीहू वहाँ सोनू के साथ बैठी बातें कर रही हैं । आज गुलाबी कुर्ती और नीली जीन्स के साथ उसने वही झुमकी पहन रखी थीं और बालों को एक रबर से बंद कर रखा था, उसका मन था कि वह कहे कि इन्हे इस कैद से आज़ाद कर दो । कुछ सोचकर वह उनके पास चला गया । “कुछ चाहिए आपको, यहाँ खाने की भी सुविधा है” आरव ने पूछा। पीहू और सोनू दोनों उसको देखकर पहचान गए । “नहीं कुछ नहीं खाना खा लिया है और अब चलेंगे, काफ़ी अच्छी किताबें रखी है आपने । पीहू ने एक किताब की तरफ़ इशारा करके कहा । “आप यहाँ भी ?” सोनू ने पूछा, “जी यह मेरा कैफ़े है ।“ आरव ने सोनू को उत्तर दिया । “ओह ! ठीक है, चल पीकॉक चलते हैं ।“

“वाह ! यह भी अच्छा इत्तेफाक है, सोनू ने पीहू को देखकर कहा । दोनों एक दरवाज़े के आगे रुक गए। “शास्त्रीजी, यही रहते हैं माली से पीहू ने पूछा । जी रहते तो यहीं है पर अभी नहीं है, पिछले दिनों उनकी तबीयत ज्यादा ख़राब हो गयी तो उनकी बिटियाँ उन्हें अपने घर मुंबई ले गई ।“ माली ने उतर दिया । “वो डांस सिखाते हैं न? “पीहू ने फिर पूछा। “हाँ सिखाते है बिटियाँ हम तो तुम्हे देखते ही समझ गए थें कि तुम डांस सीखने आई हों ।“ माली ने पीहू के पैर की तरफ़ देखकर बोला । “कबतक आएंगे?” सोनू ने इस दफ़ा पूछा । “सभी सीखने वाले यही पूछते है, आख़िर वही है पूरे हिमाचल में जो विकलांग को भी डांस सिखाते है, वैसे सभी तरह के लोग आते है ।“माली ने कहा। “आप बताएँगे, वो कब तक आएंगे?” इस दफ़ा सोनू के चेहरे पर गुस्सा साफ़ झलक रहा था । “कुछ नहीं कह सकते, कल बात हुई थी । शास्त्रीजी की तबीयत में ज्यादा सुधार नहीं है । अगली बार फ़ोन करके आना।“ माली ने पोधों को ठीक करते हुए कहा । सोनू ने फ़ोन नंबर ले लिया और दोनों फिर वही किसी सड़क के किनारे बैठ गए । “अब क्या करेंगे सोनू ?” “करना क्या है? किसी धर्मंशाला में रहते है, वैसे भी रात तो हो चुकी है। कल थोड़ा घूमते है फिर वापिस और क्या पीकॉक, शास्त्रीजी तो नहीं मिले । अब फिर कभी देखियो ।“ सोनू ने सामने धर्मशाला को देखते हुए कहा। “बड़ी मुश्किल से तो सब सेट किया था फिर वहीं वापिस ज़ीरो पर आ गए ।“ पीहू ने उदास होकर कहा ।“ छोड़ न यार ! शास्त्रीजी ज़िंदा बचे तो फिर कोई प्लान बनाएंगे ।“ सोनू फ़िर मज़ाक के मूड में था। पीहू ने सोनू को घूरा पर कुछ बोली नहीं ।

सोनू तो आराम से धर्मशाला आकर सो गया । पर पीहू को नींद नहीं आई । वह अपने डंडे को पकड़ उदास आँखें ले वहीं धर्मशाला के बाहर रखी बैंच पर आकर बैठ गयी । रात को यह जगह शांत के साथ और भी सुन्दर लग रही है । पीहू ने मन ही मन सोचा क्या मैं बैठ सकता हूँ नज़रे घुमाई तो देखा कि आरव सामने खड़ा था । इससे पहले वह कुछ बोले, आरव बैठ आया । “आप दिल्ली से यहाँ घूमने आयी है ?” आरव ने पूछा । “आप हमारा पीछा कर रहे हैं ?” “जी नहीं, मेरा घर पास में है और छत से आपको देखा तो यहाँ आ गया।“ आरव ने जवाब दिया । “आप सोए नहीं अभी तक?” पीहू का सवाल था । “जी नहीं, कल मेरी बहन की शादी है तो नींद वैसे भी नहीं आ रही थी, अब मेरे सवाल का ज़वाब दे सकती है ?” आरव ने अपना सवाल दोहराया । “जी मैं डांस सीखने आई थीं पर शास्त्री जी यहाँ नहीं है और बस कल शाम तक वापिस चले जायेंगे । इतना जवाब काफी है,” पीहू ने उत्तर दिया। आरव मुस्कुराया, जी । शास्त्री जी को पिछले हफ्ते सीने में दर्द उठा था । फिर बस तभी वे चले गए मैं भी यह कोई सात-आठ महीने से उन्ही से डांस सीख रहा था । अब तो उन्हें गुरु दक्षिणा देनी है ।“ आरव ने बताया।

“आप खुशकिस्मत है जो यही रहते है एक मुझे देखो एक तो मेरे पैर, वैसे ही ऊपर से घर से इतनी दूर आकर खाली लौटना बड़ा बुरा लग रहा है।“ पीहू बोलते हुए उदास हो गई । “आप परेशां मत हो, शास्त्रीजी जल्दी वापिस आएंगे वो नहीं जा सकते । इतनी जल्दी बहुत मज़बूत है वो।“ आरव ने कहा । “आप नही समझेंगे कि मैंने एक ऐसा सपना देख लिया है जो किसी अपाहिज़ को नहीं देखना चाहिए” पीहू ने धीरे से कहा । “आप निराश मत हो सपने दिल से देखे जाए तो ज़रूर पूरे होते हैं,” आरव ने पीहू के पैरों की तरफ देखकर कहा । “अब रात बहुत हो गयी है, मैं चलती हूँ । पीहू उठकर बोली। आरव उसे जाते हुए देख रहा था।