ak panv rail me- yatra vrittant - 10 in Hindi Travel stories by रामगोपाल तिवारी books and stories PDF | एक पाँव रेल में: यात्रा वृत्तान्त - 10

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एक पाँव रेल में: यात्रा वृत्तान्त - 10

एक पाँव रेल में: यात्रा वृत्तान्त 10


10 नासिक दर्शन


हमारे भारतीय परिवेश में कुम्भ यात्रा का बड़ा महत्व है। राष्ट्रिय एकता के रूप में भी हमारी अस्मिता के रक्षक हैं ये कुम्भ। सम्पूर्ण भारत वर्ष की आध्यत्म की परम्परा के दर्शन कुम्भ में हो जाते है। कुम्ंभ पर्व के आने का समय हर बरह वर्ष बाद, लोग अंगुलियों पर गिनते रहते हैं। कुम्भ स्नान के बहाने, भारतीय संस्कृति के एक ही स्थान पर एक साथ दर्शन किये जा सकते हैं। ग्रह और नक्षत्रों की हर बारह वर्ष में पुनरावृति के साथ कुम्भ स्नान की भी पुनरावृति होती चली आ रही है।

यह पर्व श्रावण भादो के महिने में जब सिंह राशी के गुरू और सूर्य होते हैं हर बारह वर्ष में इस सिंहस्थ की पुनरावृति होती चली आ रही है। मैंने और कुछ साथियों ने भीड़भाड़ से बचने की दृष्टि से दो-महिने पहले से ही नासिक में सिंहस्थ पर्व के लिये रिजर्वेशन करा लिये थे।

इसके बीच में मेरे साथ एक घटना घट गई, मेरे लधुभ्राता रामभरोसे तिवारी का अचानक 1.8.03 को देहावसान हो गया। मैं हक्का-वक्का सा रह गया। 13.8 .03 को उनकी त्रयोदशी के उपरान्त मन को समझाना शुरू किया । उनके बड़े-बड़े तीनों लड़कों ने अपनी तरह जीना शुरू कर दिया। प्रकृति धीरे-धीरे सब कुछ समझा देती है। मन के समझाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प ही नहीं होता। घर के सभी सदस्यों ने अपने-अपने मन को समझा लिया।

इसी क्रम में यात्रा का समय भी आ गया। सोचा यात्रा निरस्त कर दी जाये। मित्रों ने समझाय, घूमने फिरने से मन बहल जायेगा। रिजर्वेशन पहले से था ही। यही सोच कर मन मार कर यात्रा प्रारम्भ कर दी।

हमारे ग्रुप में पटसारिया परिवार के तीन लोग, मेरे मित्र रामबली सिंह चन्देल एव उनकी धर्मपत्नी राम देवी बहिन जी और पत्नी रामश्री तिवारी। पंजावमेल ने सुवह चार बजे नासिक स्टेशन पर उतारा। हमारे नगर की चौरसिया बहिन जी की लड़की नासिक व्याही है। हम सब पूर्व तय के अनुसार उसके घर ही पहुँच गये। कमला चौरसिया बहिन जी वही मिल गईं। वे इतने अच्छे लोग लगे कि हमारे ठहरने की बहुत अच्छी व्यास्था कर दी। उनके घर से राम घाट के वल दस-पन्द्रह मिनिट की दूरी पर ही था। यों कुम्भ का पूरा आनन्द वहाँ रह कर लूटने लगे। दिन में घाट पर दो तीन चक्कर लग जाते। पर्व के अवसर पर शाही स्नान का पूरा आनन्द ले सके। संन्त महात्माओं को स्नान करते दखते रहे। उसके बाद ही हमने गोदावरी के राम घाट पर स्नान किया। बारह वर्ष में खुलने वाले भागीरथी मन्दिर के दर्शन भी कर सके। जब यह पर्व आता है उस समय ही यह मन्दिर दर्शन के लिये खुलता है। सभी नले भक्ति भाव से दशग्न किये। पर्व के दूसरे दिऩ त्रयम्बकेशर जाकर कुशवर्त कुण्ड में स्नान किया और त्रयम्बकेशर के दर्शनप करने लाइन में लग गये। हमें दर्शन करने तीन घन्टे में क्रम आ पाया। इस में तीनों देव ब्रह्मा, विष्णू और महेश तीनों की प्रतिमाये उस कुण्ड में विराजमान हैं। इसी करण इस मृतुजंय मंत्र में तीनों देवों की वन्दना की गई है। इस मंत्र में आदमी के मारकेश से रक्षा की शक्ति है। संकट के समय लोग इसी का जाप कराते हैं। हम इसी मुत्र का जाप करते हुये इस भीड़़-भाड़ में जाप करते हुये सिंहस्थ का आनन्द लेते रहे।

तीसरे दिन हम पंचवटी, तपोवन और उस क्षेत्र के प्रमुख मन्दिरों के दर्शन करने निकले। पहले पंचवटी के दर्शन किये। खोये रहे कैसे राम जी ने यहाँ रह कर अपना समय व्यतीत किया होगा। उसके बाद संतोंके अखाड़ों में संत दर्शन के लिये तपोवन में चले गये।

देश के महान संतोंके दर्शन से कृतार्थ हो गये। सबसे आखिर में लक्ष्मी नारायण के मन्दिर के दर्शन को गये। उस मन्दिर में भी बहुत भीड़ थी। परिक्रमा मार्ग में हम बंजारे टाइप के लोगों से धिर गये। पत्नी रामश्री मन्दिर के सामने पहुँच कर उनके क्रिया कलाप देखकर मस्ती में उनके ही साथ हाथ ऊपर करके तालियाँ बजाने लगीं। मैं उनसे कुछ दूरी पर खड़ा आरती का आनन्द ले रहा था। आरती समाप्त हुई कि पत्नी मेरे पारे पास घवड़ाई हुई आई और बोलीं-‘ मेरी पेटीकोट की जेब कट गई। इसमें इकतीस सौ रुपये थे।’ मैं उन्हें समझाने लगा। खर्च के लिये मेरे पास हैं ही चिन्ता न करें।

पुलिस में रिपोर्ट करने की सोची तो एक पुलिस बाले ने कहा--जाने दो साहब, आपको यहीं रुकना पड़ेगा। व्यर्थ की पूछताछ के चक्कर में पड़ोगे। हम आगे की यात्रा पर शीध्र निकलने की तैयारी करके निकले थे। सभी साथी वहाँ से जल्दी में निकलने की मचाने लगे। मैं मन मार कर उनके साथ अपने ठहरने के स्थान पर लौट आया। मैं समझ गया वह पुलिस वाला उनसे मिला हुआ था। इसीलिये उसने हमें रिर्पोट करने से टाल दिया। हम चलने के बैग तैयार करके रख गये थे। हमने बैग उठाये और बस स्टेन्ड से बस पकड़कर सप्त श्रंगी देवी के दर्शन करने निकल पड़े। करीव चार घरन्टे में बस ने हमें वहाँ के बस स्टेन्ड पर उतारा। सामान नीचे रखकर सीढ़ियों के सहारे एक घन्टे भर में ऊपर पहुँच गये और मैया के दर्शन कर नीचे उतर आये। हमें यहाँ से सिरणी के साईं बाबा के दर्शन के लिये जाना था। उसें लिये हमे बापस नासिक ही लौटना पड़ा। नासिक के बस स्टेन्ड से बस बदल कर हम दो घन्टे में सिरणी पहुँच गये।


सिरणी जाकर एक होटल में दो कमरे ले लिये। पटसारिया परिवार एक कमरे में सिफ्ट हो गये, हम दूसरे में। इस होटल में खटमलों की भरमार थी। रात कैसे भी काटी। दूसरे दिन शनी संगमापुर एव रास्ते में मिलने वाले अन्य स्थलों के दर्शन करते हुये दोपहर तक सिरणी लौट आये। दोपहर का भोजन साई बाबा के भण्डारे में किया। रात में मनमाड़ से पंजाव मेल से हमारा रिजर्वेशन था। हम दिन ढले तक मनमाड़ आकर ठहर गये। रात पंजाव मेल पकड़कर दूसरे दिन दोपहर बाद तक घर लौट आये।

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