Khwabon ke Din in Hindi Love Stories by Medha Jha books and stories PDF | ख्वाबों के दिन

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ख्वाबों के दिन



सालों बाद फिर उसी वीरान वृहत शिला खंडों से समृद्ध नीरव सौंदर्य से परिपूर्ण इस भू भाग से गुजरती हुई गाड़ी बढ़ रही थी अपने गंतव्य की ओर और इन घुमावदार सड़कों को पार करते हुए उसके हृदय में तीव्रता से कौंध रहा था केके और चित्रा द्वारा गाये तमिल गाने -' उरियिन उरियीन ' की तेज धुन और दृश्य जिसमें ज्योतिका और सूर्या अठखेलियां कर रहे हैं विराट समुद्र के समक्ष या कभी प्रेम विह्वल प्रेमी युगल भाग रहे है वीराने जंगलों में या कभी समुद्र की तरह अपने छलकते प्रेम को संभाले किसी सूने खंडहर में। उफनते सागर, दूर तक फैले चट्टानों , नारियल के वृक्ष के समक्ष खोए दोनों प्रेमी मानो जीवन को पूर्णता से जी रहे हो, एक दूसरे में खोए दुनिया में किसी और सत्ता से पूर्णतः अपरिचित।

यह गीत जितनी तेजी से हृदय को चीर कर उतरता जाता है वो भी तो उतने ही तेजी से कब उतरता चला गया उसके जीवन में - वो समझ नहीं पाई थी। उन तमिल शब्दों तक को समझने में असमर्थ थी वो उस समय, लेकिन प्रेम की उद्दाम भावना के लिए भाषा कब व्यवधान बना है। उस गाने को सुनाने वाला भी तो तमिल ही था जो सौंदर्य की उसकी परिभाषा को बदल रहा था। श्याम वर्ण, दृढ़ शरीर सौष्ठव का उसका वह दक्षिण भारतीय सहकर्मी शुरू में उसमें खींझ ही पैदा करता था जब भी किसी काम पर अपनी राय देता। उसके चेहरे पर निरंतर अवस्थित गर्वीले भाव से उसे चिढ़ सी होती कि कोई अपने पर इतना घमंड कैसे कर सकता है। ये बात अलग थी कि अपने कामों में दक्ष था वो,लेकिन उतना ही उसे गर्व भी था स्वयं पर। और यही बात खटक जाती थी उसे बार बार। इन परिचित पुराने रास्तों से गुजरते हुए एक कर स्मृतियों के पटल खुलते चले गए फिर तो।

सुंदर सी सर्दियों की सुबह, जब आराम से छत पर बैठी गप्पे मार रही थी नाना नानी से और भाई आकर पत्र दे गया हाथ में। उसने आवेदन किया था एक मल्टीनेशनल कंपनी में और उसी का जवाब था। नाना के सामने नियुक्ति पत्र खोलते हुए उसने कहा था कि कहीं राजस्थान के कुंभलगढ़ भेजा जा रहा उसे।

"दुनिया के बड़ी दीवारों का जिक्र होते ही सबके मन में चीन की दीवार का नाम कौंध जाता है, लेकिन हममें से कितने जानते हैं कुंभलगढ़ का नाम, जहां विश्व की दूसरी सबसे लंबी दीवार है?"

नाना का ये जवाब था उस पर। इतिहास के विद्वान प्रोफ़ेसर नाना ने फिर तो राणा कुम्भा से लेकर महाराणा प्रताप तक की कहानी सुना दी उस स्थान का वर्णन करते हुए। सुन कर ही उस अपरिचित जगह के प्रति एक मोह सा उत्पन्न होने लगा था उसके मन में। दो अलग तरह के विचार मन में अा रहे थे - शहर के कोलाहल से दूर देश के पश्चिम में अरावली रेंज में बसे उस प्रदेश की कल्पना सी अाई मन में, जिसका विस्तृत वर्णन नाना ने किया था उसके सामने । वीरों का यह प्रदेश जिसका एक भव्य इतिहास रहा है और आज सामान्य तौर पर अपरिचित सा है सामान्य नागरिकों के लिए और फिर तभी अचानक सिहर सा गया मन अकेले रहने की कल्पना से।

ऐतिहासिक जगहों के प्रति रुचि तो हमेशा रही थी उसकी और आज उस जगह रहने का मौका भी मिलने जा रहा था।

पूर्व के वीनस के नाम से प्रसिद्ध झीलों की नगरी उदयपुर के रेलवे स्टेशन पर जब उतरी वो तो मन प्रशंसा से भर उठा इस साफ सुथरे स्टेशन को देख कर। बाहर कंपनी की गाड़ी खड़ी थी। इस सुंदर नगरी के सड़कों को पार कर अब गाड़ी भाग रही थी इस वीराने पथरीले सड़क पर। पहला परिचय था उसका इस तरह से सुनसान भव्य रास्तों से। जयपुर कई बार गई थी वो, पर ऐसा वीराना देखने को नहीं मिला था। ड्राइवर अपनी धुन में कोई गीत गुनगुनाते चलाए जा रहा था और बीच बीच में बताते जा रहा था कि ये वीरों की भूमि महाराणा प्रताप की जन्मस्थली है। दिखा रहा था कि इसी रास्ते पर गाइड फिल्म के गाने ' आज फिर जीने की तमन्ना है ' की शूटिंग हुई है और यहां अमिताभ श्रीदेवी के खुदा गवाह की शूटिंग हुई है। इस जगह से प्राकृतिक सौंदर्य में डूबी उसे याद अा रहा था पापा की सिखाई पंक्तियां - ' ये है अपना राजपूताना, नाज़ इसे तलवारों पर...।' कंपनी के गेस्ट हाउस में प्रबंध था उसके रहने का प्रारंभिक दिनों में और फिर वहीं एक स्थानीय परिवार के साथ पेइंग गेस्ट के तौर पर रहने लगी वो। कैसे कहती वहां रहने का विचार सिर्फ उस घर की वृद्धा मालकिन को देख कर किया उसने, जिसके साथ सोने हरेक रात को पहुंच जाती वो।

पहली बार घर से दूर एक स्थानीय परिवार के साथ रहते हुए स्नेहिल सहकर्मियों के साथ सिर्फ ऑफिस और ड्यूटी ही रह गया था उसके जीवन में। और वैसे ठहरे हुए उसके जीवन में यह हठीला व्यक्ति कब सेंध मार कर प्रवेश कर गया उसे पता ही नहीं चला।

छुट्टियों के दिन अपनी आदतन निकल पड़ी इस किले को देखने। महाराणा कुम्भा के बनाए इस विराट किले को देख कर मन असीम श्रद्धा से भर उठा इसे बनाने वाले कारीगरों एवम् इसकी कल्पना करने वाले इंजीनियरों के प्रति। सिर नत हो उठा महाराणा कुम्भा और महाराणा प्रताप के लिए। सालों गुजरने के बाद उसी शान से खड़े कुंभलगढ़ वास्तव में प्राचीन भारत के कुशल शिल्पकारों की कुशलता को दर्शाता है।

दिन महीने बीतते जा रहे थे इस वीराने में उसके, यहां की एक मात्र मित्र डॉक्टर सविता के सहारे, जिसके होने से परिवार की कमी एक हद तक दूर हो गई थी। लेकिन उनकी अपनी एक दिनचर्या थी क्योंकि परिवार साथ था, वो समय से निकल जाती ऑफिस से। उसको ऑफिस से निकलते सात - आठ बजता ही, क्योंकि घर जाने की कोई जल्दी होती नहीं उसे और वही समय वेंकटेश के निकलने का भी होता। आकर शान से उसके साथ वाली सीट पर बैठ जाता। शुरू में उसे गुस्सा आता था, फिर लगा है तो स्मार्ट। अब कभी अपना काम खत्म करके भी वह उसकी प्रतीक्षा करता मिलता। एक दो बार बोला भी उसने उसे - ' यू फिनिश युअर वर्क एंड लीव. डोंट वेट फॉर मी.' वो ढीठ सा फिर भी उसकी प्रतीक्षा करता। धीरे धीरे उसे भी अच्छा लगने लगा था कि कोई तो यहां भी प्रतीक्षा करता है। बहुत सारी बातें भी सुनाता जाता था अनवरत कि रजनीकांत उसका फेवरेट है। उसकी कोई मूवी वो मिस नहीं करता। हिंदी में उसने सिर्फ एक फिल्म देखी है ' रब ने बना दी जोड़ी।' जो उसे बहुत ज्यादा पसंद है और उसने कई कई बार देखी है।

यहां उसका यायावर मन सप्ताह के एक छुट्टी को बर्बाद करना ही नहीं चाहता था।पता नहीं, कब तक है वो इस जगह। राजस्थान उसका प्रिय स्थान रहा है प्रारंभ से।नजदीक के सारे जगहों में हल्दीघाटी, रणकपुर, चित्तौड़गढ़, जोधपुर, एकलिंग जी,नाथद्वारा, कुंभलगढ़ अभ्यारण्य, उदयपुर के कई चक्कर लगा चुकी थी वो अपनी छुट्टियों के दिन।

आज उसे पता चला था परशुराम मंदिर के बारे में, जहां परशुराम ने शिव की आराधना की थी और कहा जाता है परशुराम के फरसे के प्रहार से यहां शिव जी का गुफा मंदिर बना है। श्रावण मास में इसकी प्राकृतिक सुंदरता अद्भुत होती है। शिव की शुरू से उपासक रही थी वो, तो अगली छुट्टी का कार्यक्रम तय था उसके दिमाग में कि वहीं जाना है।

रात में अपनी मकान मालकिन से जिक्र किया तो घबरा उठीं वो वृद्धा। अपनी मेवाड़ी भाषा में समझाने लगी - गाड़ी से उतर कर बहुत दूर चलना है करीब छह सौ सीढ़ियां है , जंगल में है। अकेले मत जाओ। एक बार तय कार्यक्रम को तो बदलना था नहीं। ऑफिस से किसी सहकर्मी को साथ लेकर निकलने को सोचा उसने। डॉक्टर सविता व्यस्त थीं, और अन्य लोगों का भी उदयपुर जाने का कार्यक्रम था, तो बचा वेंकटेश। जब पूछा तो तैयार हो गया साथ चलने को।

छुट्टियों के दिन दो बज ही गए उसे और अब तीन बजे तक परशुराम मंदिर के मुख्य सीढ़ी तक पहुंच चुके थे, यहां से चल कर जाना था। इस प्राकृतिक सुंदरता से घिरे प्रदेश की सुंदरता का आनंद लेते चढ़ाई वाले रास्ते में चलते हुए करीब साढ़े चार बज गए थे और जब उस प्राचीन गुफा में स्थित शिव के समक्ष पहुंची तो उन्हें देख कर अंदर से शांति मिली उसे, लगा शायद स्वर्ग यहीं हैं। ऐसी जगह ही सालों आराधना की जा सकती है बिना व्यवधान के।

शिव और प्रकृति के सौंदर्य में डूबी ही थी वो इस अद्भुत जगह कि ऊंचे पहाड़ी पर अवस्थित इस मंदिर पर पहुंचते ही फोन बज उठा उसका। ड्राइवर था - ' मैडम निकली नहीं आप। रात होने पर जंगली जानवरों का डर है।' शिव जी को प्रणाम कर निकली वह वहां से तो आने समय वाली तेजी रह नहीं गई थी। अंधेरा तेजी से घिरता जा रहा था और कहीं कोई नजर नहीं अा रहा था। अब चला नहीं जा रहा था उससे। कुछ क्षण के लिए वहीं वह एक शिला खंड पर बैठ गई। वेंकटेश भी प्रतीक्षा करने लगा।

अचानक उसने कहा - ' आई वांट टू शो यू समथिंग प्लीज गेट अप एंड क्लोज योर आइज।' ( मैं आपको कुछ दिखाना चाहता हूं। खड़े हों और अपनी आंखें बंद करें) पहाड़ी के उस स्थान से खड़े होकर नीचे राजसमंद के कस्बे झिलमिला रहे थे रोशनी से। कुछ देर मंत्र मुग्ध देखती रही वो। वेंकटेश बोल रहा था - ' दिस लुक्स लाइक रब ने बना दी जोड़ी सीन।' सही में शाहरुख खान के फिल्म जैसा ही दृश्य था।

अंधेरा बढ़ रहा था। जल्दी चलने के अलावा कोई चारा नहीं था। अच्छी खासी दूरी थी इस ऊंचे नीचे पहाड़ी भाग से। अब शायद थोड़ी और दूरी थी, टॉर्च की लाइट पड़ी चेहरे पर। ऑफिस का ड्राइवर चला अा रहा था उन्हें ढूंढने। किसी तरह गाड़ी तक पहुंचते हुए थक कर चूर थी वो। चैन सा आया बैठ कर। लग ही नहीं रहा था कि आज पहुंच पाएगी। अब अगला एक घंटे का सफर वेंकटेश के साथ बहुत अच्छा लग रहा था उसे। लगातार बताए जा रहा था वो अपने घर, परिवार और तमिल गीतों के बारे में, डांस के बारे में और बता रहा था कि उसे भी सिखाएगा डांस स्टेप्स क्योंकि वो खुद बहुत अच्छा डांसर है।

दोस्ती बढ़ने लगी थी वेंकटेश से उसकी। उसी बीच उसकी छोटी बहन के साथ माउंट आबू का भी कार्यक्रम बना। साथ में वेंकटेश था ही, उसकी हर छुट्टियों का साथी। जीवन के सुंदर दिनों को जी रही थी वो। शानदार नौकरी, शांत जीवन और अब प्यारा सा प्रशंसक। रंगीले राजस्थान के हर तरह के रंग को जी रही थी वह, चाहे वह मुहल्ले में आयोजित डांडिया नाइट हो या कुंभलगढ़ का शानदार उत्सव जहां पूरे देश से लोक कलाकार आते हैं। बीच बीच में गांव में होने वाले शादियों में उन्हें विशेष आमंत्रण मिलता ही। यहां का हर रंग नया था उसके लिए खास कर यहां की प्रथा - बिन्दौली जिसमें लड़कियां भी शादी के एक दिन पूर्व घोड़े पर चढ़ती है सोलहों श्रृंगार करके और पूरे गांव में वह घोड़े पर सवार लड़की घूमती है अपने परिजनों और रिश्तेदारों समेत। सब उसे घेर कर खूब नाचते हैं। उस दिन दिव्या की शादी थी और वेंकटेश भी नाचते रहा था तीन चार घंटे। दिनों दिन और अच्छा लगने लगा था वह उसे। और लगता भी क्यों नहीं, जिस तरीके से वह उसका ख्याल रखता, तारीफ करता - वह सपनों में जी रही थी।

सुबह उसकी नींद खुलती फोन के बजने से और उठाते ही कानों में बजता - ' तुझमें रब दिखता है यारा मैं क्या करूं।' और फिर ऑफिस पहुंचते ही शानदार तारीफ से दिन की शुरुआत होती। ख्वाबों के दिन और रात थे वो , जिसका उसे पता था कोई भविष्य नहीं था और किसी ने कोई वादा किया भी कहां किया था एक दूसरे से। और अब आने वाला था दिन वहां से निकलने का। वेंकटेश जा रहा था अपने घर के नजदीक कहीं। अगले कुछ महीने बहुत बेचैनी में बीते उसके। आदत सी हो गई थी उसे वहां वेंकटेश की। उसने भी अपने ट्रांसफर का आवेदन दे दिया था। सिर्फ डॉक्टर सविता समझती थी उसके खालीपन को। कुछ दिन के लिए चली गई रहने उनके साथ वह। अब दिन नजदीक था उसके जाने का भी। बात होती रहती थी बीच बीच में वेंकटेश से।

अचानक उसने निर्णय लिया कि मिलने जाएगी उसके घर तमिलनाडु वह। जिस दिन कुंभलगढ़ से निकल रही थी साजो सामान सहित दिल्ली के लिए, उसी के अगले दिन का टिकट लिया उसने कोयंबटूर के लिए।

एयरपोर्ट पर खड़ा था वेंकटेश अपने पिता समेत। दोनों ने स्नेह से स्वागत किया उसका। अगले दो घंटे के रास्ते में खूब सारी बातें हुई दोनों की। उसके पिता प्रेम से दोनों की बातचीत सुनते आगे गाड़ी में बैठे रहे।

घर पर मां प्रतीक्षा कर रही थी। आते ही ऐसा स्वागत किया जैसे बेटी अाई हो घर। उसके लिए एक कमरा तैयार था। एक सप्ताह के लिए अाई थी वह और प्रत्येक दिन का कार्यक्रम तैयार था इस परिवार के द्वारा। हरेक दिन इस सुंदर प्रदेश के अगल - बगल के प्रसिद्ध स्थानों मंदिरों के लिए निकलते चारों।

चौथे दिन यरकड के प्रसिद्ध फ्लॉवर शो देखने गए। हरेक दिन एक से एक लज़ीज़ दक्षिण भारतीय व्यंजन बनता उसके लिए। मां निकलने से पूर्व रोज उसके बालों में वेणी लगाती कि मेरी बेटी नहीं है इसलिए तुम्हें लगा कर शौक पूरा कर रही। वैसे उसके और मां के बीच अनुवादक का काम वेंकटेश करता क्योंकि वो तमिल के अलावा कुछ और नहीं बोलती या समझती थीं।

और अब अन्तिम दिन था आज। आंसू नहीं रुक रहे थे मां के। अगल बगल के सारे पड़ोसी जमा हो गए थे उसे विदा देने। प्यारी सी साड़ी, घर के बने ढेर सारे सामान और बालों में वेणी लगा कर विदा किया उन्होंने उसे। जब तक गाड़ी मुड़ी नहीं, हाथ हिलाती मां खड़ी थी आंसू पोछते। एयरपोर्ट पर वही हालत पिता जी की भी थी, बार बार आंखें भर अा रही थी उनकी। भरे मन से इस रिश्ते को समेटते हुए मन में, प्रवेश कर गई वो अपनी यात्रा के लिए।

आज फिर उसी जगह कुंभलगढ़ जा रही थी वो , किसी मीटिंग में।मन को झटक कर नियंत्रित किया उसने। वेंकटेश की सुंदर स्मृतियों से उसका मन आह्लादित हो उठा और मन ने अपने उन दो सालों को सुंदरतम स्मृतियों में बदलने वाले को हृदय से शुभकामना दिया - ' तुम जहां कहीं भी हो,ईश्वर तुम्हें और तुम्हारे परिवार को खूब खुश रखें।' और खुद को समझाया - ' हर संबंध रिश्ते में बदले, आवश्यक नहीं है। कुछ रिश्ते मन के भी होने चाहिए, जो जीवन को समृद्ध कर सकें।