A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt - 1 in Hindi Horror Stories by Sarvesh Saxena books and stories PDF | A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt - 1

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A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt - 1

हॉरर साझा उपन्यास

A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt

संपादक – सर्वेश सक्सेना

भाग – 1

लेखक - सर्वेश सक्सेना

रात के लगभग नौ बज रहे थे| आसमान में काले बादल कुछ इस तरह छाये हुए थे जैसे बारिश के मौसम का सारा पानी आज ही बरस जाएगा | हवा के झोंकों से पेड़ यूं हिल रहे थे कि मानो रात के अंधेरे में बड़े-बड़े राक्षस हिल हिल कर हंस रहे हों| मौसम धीरे-धीरे और तूफानी हो रहा था और सड़क बिल्कुल सुनसान थी | वैसे भी पहाड़ों पर शाम के बाद सड़कें सुनसान ही रहती हैं| बिजली बार-बार कौंध कर आसपास की गहरी खाई और ऊंचे पहाड़ों की झलक दिखाकर मन में उठने वाले भय को और भी बढ़ा रही थी| किसी को भले ही लगता हो कि ये पहाडों का मनोरम दृश्य था लेकिन सच तो यही था कि यह दृश्य किसी के भी दिल की धड़कनें बढ़ा सकता था|

इस भयानक तूफान में इन सुनसान घुमावदार सड़कों पर एक कार तेजी से बढ़ती जा रही थी| कार के वाइपर शीशे पर धड़ाधड़ चल रहे थे और उनसे आने वाली टक टक की आवाज दिल की एक एक धड़कन गिन रही थी| कार में बजने वाला रेडियो हल्की भरभराहट के साथ कुछ नए पुराने गीत सुनाए जा रहा था और तभी कार के रेडियो में आवाज आई “अब आप सुनेंगे किशोर कुमार की आवाज में फिल्म अन्दाज का यह गीत जो फिल्माया गया है राजेश खन्ना और हेमा मालिनी पर, तो इस सुहाने मौसम का आनन्द लीजिये और सुनते रहिये अपना पसन्दीदा प्रोग्राम गीतों का सफर|”

रेडिओ जॉकी के इतना बोलते ही रेडिओ पर गीत बजने लगा

“जिंदगी.... एक सफर है सुहाना.....यहां कल क्या हो किसने जाना...???”

कार चलाते हुए अखिल ने गाना सुनते ही मन ही मन में कहा, “ अरे काहे का सुहाना सफर, जिंदगी तो अब अंग्रेजी का सफर बन गई है बस, वही सुबह से शाम तक गधों की तरह काम करो और फिर भी सबको शिकायत रहती है, उसके रह्ते भी और उसके जाने के बाद भी, जिंदगी एक सफर है सुहाना....हुहह....... |”

यह कहकर उसने रेडियो का स्विच दबाकर एफ्एम चैनल को बदल दिया, दूसरे चैनल पर भी काफी भरभराहट आ रही थी जिसको सुनकर वो फिर बुदबुदाया, “ ये मौसम को भी आज ही खराब होना था, ये भी साला लोगों की तरह न जाने कितने रंग दिखाता है, जब भी जरूरत होती है बदल जाता है, आज तो ऐसा लग रहा है जैसे आसमान का सारा पानी धरती पर गिर जाएगा” यह कहकर उसने रेडियो का स्विच दोबारा दबाया और उसमें दूसरा गीत बजने लगा|

कार में बैठा सत्ताइस साल का अखिल बार-बार मौसम को कोस रहा था, उसको हमेशा की तरह यही लगता की किस्मत उसे कोई मौका क्यों नहीं देती, एक साल पहले हुये तलाक का गुस्सा आज भी किसी हरे घाव की तरह उसको दर्द दे रहा था| उसके सारे दोस्त बड़े-बड़े बिजनेस संभाल रहे थे और करोड़पति बनकर अपने बीवी बच्चों के साथ जिन्दगी के मजे ले रहे थे पर वो..... अभी भी अपनी छोटी सी इंजीनियर की नौकरी कर रहा था|

घरवाले हमेशा दूसरों की बातें कर करके उसको उलाहना देते तो कभी दूसरी शादी के लिये उस पर जोर कसते, पैसे की भी ऐसी कोई खास तंगी नहीं थी

उसे लेकिन वो कहते हैं ना जब इच्छाएं अपने पैर ज्यादा पसारने लगे तो कितना भी कमा लो पैसों की चादर छोटी हो ही जाती है|

अखिल यही सब सोचते हुए कार ड्राइव कर रहा था और रेडियो में मधुर गीत बजते जा रहे थे कि तभी उसका मोबाइल बजा|

वो फोन उठाते ही बोला, “हां यार... मैं रास्ते में हूं मुझे करीब दो घंटे और लगेंगे, मैं आ जाऊंगा... यहां तूफान जोरों पर है और बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही है इसलिए मुझे हो सकता है थोड़ा और ज्यादा समय लग जाए, तू आराम से सो जा, मैं आते ही तुझे कॉल करूंगा|”

यह कहकर वो फोन काटने लगा कि तभी फिर उसने फोन को कान पर लगाकर कहा, “ अरे हां... सुन मेरी फेवरेट का इंतजाम तो कर लिया है ना तूने..सच बता वैसे भी दिमाग खराब है मेरा?” उधर से आवाज आई, " हां.. हां.. बिल्कुल, और तू ऐसे उसके नाम का टैटू गुदवाकर अभी भी घूम रहा है और वो मजे कर रही होगी इसलिये तुझे टेंशन तो होगी ही, तू पहले सही सलामत आ तो सही....फिर मिलकर इंजॉय करते हैं और लाइफ की ये टेंशन आज दूर करते हैं|”

इतना कह्कर उसने फोन को पास वाली सीट पर रखने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया कि तभी सामने से एक हाई बीम की लाइट उसकी आंखों पर पड़ी| वह कुछ सोचता समझता इससे पहले उसकी कार ने अपना संतुलन खो दिया और वो कार सहित ढलान से फिसलते हुये उस घने जंगल में आ कर पेड़ से टकरा गया|

शुक्र था कि अब वह सामान्य सड़क पर आ चुका था जहां आसपास गहरी खाईयाँ ना होकर जंगल था| कार के इंडिकेटर जलने बुझने लगे, वाइपर अभी भी टक टक टक टक करके चल रहे थे| कार के दोनों दरवाजे खुले थे और अखिल स्टेरिंग पर सर रखे पडा था, चारों ओर सन्नाटा था| जंगली जानवरों की आवाजें उनके आसपास होने का एहसास दिला रही थी|

कुछ देर बाद उसने होश में आकर देखा कि उसके सर से खून बह रहा था| उसने सर पर हाथ लगाकर कराहते हुए कार का दरवाजा बंद किया और दूसरी तरफ का दरवाजा बन्द करने के लिये जैसे ही उसने हांथ बढाया तभी जोर से बिजली कौंधी और पेड़ की एक मोटी सी डाल कार के दरवाजे पे गिर गई जिससे वो बुरी तरह डर गया|

काफी कोशिश के बाद भी दरवाजा बंद नहीं हो पाया और कार में धीरे-धीरे बारिश का पानी भरने लगा, जिसे देखकर वो बोला,

“ ओहो ..अब क्या करूंगा मै, ये कहां फंस गया मैं, अब मेरे पास कार से उतरने के अलावा और कोई चारा भी नहीं है|”

उसने बड़ी मुश्किल से अपना एक पैर कार के बाहर निकाला तो उसे ऐसा लगा कि उसका पैर किसी दलदल में धंस गया हो| उसने बाहर चारों और अपनी नजर घुमाई तो उसे दूर दूर तक कोई नहीं दिख रहा था सिवाय सन्नाटे के|

वह मन ही मन बुदबुदाया, "अब बस आज यही होना बाकी था, अरे इससे अच्छा तो मैं मर ही जाता, रोज रोज मरने से तो अच्छा होता, अब यहां जंगल में रात गुजारनी पड़ेगी जहां दूर-दूर तक कोई नजर ही नहीं आ रहा, लेकिन.... मेरी कार किस चीज़ से टकराई थी ये तो मुझे पता ही नही चला, खैर जो भी है, अभी तो इस आफत से निपटना है|”

अखिल ने अपने चोटिल कदमों को धीरे-धीरे आगे बढ़ाया उसका एक एक कदम ऐसे बढ़ रहा था कि मानो कई सारी तालाब की जलकुंभीयों ने उसके पैरों को जकड़ रखा हो| वो धीरे धीरे सड़क तक आया, अब उसकी धड़कन तेज हो चली थी, उसे एक अनजान सा डर सता रहा था, अंधेरा इतना था कि अपने हाथ पैर भी देखना मुश्किल था, ऐसे में जैसे तैसे वो सड़क किनारे बैठ गया तभी बिजली के कौंधते ही उसने आसमान की ओर देखा और कहा, "क्या भगवान... कितना सताओगे, कोई तो मदद भेज दो इस जंगल में|”

इतना कहते ही उसे बिजली की तेज रोशनी में सड़क के उस पार कुछ हवेली जैसा नजर आया| जिसे देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई, उसने झट से उस हवेली की ओर अपने कदम बढ़ाए| कंप कंपाते पैरों से वो जंगल के उस अनजान हवेली की ओर धीरे धीरे बढ़ता जा रहा था, उस हवेली के पास आकर उसे थोडी राहत मिली क्योंकि उस हवेली से बहुत धीमी सी रोशनी खिड़की और रोशनदानों से झांक रही थी|

उसे यह सब कुछ किसी एक सपने की तरह लग रहा था लेकिन मरता क्या न करता, यही सोच कर वो उस सुनसान हवेली के दरवाजे के पास पहुंचा| हवेली का दरवाजा किसी पुराने जमाने के घरों के दरवाजे जैसा दिख रहा था| उसने दरवाजे पर हाथ मारा और आवाज लगाई,

"कोई है..??? प्लीज मेरी मदद कीजिए... दरवाजा खोलिए"!! अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई| उसने दोबारा आवाज दी लेकिन इस बार भी उसे मायूसी हाथ लगी तभी उसने दरवाजे को टटोला तो एक पीतल का मोटा सा गोल कुंडा जिसे अक्सर पुराने घरों में खटखटाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था वह दिखाई दिया|

उसने कुंडे को जोर-जोर दरवाजे पर बजाया और चिल्लाया, "कोई है..?? प्लीज दरवाजा खोलिए और मेरी मदद कीजिए" इस बार भी अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई तो अखिल ने गुस्से में दरवाजे पर जोर से कंधा मारा और यह क्या... उसके कन्धा मारते ही दरवाजा खुल गया जिससे अखिल की जान में जान आई लेकिन सामने कोई नहीं था|

वो जल्दी से अंदर घुसा और दरवाजे को बंद किया, उसे ऐसा लग रहा था जैसे आज पहली बार जीवन में उसके साथ कुछ अच्छा हुआ हो| बारिश में भीगते भीगते उसका शरीर ठंड से कंपकंपा रहा था, हवेली के अंदर सिर्फ इतनी रोशनी थी की अंधेरा न लगे बस|

अखिल ने खड़े-खड़े चारों ओर अपनी नजर दौड़ाई, वो हवेली किसी हवेली से कम नही लग रहा था जिसकी स्थिति देखकर लग रहा था कि यहां कोई रहता हो बल्कि उसे तो लग रहा था कि जैसे अभी अभी किसी ने साफ सफाई की हो, खिड़कियों के शीशे एकदम साफ थे, छत पर लगा छोटा सा झूमर जिसमें कुछ बल्ब बुझे हुए थे और कुछ टिमटिमा रहे थे|

तभी उसके दांई ओर एक बड़ी सी राजसी कुर्सी दिखी जो बेहद कीमती लग रही थी, वो जल्दी से कुर्सी पर बैठ गया, उसके कपड़ों से पानी बह रहा था, उसने कुछ राहत की सांस ली और जूते खोले लेकिन जूतों में काफी पानी भर गया था|

उसने अपनी नजर एक बार फिर इधर उधर दौडाई और सामने की खिड़की का शीशा खोल कर अपने जूतों से भरा हुआ पानी बाहर उड़ेल दिया, उसके हाथों की उंगलियां भीगते भीगते सिकुड़ गई थी और होंट कंपकंपा रहे थे, वो वापिस फिर कुर्सी पर बैठा तो उसे वह कुर्सी बिल्कुल भीगी हुई लगी इसलिये उसने दूसरी कुर्सी को आगे बढ़ाया और बैठ गया|

वो समझ चुका था कि यह हवेली वीरान है| उसने मन ही मन में कहा,

“ चलो अच्छा ही है, यहां कोई परेशान करने के लिए नहीं है|” यह कहकर उसने एक गहरी सांस ली और उस बड़े हाल के दूसरे कोने मे रखी मेज पर बिछी चादर उठाई और अपने गीले कपड़ों को उतारने लगा|

उसने एक-एक करके अपनी शर्ट के बटन खोले ही थे कि उसे ऐसा लगा जैसे उसके पास से कोई गुजरा हो, अखिल ने गीला शर्ट फर्श पर डाल दिया, उसने अपना भ्रम दूर करने के लिए एक बार फिर आवाज दी, “ अगर कोई है तो सामने आओ, बस मुझे आज रात के लिए यहां रुकने दीजिए|”

उसकी बात का कोई जवाब नहीं मिला| उसने अपनी बेल्ट खोली और फर्श पर डाल दी कि तभी फिर उसको ऐसा लगा जैसे ठंडी हवा उसके शरीर को छेद गई, उसके शरीर में सनसनाहट होने लगी, उसकी नजर अचानक खिड़की पर गई तो वह हंसकर बोला, “ क्या यार मैंने खिड़की तो बंद ही नहीं की थी, खिड़की से हवा के झोंके आ रहे हैं और मुझे लगा कि शायद कोई है|” यह कहकर उसने खिड़की के दोनों शीशे बंद करने के लिए हाथ बढ़ाया पर इससे पहले उसने खिड़की से बाहर अपनी थोड़ी सी गर्दन निकालकर झांका, बारिश लगातार हो रही थी, बाहर चारों ओर पानी ही पानी भर गया था|

वो खिड़की बंद करता कि तभी बिजली गड़गड़ाहट के साथ फिर कौंध पडी| उसने घबरा कर जल्दी से खिड़की को बंद किया और अपनी गीली पैंट उतार कर फर्श पर डाल दी जिसके बाद वो चादर लपेट कर सोफे पर आराम से लेट गया, अब उसे कुछ राहत मिल रही थी|

अखिल लेटकर अपनी पुरानी जिंदगी के बारे में सोचने लगा, सोफे पर लेटे लेटे उसकी नजर हवेली की छत पर गई, पूरी छत सुंदर-सुंदर रंगों की कलाकृतियों से भरी हुई थी जैसे किसी प्राचीन मंदिर की छतों पर होती हैं|

वो आंख बंद करके लेट गया, अभी कुछ ही देर हुई थी कि उसके कानों में किसी के हंसने की आवाज आई, उसने अपनी निन्दासी आंखों को खोले बिना ही करवट बदल कर आवाज को अनसुना कर दिया और लेटा रहा|

कुछ देर बाद आवाज फिर आई, "आ गए तुम..?? कितनी देर लगा दी?? तुम्हें तो मेरी कोई फिक्र ही नहीं है, हमारी नई नई शादी हुई है और तुम हो कि मुझसे दूर भागते हो, तुम्हें तो ज्यादा से ज्यादा मेरे साथ वक्त बिताना चाहिए, अच्छा ठीक है तुम हाथ मुंह धो लो मैं तुम्हारे लिए चाय लाती हूं|”

यह बात सुनकर अखिल अचंभे में पड़ गया, उसके रोंगटे इस कदर खड़े हो गए जैसे उसने कोई ऐसी बात सुन ली हो जो उसे नहीं सुननी चाहिए| उसने तुरंत उठ कर यहां वहां देखा, हॉल में कोई नहीं था| सारी खिड़कियां बन्द थीं, उसके फर्श पर पड़े गीले कपड़ों से पानी बहता हुआ बाहर दरवाजे की तरफ जा रहा था, वह दबे पांव आगे जाकर उस हवेली के कमरों की तरफ बढ़ गया|

पहले कमरे का दरवाजा खुला था उसमें भी धीमी धीमी रोशनी हो रही थी, उसने एक एक करके सारे कमरे देखे लेकिन उसे कोई नहीं दिखा अब उसको विश्वास हो गया था कि यह सिर्फ उसका भ्रम था और होता भी क्यों ना उसके अतीत की कड़वी यादें उसके गले से नीचे उतर ही नहीं रही थी|

वो फिर सोफे पर लेट गया और छत पर बनी आकृतियों को फिर ध्यान से देखते हुये अपने अतीत के बवंडर में बह गया|

कॉलेज के टाइम से ही अखिल को अपनी क्लासमेट मेघा से प्यार हो गया था, मेघा... जिसका नाम काफी सोच समझ कर रखा गया था जहां जाती अपने प्यार और अदाओं की बारिश कर देती थी, कितना भी बच लो लेकिन उससे मिलने के बाद उसको भुलाना मुश्किल था|

मेघा और अखिल के प्यार की खुशबू पूरे कॉलेज में फैल गई लेकिन यह खुशबू उन दोनों के घरवालों को बिल्कुल पसंद नहीं आई, जात-पात, ऊंच-नीच, स्टेटस सारी चीजें इनके प्यार के बीच में अड़ गई लेकिन फिर भी दोनों ने सब को दरकिनार करके कुछ दोस्तों की मदद से प्रेम विवाह कर लिया|

सालों से चलता हुआ प्यार अब अपनी मंजिल तक पहुंच चुका था, फिर धीरे धीरे ना चाहते हुए भी अखिल के घरवालों ने मेघा को अपनी बहू स्वीकार कर लिया|

अखिल की जिंदगी एक नए सफर पर दौड़ते हुए चली जा रही थी, उसने अपना काम और भी जिम्मेदारी से करना शुरू कर दिया था ताकि वह ज्यादा से ज्यादा पैसे कमा सके और अपने परिवार के स्टेटस को ऊपर उठा सके|

वो अक्सर काम के चलते देरी से घर आता, तब तक सब सो जाते और वो आकर जब डाइनिंग हाल में बैठता तो मेघा की हल्की हंसी उसके कानों में पड़ जाती जिससे उसकी दिन भर की थकान उतर जाती|

उसके आते ही मेघा कहती, "आ गए तुम..?? कितनी देर लगा दी..?? मैं कब से तुम्हारा रास्ता देख रही थी, हद हो गई... हमारी नई नई शादी हुई है और तुम हो कि.... तुम्हें काम से ही फुर्सत नहीं, लोगों को देखो नई-नई शादी होती है तो हर जगह घूमने जाते हैं, ऑफिस से छुट्टी ले लेते हैं और तुम...सो अन रोमांटिक|”

इस पर अखिल मेघा को गले लगा लेता और कहता, " किसने कहा मैं अन रोमांटिक हूं, अगर अन रोमांटिक होता तो तुम्हें कैसे अपना बना पाता|”

ये सुनकर मेघा हंस देती, सब कुछ अच्छा भला चल रहा था लेकिन धीरे धीरे मेघा के हाई सोसाइटी वाले खर्चे बढ़ते गए और प्यार कम होता गया, जिसे झेलना अखिल के बस में नहीं था| दोनों में शादी के एक साल बाद ही लड़ाई झगड़े होने लगे, लड़ाई झगड़े पति पत्नी के दायरे से बाहर निकलकर अब घर वालों तक आ गए थे, हमेशा घर में कलह मची रहती और फिर इसका असर अखिल के काम पर भी होने लगा|

अब आये दिन ऑफिस में बॉस की कई बातें सुनने पड़ती और घर आकर मेघा की|

अखिल बहुत चिड़चिड़ा रहने लगा और शराब भी पीने लगा| शराब पीकर देर रात घर आना मेघा को और भी गुस्सा दिलाने के लिए काफी होता था| ऐसे मे उसका एक ही सहारा था और वो था उसका दोस्त उत्कर्ष| उसकी हालत देखकर उत्कर्ष ने उसे समझाया कि वह मेघा से अलग हो जाए क्योंकि यू जिंदगी बर्बाद करने से कोई फायदा नहीं लेकिन अखिल नहीं चाहता था कि वह मेघा से अलग हो, वह तो बस सब कुछ ठीक करना चाहता था पर शादी के दुसरे साल एक दिन उनका लड़ाई झगड़ा अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया और अखिल ने गुस्से में मेघा को तलाक देने की बात कह दी|

मेघा को भी कम गुस्सा नहीं आता था, उसने वह बात पकड़ ली और घरवालों के लाख मना करने के बावजूद भी अखिल को तलाक देने का फैसला कर लिया|

दिसंबर का महीना था, मेघा ने अपना सामान पैक किया और घर से जाने लगी, अखिल ने उसे बहुत रोका और कहा "सोच लो मेघा.. सोच लो... मैं तुम्हें लेने नहीं आऊंगा|”

मेघा ने गुस्से में जवाब दिया, “ हां... मैं चाहती भी नहीं तुम मुझे लेने आओ क्योंकि अब मैं नहीं, मेरे पेपर आएंगे तुम्हारे पास, मुझे अगर पहले पता होता तुम्हारी सोच इतनी मिडिल क्लास वाली है और तुम कभी अपनी क्लास से ऊपर नहीं उठ पाओगे तो मैं तुमसे शादी कभी नहीं करती, मैं जा रही हूं हमेशा हमेशा के लिए|”

मेघा के सास ससुर ने बहुत रोका "बेटी मत जाओ.. पति पत्नी में तो अक्सर झगड़ा होता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि घर छोड़कर सारे रिश्ते नाते तोड़ कर तलाक दे दी जाए|”

मेघा ने तपाक से जवाब दिया "आप लोग चुप रहें तो ज्यादा अच्छा है|”

अखिल ने एक बार फिर कहा, “ मेघा सोच लो... मैंने गुस्से में तुम्हें तलाक देने की बात कही... |”

इस पर मेघा ने जवाब दिया, "लेकिन मैं बहुत सोच समझकर और पूरे होश में तुम्हें तलाक देने की बात कह रही हूं|”

उसने अपना सूटकेस उठाया और घर छोड़कर जाने लगी, घरवालों ने उसे बहुत रोका... अखिल कहता रहा "मेघा रुक जाओ... रुक जाओ...” पर मेघा के सर पर खून सवार था, मेघा ने तो पीछे मुड़कर तक नहीं देखा और दरवाजे को धड़ाम से बंद करके उस ठंडी और कोहरे वाली रात मे घर से चली गई|