Expectations in Hindi Short Stories by Dr Sonika Sharma books and stories PDF | अपेक्षाएं

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अपेक्षाएं

मेहरोत्रा जी को रिटायर हुए अभी कुछ ही साल हुए है पर अभी भी वह अपने को पूरे दिन किसी न किसी काम में व्यस्त रखते है और अपनी लाइफ को भी नियमित रखते है वह पहले की तरह सुबह उठते है, समय से नहाना, समय से पूजा पाठ करना, समय से खाना। उनकी दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं आया बस अब वह ऑफिस नहीं जाते तो वह रोज कभी किताबे पढ़ते, तो कभी घंटो अख़बार और अब गाहे बगाहे धार्मिक ग्रंथ भी पढ़ लेते हैं। उन्होंने अपने समय को कई भागों में बांट लिया जैसे सुबह कुछ देर तक पेपर पढ़ना, फिर थोड़ी देर धार्मिक ग्रंथ, थोड़ी देर अपने बैंक का हिसाब - किताब फिर कोई किताब देख लिया फिर खाना खा कर आराम फिर शाम को वॉक करने चले गए फिर शाम की दिया- बाती और फिर टी वी देखना।
कहने को उनके दो पुत्र भी है पर कोई भी बेटा उन दोनों को अपने पास नहीं रखना चाहता है सब को अपनी आजादी पसंद है दोनों बेटों और बहुओं को लगता है अगर मेहरोत्रा जी और उनकी पत्नी साथ आ कर रहने लगेगें तो उनकी आजादी खत्म हो जाएगी। दोनों बेटे दीवाली पर घर आते है अपने परिवार के साथ और कोई न कोई बहाना बना कर वापस चले जाते है कि जल्दी ही उन दोनों को अपने पास बुलाएंगे। मेहरोत्रा जी भी जानते और समझते है कि दोनों ही बेटे उन्हें साथ नहीं रखना चाहते है इसलिए वह उन दोनों बेटों से कोई आशा ही नहीं रखते पर उनकी पत्नी सुप्रभा इन बातों से बहुत आहत होती हैं। वह हर बार आस लगाती है कि बेटे उन्हें अपने साथ चलने के लिए बोलेंगे पर वह दोनों ऐसा नहीं बोलते और चले जाते तो वह बहुत दुःखी होती हैं पर हर बार मेहरोत्रा जी उन्हें समझाते है बच्चे बड़े है समझदार है उन्हें अब हमारी जरूरत नहीं हैं साथ ही यह भी समझाते है कि बिना जरूरत के कहीं भी जा कर रहो तो वहां इज्जत नहीं रहती पर सुप्रभा जी मां जो ठहरी उनका दिल नहीं मानता है ।
एक दिन सुप्रभा जी अपनी अलमारी की सफाई कर रही थी तभी उन्हें लॉकर में रखी फाइल का एक पुलिंदा मिला जो उन्होंने मेहरोत्रा जी के सामने रखते हुए बोला इसे कब तक ढोना है जरा बताएंगे। मेहरोत्रा जी ने बड़े प्रसन्नता के साथ इस फ़ाइल के पुलिंदे को उठा कर अपनी तरफ सीधा करते हुए बोले अरे आओ बैठो दिखाए इस फ़ाइल में हमारी कितनी अनमोल यादें हैं। सुप्रभा जी साथ में बैठ जाती है क्योंकि वह भी अलमारी की सफाई करके थक चुकी थीं।
मेहरोत्रा जी बड़े उत्साह से उस पुलिंदे को खोलते है सबसे पहले बड़े बेटे के रिपोर्ट कार्ड का लिफाफा हाथ में आता है उस में उसके नर्सरी से लेकर आठवीं कक्षा तक के रिपोर्ट कार्ड थे बाकी के बेटा अपने साथ ले गया था। बड़े उत्साह से वह सारे कार्ड्स पत्नी को दिखाते है जैसे पहली बार दिखा रहे हों। फिर दूसरा लिफाफा उठाते है जिसमें छोटे बेटे के नर्सरी से आठवीं तक के रिपोर्ट कार्ड्स थे बाकी वह भी अपने साथ ले गया था उसके बाद उनके हाथ पहले फ्रिज की रसीद हाथ लगती है तो वह सुप्रभा जी को याद दिलाते है कि याद है यह फ्रिज हमने तब बुक कराया था जब एक बार अनिरुद्ध (उनका बड़ा बेटा) दूध फट जाने के कारण भूखा स्कूल गया था। सुप्रभा जी हां याद है मुझे सब फिर टी वी की रसीद देख कर बोले याद यह टी वी हमने एक्जीबिशन में इस लिए बुक करवाया क्योंंकि अनमोल (उनका छोटा बेटा) को लगता था कि वह कब तक पड़ोस में जा कर टी वी देखेगा।
सुप्रभा जी पुरानी बातों को याद करके मेहरोत्रा जी से कहती है अब इन यादों को हटाइए कब तक इन सब यादों को सीने से लगाए बैठेंगे जिनकी यह यादें है वह तो हम दोनों को भुलाए बैठे है वह इन चीजों का क्या मोल समझेंगे। मेहरोत्रा जी सुप्रभा जी को समझाते हुए कहते है अब हम दोनों के पास एक दूसरे का साथ और यह यादें है जिनके सहारे हमें आगे का जीवन काटना है इसलिए जो है उसे याद करके हम दोनों को सुखी एवम् खुश रहना हैं ।
सुप्रभा जी इन बातों को सुन दुःखी हो भर्राए हुए शब्दों में क्या कभी हमारे दोनों बेटे हमें अपने साथ नहीं ले जाएंगे? उस पर मेहरोत्रा जी सुप्रभा जी को संभालते हुए समझाते हैं अरे तुम क्यों चिंता करती हो? हम तो हैं हमें किसी की क्या चिंता हम दोनों साथ है काफी हैं। उन्हें जब जरूरत होगी देखा जाएगा अभी हमें उनकी कोई जरूरत नहीं हैं।
सुप्रभा जी पर हर इंसान बेटे की चाहत तो इसीलिए रखता है कि बुढ़ापे में सहारा बनेगा पर यहां दो - दो बेटे पर एक भी सहारा नहीं हैं। उस पर मेहरोत्रा जी ने समझाते हुए कहा आप मान क्यों नहीं लेती आपके दो बेटे नहीं बेटी थी विदा कर दी और बुढ़ापा अभी हमारा कहां है? बुढ़ापा आए हमारे दुश्मनों का यह कह कर मेहरोत्रा जी हंसने लगते है और उनकी बात सुन कर सुप्रभा जी मुस्कुरा देती है।