कामनाओं के नशेमन
हुस्न तबस्सुम निहाँ
11
अमल माला के लिए ढेर सारे कपड़े ले आए खरीद कर। इसके सिवा और बहुत सारे सामान। जो माला को बहुत पसंद थे। जाते-जाते बेला, माला को पकड़ कर बच्चों की तरह बिलख कर रोयी थी और उससे कहा था- ‘‘जा...मैं बहुत जल्दी तुझे वापस गांव से बुला लूंगी। तेरे चाचा से गांव का पता ले लिया तेरे छोटे बाबू ने।‘‘
‘‘और न लौट पायी तो...?‘‘ माला ने डूबती आँखों से देख कर कहा।
‘‘तेरे इस सवाल का जवाब मेरे पास नहीं है रे...जा तू...‘‘ बेला के सारे शब्द जैसे अंदर ही फंस कर रह गए थे। वह फिर कुछ न बोल पायी थी। बेला के सामने माला का ठहरना इन क्षणों में पहाड़ जैसा लगने लगा था। अमल उसे बाहर तक लेकर चले गए थे और खुद ही स्टेशन छोड़ने गए थे। माला के जाते ही उस घर में एक अजीब सन्नाटा सा फैल गया था। जैसे किसी तपती भूमि पर से ओस की बूंदें सूख गई हों। माला के अभाव से उपजा एक भयावह प्रश्न जैसे उस घर में चुपचाप सुलगने लगा था। केशव नाथ जी बेला का चेहरा तकते भर रह गए थे। ढांढस देने का साहस भी उनमें जैसे नहीं बचा था।
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अभी अंधेरा ही था। पूरी तरह दिन नहीं निकला था। बेला ने बाजू में सोए अमल को जगाया और धीरे से कहा-‘‘किचेन में बाबू जी हैं क्या लगता है...‘‘अमल उठ कर भाग कर तेजी से गए देखा बाबू जी चाय केतली में डाल रहे थे। वे नहा धो कर पूरी तरह तैयार हो गए थे। अमल ने कहा- ‘‘मुझे जगा दिया होता...मैं चाय बना देता न..‘‘
‘‘क्यों...मेरे हाथ की चाय अच्छी नहीं लगेगी क्या?‘‘ केशव नाथ जी ने हँस कर कहा- ‘‘मैं पुरानी मुंबई जा रहा हूँ। आज तुम्हारी भी छुट्टी है, बेला के पास ही रहना।...माला का अभाव आज बहुत खल रहा है। बहुत आत्मीय बन जाना भी बहुत दुःखदायी होता है। किसी को अपनाने से पहले उससे छूटने का मन पहले ही बना लेना चाहिए।‘‘ अभी केशव नाथ जी जाने किस मर्म को कुरेदते हुए बोले थे। अमल बहुत खामोशी से बाबू जी का चेहरा तकते भर रह गए थे। अमल उनके हाथ से केतली ले कर किचेन से कमरे में चले गए। बेड के सामने वाली मेज पर केतली रख कर वह बेला के लिए ब्रश और पेस्ट ले आए। बेला को कंधे का सहारा दे कर उठाया। तब वह बहुत आहत भाव से बोली- ‘‘ऐसे पलों में माला की कमी बहुत खलती है।‘‘
‘‘माला...माला.., बस बाबू जी को माला चाहिए तुम्हें भी माला चाहिए। मैं तो हूँ न...क्या मेरा होना काफी नहीं?‘‘ अमल ने झुंझलाते हुए कहा।
‘‘क्यों नहीं। तुम भी एक आलंब हो..‘‘ बेला ने हँस कर कहा- ‘‘अब यही तो है...ब्रश और पेस्ट लगा कर दे दिया लेकिन पानी लाना भूल गए।‘‘
केशव नाथ जी करीब ही कुर्सी पर बैठते हुए मुस्कुरा कर बोले- ‘‘मैं भी सोचता हूँ कुछ भी बनने से पहले नर्स जरूर बनना चाहिए। नर्स की ट्रेनिंग जरूरी होती है जीवन में।‘‘
अमल पानी और पैन ले कर लौटे तो बेला ने कहा- ‘‘सितार सीखने से पहले नर्सिंग की ट्रेनिंग ले लेनी चाहिए थी तुम्हें।...बाबू जी अभी अफसोस कर रहे थे। फिर बेला ने बहुत ही कातर स्वर में कहा- ‘‘तुम्हें मेरे बारे में ऐसा पता होता तो जरूर ले लेते ट्रेनिंग।‘‘
‘‘देखो बेला, सुबह-सुबह मन को छूने वाली बात मत करो। आज बाबू जी बहुत दिनों बाद कहीं घर से बाहर जा रहे हैं उनका मुहूरत खराब न करो। वैसे तुम्हें क्या पता किसी अपने के लिए इतना सबकुछ करने में मन कितना सुख पाता है। पेस्ट में महसूस करो कितनी मिठास भर गई होगी।‘‘
लेकिन पूरे कमरे में एक ख़ामोशी सी ही तनी रही। तीनों फर्द चाय पीते-पीते एक चुप्पी को झेलने लगे। तभी बेला ने केशव नाथ जी से मुस्कुरा कर कहा- ‘‘बाबू जी इनको समझा दीजिए कि इस पेस्ट और ब्रश लाने के लिए ही यह नहीं बने हैं। इन छोटी-छोटी बातों में उलझ कर अपनी प्रतिभा नष्ट न करें। दो महीने रह गए हैं अमेरिका जाने में। इनसे कहिए रियाज करना शुरू करें। ‘‘
‘‘अरे हाँ अमल, मैं तो भूल ही रहा था। तुम आज अपनी स्वीकृति दिल्ली भिजवा देना।‘‘ केशव नाथ जी ने बड़े उत्साह में भर कर कहा। अमल केशव नाथ जी का उत्साहित चेहरा इसके उत्तर में चुपचाप निहारते रह गए हैं। जैसे निर्णय कहीं अंदर ही अंदर फंसा सा रह गया था। तभी अमल को चुप देख कर बेला ने आकुलता से कहा- ‘‘तुम चुप क्यों हो। क्या सोचने लगे। देखो अमल..यदि तुमने मेरी वजह से अमेरिका जाने का ख्याल छोड़ दिया है तो वैसा बता दो। तुम्हारे लिए यदि मैं बाधा हूँ तो मुझे कुछ और अपने बारे में सोचना पड़ेगा। अमल ने जिस विषाद को बेला के चेहरे पर झलकते देखा, उसे महसूस कर अंदर तक सहम गया। फिर मुस्कुरा कर बोला- ‘‘पेन और पैड ला देता हूँ...तुम्हीं अपने हाथ से स्वीकृति पत्र लिख दो। मैं सिर्फ दस्खत कर दूंगा।‘‘
‘‘मैं तो हूँ न यहाँ बेला के पास। हाँ, तुम्हे ये विश्वास होना चाहिए कि मेरे रहते हुए बेला को किसी भी तरह की तकलीफ नहीं होने पाएगी। तब तो जाओ नही तो...‘‘ बेला ने केशव नाथ जी की पीड़ा महसूस करते हुए कहा- ‘‘क्या कहते हैं बाबू जी, यह पूरा घर ही एक अटूट विश्वास पर टिका हुआ है।...मुझे कभी अंदर से लगा ही नहीं कि मैं अपंग होकर बेड पर पड़ी हूँ।‘‘
अटूट विश्वास की बात पर अमल बेला का चेहरा चुपचाप तकने लगे थे किसी अभियुक्त की तरह। शायद केशव नाथ जी ने अमल का चेहरा इन क्षणों में एक बार देखा था किन्हीं अर्थों में। वे सब जैसे बेला के चेहरे पर फैले उस विश्वास की उजास को सह नहीं पा रहे थे। तभी केशव नाथ जी ने उठते हुए अमल से कहा- ‘‘मैं जा रहा हूँ रात तक लौटूंगा। तुम दिल्ली के लिए पत्र तैयार रखना‘‘
किसी का साहस नहीं हुआ कि बाबू जी से पूछ लें कि किसलिए पुरानी मुंबई जा रहे हैं। ‘‘मैं स्टेशन तक आपको छोड़ आता हूँ, आप शायद बहुत दिनों बाद स्टेशन जा रहे हैं। बहुत कुछ वहाँ बदल गया है अब।‘’
‘‘तुझे कहाँ जाना है यह तो नहीं भूला हूँ।‘‘ केशव नाथ जी ने मुस्कुरा कर कहा- ‘‘यदि गंतव्य आदमी को याद रहे तो वह रास्ते बदल जाने के बाद भी वहाँ पहुँच ही जाएगा। तुम यहीं बस बेला के पास ही रहो।‘‘
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शाम को अचानक किसी ने कॉलबेल बजाई। अमल बाहर निकल कर दरवाजे पर आए। सामने पड़ोस के नीरज बाबू बहुत घबराए से खड़े थे। वे लड़खड़ाती आवाज में बोले- ‘‘मेरा फोन कहीं लग नहीं रहा। अभी शहर में कर्फ्यू लग गया है। भीषण दंगा हो गया है। पुरानी मुंबई में बहुत अगजनी हुई है। काफी लूटपाट हुई है बहुत सारे लोग मारे गए हैं। मेरी बेटी अभी वहीं अपनी मौसी के वहाँ गई है। सुबह ही गई है और अभी तक लौटी नहीं। मन बहुत दहशत में है।‘‘
अमल ने उनको अंदर बुलाया और अपने फोन से फोन लगाने लगे। वो भी नहीं लगा। काफी देर तक नीरज बाबू उसके नंबर से लगाते रहे। नहीं लगा तो वह हताश हो गए। फिर बोले- ‘‘बड़ा बुरा होने वाला है।‘‘ अमल सहमती आवाज में बोले-
‘‘बाबू जी भी उधर ही गए थे। अभी तक लौटे नहीं।‘‘ तो नीरज बाबू ने घबराई आवाज में कहा- ‘‘अरे कर्फ्यू में फंस गए होगे। ‘‘ईश्वर करे वह कर्फ्यू में ही फंसे हों दंगाईयों में नहीं।‘‘ अमल ने सहमती आवाज में कहा। नीरज बाबू लौट गए। अमल बेला के पास चुपचाप आ कर बैठ गए घबराए से, बाबू जी को फोन लगाया तो उसकी घंटी वहीं सोफे पर से सुनाई देने लगी। वह बड़बड़ाया- ‘‘ओह शिट...बाबू जी फोन भी यहीं भूल कर चले गए।‘‘ बेला ने अमल के चेहरे पर तनाव देख कर पूछा- ‘‘कौन था, क्या हुआ...?‘‘
‘‘नीरज बाबू आए थे। उनका फोन नहीं लग रहा इसलिए मेरे फोन से फोन करने। शहर में भीषण दंगा हो गया है। पुरानी मुंबई में बुरी तरह से अगजनी हुई है। कर्फ्यू लग गया है। बाबू जी की चिंता लगी है।‘‘ अमल ने कहा।
बेला ने घबरा कर पूछा- ‘‘ इधर, कुर्ला में तो कुछ नहीं है न?‘‘
‘‘शायद नहीं, इधर कुछ फसाद होता तो नीरज बाबू जरूर बताते।‘‘ अमल ने कहा- ‘‘वैसे भी दंगा फैलते कितनी देर लगती है।‘‘
बेला ने अमल के सहमे चेहरे की ओर देख कर कहा- ‘‘..बाहर वाला फाटक ठीक से बंद कर लीजिए। और अंदर से सारे दरवाजे भी। बाबू जी के लिए मन में अजीब दहशत भरती जा रही है।‘‘ फिर उसने एक भयावह अतीत में उतरते हुए कहा- ‘‘जब दंगा फसाद होता है तो मन कांप जाता है। मेरे मम्मी, डैडी और भाई इसी दंगे का शिकार हुए थे। कोई भी तो नहीं बचा था।...मैं नानी के पास बनारस हुई थी इसीलिए बच गई थी। बाबू जी के लिए मन सिहर रहा है।‘‘
बेला की आँखों में एक भयावह आतंक देख कर अमल ने उसे संभालते हुए कहा- ‘‘कुछ नहीं होगा सब ठीक होगा।...कुछ सोचो मत।‘‘
‘‘फोन भी नहीं ले गए वह, वर्ना कुछ खबर तो मिलती। वह भी कैसे फोन करेंगे हम लोगों को...‘‘ बेला ने खोती आवाज में कहा। फिर दोनों कुछ देर तक आशंकाओं में डूबते-उतराते रहे। एक अजीब सन्नाटा तन आया था कुछ देर चुप रहने के बाद बेला ने अमल की ओर निहारते हुए कहा- ‘‘अच्छा हुआ तुम्हारे कॉलेज में आज छुट्टी है। नहीं तो मैं तो यहाँ अकेली डर के मारे मर ही जाती। अमल ने बेला के बालों को सहलाते हुए कहा- ‘’और मैं अलग वहाँ परेशान रहता तुम्हें अकेली छोड़ कर।‘‘
कुछ क्षणों तक बेला अमल के इस अंतर्मन के स्पर्श से नहाती रही और फिर बोली- ‘‘मेरे लिए कैसा डर रहता? न तो मैं बलात्कार के लायक हूँ और न हत्या के लायक और अगर हत्या जैसी कोई चीज हो ही जाती तो मैं इस छटपटाती जिंदगी से मुक्त हो जाती और तुम भी मेरी बोझिल जिंदगी से मुक्त हो जाते।‘‘
अभी जिन अर्थों में बेला ने अपने पूरे आकर्षण और जीवन की सार्थकता को नकारा है, ये भाव अमल को चीर सा गया है। एक स्त्री के सारे मूल्य जब राख बन कर उसके अंदर ही उड़ने लगें तो सचमुच उस स्त्री के लिए इससे भयावह त्रासदी कुछ और नहीं हो सकती। अमल ने बेला की आँखों में वही राख की धुंधलाहट देखी है। वह कुछ तत्काल बोल नहीं पाए। सिर्फ उसका चेहरा निहारते भर रहे उसी राख में डूबे से। फिर अमल ने शायद उसे कहीं और खींचते हुए कहा था- ‘‘तुम्हें आईना ला कर दिखाऊँ कितना मादक है तुम्हारा चेहरा। आँखों में कितना खिंचाव है। कोई पुरूष तुम्हारे पास इस इरादे से आए तो बंधा-बंधा रह जाएगा।‘‘
बेला ने अमल के इस ढाढ़स को महसूस करते हुए कहा- ‘‘यहाँ मेरे पास कोई चेहरा और आँखों से बंधने नहीं आएगा।...उसे जो मुझमें चाहिए वह कहाँ मिलेगा। यदि यही तुमको दे पाती तो यह मेरी स्त्री का शरीर तुमसे सार्थक न हो जाता। इन ढाई वर्षों में तुमने इस शरीर ने पाया ही क्या है सिवाए एक टीस और अनबुझी प्यास के।‘‘
तभी लूसी के जोरों से भौंकने की आवाज सुनाई पड़ी। दोनों एक सहम से एक दूसरे का चेहरा तकने लगे। लूसी अभी भी भौंक रहा था। बेला ने अमल से कुछ डरी हुई आवाज में कहा- ‘‘बाहर का फाटक जा कर लाक कर दो‘‘ अमल उठ कर बाहर चले गए। लूसी का भौंकना बंद हो गया। जब अमल वापस कमरे में आए तो बेला ने पूछा-‘‘लूसी क्यों भौंक रहा था?‘‘
‘‘कुछ तो नहीं, बाहर कोई नहीं था। शायद कुछ लोग फाटक के पास आकर खड़े हो गए होगें। इसीलिए भौंक रहा होगा।‘‘ अमल ने बहुत अश्वस्त होते हुए कहा।
‘‘यह लूसी भी खूब है।‘‘ बेला बहुत ही साधरण लहजे में बोली- ‘‘अपने और पराए की बहुत अच्छी पहचान रखता है। तुम्हारे या बाबू जी के बहुत पुराने परिचित सालों बाद भी मिलने आते हैं तो वह उन्हें पहचान लेता है।‘‘
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रात के ग्यारह बज गए थे। केशव नाथ जी लौटे नहीं थे। अमल असहाय से बाबू जी के फोन को देखते और कुछ सोचने लगते। पूरे घर में एक अजीब सी दहशत फैली हुई थी। बाहर पूरी तरह सन्नाटा फैला हुआ था। बेला ने आशंकित हो कर अमल से कहा- ‘‘नीरज बाबू से जा कर पूछो कुछ पता चला। क्या हाल है शहर का।‘‘
‘‘कर्फ्यू लगा है ये तो बता ही रहे थे। बाकी जो कुछ हुआ है वो पुरानी मुंबई में हुआ है। बेला ने एक गहराई से पूछा- ‘‘पुरानी मुंबई में ऐसी क्या बात है?‘‘
‘‘पुरानी मुंबई में बहुत कुछ लूटने के लिए है।‘‘ अमल ने बताया- ‘‘वहाँ ज्वेलरीज की ज्यादा दुकाने हैं। कुछ पुराने कोठे हैं। जहाँ लूटने के लिए बहुत कुछ है। तभी लूसी के कुकवाने की आवाज सुनाई पड़ी। वह बहुत दुलार वाली आवाज निकाल रहा था। बेला ने थोड़ा अश्वस्त होते हुए कहा- ‘‘शायद बाबू जी वापस आ गए। लूसी की आवाज से लग रहा है।‘‘
अमल एक झटके से उठकर बाहर गए। लूसी फाटक के पास खड़ा होकर कुकवा रहा था। फाटक अंदर से बंद था। अमल ने फाटक खोला तो एक बहुत ही सुंदर सी महिला घबराई हुई सी अंदर आयी। वह बुरी तरह हांफ रही थी। लूसी उस महिला की साड़ी पकड़ कर बहुत प्यार से खींच रहा था। जैसे वह कोई पुराना परिचित हो उससे। लेकिन अमल ने उन्हें पहली बार देखा था। बड़ी-बड़ी आँखों वाली कसा हुआ बदन, गोरा रंग, सारा कुछ बहुत ही आकर्षण से भरा हुआ। वह पूरी तरह दहशत में थी। शायद काफी दूर से चल कर आई थी। वह अभी भी हांफती जा रही थी।
‘‘कौन हैं आप....?‘‘ अमल ने हैरत से पूछा।
‘‘यह सब बाद में बताऊँगी, यही केशव नाथ जी का बंगला है न...? उसने हांफते हुए कहा।
‘‘हाँ, यही है।‘‘ अमल का कुतुहल बढ़ता जाता है। उसने कांपती आवाज में पूछा- ‘‘लेकिन आप हैं कौन, वह तो नहीं हैं घर में, मैं उन्हीं का इंतजार कर रहा हूँ..सुबह से निकले हैं अभी वापस नहीं लौटे।‘‘ वह पूरी तरह आतंकित थी। लूसी अभी भी उनकी साड़ी प्यार से खींच रहा था। उसने बहुत खीझते हुए लूसी को पकड़ कर अपने से परे हटाते हुए डपट कर कहा- ‘‘लूसी, उधर हट...‘‘ फिर उसने अमल से घबराए हुए स्वरों में कहा- ‘‘चलिए, अंदर...शायद कुछ लोग मेरा पीछा करते यहाँ तक चले आएं।‘‘
अमल उसे आश्चर्य से निहारते हुए बाबू जी के कमरे में अंदर ले गए। लूसी भी उनके साथ ही चला गया। बेला ने अपने कमरे से पूछा- ‘‘बाबू जी आ गए क्या?‘‘
‘‘नहीं...कोई और है’’ अमल ने दबी आवाज में कहा।
‘‘कौन...?‘‘ एक घबराई सी आवाज में बैठते हुए पूछा उसने। ‘‘कोई और है घर में क्या?‘‘ उस महिला ने अमल की आँखों में झांक कर पूछा।
‘‘मेरी पत्नी‘‘
‘‘तुम कौन हो केशव नाथ जी के..?‘‘
‘‘उनका बेटा...‘‘
वह उठ खड़ी हुई- ‘‘चलों अंदर ही...जहाँ तुम्हारी बहू है।‘‘
अमल पहले थोड़ा ठिठके लकिन उसके उतावलेपन से जैसे वे विवश हुए थे उस महिला को बेला के कमरे में ले जाने के लिए। वे सहमते और कुतुहल से उन्हें बेला के कमरे में ले गए। लूसी अभी भी उनके पीछे-पीछे लगा था। वह कुछ क्षण तक बेला के बेड के पास खड़ी होकर बेला को निहारती रहीं फिर पास वाली कुर्सी पर बैठती हुई बोलीं-‘‘बीमार चल रही हैं क्या आप...?‘‘
बेला कभी अमल का चेहरा और कभी उस महिला का चेहरा और फिर लूसी का उससे दुलारना सबकुछ बड़े आश्चर्य से देख रही थी। बिना कुछ उत्तर दिए। अमल ने इस बार कुछ ज्यादा ही इस रहस्यमयता को काटने का प्रयास करते हुए तेज स्वरों में उनसे पूछा- ‘‘आप हैं कौन...?‘‘
ये सवाल बाद में भी आप कर सकते हैं। आपके बाबू जी मेडिकल कॉलेज में एडमिट हैं। दंगे में वह फंस गए थे। चाकुओं का थोड़ा जख्म है। मैं बड़ी मुश्किल से यहाँ पैदल किसी तरह बच कर आयी हूँ। उन्होंने ही तुमको यहाँ खबर करने के लिए मुझे भेजा है कि तुम लोग परेशान न हो।‘‘ अमल और बेला पूरी तरह उसकी बात से सहम गए। वे क्षणों तक उनका चेहरा तकते भर रह गए। वे पलों तक जड़ से बन गए थे। तभी बेला ने उनकी आँखों मे देखते हुए सहम कर पूछा- ‘‘ज्यादा चोट तो नहीं है न...मन बहुत घबरा रहा है।‘‘
‘‘नहीं, ज्यादह घायल नहीं है।‘‘ उन्होंने थोड़ा अश्वस्त होते हुए कहा- ‘‘घायल होने के बाद मैं उनसे ज्यादह बात नहीं कर पायी थी। पुलिस वाले उन्हें अपनी वैन में ले कर मेडिकल ले जा रहे थे। वह अच्छी तरह बोल रहे थे। बस उनसे मेरी वैन में ले जाते वक्त इतनी ही बात हुयी थी कि आप लोगों को मैं खबर कर दूं। उन्होंने यहाँ का पता दिया था। किसी तरह मैं बचती चली आयी यहाँ तक। कुछ गुंडे मेरे पीछे लगे हुए थे। कर्फ्यू उधर लगा हुआ है। बड़ी मुश्किल से यहाँ आ पायी हूँ।‘‘