समीक्षा के आईने में
’’सरल नहीं था यह काम और अन्य कविताएं’’
समीक्षक - वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’
तटस्थ नीति के अध्येता ,चिंतन के सहपाठी और ईमानदारी की जमीन को तराशने में हमेशा निरत ,स्वतंत्र कुमार जी- जब अपनी रचना धर्मिता की परिधि में अपनी प्रथम प्रकाशित काव्य कृति -‘‘सरल नहीं था यह काम और अन्य कविताएं ’’में अपनी भाव व्यत्र्जना देते हैं तब पाठक /श्रोता का हृदय उद्वेलित हुए बिना नहीं रहता है। कविता की धारदार धारा मन के बेचैन क्रन्दन को साहस प्रदान करती दिखती है। कृति का आवरण पृष्ठ ही भावों का नया दरवाजा खोलता सा दिखता है। श्री राम प्रकाश त्रिपाठी जी का ‘अनाम पृष्ठ’ ही सम्पूर्ण दृश्य उजागर करता सा लगा । साथ ही श्री मनोज कुलकर्णी जी की अभिव्यक्ति‘‘ समाज की नब्ज’’गहरे चिंतन को परोसती है, जिसका सम्पूर्ण समर्पण कवि की‘‘ अपनी बात ’’ पूरी तरह उजागर करती है। कृति(काव्य)इकतालीस कविता भावों में सत्तावन पृष्ठों में समाहित है।
अनेक कविताएं मानव की पीड़ा तराशती लगीं। जन जीवन में व्याप्त भयावह स्थिति का आकलन ‘‘ अर्जुन तुम गांडीव उठाओ’’ में बड़ी बारीकी से किया गया है। यथा
पक्षपात ही न्याय बने जब निन्दा ही स्तुति हो जाये
है अधर्म तब मौन का धरना तुम ऐसे मे शंख बजाओ
देश की अस्मिता’’-कविता भी इसी धरती का एक अनूठा और गहरा दर्द उभारती है। ‘‘अफसर का दौरा’’कविता सरकारी तंत्र की त्रासदी का स्वच्छ आईना सा लगा।
जैसे े जब भी अफसर दौरा आये, सबको सरपट दौडा जाये
औरो की बात कहॅु क्या पर स्वतंत्र हर दम घवराये
साथ ही आशा की धरती को पल्लवित करती है कविता ‘‘ भुंसारो हू है जरूर’’
यथा हाथन खौं सुक्षे न हाथ, अन्धयारी है रात, कछु कही नही जात
धना पक्की है बात के भुसंारो हुई हैं जरूर
और ‘‘नया सूरज उगाएं ’’। साथ ही साहस की धरती को संबल देती है कविता -‘‘लड़ते रहो थको नहीं ’’। ‘‘कस्बे का मेरा अस्पताल’’ कविता में आज की अव्यवस्था का गहरा दर्शन है। कविता ‘‘बोला एक सुअर का बच्चा’’-गहरी और अनूठी दर्द की दास्तान- चुनावी परिदृश्य को परोसती है।
जैसे अम्मा बोली प्यारे बेटे, तुम हो जरा अकल के हेठे
मैं भी थी जब छोटी ब्च्ची लगती मुझे कहानी सच्ची
जब आता चुनाव का मौसम ये देते पब्लिक को गच्चा
बोला एक सुअर का बच्चा
साथ ही ‘‘मंदिर की सीढ़ियां’’तथा ‘‘राम अपने घर में ही बेघर लगे ’’- कविताओं में धार्मिक विडम्बनाओं पर गहरा और तीखा प्रहार है ।कविता ‘‘रोटी की बातें’’एवं ‘‘आजादी है आजादी है’’देश में व्याप्त पीड़ा का उच्च शंखनाद है। इन्हीं के साथ अन्य कविताएं कौआ बोला, राम कहानी,इंकलाब जिन्दावाद, सरल नही था यह काम, दाउ का हुक्का, अम्बेडकर कविता आदि आदि भी अनेक नये आयामों की तलाश में लगीं । ‘‘ पापा मेरी नजर में ’’-चेष्टा- निष्ठा के गहन चिंतन का सानुकूल परिदृश्य है। भाषा की सरलता में, कृति भावों की विशालता लिए नए संसार की खोज की ओर ताकती सी लगी ।
कृतिकार को भावी उन्नति की मंगल कामनाओं के साथ साधुवाद।
पुस्तक- ’सरल नहीं था यह काम और अन्य कविताएं’’ ,
कृतिकार- डॉ स्वतंत्र कुमार सक्सेना
प्रकाशक - .लोक जतन प्रकाशन भोपाल
समीक्षक- वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त
मूल्य- 200 रुपये
सम्पर्क सूत्र- गायत्री शक्ति पीठ रोड़ गुप्ता पुरा डबरा, भवभूति नगर
जि. ग्वालियार म. प्र.
मो0- 9981284867