Aapki Aaradhana - 9 in Hindi Moral Stories by Pushpendra Kumar Patel books and stories PDF | आपकी आराधना - 9

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आपकी आराधना - 9

भाग - 09

" क्या..... हसबैंड और बेटे की डेथ .. वो कैसे? "

" हाँ, कैसे हुआ ये तो नही बताया मुझे। एक बेटी है जो शादी के बाद कनाडा मे शिफ्ट हो गयी, वो अपनी माँ को फोन तक नही करती। बस इस तरह से बेचारी काम की तलाश मे कोरबा आ गयी "

" लेकिन उन्हे तो भिलाई मे भी काम मिल सकता था, फिर क्यों "

कमला आंटी के बारे मे सुनकर आराधना को गहरा धक्का लगा, उसका पहला प्यार मनीष जो उसे जान से भी ज्यादा चाहता था और अग्रवाल अंकल जिन्होने हमेशा उसका सपोर्ट किया आज वो इस दुनिया मे नही है। न चाहते हुए भी उसकी आँखों से आँसू टपक पड़े।

" मम्मी धर चलो न अब, पापा वेट कल रहे होंगे "
वंश ने अपनी तुतलाहट भरी आवाज मे आराधना से कहा।

" ठीक है सुनीता, मै आपसे जल्द ही मिलती हुँ "
आराधना ने अपने आँसू पोछते हुए कहा।

"ओके आराधना ! मै ही आ जाउँगी न आपसे मिलने, तो फिर आप अपना ख्याल रखना "

" जी ! ठीक है।
वंश को लेकर आरधना कार की ओर बढ़ने लगी,

" क्या हुआ भाभी जी, सब कुछ ठीक तो है न "
आराधना का उतरा हुआ चेहरा देखकर ड्राइवर ने पूछा।

" सब ठीक है भैया, घर चलते हैं अब "
आराधना ने वंश के साथ कार मे बैठते हुए कहा।

वंश के कंधे पर हाथ रखते हुए वह मन ही मन रोने लगी। पर अपनी हालत वह किसे बताये, न जाने अतीत के इन उलझनों के साथ उसे और कितने दर्द मिलेंगे। उसकी जिन्दगी मे भी तो कुछ पलों के लिये खुशियों ने दस्तक दी थी।

अब उसकी आँखों मे चमक सी आ गयी। यादों का कारवाँ फिर शुरू हो गया, कितना पावन दिन था वो धनतेरस का और वो गरियाबंद का भूतेश्वर नाथ मंदिर। प्राकृतिक सौंदर्य के बीच बसा विशाल शिव लिंग और आस-पास घने पेड़ - पौधे मन को मोह लेने वाले थे। मिस्टर अग्रवाल मनीष और आराधना को लेकर गरियाबंद आये थे। आराधना अब अग्रवाल वस्त्रालय मे जॉब छोड़ चुकी थी और मनीष से दूर रहकर जीना उसने स्वीकार कर लिया था, लेकिन एक पिता अपने बेटे की खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार थे और उन्होंने इतना बड़ा फैसला कर लिया। पहली बार कमला और शीतल को बिना बताये उन्होंने कोई कदम उठाया।
मिस्टर अग्रवाल ने बताया कि कुछ साल पहले तक उनका आना - जाना यहाँ लगा रहता था क्योंकि यहाँ उनके खास दोस्त मिस्टर बघेल की कृषि विभाग मे पोस्टिंग थी। जब से वो रिटायरमेंट हुए तब से उनका गरियाबंद आना छूट सा गया। दीपावली जैसे बड़े त्यौहार होने पर वहाँ ज्यादा लोग मौजूद तो नही थे पर जितने भी लोग थे सब साक्षी थे इस नई शुरुआत के ।

लाल रंग की कढ़ाईदार साड़ी, हाथों मे लाल चूड़ियां, माँग मे सिंदूर, गले मे मंगलसूत्र और पाँव मे चमकती हुई चाँदी की पायल। आराधना के खुले हुए बाल और होंठो पर हल्की सी लाली मनीष ने अपने हाथों से उसे तैयार किया था।
नीले रंग की चमकती शेरवानी, माथे पर तिलक और कंधे पर दुप्पटा लगाये मनीष पण्डित जी के साथ खड़ा था। अग्रवाल अंकल वहाँ सभी को मिठाई बाँट रहे थे और सभी लोग यही कह रहे थे
" शादी मुबारक जी, आप दोनो हमेशा खुश रहो "

आखिर वो दिन आ ही गया जिसके लिए आँखे तरस सी गयी थी, वो सारे सपने जो अनाथालय से शुरू हुए थे और यहाँ आकर पूरे हो रहे। अब आराधना की शादी हो चुकी वो भी उसके सपनों के राजकुमार मनीष से।

मनीष आराधना का हाथ थामकर खड़ा था, उसकी आँखों मे भी चमक थी। आखिर उसने अपना वादा पूरा जो कर लिया।

" पापा आपके कहने पर हमने ये कदम तो उठा लिया, पर मम्मी को जब पता चलेगा तो वो...."

" भगवान पर भरोसा रखो बेटे, कोई भी माँ अपने बच्चों से ज्यादा देर तक नाराज नही रह सकती "

" लेकिन पापा..."

" डोंट वरी माय सन, हम दोनो ने उससे कहा था न कि हम भूतेश्वर नाथ के दर्शन करने जा रहे हैं तो हमने झूठ कहाँ कहा और मै आज ही भिलाई जाकर कमला को सब सच बता दूँगा "

दोनो बाप - बेटे की बातें सुनकर आराधना के दिल मे भी सवाल उभरने लगे।

" अंकल उन्होंने इसके बाद भी मुझे नही अपनाया तो, मेरा क्या होगा "

" अब मुझे अंकल मत कहो बेटी, पापा जी कहो "

" जी अंकल ... सॉरी पापा जी "

" हाँ ये ठीक है। अगर इसके बाद भी कमला ने तुम्हे नही अपनाया तो हो सकता है की शीतल की शादी हो जाने के बाद वो तुम्हे अपनी बेटी के रूप मे देखे या फिर जब तुम नन्हे मेहमान के साथ घर आओ तो फिर न मानने की वजह ही क्या रहेगी "

मिस्टर अग्रवाल की ये बात सुनकर आराधना को सुकून मिला और नन्हे मेहमान वाली बात से वो शरमा गई।
काश सच मे ऐसा ही हो, सास और ननद के रूप मे उसे माँ और बहन का प्यार मिल जाये।
मिस्टर अग्रवाल ने बताया कि तिरंगा चौक के पास उन्होने किराये का मकान लिया है जहाँ मनीष और आराधना तब तक रहेंगे जब तक कमला और शीतल इस रिश्ते के लिए मान न जाये। जब स्थिति पहले से बेहतर होने लगेगी तब वे उन्हे बुला लेंगे तब तक अग्रवाल वस्त्रालय की जिम्मेदारी अब अकेले मिस्टर अग्रवाल ही उठायेंगे।

" ये देखो बेटा ! ये है तुम्हारा नया घर, रुको 1 मिनट "
ऐसा कहते हुए मिस्टर अग्रवाल अंदर गये और हाथ एक हाथ मे पूजा की थाली और एक हाथ मे चावल से भरा कलश लेकर आये।

" वैसे तो ये रश्में, तुम्हारी मम्मी जी करती पर इस हालात मे मुझे ही अपना सब कुछ मान लो बेटा "
मिस्टर अग्रवाल भावुक हो गये।

मनीष ने उन्हे गले से लगे लिया और कहने लगा
" थैंक यू सो मच पापा, आई लव यू। आप हमारे लिए इतना कर रहे हो "

" चुप पगले ! पापा को थैंक यू बोलता है। तेरे लिए तो जान भी हाजिर है "

" नही पापा ! जान बचाकर रखो अभी मम्मी और शीतल को भी मनाना है "

" बदमाश ! अरे आरधना बेटी ,अंदर तो आओ अब "

मिस्टर अग्रवाल ने मुस्कुराते हुए आराधना को अंदर बुलाया।
धीरे - धीरे आराधना अपने कदम बढ़ाने लगी। भले ही ये घर किराये का हो और स्वागत के लिए उसकी सास मौजूद न हो पर किस्मत मे जो लिखा है उसे स्वीकार तो करना ही पड़ेगा।

क्रमशः......