अस्पताल के बेड पर होंठो पर गुलाब की पंखुड़ियों सी फीकी मुस्कान के साथ रेवती बैठी थी। उसके चारों ओर उसके घर परिवार वाले इकठ्ठा थे। कानपुर से रेवती के माँ पापा और भाई भी आ चुके थे पापा की दुलारी रेवती को पापा बार बार बड़े प्यार से देखते और सर पर हाथ फेंर कर कहते मेरी रानी बिटिया को कुछ नही हुआ जल्दी ठीक हो जायेगी। वास्तव में रोड पर हुये चाकू कान्ड की वजह से रेवती का बहुत सा खून बह गया था वहाँ आस पास मौजूद लोगो ने अगर जरा सी भी संवेदनशीलता दिखाते हुये रेवती को तुरन्त अस्पताल पहुँचा दिया होता तो रेवती की जान पर तो कम से कम नही आती। समाचार पत्रों , टीवी मैगजीन हर जगह हम महिला शक्तिकरण और महिला अपराधों को कम करने के मायनों को देखते और पढ़ते है लेकिन वास्तविकता में जब वह स्थिति हमारे सामने होती है तो आंख मूंद लेते है। कुछ ऐसा ही हुआ था रेवती के साथ, वो तो अच्छा था कि रमन का ब्लड ग्रुप वही था अन्यथा शायद इस प्रेम कहानी का अन्त यही से हो जाता लेकिन वो कहते है न कि प्रेम कहानियों का रचयिता ऊपर वाला ही है।
इतने लोगों के बीच घिरी रेवती को दूर से ही देखकर रमन को बहुत सूकून मिल रहा था। वह पास जाता भी तो किस हक से, क्या जबाव देता लोगों के प्रश्नों का। शुक्ला ने रमन के कँधे पर हाथ रखा और हल्का सा मुस्करा दिया। इशारे ही इशारे में रमन और शुक्ला के बीच कुछ बाते हुई वो बाते इतनी कठिन थी कि मेरी कलम भी नहीं समझ पायी। रमन और शुक्ला हॉस्टल की तरफ चल पड़े । रमन के चेहरे पर बहुत सूकुन का भाव साफ नजर आ रहा था। हल्की सी मुस्कान के साथ रमन बाइक पर पीछे बैठा था। शुक्ला बाइक चला रहा था और सीसे में रमन का चेहरा देख कर उसे लगा छेडने।
“अबे रमन एक बात बताओ बे तुम रेवती के लिये दो को बोतल खून दे दिये । अगर हमाय जरूरत पड़ेगी तो देबा के नाय हो?”- शुक्ला
“तुमको कोई लड़की चाकू मारेगी तब ना ससुर तुमको कोई भाव तक तो देती नही है फिर हमारा खून इतना इफरात थोड़े है जो तुमको दे”- रमन
(रमन का ये जबाव सुन कर शुक्ला चिढ़ जाता है।)
“भक्क साले निर्मोही सार कूकुर, तोहरे जैसे दोस्त से तो अच्छा हम कूकुरे पाले होइत कम से वफादारी तो करता”- शुक्ला
(शुक्ला का चिढ़ा हुआ चेहरा देख कर रमन हँसने लगता है)
“अरे हमार भाय शुक्ल तू ही तो हमार दोस्त यार आहा, तोहरा खातिर चार बोतल देब हो। अरे तू लायकी (लड़की) होता न तो रेवती के पत्ता कट जाते।”- रमन( इतना कहते हुये रमन शुक्ला के गाल पकड़ के नोचने लगता है और पीछे से चिपक जाता है।)
“हाँ हाँ पता है माखन न लगावा दूर हटा चिपका ना ज्यादा”- शुक्ला
(अब इस घटना को लगभग दो हफ्ते बीत चुके थे रेवती के मम्मी पापा उसको कुछ दिन के लिये कानपुर लेकर चले गये थे। रेवती को न देखकर रमन का यहाँ पर हाल बुरा था
लेकिन रेवती का मन ठीक हो जायेगा यह सोचकर वह अभी भी पासपोर्ट साइज फोटो से मन भर रहा था हलांकि पीछले 4 सालों में रेवती के बहुत से पासपोर्ट साइज फोटो अब रमन के पास थे जिनमें से कुछ तो पेपर में विभिन्न प्रतियोगिताओं में टॉप करने पर छपे थे जिनको रमन ने बड़ी सिद्दत से काट कर रख लिया था। हर एक फोटो के साथ कुछ याद जुड़ी हुई थी। रेवती कुछ अलग मिजाज थी आज के जमाने में भी फेसबुक नही यूज करती थी। व्हाट्सएप्प पर कभी भी अपनी फोटो नही लगाती थी या तो भगवान के फोटो होते थे या फिर मम्मी पापा के। तो नये जमाने में भी रमन का प्यार 19वीं सदी का लगता था और शायद यही वजह भी थी कि ये प्यार उतना ही पवित्र था। रमन फोटो देखते हुए यादों में खो जाता है। उसके हाथ में रेवती की पहली फोटो थी।
(चार वर्ष पहले जब मोहनी ने रेवती का फोटो दिया था उस रात)
“का बे रमन तुमको सोना नही है इतनी रात तक का कर रहे हो?”- शुक्ला
(शुक्ला को जगा देखकर रमन ने अपने हाथ में रेवती की फोटो छिपा ली, जिसको शुक्ला ने देख लिया था।)
“का छिपा रहे हो बे?”- शुक्ला
(रमन ने कुछ बोला नही बस चेहरे पर मुस्काराहट के साथ रेवती की फोटो शुक्ला को दिखा दी।)
“अरे साला ई का बे तुम रेवती की फोटू देख देख रात काली कर रहे हो”- शुक्ला
जवाब में रमन ने मुस्करा दिया।
“अबे रमन ईतना प्यार कब होगया रे मर्दे। तुम हमको बताये भी नही”-शुक्ला
“क्या बताते तुमको तो हमारा प्यार सिर्फ आकर्षण
लगता है सराऊ मजाक बनावत हो हमाई फिंलिंग्स का। तुमसे तो अच्छी हमारी भौजी मोहनी है जो कम से कम हमारे लिये फोटू ही ले आयी। तुम साले आज तक मजाक उड़ाये के आलावा क्या किये हो”- रमन (इतना कह कर रमन की आंखे कुछ नम हो गयी)
(रमन की नम आँखे देखकर शुक्ला की नींद अब पूरी तरह से गायब हो चुकी थी।)
“रमन तुम सच में रेवती से इतना प्यार करने लगे भाय”- शुक्ला (थोड़ा गम्भीर होकर)
(रमन ने हाँ में सर हिला दिया)
“कुछ सोचे हो कैसे उसे पाओगे एक तो वो पढाकू है ऊपर से तुमारी बिरादरी की भी नही है, तुम्हारा तो कोई मेल ही नही है भाय”- शुक्ला
“पता नही शुक्ल हम खुद नही जानते हमको क्या हो गया है। उठते बैठते सोते जागते मन होता है रेवती को देखते रहे। एक दिन नही देखते है न तो मन होता खूब रो ले लेकिन तुम मजाक बना देते हो इस लिये हम कुछ बोलते नही है।”- रमन
“ भाय हम तुमाये दोस्त है तुमारे लब मे हम साथ नही देंगे तो कौन देगा रे, हम सोचे बस ऐसे ही एक दो दिन वाला है। हमको नही पता था कि इतना सीरियस मैटर हो गया है तुम्हारा। जितना रेवती को मैं जनता हूँ वो तुम्हे तब तक पसन्द नही करेगी जब तक तुम सेमेस्टर एग्जाम्स में टॉप नही करते। इस सेमेस्टर ये हो नही पायेगा क्योंकि अभी तो तुम्हारा बेस भी उतना मजबूत नही है। लेकिन ऐसा करो मैथ तुम राघव सर के यहाँ ज्वाइन कर लो बिल्कुल जीरो से पढाते है, फीजीक्स में तुम्हे ज्यादा दिक्कत नही है और केमेस्ट्री को जुगाड़ करता हूँ कुछ।”-शुक्ला
(शुक्ला को पहली बार उसके लब के लिये इतना सीरियस देख कर रमन का मन किया कि शुक्ला को गले लगा ले लेकिन ऐसा हुआ नही।)
“लेकिन रमन ऐ सोच लो यही एक रास्ता है जिससे रेवती को इम्प्रेस कर पाओगे। क्योंकि बीएससी के बाद अगर वो कानपुर चली गयी तो शायद कभी देख भी नही पाओगे। तो मन मजबूत कर लो।”- शुक्ला
(शुक्ला की बात सुनकर रमन ने अपना मन मजबूत करना शुरू किया लेकिन ये पढाई थी जिसकी लत इतनी आसानी से तो लग नही सकती थी। लेकिन जब कभी भी रमन का मन कमजोर होता था शुक्ला उसे मोटिवेट कर देता था। पहले समेस्टर में रमन बहुत अच्छा तो नही कर पाया लेकिन रिजल्ट पहले से बहुत बेहतर था। उसकी गिनती अब अच्छे छात्रों में की जाने लगी जिससे रमन को बहुत अच्छा महसूस होता था और रमन आगे के लिये मोटिवेट होता था। जब कभी रेवती उसके बगल से गुजर जाये या कुछ सेकेण्ड के लिये आँखे मिल जाये उस दिन रमन के लिये कोई त्यौहार से कम नही होता था। रेवती के लिये रमन का प्यार अब लगभग बैच के सभी लोगो तक पहुँच गया था सब सराहना भी करते थे लेकिन जिस तक पहुँचना था उस तक अभी तक नही पहुँचा था। यानी रेवती तक। लगातार मेहनत से रमन अब टॉप टेन में पहुँच चुका था। बीएससी के चौथे सेमेस्टर में एक फक्शन में ऐसे छात्रो को सम्मानित किया गया जिन्होने लगातार अपने प्रदर्शन को सुधारा था। स्टेज पर जब रमन को सम्मानित किया गया। रेवती ने भी सब की तरह ताली बजाई जो कि सामान्यतः कोई भी करता लेकिन रमन को वो बहुत खास लगा। बीएससी का लास्ट सेमेस्टर था रमन ने इतनी पढ़ाई की कि वह पूरे बैच में टॉप कर गया रेवती द्वितीय स्थान पर आयी। रमन के नोट्स से मोहनी, किशन और शुक्ला का भी नम्बर बहुत अच्छा आया।
ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग..........रमन का फोन बजता है फोन की घंटी सुनकर रमन का ध्यान टूट जाता है और वो यादों से बाहर आता है तो देखता है कि किशन का फोन आ रहा है.................
“हैल्लो”- रमन
“हैल्लो का हो रमन बाबू का होत बा? अगर हम तुमको एक गुड न्यूज सुनाये तो दिहाती के रसगुल्ला खिलाओगे?”- किशन
“काय बे तुमारा मोहनी से लगन लग गया क्या? या तुम बाप बने वाले हो”- रमन
“लगन लगता तो हम खिलाते या तुमसे माँगते बकलोल हो क्या एक दम?”- किशन
“तो फिर का हुआ?”- रमन
“बताते है लेकिन पहले रसगुल्ला का वादा करो”- किशन
“हाँ ठीक बा लेकिन गुड न्यूज होई तभी न तो ठेंगा ला लिहा”- रमन
“ आज शाम को रेवती वापस आ रही है चौरी चौरा एक्स प्रेस से....................”- (चहकते हुये) किशन
“का बात कर रहे हो भाय चलो आओ खिलाते है तुम्हे दिहाती रसगुल्ला आ जाओ”- रमन
रमन शुक्ला के साथ किशन से मिलने को तैयार होता है, उसके मन में हजारो उमंगे घर कर रही होती है ।...............................
क्या होगा जब रेवती ठीक होकर रमन के सामने आयेगी ? क्या यही से होगी प्यार की शुरूआत.................. पढिये......शेष अगले अंक में....................