Ankaha Ahsaas - 10 in Hindi Love Stories by Bhupendra Kuldeep books and stories PDF | अनकहा अहसास - अध्याय - 10

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अनकहा अहसास - अध्याय - 10

अध्याय - 10

घर पहुँचकर वो बेड में जाकर आँख बंद करके लेट गई। और सोचने लगी
क्या अनुज मुझे आज भी प्यार करता है। मैं तो हैरान रह गई ये देखकर कि वो मेरी फिक्र कर रहा था पर उसकी पत्नि तो वही थी। फिर उसे मेरी चिंता क्यों हो रही थी। ये तो आश्चर्यजनक बात है, क्या उसके संबंध अपनी पत्नि के साथ ठीक नहीं हैं। इसी उधेड़बुन में शाम हो गई और उसे पता ही नहीं चला।
अचानक उसने कालबेल की आवाज सुनी। उसने सोचा इतनी शाम को अभी कौन हो सकता है। वह उठकर धीरे-धीरे हॉल में आई और जैसे ही उसने दरवाजा खोला वो एकदम चैंक गई।
ओह!! आप ?
क्या मैं अंदर आ सकती हूँ।
आईये। बैठिये। रमा ने कहा।
अभी तबियत कैसी है ?
ठीक है वो तो मामूली सी चोट थी। अभी ठीक हैं।
आप!! आप तो अनुज की पत्नि है ना ?
यह सुनकर वो हंसने लगी।
हम एक बार मिले हैं रमा। तुमने मुझे शायद आब्सर्व नहीं किया था परंतु मैंने तुम्हे देखा था।
देखिए मुझे याद नहीं आ रहा है कि हम कहाँ मिले हैं। आप प्लीज बताने की कृपा करिए। रमा बोली।
मैं अनुज की छोटी बहन मधु ।
क्या ? रमा एकदम शाक्ड थी।
हाँ रमा मैं अनुज की छोटी बहन हूँ, और आज तुमसे कुछ मांगने आई हूँ।
क्य अब भी कुछ मैं तुमको दे सकती हूँ मधु।
हाँ तुम्हारे जाने के बाद से भाई का जीवन बुरी तरह से प्रभावित हो गया था परंतु एक वर्ष पूर्व से वो कुछ-कुछ ठीक हो रहे थे। अब जब से तुमसे मिले हैं फिर से उनकी मानसिक स्थिति एकदम डावांडोल हो गई है इसलिए प्लीज भगवान के लिए उनके जीवन से दूर चली जाओ। मैं उनको वापस खुश देखना चाहती हूँ।
रमा स्तब्ध थी। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या पूछे क्या कहे या ना कहे। फिर अचानक उसने कहा।
मैंने कोशिश की थी मधु इस्तीफा देने की। पर वो तो उसे फाड़कर फेक दिया।
तुम उसे बिना बताए चली जाओ। ट्रेन से बस से कही भी जहाँ वो तुम्हे ढ़ॅूढ़ ना सके।
तुम शायद ठीक कह रही हो मधु। मुझे किसी को दुखी करने का अधिकार नहीं है वो भी व्यक्तिगत तौर पर। मेरे चाचाजी यहाँ से 200 किलोमीटर दूर एक शहर में रहतें हैं वहाँ चली जाती हूँ। अनुज मुझे वहाँ ढूँढ़ नहीं पाएगा।
अभी रात की ही ट्रेन से चली जाती हूँ। जैसा तुम ऊचित समझो रमा और मुझे माफ कर देना परंतु मैं तुम दोनों की खुशी के लिए ऐसा कर रही हूँ।
मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है मधु।
ठीक है फिर मैं चलती हूँ। कहकर वो निकल गई।
उसके जाने के बाद रमा ने कुछ कपड़े अपने बैग में डाले और उस साड़ी को भी रख ली फिर घर से निकल गई।
इधर अनुज थोड़ा परेशान हो रहा था कि रमा यहाँ अकेले रहती है और उसके चोट में दर्द भी हो रहाहोगा तो क्यों ना एक बार फोन कर लूँ। वो फोन उठाता फिर छोड़ देता फिर उठाता फिर छोड़ देता। फिर हिम्मत करके उसने रमा को फोन लगाया ।
रमा ऑटो में बैठकर रेलवे स्टेशन जा रही थी।
अचानक फोन पर अनुज का नम्बर देखकर वो हैरान थी। उसने सोचा उठाऊँया ना उठाऊँ। अंततः उसने उठाया ही नहीं। अनुज ने देखा कि रिंग पूरा गया पर रमा ने फोन नहीं उठाया। फिर उसने दुबारा फोन किया तो देखा कि नम्बर स्वीच ऑफ आ रहा था।
उसे थोड़ा गुस्सा आया और शंका भी हुई कि ये मेरा फोन किसलिए नहीं उठा रही है। फोन इसलिए नहीं उठा रही होगी क्योंकि मेरा फोन है परंतु बॉस होने के नाते तो उसे मेरा फोन उठाना ही चाहिए था। कुछ दिक्कत तो नहीं है उसको, उसने अपनी कार निकाली और निकल पड़ा उसके घर की ओर। जब वह स्वर्ण भूमि सोसाईटी पहुंचा तो माहौल एकदम सुनसान था रात के दस बज रहे थे बहुत घरों की रौशनियाँ भी बंद हो चुकी थी। बाकी भी धीरे-धीरे बंद हो रही थी।
वो लिफ्ट से सीधे तीसरे मंज़िल पहुंचा। वो उसके फ्लैट के दरवाजे पर हाथ से मारा, घंटी बजाई, रमा, रमा करके चिल्लाया। परंतु अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। हैण्डल को उसने हिलाकर देखा, सेंट्रल लॉक लगा हुआ था। उसे अब चिंता होने लगी। वो सीढ़ियों से दौड़ते हुए नीचे आया। नीचे से देखा कि उसके फ्लैट की दोनों खिड़कियों का लाईट ऑफ था। उसे समझ में आ गया कि वो शायद घर में नहीं है। नहीं है तो फिर कहाँ गई। वो और चिंतित हो गया। वो गार्ड रूम में गया और उसको जगाया।
भैया आपने वो फ्लैट नं. 203 वाली मैडम को कहीं जाते देखा है क्या ? अनुज ने पूछा।
नहीं सर। मैं तो अभी दस बजे वाली शिफ्ट में आया हूँ तो किसी और ने देखा होगा ?
पता नहीं सर।
तुमसे पहले वाला गार्ड कब तक था। अनुज ने पूछा
बस पांच मिनट पहले ही गया है साहब।
अच्छा तो उसको पूछो ना ? उसका नम्बर है तुम्हारे पास।
हाँ है ना साहब।
तो फोन लगाकर पूछो उसको।
जी साहब।
उसने फोन लगाकर अनुज को ही दे दिया।
हैलो भैया। मैं स्वर्ण भूमि से अनुज बोल रहा हूँ।
क्या आपने तीसरी मंज़िल वाली 203 नं फ्लैट की रमा मैडम को कहीं जाते देखा है ?
हाँ साहब किसी मैडम को तो देखा था। 9 बजे करीब जाते हुए पर सही ढ़ंग से कह नहीं सकता।
लड़की जैसी थी क्या ? कोई अधेड़ महिला तो नहीं थी ?
नहीं साहब लड़की जैसी ही थी और उनके हाथ में एक काला बैग था।
ओह!! अनुज को पक्का यकीन हो गया था कि वो यहाँ से कहीं जाने के लिए निकली है। वो एकदम टेंशन में आ गया और तुरंत अपनी कार की ओर भागा।
थोड़ी ही देर में उसने शहर के सारे सड़को को नाप डाला पर कहीं भी रमा का पता नहीं चल रहा था। वो बहुत परेशान हो गया था। अचानक उसने सोचा कि शायद अपने किसी दोस्त को इस विषय में बताया हो इसलिए पहले उसने माला को फोन लगाया।
हेलो माला
ओ हेलो गुड इवनिंग सर।
माला तुम्हारी रमा से कोई बात हुई क्या ?
नहीं सर। कोई विशेष बात सर। आपने इतनी रात गए फोन किया है।
नहीं कोई विशेष बात नहीं माला। बस ऑफिस संबंधी कुछ याद आया तो सोचा उसको बता दूँ पर उसका फोन स्वीच ऑफ आ रहा है।
ओके।नहीं सर मेरी तो कोई बात नहीं हुई है।
और किसको फोन कर सकता हूँ अनुज ये सोच ही रहा था कि उसे याद आया उसकी दोस्ती शेखर से भी हो गई है।



क्रमशः

मेरी अन्य तीन किताबे उड़ान, नमकीन चाय और मीता भी मातृभारती पर उपलब्ध है। कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दे - भूपेंद्र कुलदीप।