भाग 16
जवाहर जी और रत्ना अपने बेटों बाल और गोविन्द से बात कर निश्चिंत हो गए की उन्हें कोई ऐतराज़ नहीं है ।
ये फैसला किया दोनों ने कि अगले सन्डे अरविंद और सावित्री को अपने घर बुलाया जाएगा ,फिर उनसे रिश्ते की बात की जाएगी।
इतनी देर सब्र रखना मुश्किल था पर ऐसी बाते बिना आमने सामने बैठे नहीं हो सकती । फोन पर तो बिल्कुल भी नहीं हो सकती थी।
अगले दिन सुबह काम निपटा कर रत्ना ने सावित्री को फोन मिलाया।
रत्ना ने सावित्री को धन्यवाद दिया कि इतना अच्छा समय उनके यहां बिता साथ में लजीज भोजन भी कराया।
सावित्री बोली,
"बहन हम तो एक परिवार जैसे ही रहते थे तुम्हारे यहां से जाने के पहले। क्या तुम भूल गई?"
"नहीं - नहीं बहन भूली नहीं हूं तभी तो आप सब को अगले सन्डे बुलाने के लिए फोन किया है। अब मै आप जैसा स्वादिष्ट खाना तो नहीं बनाती हूं ? पर आप सब को आना होगा । मै इंतजार करूंगी।"
पुनः कुछ इधर - उधर की बातों के पश्चात रत्ना ने फोन रख दिया।
जल्दी ही पूरा हफ्ता बीत गया और आज सन्डे था। सुबह से ही रत्ना परेशान हो रही थी अकेले क्या - क्या करे...? घर व्यवस्थित करें कि रसोई देखे कुछ समझ नहीं आ रहा था। अभी भोजन बनाने की तैयारी ही कर रही थी कि डोर बेल भी बज गई घबराते हुए सोची, लगता है वो लोग आ गए और मै अभी कुछ बना भी नहीं बना पाई । जवाहर जी दरवाजा खोलने जाते हुए बोले,
"परेशान क्यों हो रही हो? क्या कोई बाहरी आ रहा है? वो लोग अपने ही तो है ।"
अंदाज़ा सही था अरविंद जी परिवार के साथ बाहर खड़े थे।
जवाहर ने गले लगाते हुए स्वागत किया मित्र का और अंदर ले आए।
अब तक रत्ना भी ड्रॉइंग रूम में आ गई थी। हनी, मनी और परी ने रत्ना और जवाहर के पांव छुए । रत्ना सभी को बिठा कर पानी लेने चली गई ।
जल्दी ही चाय का पानी गैस पर चढ़ा कर मिठाई पानी का ट्रे लेकर रत्ना आ गई ।
पानी रख कर थोड़ी देर बाद फिर उठ रत्ना रसोई मै जाने लगी तो सावित्री बोली,
"रत्ना बहन …! अब कहां जा रही हो बैठो?"
रत्ना ने कहा,
"चाय चढ़ा रक्खी है वहीं देखने जा रही हूं, बस अभी आती हूं।"
कह कर रत्ना उठ कर जाने लगी।
तभी पास ही बैठी हनी ने कहा,
"आंटी आप बैठो, मै चाय लेकर आती हूं। "
हनी ये कहते हुए उठ गई। रत्ना ने मुस्कुरा कर हनी को देखा और रसोई की ओर इशारा किया।
हनी चाय लेकर आई, और सभी को दिया।
इसके पश्चात रत्ना को हनी और मनी ने रसोई में नहीं जाने दिया। ये पूछ कर की आंटी क्या बनेगा ? उन दोनों ने पूरा खाना जल्दी ही बना डाला ।
बाल ड्यूटी में ट्रेन लेकर बाहर गया था। गोविन्द के बैंक में ऑडिट होना था इसकी तैयारी के लिए उसका बैंक सन्डे को भी खुला था। इस कारण वो दोनों ही घर पर नहीं थे।
परी ने टेबल लगाने में सहयोग किया और झटपट खाना पीना निपट गया। जो काम रत्ना को मुश्किल लग रहा था कि कैसे होगा वो सब कुछ इतनी आसानी से बच्चियों ने निपटा दिया कि रत्ना और जवाहर हत - प्रभ थे।
अब समस्या ये थी कि रिश्ते की बात कैसे की जाए....?
जवाहर जी ओर रत्ना को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था।
जब कोई उपाय नहीं सूझा तो जवाहर जी ने ये सारा दरामोदार रत्ना पे डाल दिया ।
वो बोले,
"रत्ना..! आज तुम भाभी को अकेले में ले जाकर ये बात उनके कान में डाल दो फिर मैं बाद में बात कर लूंगा।"
पर साथ में हनी ,मनी और परी थी तो रत्ना कि हिम्मत नहीं हुई कि बच्चियों के सामने बात कर सके।
इस तरह पूरा समय बीत गया और अरविंद जी सब को लेकर जाने लगे। जब जवाहर जी ने देखा बात नहीं हो पाई तो बोले, "यार अरविंद कल शाम कम्पनी गार्डन में मुरारी बापू का प्रवचन है, मै जाऊंगा तुम भी भाभी को लेकर आ जाना। असीम शांति महसूस होती है उनकी मीठी वाणी को सुन कर।"
अरविंद जी ने भी वादा किया की कल शाम छह बजे भी
मुलाकात होगी । इसके बाद अरविंद जी विदा लेकर पत्नी बच्चो सहित अपने घर के लिए चल पड़े।
दूसरे दिन तय समय पर अरविंद जी ओर जवाहर जी पत्नी सहित वहां पहुंच गए । वहां कार्यक्रम शुरू हो चुका था।
सभी ने बापू जी की अमृत वाणी का रस पान किया । रोम -रोम आनंदित हो गया।
इसके बाद पंडाल के बाहर आकर एक अस्थाई बने कॉफी हाउस में चारो लोग बैठ गए । सभी के बैठते ही काफी ऑर्डर कर दिया गया जब तक कॉफी आए तब तक सभी बात करने लगे।
बिना किसी भूमिका के रत्ना ने कहा,
"भाई साहब..! मै इधर उधर की बात ना कर के सीधी बात में विश्वास करती हूं। मै आपसे कुछ मांगना चाहती हूं पर पहले आप वादा करिए कि आप इनकार नहीं करेंगे ।"
अरविंद जी ने कहा,
"कैसी बात करती है आप ? मै आपको मना करूंगा.....! आपने ऐसा सोच कैसे लिया...? मेरा जो कुछ भी है उसपे आपका और जवाहर का पूरा अधिकार है। आपको मांगने की जरूरत नहीं आप आदेश करिए।"
अरविंदजी साधिकार बोले ।
रत्ना व्यग्रता से बोली,
"भाई साहब..! मेरे बेटी नहीं है मै ये कमी बहुत शिद्दत से महसूस करती हूं, मेरी ये इच्छा थी, की मै अपनी बहू को बेटी मान कर अपना प्यार लुटाऊंगी । अब मैं और इंतजार नहीं कर पाती अब तो बाल और गोविन्द बड़े भी हो गए और अच्छी नौकरी भी कर रहे है। हनी और मनी बिटिया मुझे बहुत पसंद है। जैसी बहू मै सोचती ही हनी और मनी बिकुल मेरी कल्पना के अनुरूप है। ऐसी ही सर्व गुण सम्पन्न बहुओं की मुझे कामना है। हनी और मनी बिटिया को मुझे अपनी बहू बनाने का सौभाग्य प्रदान करिए।"
झटके से इतना सब कुछ बोल कर रत्ना चुप हो गई और अरविंद जी और सावित्री की प्रतिक्रिया देखने लगी।
अचानक से इस खुशनुमा प्रस्ताव को सुन कर अरविंद जी और सावित्री हतप्रभ थे।
इतनी जगह रिश्ते की बात चलाने के बाद मिली निराशा से वो दोनो टूट गए थे। उन्हे उम्मीद नहीं थी कि बिना मोटा दहेज़ दिए बेटियों कि शादी हो पाएगी। इतना सारा दहेज़ देने के लिए रकम उनके पास थी नहीं।
अब बिना कहे इतना जाना पहचाना रिश्ता मिलने से वो कुछ समझ ही नहीं पा रहे थे। मन में एक शंका थी इसलिए अरविंद जी बोले," पर यार जवाहर मै तेरी इच्छा अनुरूप दहेज़ नहीं दे पाऊंगा । "
जवाहर जी ये सुनते ही बोले,
"कैसी बात करते हो मित्र... ? क्या मै अपनी बेटियो को अपने घर की लाने के लिए दहेज़ लूंगा...? वो मेरे घर की रौनक बनेगी ये मेरा सौभाग्य होगा। बस तुम हां कर दो।"
सावित्री और अरविंद निः शब्द हो गए। उन्हे यकीन नहीं हो रहा था कि इतनी बड़ी खुशी उन्हे अचानक मिल जाएगी। सावित्री ने रत्ना के हाथों को थाम लिया और बोलीं , "रत्ना बहन मै तुम्हारा शुक्रिया कैसे अदा करूं?"
रत्ना भी मुस्कुराते हुए बोली,
"हां बहन ..! कर सकती हो तुम शुक्रिया अदा ,बस जल्दी से मेरी हनी और मनी को मेरे घर की रौनक बना दो।"
चारों ने अब कॉफी से पहले लड्डू ऑर्डर किया;पर लड्डू कॉफी हाउस में नहीं था इसलिए सभी ने पेस्ट्री खा कर मुंह मीठा किया। बेहद खुश दोनों दंपत्तियों ने सीधा मन्दिर जा कर भगवान का शुक्रिया अदा किया।
फिर लड्डू लेकर अपने - अपने घर चले गए। बस अब पंडित जी को बुला कर शुभ मुहूर्त निकलवाना था।
घर पहुंच कर सावित्री ने बेटियो को गले लगा लिया उनकी आंखों से खुशी के आसुं बह रहे थे। इतनी अच्छी किस्मत इनकी होगी की इनको इतना अच्छा घर वर मिलेगा उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था।
अब जो भी डेट निकलेगी उसके बाद हनी और मनी के गिने हुए दिन इस घर में बीतेंगे ये सोच कर आंसुओं कि धारा सावित्री के गाल को भिगो रही थी ।
इधर मां को इस हाल में देख कर हनी, मनी और परी परेशान थी कि मां क्यों रो रही है।
तभी अरविंद जी परी का सर सहलाते हुए बोले,
"परी बेटा ..! तेरी दोनों दीदी की शादी तय हो गई है। "
परी खुशी से उछल कर पापा के गले लग गई और बोली,"पापा कौन है वो लोग और लड़का कैसा है?फोटो तो दिखाओ।"
अरविंद जी हंसते हुए बोले,"अरे...! फोटो क्या करेगी .! तू तो उनसे मिल भी चुकी है। तेरी दीदी यही पास ही रहेगी कही दूर नहीं जाएगी। तेरे बाल और गोविन्द भैया अब तेरे जीजा बनेंगे। हां..! जवाहर अंकल के घर ही हनी और मनी की शादी हो रही है।"
इसके बाद गांव में मां को अरविंद जी ने फोन कर बताया।उन्हे बोला "मां अब आप यहां आ जाओ यहां आपकी जरूरत पड़ेगी। उसके बाद अरविंद जी ने अनमोल को फोन कर बताया । वो तो जवाहर जी को जनता नहीं था।उसके पैदा होने के पहले ही जवाहर जी का तबादला था जो हो गया था।
अगले भाग में पढ़िए आगे की दिलचस्प कहानी।