Pahli Machis ki tili - 11 in Hindi Thriller by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | पहली माचिस की तीली - 11

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पहली माचिस की तीली - 11

पहली माचिस की तीली

अध्याय 11

पुलिस विभाग के मंत्री अपने सामने खड़े डी.जी.पी. उनसे बड़े अधिकारी लोगों को अपने चारों तरफ बैठे लोगों पर अंग्रेजी में बहुत नाराज हो रहे थे।

"पुलिस विभाग का मंत्री हूं कहते हुए मुझे शर्म आती है...? जज सरवन पेरूमाल फैसला करके जिन्हें छुड़वाया सुरेश, कमल कुमार और एल्बोस तीनों को किडनैप हुए 10 दिन हो गए.... आज तक उनके बारे में कोई बात पता नहीं चला.... आप सब लोग क्या करते रहते हो?"

डी.जी.पी. संकोच से बोले।

"सर... सर..."

"कहिए... नायर..."

"हमने सभी कोणों में मुव करके देख लिया सर.... वे कैसे किडनैप हुए... किसने किडनैप किया इसका कोई सुराग नहीं मिला..…"

"सुराग नहीं मिला तो इस केस को ऐसे ही छोड़ दोगे क्या ?"

"नहीं ...सर.."

"फिर क्या करने वाले हो ?"

पुलिस अधिकारियों में मौन व्याप्त होने से - मंत्री कुर्सी पर से उठकर अपने धोती को ऊंची बांधकर चलने लगे, फिर खड़े होकर डीजीपी को देखा।

"नायर ! एक योजना बताता हूं। सुनोगे...?"

"कहिए सर..."

"कोर्ट में जो फैसला गलत है इस कारण से सुरेश, कमल कुमार, और एल्बोस तीनों को कोई आतंकवादी संघ के लोगों ने ही उठाया है ना ?"

"हां... सर..."

"ऐसा है तो कुछ कोर्ट के फैसले को सुनने के लिए आतंकवादी आए होंगें।"

"मे बी सर..."

"जिस दिन फैसला हुआ उस दिन कई लोगों ने उसका वीडियो लिया होगा।"

"लिया है सर...."

"उन वीडियो ग्राफरों से मिलकर उनसे वीडियो कैसेट को लेकर डेक में डालकर देखो कोई तो मिलेगा...?"

"यह अच्छी योजना है सर..... यह मेरे दिमाग में नहीं आया..."

"नायर....! खाकी यूनिफॉर्म को पहनकर शर्ट में मेडल लगाकर घूमने से नहीं हो जाएगा। दिमाग का भी उपयोग करके देखना चाहिए....."

"सॉरी... सर..."

"किसलिए सॉरी...? जाकर काम को देखो। किडनैप हुए तीनों लोग साधारण आदमी नहीं है। वे अपने पक्ष के लोग हैं जो बड़े-बड़े उद्योगपतियों के वारिस हैं। उन पर कोई भी विपत्ति हो तो सरकार ही हिल जाएगी‌..."

"अब आप फिकर मत करो सर.... हम देख लेंगे।"

"पहले वीडियो ग्राफरों से जाकर मिलो। सबकास्ट को लेकर डेक में डालकर थारो स्टडी करिए।"

"यस... सर..."

डी.जी.पी. नायर विश करके वहां से रवाना हुए।

दूसरे अधिकारियों के जाने के बाद अपने जेब में जो सेल फोन था उसे निकाल कर ऑन किया।

"कौन पंढरीनाथ..."

"हां सर।"

"सुरेश, कमल कुमार और एल्बोस के किडनैप होने की बात को हम पुलिस पर छोड़ कर चुपचाप नहीं बैठ सकते। अपने आदमियों को लेकर कुछ करना पड़ेगा।"

"तैयारी कर दूं क्या सर..."

"करो.... अपने विरोध में कौन-कौन हैं एक लिस्ट बनाओ, वॉच करो जिसके ऊपर भी संदेह हो उसको हिला कर देख लो।"

"ठीक है.... सर..."

तुम्हारे कार्यवाही के बारे में पुलिस को पता नहीं चलना चाहिए।"

"नहीं मालूम होगा सर...."

"दो दिन में मुझे अच्छा रिजल्ट चाहिए।"

"दे दूंगा सर... आपके कहने पर मैंने किस काम को नहीं किया। अगले 24 घंटे में आपको आकर मिलुंगा सर...

"आइए ...नमस्कार।"

कार से उतरे लड़के वालों को पोर्टिको में ही जाकर स्वयं सरवन पेरुमाल ने उनका स्वागत किया।

लड़के के मां-बाप, हाथ जोड़ते हुए आगे आए - पीछे दामाद डार्क नीले रंग के सूट में बहुत ही स्मार्ट और थोड़ा शर्मा रहा था। उनके साथ सरवन पेरुमाल के दोस्त आनंद कृष्णन तांबूल खाये मुंह के साथ हंसे।

"ठीक 10:00 बजे यहां आ जाना है ऐसा सोच के कार से रवाना हुए, माउंट रोड में ट्रैफिक जाम में फंस कर 121 सड़क पर हुए मुंनेरी रोड क्रॉस करते हुए आधा घंटा लेट हो गए....."

"उससे क्या....? आज 12:00 बजे तक शुभ समय है, लड़की और लड़का एक दूसरे को देख कर जो बात करना है कर ले तो फिर पक्का कर लेंगे...."

वे लोग अंदर गए।

किशोर दिखाई दिया।

"यह मेरा सन है, इसका नाम किशोर है।"

"सन क्या करते हैं?"

"एक कंप्यूटर काउंसलिंग सेंटर चला रहे हैं..."

हॉल के सोफे पर सब लोग बैठ गए। सरवन पेरूमाल "एक मिनट !" कहकर घर के अंदर अजंता के कमरे की तरफ गए।

अजंता पलंग पर बैठी हुई थी - अमृतम हाथ में सुपारी के पैकेट को रखते हुए उस से रिक्वेस्ट कर रही थी।

"क्या समस्या है...? सरवन पेरुमाल ने पूछा। अमृतम सिर झुकाते हुए बोली।

"गहना कुछ भी नहीं पहनूंगी कह रही है।"

"क्यों...?"

"आपकी बेटी से आप ही पूछो..."

"क्या बात है बेटी... क्यों गहना नहीं पहनोगी?"

"मुझे नहीं चाहिए...?"

"कारण...?"

"गहना पहनने की इच्छा नहीं है...."

"क्या कारण है..."

"तुम्हें देखने जो लोग आए हैं उस समय क्यों इस तरह से व्यवहार कर रही हो...?"

"वह मुझे देखने आए हैं? या गहनों को देखने आए हैं...?"

"मुझ पर जो गुस्सा है उसे क्यों बेटी लड़के वालों के ऊपर दिखा रही हो...?"

"मैं किसी से नाराज नहीं हूं। मैं बिना गहने पहने सिंपल ही लड़के वालों के सामने जाऊंगी..."

"ठीक... तुम्हें जैसा पसंद है वैसे आओ। परंतु चेहरे पर एक खुशी होना चाहिए..."

वे बाहर आ गए।

लड़के के घरवाले लोग किशोर से नए कंप्यूटर के बारे में बात कर रहे थे। सरवन पेरूमाल को देखते ही उत्साह से बेटे की मां ने पूछा।

"क्या हमारी होने वाली बहू तैयार हो रही है?"

"आ ही रही है..."

"हैवी मेकअप की जरूरत नहीं है। कैजुअल जैसे घर में हैं ऐसे ही रहे तो बस है। "

"अजंता भी उसी टाइप की है... गहने नहीं पहनूंगी ऐसा अम्मा से झगड़ा कर रही है।"

दूसरे कमरे से टेलीफोन बजने की आवाज सुनाई दी।

सरवन पेरूमाल उठने लगे....

किशोर जल्दी से उठ गया।

"अप्पा... आप रहने दो..! मैं ही जाकर फोन अटेंड करता हूं।"

जल्दी से जाकर पास के कमरे में टेलीफोन के रिसीवर को उठाकर कान में लगाया।

"हेलो..."

"कौन.... जज सरवन पेरूमाल है?"

"नहीं... उनका सन..."

"ठीक है... तुम्हारे बाप को बात करने को बोलो।"

"आप... कौन...? थोड़ा भी आदर के बिना बात कर रहे हो...?"

"तेरे बाप को सम्मान देना चाहिए...? लाख-लाख रुपए घूस के लेकर पैसे वाले राजनीतिकों का साधन बन कर फैसला देने वाले तुम्हारे बाप को सम्मान की जरूरत है...?"

"अबे...?"

"तुझे गुस्सा आ रहा है...? आने दो.... तेरे बाप को जो बात कहनी थी उसे तुम से ही कह देता हूं। तुम्हारी बहन अजंता को देखने आए हुए लोगों को हमें लड़का पसंद नहीं है कहकर वापस भेज दो।"

"ऐसा क्यों कहना है?"

"यह शादी नहीं होनी चाहिए?"

"क्यों...?"

"कॉलेज की छात्रा दमयंती की हत्या हुई उस केस में जो फैसला दिया वह ठीक नहीं। हाथ में ब्रीफकेस लेकर जजमेंट का फैसला बदल दिया। दमयंती की अस्मिता को और उनके प्राणों को जिन्होंने ले लिया उन्हें छोड़ दिया उनकी लड़की की शादी को हम लोग कैसे होने दे सकते है।"

"तुम्हारी पसंद को यहां कौन पूछ रहा है...?"

"यह देखो...! हम अन्याय के लिए लड़ाई करने वाले एक संस्था के लोग हैं। हमारी इच्छा के विरुद्ध जो चलता है तो वह जिंदा नहीं बचेंगा । बचना भी नहीं चाहिए....

किशोर स्तंभित खड़ा था..….

सरवन पेरुमाल अंदर आए।

"फोन किसका है...?"

रिसीवर को सहमे हुए चेहरे के साथ किशोर ने उन्हें पकड़ाया। सरवन पेरुमाल ने कान पर लगाया तो दूसरी तरफ से 'खोर-खोर' की आवाज सुनाई दी।

"रिसीवर को रख दिया लगता है। फोन पर कौन था किशोर...?"

किशोर ने सिर हिलाया." अभी कुछ भी बात नहीं करेंगे... बाद में बात करेंगे..."

"क्यों रे...? किसी ने फोन पर धमकी दी...?"

"हां... हां..."

"मेरी हत्या कर देंगे बोला होगा...?"

"नहीं अप्पा..."

"फिर...?"

"अजंता की शादी नहीं होनी चाहिए।"

"हुई तो...?"

"कोई भी जिंदा नहीं रहेगा।"

सरवन पेरुमाल धीरे से हंसे। "यह धमकी कल रात ही मेरे पास आ गई।"

"फिर..! इस वातावरण में शादी करना ठीक है..."

किशोर... इस तरह के धमकियों पर हमने ध्यान दिया होता तो किसी भी स्थिति में हम धैर्य से नहीं रह सकते. अजंता की शादी को हम तुरंत नहीं कर रहे हैं। वैसे भी शादी होने में तीन महीने चाहिए। उसके अंदर उस समाज विरोधियों को पुलिस पकड़ लेगी |

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