6 - imaandari aur naitikta in Hindi Motivational Stories by Rajesh Maheshwari books and stories PDF | अर्थ पथ - 6 - ईमानदारी और नैतिकता

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अर्थ पथ - 6 - ईमानदारी और नैतिकता

ईमानदारी और नैतिकता

उद्योग एक कर्मभूमि है जिसमें आघात, प्रतिघात करने एवं सहने का ज्ञान होना चाहिए। यह किताबों में पढने से प्राप्त नही होता हैं। यह जीवन में घटित होने वाली घटनाओं एवं अनुभवों से प्राप्त होता है। धनोपार्जन जीवन का महत्वपूर्ण पक्ष है। इसकी प्राप्ति, उपयोग तथा व्यय इन तीनों में समन्वय आवश्यक है। धन एक ऐसी मृगतृष्णा है जिसका अंत कभी नही हेाता है। इसकी वृद्धि के साथ साथ हमारी भौतिक आवश्यकताएँ भी बढती जाती है। जीवन में सफलता के चार सिद्धांत होते है हमारा जीवन मंथन इसी में समाहित है एवं यही सफलता की सीढी है। किसी को दुख या पीडा नही पहुँचाओ, धन का उपार्जन नीतिपूर्ण एवं सच्चाई पर आधारित रखो, जीवन में जो भी कर्म करो उसे ईश्वर को साक्षी मानकर संपन्न करो तथा अपनी मौलिकता कभी खोने मत दो। इन्ही सिद्धांतों में जीवन की सच्चाई छुपी है।

हम कारखाने या व्यापार को निजी रूप से भागीदारों को साथ में लेकर या फिर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाकर उसमें पूंजी के निवेश के अनुसार शेयर होल्डिंग देकर कर सकते हैं। इसमें प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के अंतर्गत व्यापार करना ज्यादा लाभप्रद है क्योंकि केंद्रीय सरकार ने आयकर कंपनीयों पर बहुत कम कर दिया हैं। अब नई कंपनी को अपने लाभांश पर केवल 15 प्रतिशत ही कर देना पडता हैं। प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में ऋण चुकाने की जवाबदारी सीमित रहती है जिससे आपके दिन का चैन और रात की नींद हराम नही होती है। यदि आप किसी फर्म में भागीदारी लेकर हिस्सेदार बनते है तो ध्यान रखिए कि एक प्रतिशत का भागीदार भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है जितना कि 99 प्रतिशत का भागीदार है। आजकल समय बहुत खराब है और कहा नही जा सकता कि 1 प्रतिशत का भागीदार फर्म में कितनी परेशानी खडी कर दे इसलिए कहा जाता है कि व्यवसाय में भागीदारी बराबर की रहनी चाहिए। रजिस्टर्ड फर्म में कंपनी की अपेक्षा आयकर भी अधिक देना पडता हैं।

हमें ईमानदारी और नैतिकता से उद्योग या व्यापार का संचालन करना चाहिए। एक बार एक कंपनी से एक व्यापारी को प्रथम श्रेणी के माल की जगह गलती से द्वितीय श्रेणी का माल भेज दिया गया। उसने कंपनी को पूरा भुगतान प्रथम श्रेणी के माल का कर दिया। कंपनी के प्रथम एवं द्वितीय श्रेणी के माल की गुणवत्ता में कुछ अधिक अंतर नही था। इसलिए उस व्यापारी की ओर से कोई षिकायत भी नही की गईं इस प्रकार कीमत में अंतर का अतिरिक्त लाभ कंपनी को हो गया था। मालिक ने यह निर्णय लिया कि उक्त व्यापारी को दोनों श्रेणियों के मूल्य का अंतर वापस भेजा जाए और कंपनी इस गलती के लिए क्षमा याचना भी करें। उससे संबंधित अधिकारियों की सोच थी कि जब क्रेता संतुष्ट है और कोई शिकायत नही कर रहा है तब हमें ऐसी प्रतिक्रिया व्यक्त नही करनी चाहिए। इस विषय पर लंबी चर्चा होने के बाद भी कोई निर्णय नही निकल पा रहा था तब कंपनी के मालिक ने अधिकारियों के समक्ष एक उदाहरण रखते हुए बताया कि एक रविवार को मैं और मेरा एक मित्र भोजन करने एक रेस्तरां में गए। जैसे ही हम कार से उतरे, एक व्यक्ति जिसके पैरों में कुछ तकलीफ थी, लंगड़ाता हुआ सा हमारे पास आया और बोला- बाबूजी सुबह से भूखा हूँ मुझे खाना खिला दीजिए, भगवान आपका भला करेगा। मैंने उसे पर्स से एक नोट निकालकर देते हुए कहा- ये पचास रुपये लो और किसी होटल में जाकर खाना खा लो। उसे नोट देकर मैं अपने मित्र के साथ रेस्तरां में चला गया।

वहां से डिनर लेकर जब हम लोग बाहर आये तो मैंने देखा कि वह व्यक्ति हमारी कार के पास खड़ा था। मैंने उससे पूछा- क्या बात है अब क्या चाहिए?

वह बोला- बाबूजी आपने मुझे पचास रुपये दिये थे लेकिन जब मैंने होटल में जाकर देखा तो यह पाँच सौ का नोट था। आपने पचास के धोखे में मुझे पाँच सौ का नोट दे दिया। आप इसे रख लें और मुझे पचास रुपये दे दें।

मैं अचंभित रह गया। मैंने उससे कहा कि अब ये रुपये तुम्हीं रख लो।

वह बोला- साहब आपकी अंतर आत्मा ने खुशी-खुशी मुझे पचास रुपये देने को कहा था। आप मुझे पचास रुपये ही दें। मैं भोजन करके संतुष्ट हो जाउंगा।

मैंने उससे वह नोट लेकर उसे पचास रुपये का नोट दिया जिसे लेकर वह धीरे-धीरे वहां से चला गया। उसके कृषकाय शरीर पर ईमानदारी की चमक देखकर मैं अभीभूत होकर उसे आँखों से ओझल होने तक देखता रहा।

यह वृतांत बताकर मालिक ने अपने अधिकारियों से जानना चाहा कि अब आपके क्या विचार है ? सभी ने एकमत होकर कहा कि आपका कहना सही है हमें उनका अतिरिक्त धन क्षमायाचना के साथ कंपनी को वापस कर देना चाहिए जब उस ग्राहक को पत्र के साथ बैंक ड्राफ्ट मिला तो वह इतना अभिभूत हो गया कि उसने अन्य प्रतिस्पर्धियों से माल लेना बंद कर दिया और प्राथमिकता से इसी कंपनी से माल लेने लगा जिससे कंपनी की बिक्री बढ गई।