Muskurahat ki maut..… - 4 in Hindi Adventure Stories by Rohiniba Raahi books and stories PDF | मुस्कुराहट की मौत... - 4

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मुस्कुराहट की मौत... - 4

जैसे कि हमने देखा कुँवर अचानक ही कृत्स्नंसिंह का नाम लेती है। ये सुनकर उसके बापू भूपतदेव चोक जाते है। और आश्चर्यजनक हो कर पूछते है-

" कोन है ये कृत्स्नं ? "

" बापू माफ कर दीजिए। मेने आपको बताया नही। मैं जब कॉलेज की पढ़ाई कर रही थी तब कॉलेज की लाइब्रेरी में मुजे कृत्स्नं मिला था। "

अचानक किताबों की अलमारी की दूसरी और से थोड़ा सा धक्का लगा।

" कोन है पीछे ? " - कुँवर पूछती है।

" सॉरी मिस, गलती से धक्का लग गया। मेरा नाम कृत्स्नं है । थर्ड यर में पढ़ाई चल रही है मेरी। और मैं यहा..."

" बस बस..मैंने तुम्हारी पूरी हिस्ट्री बताने को नही कहा। थोड़ा सा सँभलकर चला कीजिये। ये लाइब्रेरी है। यहा शांति रखनी चाहिए। ऐसे किसी पर ये अलमारी गिर जाती तो क्या कर लेते फिर..? " - कुँवर ने थोड़े गुस्से से बात की।

" सोरी मिस..बाय ध वे, आपका नाम क्या है मिस..? " - कृत्स्नं पूछता है।

" फिर कभी जान लेना। फ़िलहाल मुजे पढ़ाई करनी है वक्त नही है ज्यादा। bye..." - कुँवर पढ़ने लगती है।

कुछ देर बाद कुँवर लाइब्रेरी से बाहर आती है। वही कृत्स्नं बाहर खड़ा रह के कुँवर से बात करने इंतजार कर रहा था। लेकिन कुँवर उस पर ध्यान दिए बिना ही आगे चलने लगी।

" अरे अरे ! रुको तो सही। तुमने अपना नाम भी नही बताया। मैंने सोरी यो कहा फिर भी इतना गुस्सा क्यों..? - कृत्स्नं बोलने लगता है।

" कुँवर..." - कुँवर ने नाम बताया।

" अरे नाम क्या है मोहतरमा जी ?"

" लगता है तुम्हारी आँखों के साथ साथ कानों पे भी पर्दा लगा है। मैंने बताया कुँवर नाम है मेरा।

" ओह..! सोरी मुजे लगा तुम मुजे इज़्ज़त देकर कुँवर बुला रही हो। " - हँसते हुए कृत्स्नं ने बताया।

" तुम पागल हो या फिर मुजे बना रहे हो। " - थोड़ा गुस्सा शांत करके कुँवर ने थोड़ा सा मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

" हम्म...ये हुई ना बात। अच्छी लगती हो मुस्कुराते हुए। "

आज झगड़ा किया और वो झगड़ा ख़त्म भी हो गया। और रोजाना ऐसे ही किसी बहाने से उन दोनों की मुलाकात होती रही। ये मुलाकातें दोस्ती में बदली और दोस्ती कब प्यार में बदल गई ये उन्हें भी पता नही चला।

" कृत्स्नं...! अगर हमारे परिवार वाले नही माने तो हम क्या करेंगे ? "

" मान जाएँगे। और नही मानते है तो हम मनाएँगे। इतना ज्यादा सोचने की जरूरत नही है। चलो कल आख़री दिन है कॉलेज का तो हम पूरा दिन एकसाथ ख़ुशी से मनाएँगे। चलो मुस्कुरा भी दो अब। "

ऐसे ही खुश हो कर कृत्स्नं अपने घर और कुँवर अपने हॉस्टल में अगले दिन के इंतज़ार में पूरी रात जाग कर बिता देते है।

कुँवर और कृत्स्नं दोनों कॉलेज का आख़री दिन ख़ुशी से बिताने दूसरे दिन पार्टी में जाते है। पर दोनों नही जानते थे कि ये दिन उनकी जिंदगी में बहोत बड़ी मुश्किल ले कर आएगा।

कॉलेज के दूसरे स्टूडेंट्स ने पार्टी जिस क्लब में रखी थी उस क्लब में कुँवर और कृत्स्नं आते है। बहोत जोरों शोरों से सब पार्टी कर रहे थे। वक़्त बहोत बीत गया था। क़रीबन आधी रात को पार्टी ख़त्म होने के वक़्त पुलिस आती है। सब इधऱ उधऱ भाग कर क्लब से बाहर निकलने लगे। कुछ लोग अंदर ही रह गए। जिसमे कृत्स्नं भी फस गया। उसे बचाने कुँवर जेल जाती है । जहा कुँवर से बहोत सारे सवालात किए गए।

" आप कौंन है? " - पुलिस कुँवर से पूछती है

" सर, मेरा नाम कुँवर है। मैं कृत्स्नं को जानती हूँ। आपने किस गुनाह की वजह से कृत्स्नं को पकड़ा है ये जानने आई हूँ। " - कुँवर कृत्स्नं के बचाव में ये सब कहती है।

" क्या लगते है ये मिस्टर आपके..? "

" दोस्त.."

" आप जाइए हम इन्हें नही छोड़ सकते जब तक उनके परिवार वालो से बात नही होती। "

" पर उसने किया क्या है ये तो बताइए। " कुँवर पूछती है

" वो क्लब जहा पार्टी हो रही थी वहा सब लड़के लड़किया क्यों जाते है आप नही जानती क्या.? - पुलिस गुस्से से पूछती है।

" सर मुजे कुछ नही पता आप किस बारे में बात कर रहे है लेकिन इतना जानती हूँ कि कृत्स्नं उन लड़कों में से नही है जो लडक़ी की इज़्ज़त करना ना जनता हो। - कुँवर कृत्स्नं के बचाव में बोलती है।

" क्या सबूत है ? "

" सबूत की क्या जरूरत मैं बता रही हूँ वो ऐसा नही है।

" देखिए यहा जितने लोगो को बंद किया है सब यही कह रहे है तो क्या सबको छोड़ देंगे। "

" फिर कैसे छोड़ेंगे आप ? "

" बताया ना परिवार वालो से बात करने के बाद.."

ये सुनकर कुँवर कृत्स्नं के परिवार वालो को बुलाती है। पर बात इतनी आगे बढ़ गई। सब के परिवार वालो के सामने सारे लड़के लड़कियों को लाया गया। और सब से एक ही सवाल था कि उन लड़के लड़कियों का क्या रिश्ता है।

तब कुँवर ने कृत्स्नं को बचाने का एक तरीका अपनाया। उसने कृत्स्नं से शादी करने का फ़ैसला किया। और तुरंत ही पुलिस से कहा कि वो कृत्स्नं से अगले ही हप्ते शादी करने वाली है।

कुँवर की बात सुनकर पुलिस ने दो-तीन हप्ते बाद शादी का सर्टिफिकेट दिखाने के दावे पर कृत्स्नं को छोड़ दिया। और कृत्स्नं के परिवार वालोंने भी उनकी शादी करवा दी। शादी के दूसरे दिन कुँवर अपने बापू से मिलने गाँव भवानपुर आने के लिए निकलती है।

कुँवर नर विस्तार से शहर में हुई हर बात अपने बापू को बता दी। और बापू को गले लगा कर रोने लगी। पिता भूपतदेव भी कुछ देर तक कुछ बोल नही पाए। लेकिन वो सच्चाई को जुटला नही पाए। और दर्दभरे आवाज में कहा , " तो तुम क्या चाहती हो मेरी बच्ची..! की मैं तेरी जान ले लुइस विमलराय को ख़त्म करने के लिए। "

" हा बापू क्योंकि मैं नही चाहती कि किसी और को ये बलिदान देना पड़े। "

( क्या भूपतदेव अपने गाँव को उस विमलराय के केहर से बचाने अपनी बेटी कुर्बान करेंगे..?)

........ क्रमशः .......