Nilanjana - 3 in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | नीलांजना--भाग(३)

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नीलांजना--भाग(३)

सारी योजनाएं बना कर दिग्विजय ने सुखमती से जाने की अनुमति ली और चन्द्रदर्शन के पास पहुंचा, उसने चन्द्रदर्शन से कहा कि
महाराज!! राजकुमारी नीलांजना का पता चल गया है, लेकिन नीलांजना का पता आपको मैं तभी बताऊंगा,जब आप रानी सुखमती को कारागार से मुक्त कर देंगे।।
लेकिन क्यो? चन्द्रदर्शन ने दिग्विजय से पूछा।।
वो इसलिए, बहुत पीड़ादायक था मेरे लिए सुखमती को इस अवस्था में देखना,प्रेम करता था मैं उसे और विश्वासघात किया मैंने उसके साथ,मेरा हृदय रो पड़ा।
चंद्रदर्शन बोला,ये मत भूलो दिग्विजय अभी भी तुम मेरी शरण में हो, अभी भी चाहूं तो बंदी बना सकता हूं।
नहीं महाराज, मेरे कहने का ये आशय नहीं था, मैं तो आपका सदैव ऋणी रहूंगा,जो आपने मेरे प्राण नहीं हरे।।
आपसे एक बात और कहना चाहता हूं, महाराज, दिग्विजय बोला।
वो बात क्या है,राजा चन्द्रदर्शन ने पूछा।।
वो ये है कि सुखमती ने आपसे विवाह करने के लिए सहमति दे दी लेकिन वो चाहती है कि आप अपनी पहली रानी और पुत्र को त्याग दें,अगर आपके लिए ये संभव हो तो वो आपसे विवाह कर सकती हैं,अन्यथा नहीं।
इतना सुनकर,राजा चन्द्रदर्शन थोड़े विचलित हुए क्योंकि उनकी रानी सुतकीर्ति अपने पिता महाराज की इकलौती संतान थी और चन्द्रदर्शन को सुतकीर्ति के पिता महाराज ने ही कीर्ति नगर का राजा बनाया था।
अब चन्द्रदर्शन बहुत ही दुविधा में थे कि वे अपनी रानी सुतकीर्ति और पुत्र सूर्यदर्शनशील को कैसे त्याग सकते हैं, ये राज्य भी सुतकीर्ति के पिता महाराज का है।
और उधर ये बात दिग्विजय ने सुतकीर्ति से कहीं कि महाराज आपका त्याग करके रानी सुखमती को अपनी रानी बनाना चाहते हैं,अगर ऐसा हुआ तो आपके पुत्र का अधिकार छिन जाएगा और आपको तो शायद महाराज कारागार में डाल दें।
रानी सुतकीर्ति थोड़ी अचम्भित हुई और उनकी आंखों से अश्रुधारा बह चली, उन्होंने दिग्विजय से कहा कि महाराज मेरे साथ इतना बड़ा विश्वासघात कर रहे हैं और मुझे ज्ञात भी नहीं है।
दिग्विजय ने कहा, हां महारानी, मैं तो महाराज का सेवक हूं लेकिन इतना अन्याय मुझसे नहीं देखा जा रहा था, मुझे लगा ये सब आपको ज्ञात होना चाहिए इसलिए आपको बताने चला आया।
रानी सुतकीर्ति ने पूछा, लेकिन इस समस्या का समाधान क्या है?
एक ही समाधान है, महारानी, दिग्विजय बोला।।
वो क्या? रानी बोली।।
आप रातों-रात रानी सुखमती को कारागार से मुक्त करवा दे, मैं रातों-रात उन्हें कहीं दूर छोड़ आऊंगा,बस आपकी समस्या का निवारण हो जाएगा___
"ना रहेगा बांस,ना बाजेगी बांसुरी"।।
दिग्विजय का इतना कहना था कि रानी सुतकीर्ति ने कहा कि अच्छा उपाय है,आज रात ही मैं इस समस्या को समाप्त करती हूं,बस तुम तैयार रहना।
दिग्विजय बोला, रानी मैं आपके समक्ष किसी भी समय उपस्थित हूं, कृपया आप आदेश करें।
रानी सुतकीर्ति बोली,आधी रात के बाद सचेत रहना, मैं सुखमती
को कारागार से बाहर निकालती हूं।
दिग्विजय बोला, लेकिन महारानी एक समस्या और है,रात को महाराज, रानी सुखमती का नृत्य देखने वाले हैं और उन्हें पहले ही कारागार से मुक्त कर दिया जाएगा।
रानी सुतकीर्ति बोली,घबराए नहीं दिग्विजय इस समस्या का भी हल है हमारे पास,हम ऐसा करेंगे कि महाराज की सुरा में अचेत करने वाली बूटी मिलवा देते हैं जिससे महाराज सुप्तावस्था में चले जाएंगे और हमारा काम सरल हो जाएगा।
दिग्विजय बोला, हां महारानी,वाह...क्या उपाय ढूंढा है आपने!!
लेकिन आप पहले ही कारागार जाकर, रानी सुखमती से मिलकर अपनी योजना बता दें, जिससे वो पहले से ही सावधान हो जाएं।।
हां, उचित कहा दिग्विजय,वो तो एक स्त्री है, अपने स्वामी और पुत्री से दूर हो गई है,क्या बीत रही होगी उस पर, कितना कष्ट होगा उसके हृदय में,एक स्त्री के हृदय की बात दूसरी स्त्री ही समझ सकती है,समय देखकर मैं उससे मिलने जाती हूं,संन्ध्या के समय महाराज नौका विहार को जाते हैं,उसी समय उससे मिलना उचित रहेगा।
दिग्विजय बोला, ठीक है महारानी,अब मैं चलता हूं, किसी ने हमें देख लिया तो महाराज तक बात पहुंच जाएगी।
संध्या का समय, महाराज महल में नहीं थे, उचित समय था सुखमती से मिलने का, रानी सुतकीर्ति कारागार पहुंची___
रानी सुतकीर्ति, रानी सुखमती का रूप-लावण्य देखकर, देखती ही रह गई,ना तन पर कोई साज-श्रृगांर ना कोई आभूषण फिर भी इतनी सुन्दर,दूध जैसा गोरा रंग,नीली आंखें, और सुंदर घने बाल जो उस समय खुले हुए थे, हाथों में हथकड़ियां और पैरों में बेड़ियां।।
रानी सुखमति ने अपने कारागार में रानी सुखमती को देखा और पूछा कि आप कौन?
रानी सुतकीर्ति बोली, मैं राजा चन्द्रदर्शन की अर्द्धांगिनी रानी सुतकीर्ति हूं, मुझे ज्ञात है कि आप रानी सुखमती है, और मेरे रहते आपके साथ कोई अनर्थ नहीं होगा लेकिन जो पहले हो चुका है उसके लिए मैं आपसे क्षमा चाहती हूं, उसे मैं सही नहीं कर सकती।
सुखमती बोली, रानी !! कृपया आप क्षमा ना मांगे,मेरा नाम अवश्य सुखमती है लेकिन मेरे भाग्य में ये दुःख भी लिखा होगा, कदाचित ईश्वर की यही इच्छा,आप कहें,आप कैसे यहां पधारी।
फिर रानी सुतकीर्ति ने अपने साथ आई दासियों को जाने के लिए कहा और अपनी सारी योजना रानी सुखमती को कह सुनाई।।
सुखमती ने योजना सुनी और अपनी सहमति जताई और मन ही मन दिग्विजय को धन्यवाद दिया कि उसकी योजना सफल होती दिखाई दे रही हैं।
अब संभव हो कि वो अपनी पुत्री से मिल पाए।।
रानी सुतकीर्ति अपनी योजना बता कर चली गई।
रात्रि बेला आई__
सुखमती को दासियों ने कारागार से निकाल कर,स्नान करवाया,नये वस्त्र ,आभूषणों से सुसज्जित किया,साज-श्रृगांर कर महाराज चन्द्रदर्शन के समक्ष सुखमती को लाया गया।
सुखमती का रूप-सौन्दर्य देखकर, चन्द्रदर्शन की दृष्टि सुखमति पर टिक गई,
सुखमती ने श्रृंगार भी इस तरह से किया था अपनी योजना अनुसार कि चन्द्रदर्शन उस पर मोहित हो जाए, ताकि योजना में सफलता प्राप्त हो ।
सुखमती ने अपना अभिनय प्रारंभ किया और राजा चन्द्रदर्शन को अपने रूप से मोहित करने का प्रयास करने लगी।

क्रमशः___
सरोज वर्मा___🦋