Matholi in Hindi Short Stories by Rajesh Kumar books and stories PDF | मठोली

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मठोली

"मठोली" एक गरीब 12 वर्ष का लड़का जिसके माँ-बाप 4 वर्ष पहले उसे दुनिया में बेसहारा छोड़ गए। माँ-बाप की बीमारी ने एक सामान्य घर को तोड़ कर रख दिया बाद में वो भी नही रहे। रहने के लिए कोई मकान नही वही पिन्नी की टूटी फटी झोपड़ी, उसकी उम्र 8 वर्ष रही जब वो अनाथ हुआ।
बेचारा मठोली ठीक से कपड़े तक नही पहन पता और खुद के पेट पालने का बोझ सिर पर आ गया। अब जमीन भी नही बची वो सब तो बीमारी के कारण बिक गयी। होती तो कोई उसके सहारे ही गुआर लेता। रिश्तेदारों के उधार ने उस बालक से रिश्तेदारी ही छीन ली। खैर वो 4 वर्ष होटल की झूठन साफ़ करते बीते जैसे तैसे जिंदगी बीत रही थी। हालातों ने मठोली को 12 वर्ष की आयु में ही समझदार बनाना शुरू कर दिया।
मठोली को 4 वर्ष बाद आज अपने घर की याद आ रही थी उसने होटल मालिक से गुज़ारिश की उसे 5 दिन की छुट्टी और कुछ रुपये चाहिए। उसे घर जाना है। होटल मालिक अरे मठोली तेरा घर भी है, हाँ मालिक। होटल मालिक मठोली को उसके काम और व्यवहार की वजह से ना न कह सका। अगले दिन मठोली को वो गांव के चाचा भी ध्यान आने लगे जो उसे 8 वर्ष की आयु में होटल वाले के यहां काम के बदले खाना और उसका ध्यान रखने की सिफ़ारिश पर छोड़कर आए। मठोली को उनकी इस बात पर अफ़सोस नही था आखिर जब अपने माने जाने वाले कुछ रिश्तेदारों ने ही नाता तोड़ लिया तो उन्होंने कम से कम दो वक्त की रोटी का बंदोबस्त तो करा ही दिया था।
मठोली की आँखें अपने घर को देखने के लिए तरस रहीं थी। होटल मालिक ने नए कपड़े व 150 रुपये बतौर ईनाम दिए। 20₹ खर्च कर वो गाँव पहुँचा गांव में प्रवेश करते ही उसे असहजता हो रही थी। उसका घर.. होगा कि नही। कोई उसे पहचानेगा कि नही। रास्ते में एक दो लोग मिले सबने उसे अनदेखा कर दिया मानो कोई अजनवी हो वैसे भी वो पूरे 4 वर्ष बाद गांव में आया जो था।
उसके घर से कुछ दूर पहले किसी ने पुकारा "अरे मठोली" वो एकदम चौक गया इस गांव में उसे किसने पुकारा वो पल्टा देखा कोई लड़का दीवार के पीछे छुपा हुआ है और मानो मठोली की पहचान पक्का करना चाहता है इसलिए दुबकने का नाटक कर रहा था। मठोली के पलटकर देखने पर उसे मठोली की जांच हो गयी देखा तो वो लड़का मठोली के बचपन का दोस्त जो मौहल्ले में साथ खेलते थे। गांव के बेरहम लोगों में बस वही मठोली को पहचान रहा था।
मठोली अपने घर पहुँचा पहले जो पिन्नी पड़ी थी अब वो भी नही थी बस दीवारें ही शेष रह गईं थी लोगों ने यदा कदा वहां कूड़ा भी जमा कर रखा था। मठोली ये सब देखकर बहुत दुखी हुआ। एकाएक मठोली की आंखों से आंसुओं की धार बह निकली वो फफक फफककर रोने लगा। उसे अपने माता पिता की खूब याद आ रही थी।
वो उन दीवारों को देख देख कर रो रहा था और भगवान से शिकायत कर रहा था कि आखिर उसने उसका क्या बिगाड़ा जो उससे उसके माँ-बाप को छीन लिया। देखते ही देखते मौहल्ले के लोगों की भीड़ जमा हो गयी। महिला पुरुष सब मठोली की लाचारी को देख रहे थे। मठोली की उस दशा ने महिलाओं का हृदय द्रवित कर दिया। एक महिला ने उसे अपने आँचल में भर लिया। सबकी आंखों से आंसू बह रहे थे लोगों को अपनी भूल पर पछतावा हो रहा था। एक गांव मिलकर एक बच्चे को नही पाल सके कहे के इंसान है हम लोग।
हालातों ने मठोली को मजबूत बना दिया था। माँ-बाप की याद और उनका ऐसे चले जाना मजबूत से मजबूत व्यक्ति को तोड़ देता है मठोली तो फिर भी एक 12 वर्ष का बालक ही है।
गांव वाले ने सलाह मिलाई और ग्राम प्रधान से उसके मकान को बनवाने का प्रस्ताव रखा। यहां से मठोली के जीवन में एक नया अध्याय जुड़ना प्रारम्भ हुआ वो था सामाजिकता का।