मारपीट
मोबाइल के वाल पेपर पर एक लड़की की फोटो थी। यह वही लड़की थी, जिसे सार्जेंट सलीम ने एक दिन पहले होटल सिनेरियो में देखा था। सार्जेंट सलीम के जेहन में कल का पूरा दृश्य एक झटके से आकर गुजर गया।
वह अचानक पानी के अंदर क्यों चली गई? क्या उसने खुदकुशी कर ली? या फिर कोई साजिश है? यह सवाल सलीम के दिमाग में गूंज रहे थे।
उसकी तंद्रा उस वक्त टूटी जब उसके कानों में सोहराब की आवाज गई। वह चौंक कर सोहराब की तरफ देखने लगा।
सोहराब कह रहा था, “इस मोबाइल को लैब में भेज दीजिए। इसकी सारी डिटेल निकलवाइये। फोटोग्राफ, कॉल डिटेल्स के साथ ही चैट हिस्ट्री भी।”
“ओके।”
दोनों साथ खड़े होकर गोताखोरों को देखने लगे।
“कल मैं शेयाली से मिला था।” सलीम ने धीरे से कहा।
इंस्पेक्टर कुमार सोहराब चौंक कर उसे देखने लगा।
“क्या तुम उसे जानते थे?” सोहराब ने पूछा।
“नहीं, लेकिन कल वह होटल सिनेरियो में थी। मेरे साथ ही बैठी थी।” सलीम ने कहा।
उसके बाद उसने एक दिन पहले की पूरी दास्तान इंस्पेक्टर सोहराब को सुना दी।
“ओह!” इंस्पेक्टर सोहराब के मुंह से अनायास निकला। वह सिगार केस से एक सिगार निकाल कर उसका कोना तोड़ने लगा। सिगार जलाने के बाद उसने दोबारा पूछा, “दोनों के बीच केमिस्ट्री कैसी थी? मेरा मतलब है कि शेयाली के अपने ब्वायफ्रैंड के साथ कैसी केमिस्ट्री थी।”
“दोनों में अच्छी बॉन्डिंग थी। जब दोनों होटल से निकले थे तो एक-दूसरे का हाथ थाम रखा था।” सार्जेंट सलीम ने कुछ सोचते हुए कहा, “लेकिन एक अजीब बात थी... शेयाली ने ही उसका हाथ थामा था। उसके ब्वायफ्रैंड की पकड़ में कोई गर्मजोशी नहीं थी।”
अंधेरा होने लगा था। स्टीमर पर लगी फ्लैश लाइट्स ऑन कर दी गईं। तलाशी अभियान अभी भी जारी था। यह तलाशी अभियान साहिल से पांच सौ मीटर रेडियस में ही किया जा रहा था। उसके आगे सर्च करना मुमकिन नहीं था।
इंस्पेक्टर कुमार सोहराब, सार्जेंट सलीम को लेकर मेकअप वैन की तरफ आ गया। यह काफी लंबी वैन थी। आम तौर पर फिल्म स्टार इसमें मेकअप के साथ ही आराम भी करते हैं।
इंस्पेक्टर सोहराब को देख कर रखवाली में लगे दोनों कांस्टेबलों ने सेल्यूट मारा।
“फिंगर प्रिंट उठा लिए गए अंदर से?” सोहराब ने पूछा।
फिंगर प्रिंट स्क्वायड के हेड ने सामने आ कर सैल्यूट मारते हुए कहा, “जी सर उठा लिए गए हैं।”
“सलीम के पास शेयाली का मोबाइल है। देखिए उस पर से अगर फिंगर प्रिंट मिल सकें तो। हालांकि सलीम ने मोबाइल पर से पानी साफ किया है तो मुश्किल ही है कि कुछ बचा हो!” इंस्पेक्टर सोहराब ने चिंताजनक स्वर में कहा।
वैन की खिड़की पर काली स्क्रीन लगी हुई थी। बाहर से अंदर कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। सोहराब ने एक झटके में वैन का दरवाजा खोल दिया।
शेयाली का ब्वायफ्रैंड अंदर बैठा शराब पी रहा था। सोहराब गेट के बाहर खड़ा उसे देखता रहा। वह नया पैग बना रहा था। सोहराब उसके सामने कुछ ही दूरी पर खड़ा था, लेकिन एक बार भी उसने पलटकर सोहराब की तरफ नहीं देखा था।
“इसे बाहर उतारो।” सोहराब ने निगरानी में लगे कांस्टेबल से कहा। वह दोनों वैन में गए और उससे नीचे उतरने को कहा।
“यह वैन तुम्हारे बाप की नहीं है!” शेयाली का ब्वायफ्रैंड दहाड़ा।
उसकी दहाड़ सुनकर कांस्टेबलों को गुस्सा आ गया और वह उसे जबरदस्ती नीचे खींच लाए। इस हंगामेबाजी में शराब की बोतल वैन में गिर गई। उसे नीचे उतारने के बाद सोहराब वैन में चढ़ गया। उसने हाथों पर दस्ताने चढ़ा लिए थे। वह वैन की तलाशी लेने लगा।
तलाशी में सोहराब को कुछ खास नहीं मिला। उसने हर चीज का बड़ी बारीकी से मुआयना किया। वैन में मेकअप का सामान, परफ्यूम, विग जैसी चीजें थीं। कुछ ड्रेसेज भी थीं।
अचानक सोहराब का पैर सेंटर टेबल से टकरा गया। उसे दो आवाजें सुनाई दीं। एक पैर के टकराने की और एक हल्की सी आवाज अंदर से भी आई थी। उसने छोटी सी सेंटर टेबल को पलट दिया। नीचे एक ड्रार थी, जो ऊपर से नजर नहीं आती थी। ड्रार लॉक थी। उसने जेब से एक छोटा सा तार निकाला और ड्रार के लॉक में डालकर हिलाने लगा। कुछ देर की मशक्कत के बाद ताला खुल गया।
अंदर एक पिस्टल रखी हुई थी। इंस्पेक्टर सोहराब ने बहुत एहतियात से उसे उठा लिया। वह उसे उलट-पलट कर देखने लगा। काफी महंगी इटली मेड पिस्टल थी। सोहराब वैन से नीचे उतर आया। उसने पिस्टल पर से भी फिंगर प्रिंट उठाने को कहा।
वैन की हेडलाइट्स जला दी गई थीं। वैन से दोनों कुर्सियां उतारकर करीब ही रख दी गईं। एक कुर्सी पर शेयाली का ब्वायफ्रैंड बैठा हुआ था और उसके ठीक सामने सोहराब बैठा उसे बड़े ध्यान से देख रहा था। शेयाली के ब्वायफ्रैंड की गर्दन नीचे झुकी हुई थी।
“आपका नाम क्या है?” सोहराब ने नर्म लहजे में उससे पूछा।
उसके ब्वायफ्रैंड ने कोई जवाब नहीं दिया।
सोहराब ने अपना सवाल दोहराया तो ब्वायफ्रैंड ने चीखते हुए कहा, “तुम कौन होते हो मेरा नाम पूछने वाले!”
उसके इस जवाब पर सार्जेंट सलीम को गुस्सा आ गया और उसने उसको गिरेबान से पकड़कर उठा लिया। जवाब में उसने सार्जेंट सलीम पर हाथ छोड़ दिया। सार्जेंट सलीम इसके लिए शायद पहले से ही तैयार था। उसने झुकाई देकर वार खाली जाने दिया। तब तक दोनों कांस्टेबलों ने शेयाली के ब्वायफ्रैंड को पकड़कर जबरदस्ती कुर्सी पर बैठा दिया। वह सार्जेंट सलीम को गुस्से में गंदी-गंदी गालियां देने लगा।
“यह क्या बेहूदगी है सलीम! तुम देख नहीं रहे कि उसने अपना करीबी खो दिया है। वह नशे में भी है। तुमसे ऐसी अहमकाना हरकत की उम्मीद नहीं थी। दूर हटो!” इंस्पेक्टर सोहराब ने सार्जेंट सलीम को तेज आवाज में डांटा।
अभी यह बातें हो ही रही थीं कि एक कार पास ही आकर रुकी और उसमें से दो मर्द और एक लड़की उतर कर तेजी से शेयाली के ब्वायफ्रैंड के पास आकर रुक गए।
“आप लोगों की तारीफ?” इंस्पेक्टर सोहराब ने नर्म लहजे में पूछा।
“हम लोग शेयाली मैम के असिस्टेंट हैं।” लड़की ने जवाब दिया।
सोहराब तीनों को लेकर वहां से दूर चला गया। वह नर्म रेत पर उन तीनों के साथ चहलकदमी करते हुए उनके कामकाज, वर्क कल्चर और फिल्म इंडस्ट्री के बारे में बात करता रहा। बात करते-करते वह लोग काफी आगे निकल गए।
एक जगह रुक कर सोहराब ने अचानक लड़की से पूछ लिया, “क्या शेयाली खुदकुशी कर सकती है?”
“नो सर!” लड़की ने तुरंत ही जवाब दिया, “वह बहुत मजबूत और जिंदादिल इंसान थीं। शेयाली मैम खुदकुशी कभी नहीं कर सकतीं।”
“क्या उन्हें किसी से जान का खतरा था?” सोहराब ने यह सवाल साथ आए युवक से पूछा।
“सर, वह फिल्म एट्रेस थीं। उनके प्रोफेशनल राइवल तो बहुत सारे हैं, लेकिन कोई उनकी जान ले सकता है.... ऐसा लगता नहीं है।” युवक ने जवाब दिया।
“आप लोगों को घटना के बारे में कैसे पता चला?” सोहराब ने साथ आए दूसरे युवक से पूछा।
“सर, श्रेया ने टीवी पर न्यूज देखी थी। उसी ने हम दोनों को इन्फार्म किया।” उसने लड़की की तरफ इशारा करते हुए कहा।
“आओ वापस चलते हैं।” सोहराब ने पलटते हुए कहा।
कुछ दूर चलने के बाद अचानक से वह फिर रुक गया। जैसे पैर में कुछ चुभ गया हो। हालांकि उसने गेंडे की खाल से बने मजबूत जूते पहन रखे थे। वह तीनों भी रुक गए। सोहराब ने सीधे होते हुए लड़की से पूछा, “शेयाली के अपने ब्वायफ्रैंड से रिश्ते कैसे थे?”
“सर, वह विक्रम सर को बहुत चाहती थीं। हमेशा उनके साथ ही घूमने जाती थीं, लेकिन विक्रम सर....” अचानक श्रेया खामोश हो गई।
सोहराब ने देख लिया था कि साथ आए एक युवक ने उसे कोहनी मारी थी।
“लेकिन क्या?” सोहराब ने उसे टोका।
“कुछ नहीं सर!” लड़की ने जवाब दिया, “मैं यह कह रही थी कि लेकिन विक्रम सर बहुत बिजी रहते हैं।”
उसके इस जवाब पर सोहराब मुस्कुराये बिना नहीं रह सका।
कुछ देर बाद वह चारों लौट आए।
“आप विक्रम को ले जा सकते हैं। जब तक उनके बयान नहीं हो जाते वह पुलिस की निगरानी में रहेंगे।” सोहराब ने कहा।
कुमार सोहराब और सलीम वहां से कोतवाली इंचार्ज मनीष के पास आकर खड़े हो गए। अंधेरा काफी गहरा हो गया था। तलाशी अभियान को रोका जा चुका था। शेयाली का कुछ भी पता नहीं चल सका था। धीरे-धीरे साहिल पर तमाशबीन बने लोग भी चले गए। हर तरफ मौत का सा सन्नाटा था।
शेयाली की मौत का असर सलीम पर भी हुआ था।
इंस्पेक्टर सोहराब ने मनीष से फिंगर प्रिंट रिपोर्ट और लोगों के बयानात ऑफिस पहुंचाने को कहा। इसके बाद दोनों घोस्ट पर सवार हो गए। कार एक झटके से आगे बढ़ गई। घोस्ट को सार्जेंट सलीम चला रहा था। कुछ ही सेकेंड में कार ने स्पीड पकड़ ली।
“आपको क्या लगता है, शेयाली ने खुदकुशी की है?” कुछ देर की खामोशी के बाद सार्जेंट सलीम ने कुरेदा।
“इतनी जल्दी नतीजे नहीं निकाले जाते। अगर आप पहले से नतीजे निकालकर तहकीकात करेंगे तो हमेशा गलत नतीजे निकलने का खतरा बना रहता है।” सोहराब ने सिगार जलाते हुए कहा, “तहकीकात हमेश फैक्ट्स और लॉजिक के सहारे आगे बढ़ती है।”
“उस लड़की और दोनों नौजवानों से क्या पता चला।” सार्जेंट सलीम ने पूछा।
“कुछ खास नहीं।” सोहराब ने कार के शीशे से बाहर देखते हुए कहा।
“लड़की का ब्वायफ्रैंड बहुत घमंडी आदमी है।” सलीम ने बात बदलते हुए कहा।
“तुम्हें उससे उलझना नहीं चाहिए था।” सोहराब ने उसे टोका।
“वह आपसे बदतमीजी कर रहा था।” सार्जेंट सलीम ने सफाई देते हुए कहा।
“फिर भी तुम्हारा तरीका गलत था। वह शराब के नशे में था।” सोहराब ने जवाब दिया।
“गाड़ी को ऑफिस लैब की तरफ लेते हुए चलना।” सोहराब ने कहा।
“क्यों?”
“मोबाइल देना है।”
“ओह हां।”
इसके बाद खामोशी छा गई।
कुछ देर बाद कार शहर की सीमा में दाखिल हो गई। घोस्ट जीरो रोड से टर्न लेकर खुफिया विभाग की लैब की तरफ बढ़ गई। खुफिया महकमा कई एकड़ में फैला हुआ था। यह शहर के बाहरी छोर पर स्थित था।
महकमे के अहाते में काफी हरियाली थी। या यूं कहें कि एक पूरा जंगल आबाद था तो गलत नहीं होगा। अंदर एक कृत्रिम झील भी थी। जिसमें पंप से पानी भरा जाता था। इसी झील के पास लैब थी। लैब में 24 घंटे काम होता रहता था।
कुछ देर बाद घोस्ट महकमे के गेट पर आकर रुक गई। सोहराब और सलीम ने कार से उतर कर आंखों की रेटिना की स्क्रीनिंग कराई। इसके बाद बायोमेट्रिक मशीन पर फिंगर लगाने के बाद आटोमेटिक गेट खुल गया।
लैब में मोबाइल देने के बाद दोनों गुलमोहर विला की तरफ रवाना हो गए।
सलीम अब इंस्पेक्टर सोहराब की कोठी गुलमोहर विला में ही रहने लगा था। सोहराब की ख्वाहिश पर ऐसा हुआ था। कई बार सलीम की तुरंत जरूरत पड़ती थी तो फिर उसके इंतजार में काफी वक्त खराब होता था।
सलीम के आने से कोठी में अकसर धमाचौकड़ी होती रहती थी। घर के नौकर भी बहुत खुश थे। इसकी वजह यह थी कि सोहराब काफी कम बोलता था। इसके उलट सलीम काफी बातूनी था।
कार की नंबर प्लेट को स्क्रीन करने के बाद गेट अपने आप खुल गया। सोहराब को बहुत ताज्जुब हुआ कि अभी तक शेप नहीं खोली गईं थीं।
सोहराब ने लोमड़ी और अलसेशियन कुत्ते के मेल से नई नस्ल बनाई थी। इसका नाम उसने शेप रखा था। शेप की आंखें पीली और दांत लंबे और तीखे थे। यह अलसेशयिन से पांच गुना ज्यादा ताकतवर थीं।
सोहराब के सख्त आदेश थे कि सूरज डूबने के बाद शेप को खोल दिया जाए। उसके पास सात शेप थीं। इनमें से रोटेशन में तीन-तीन शेप को हर दिन कैंपस की निगरानी के लिए खोला जाता था।
पोर्च में पहुंचने के बाद उसे एक कार खड़ी नजर आई। काफी महंगी कार थी। इस वक्त रात के दस बज रहे थे। सोहराब को ताज्जुब हुआ कि इस वक्त कौन आ सकता है भला।
वह कोठी की सीढ़ियां चढ़ते हुए जब ड्राइंग रूम में पहुंचा तो वहां एक मोटा-तगड़ा आदमी बैठा हुआ ऊंघ रहा था। काफी महंगे कपड़े पहन रखे थे। उसकी सारी उंगलियों में हीरे-जवाहरात की अंगूठी थीं। यही नहीं गले में भी कई मोटी-मोटी सोने की चेन और पैंडेंट लटक रहे थे। उससे कुछ दूरी पर एक दुबला-पतला युवक भी बैठा था।
कदमों की आहट सुनकर वह सीधा होकर बैठ गया।
“सर, मेरा नाम कैप्टन किशन है।” उसने हाथ जोड़ते हुए सोहराब से कहा।
“वह तो ठीक है, लेकिन आपका मंगल सूत्र कहां है!” सार्जेंट सलीम ने उसकी तरफ गौर से देखते हुए कहा।
सोहराब सार्जेंट सलीम को घूरने लगा।
शेयाली के मोबाइल से कौन से राज मिले?
ब्वायफ्रैंड विक्रम की असलियत क्या थी?
इन सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर’ का अगला भाग...