Jasoosi ka maza - 4 in Hindi Comedy stories by Kanupriya Gupta books and stories PDF | जासूसी का मज़ा भाग 4

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जासूसी का मज़ा भाग 4

चौधरी जी थोड़ी देर बाद घर वापस आए तो क्या देखते है चौधराइन सर पर चुन्नी बांधे एक हाथ माथे पर टिकाए सोफे पर पड़ी है उनने मजाकिया लहजे में पूछा “क्या हुआ ऐसे क्यों झाँसी की रानी बनी सोई हो युद्ध लड़ने जाना है के लड़ के आ गई ?
चौधराइन ने अनमनेपन से कहा “माथा दुःख रा था तो सो गई थी अब उसपर भी पाबन्दी लगाओगे ?” चौधरी जी को इस बेमौसम हमले का कारण तो खास समझ आया नि तो बोले चाय बना दूं पिओगी ? चौधराइन सोफे से उठती हुई कहने लगी “आप तो रहने ही दो आपके हाथ की मीठी और कड़क चाय मेरको नि भाति मैं ही बनाऊ ..और ये कहकर वो माथे पर हाथ रखती हुई किचन की तरफ बढ़ गई ....

जिस सोफे पर अब तक सीमा जी लेटी थी वो जब उठी तो सोफा कवर की सलवटों के नीचे से एक कार्ड झाँक रहा था चौधरी जी ने सोफे की सलवटें थोड़ी सही करने की कोशिश सी की ,कोशिश सी इसलिए क्यूंकि उनने जो हाथ हिलाए थे वो किसी भी हालत में सलवटें ठीक करते नज़र नहीं आ रहे बस वेसा नाटक करते दिख रहे थे ताकि श्रीमतीजी ये न कहें की “कभी तो कई काम में मदद करी दिया करो ये सोफो ही सही करी ने बैठता कम ती कम”
बस इन्ही प्रेमवचनों से बचने के लिए वो सलवटें ठीक ही कर रहे थे की एक कार्ड ने सलवटों में से झांककर देखा ...

चौधरी जी ने झट से कार्ड को हाथ में लिया और अपनी मोटी तोंद पर हाथ फिराते हुए दुसरे हाथ से कार्ड को आँखों के पास ले जाकर पढने लगे ““ दयाल डिटेक्टिव एजेंसी , सभी प्रकार के जासूसी काम किए जाते हैं ,पति/पत्नी की जासूसी ,बेकग्राउंड चेक ,corporate डिटेक्टिव ..”
“हें !ये क्या है भई ?” चौधरी जी ने खुद से सवाल पूछा और सवाल पूछते पूछते ही उनके हाथ ने तोंद का साथ छोड़ दिया और खुजाने की मुद्रा में सर पर चला गया जैसे इस सवाल का जवाब उनकी खोपड़ी में कही रखा हुआ हो पर जवाब वहां था नहीं तो उन्हें मिला भी नहीं ..
पर आदमी वो खुराफाती दिमाग के थे तो जासूसी दिमाग के कीड़े कुलबुलाने लगे वैसे भी जासूसी उपन्यासों के गुरु गोपाली से उनने यही तो सीखा था चीज़ों पर पैनी नज़र गडाओ... और बस कुलबुला उठे दिमाग के कीड़े ...मन ही मन में गणित लगना शुरू हो गया “ यहाँ तो सीमा जी लेटी थी पर उनके पास ये कार्ड क्या कर रहा था वो किसकी जासूसी करेंगी ? बच्चो की ? अरे नहीं नहीं बच्चे जासूसी करने जैसे हैं नहीं ...फिर पड़ोसनो की ? अरे नहीं नहीं पल्लू से पैसे निकालकर पड़ोसियों की जासूसी करने की जरुरत ही क्या है उन्हें? ये काम तो १० मिनिट मोहल्ले की लुगाइयों के पास खड़े होने से ही हो जाएगा ...फिर ...फिर कौन ? मैं ? सीमा जी मेरी जासूसी करा रहीं क्या ? अरे ! मेरी जासूसी क्यों कराएंगी भला ?....

अब क्यों ? जेसे सवालों के जवाब ही इतने होते हैं कभी कभी की ढूँढने निकलो तो इतने जवाब मिल जाए की जितनी तरह के तो इंदौर में पानी पतासे न मिलते हों ...पानी पतासे ? अरे इन्दोरी लोग मुंबई की पानी पूरी, कोल्कता के पुचका को ही पानी पतासे कहते हैं और न न करते १५,१६ तरह के फ्लेवर तो मिलते ही हैं इंदौर में पानी पतासे के ,और सब एक से बढ़कर एक जबर ... पानी पतासे ने कुछ मिनिट के लिए चौधरी जी का मन भटकाया पर कुछ ही देर में वो वापस विज़िटिंग कार्ड पर आ गए


मन ही मन सोच रहे “कहीं सीमा जी ने मुझे सामने वाली रेखा जी को चुपके से देखते तो नहीं देख लिया ?” हे भगवन ! कहीं नींद में ही तो कुछ बडबडा नहीं गया मैं ? ये फालतू की नींद में बोलने की आदत तो होनी ही नहीं चाहिए आदमी में सब बंटाधार करा देती है... अरे पर देखता ही तो हूँ कभी कभी रेखा जी को ये कोई जासूसी करने की बात हुई क्या ?...

और तो कुछ में ऐसा करता नहीं, कभी कभी दोस्तों के साथ पान गुटका खा लेता हूँ ,ठीक है डॉक्टर ने मना किया है,पर ये बात तो पूछ भी सकती हैं,जासूस लगाएंगी मेरे पीछे?


ये तो कभी न सोचा था भगवान की मेरी पत्नी को मेरी जासूसी करनी पड़ेगी,ये सोचते हुए चौधरी जी के माथे पर दुख के बादल मंडराने लगे,आंखों के आगे अपनी छोटी मोटी गलतियां नाचने लगी..

चौधरी जी ये सोच ही रहे थे की किचन से सीमा के आने की आहट सी हुई चौधरी जी ने जेब से मोबाईल निकाला और कार्ड का फोटो खीच लिया ताकि बाद में उसे देखा जा सके और कार्ड को टेबल के पास जमीन पर रखकर ऐसे बैठ गए जैसे कुछ हुआ ही नहीं ...

चुपचाप सीमा जी को चाय लाते देखने लगे और दुखी मन से सोचने लगे की चौधराइन को कैसा दिमागी फितूर चढ़ा ये की अपने पति की जासूसी करने चल पड़ी हैं ..