Sima par ke kaidi - 11 - last part in Hindi Children Stories by राजनारायण बोहरे books and stories PDF | सीमा पार के कैदी - 11 - अंत

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सीमा पार के कैदी - 11 - अंत

सीमा पार के कैदी -11 अंत

बाल उपन्यास

राजनारायण बोहरे

दतिया (म0प्र0)

11

अजय ने ऊंची आवाज में नारा लगाया ‘‘ जय..................हिन्द!’’

उसके उठे हुए हाथ में प्यारा तिरंगा लहरा रहा था।

तिरंगा देखते ही भारतीय सैनिक निश्चिंत होकर आगे बढ़े। निकट आये तो दुश्मन सैनिकों की वर्दी देखकर वे फिर शंकित हुये, पल भर में ही उन लोगों ने इन्हे घेर लिया था।

ठीक तभी अजय बोला- ‘‘ अंकल, इनकी वर्दी देख कर शंका में मत आइये ये लोग आस पास की ढाणियो के भारतीय मारवाउ़ी है। मैं बाल जासूस अजय और ये मेरा भाई अभय है। हमे इन जैसे लोगों के मिशन पर भेजा गया था। ’’

संकेत मिला तो अजय झपटकर भारतीय सेना की उस टुकड़ी के कप्तान के पास पहुँचे।

अपनी बाल जासूस संस्था के परिचय पत्र निकालकर उन्होंने कैप्टन को दिखाये तो वह प्रसन्न हो उठा। वह बोला ‘‘ तुम आगये बच्चों । मुझे हेड क्वार्टर से समाचार मिल चुका था कि बाल जासूस अजय और अभय विदेश गये हुये थे जो किसी भी जगह से सीमा पार कर सकते हैं। लेकिन ये लोग कहां मिले तुम्हे?’’

‘‘ इनका किस्सा मे आपको बाद मे सुनाऊंगा अंकल ’’ कहता अजय उन सबसे बोला ‘‘ आप लोग इन अंकल लोगों को अपनी तलाशी दो और अपने अपने घर जाओ । ये घोड़े हमारी ओर से तुम सबको भेंट में दिये जाते हैं।’’

कप्तान बोला ‘‘ आज की रात तुम दोनों और ये सब हमारे मेंहमान बन कर रहेंगे, कल आप लोग चले जाना ।’’

उन लोगों की वह सेना की चौकी पर बीती । सब लोगों को फौजी कम्बल और जोरदार खाना मिला । सुबह होते ही ढाणी वाले लोग तो विदा हुये, मगर अजय और अभय को रोक लिया गया, क्योंकि उनके लिये हेलीकॉप्टर बुलवाया गया था।

समय काटने के लिए अजय ने पूछा ‘‘ अंकल पांच छह दिन पहले हमने कुछ डाकुओं के इधर आने की खबर भेजी थी । उनका क्या हुआ ?’’

तब कैप्टन ने बताया ‘‘ विक्रांत से ट्रांसमीटर पर खबर पाकर भारतीय सेना ने डकैतों के स्वागत का अच्छा प्रबंध किया था। जहां से उन्हे सीमा पार करना थी वहां हमारी टुकड़ी छिप गई थी । उधर सीमा पर एकदम सन्नाटा देखकर वे डाकू धडधड़ाते हुये भारत में घुसे चले आ रहे थे, कि अचानक ही चारों ओर से फायर शुरू कर दिये गये । बेचारे डकैत संभल ही न पाये कि क्या से क्या हो गया। बिना किसी परेशानी के सभी डकैत पकड़ लिये गये। वे अब भारतीय जेल में मेहमान बने हुये थे। उन लोगों से कड़ी पूछताछ की जा रही है।’’

बातों ही बातों में दोपहर हो गई। खाना ही चल रहा था कि एक हेलीकाप्टर आसमान में दिखा।

हेलीकॉप्टर में बैठते हुए हाथ हिलाकर उन दोनों ने सेना के कप्तान से विदा ली।

अपने चीफ अफसर सिनहा साहब को अजय और अभय ने पूरी की पूरी फाइल जा कर दी तो वे भी चकित रह गये। इतने सारे कैदी बंद पड़े थे परदेश में , और किसी को कुछ पता नही नही था।

परदेश में गिरफ्तार भारतीयों की जानकारी मिली तो भारत सरकार ने अपने नागरिकों को माँगना शुरू कर दिया।

जिस दिन रेडियों पर भारतीय बंदियों की समस्या में अजय और अभय के सहयोग की प्रशंसा की गई, उस दिन अनेक अखबार वाले इन्हें ढूढने लगे। लेकिन अपने माता-पिता के साथ उस दिन दोनों बाल जासूस वहाँ से सैकड़ों किलोमीटर दूर पिकनिक मना रहे थे।

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