कहीं पर एक बूढ़ी औरत रहती थी , लेकिन होशियार और समझदार महिला थी जिसका पति उससे बहुत प्यार करता था। दोनों के बीच प्रेम इतना प्रगाढ़ था कि उसके पति उसके लिए प्रेम भरी शायरी कहते थे और उसके लिए कविताएँ लिखते और सुनाते थे।
उम्र जितनी ज्यादा बढ़ रही थी , उतनी ही ज्यादा आपस में मोहब्बत, प्यार और खुशी बढ़ती गई।
जब उस महिला से उसके शाश्वत प्रेम और खुशहाल जीवन का राज पूछा गया कि
क्या वह बहुत कुशल है और अच्छी रसोइ बनाती है?
या वह बहुत खूबसूरत और हसीना है?
या वह बहुत धनीक और बच्चे पैदा करने वाली महिला रही है?
या इस प्रेम का कोई और रहस्य है?
तो उस महिला ने जवाब दिया कि :
सुखी जीवन का कारण और आधार स्त्री के हाथ में है। अगर कोई महिला चाहे, तो वह अपने घर को स्वर्ग की छाया बना सकती है, और अगर वह चाहे तो अपने घर को नर्क की दहकती आग से भर सकती है।
ऐसा मत सोचो कि धन दौलत खुशी का कारण है।इतिहास उन अमीर महिलाओं की कहानियों से भरा है जिनके पति ने उन्हें छोड़ दिया, जिसमें उनका धन भी शामिल है।
और न ही शादी करना और कईं एक बच्चे पैदा करना एक गुण है। कई महिलाओं ने दस बच्चों को जन्म दिया, लेकिन उनके पति उनके प्रति आभारी नहीं थे और उन्हें अपने पति से कोई विशेष स्नेह और प्यार नहीं मिल सका, यहां तक कि तलाक तक भी नौबत पहुंच गई।
अच्छा खाना पकाना भी कोई गुण की बात नहीं है। पूरे दिन रसोई घर में स्वादिष्ट भोजन पकाने के बाद भी, महिलाएं अपने पति के गलत व्यवहार के बारे में शिकायत करती दिखाई देती हैं और अपने पति की नजर में कोई सम्मान अर्जित नहीं कर पाती हैं।
तो आप ही बताइए ! इस सुखी और आनंदमय जीवन का रहस्य क्या है? और आपके और आपके पति के बीच उत्पन्न होने वाली समस्याओं और कठिनाइयों से आप कैसे निपटे हैं ?
उसने जवाब दिया: जब मेरे पति गुस्से में होते और निश्चित रूप से मेरे पति बहुत गुस्सैल आदमी थे, तो मैं उन पलों में पूरी तरह चुप रहती थी (अत्यंत सम्मान के साथ)। यहाँ मैं यह स्पष्ट कर दूं कि सम्मान के साथ मौन का अर्थ है कि आँखों में तिरस्कार और घृणा न हो और हास्य और उपहास न हो। आदमी बहुत समझदार है और ऐसी स्थिति और इस तरह के मुद्दे को अच्छे से समझलेता है।
तो आप ऐसी स्थिति में कमरे से बाहर क्यों नहीं चली जाया करती थी ?
उसने कहा: खबरदार, ऐसा गलत काम कभी भी मत करना , इससे तो ऐसा लगेगा कि आप उससे बचना चाहती हैं और उसकी बात नहीं जानना चाहती हैं, और उसकी बातों का कोई महत्व नहीं है और परवाह नहीं है; चुप्पी तो जरूरी है, साथ ही न केवल यह सुनना है कि पति क्या कहता है। उसके साथ सहमत होना उतना ही महत्वपूर्ण है।
जब मेरे पति अपनी बातें खत्म कर लेते, तो मैं चुपचाप कमरे से बाहर चली जाया करती थी, क्योंकि यह सब चिल्लाने और शोर-शराबे के बाद, मैं समझती थी कि उन्हें आराम की ज़रूरत है। कमरे से निकल कर मैं अपने दैनिक गृहकार्य में लग जाती थी, बच्चों का ध्यान रखना, खाना पकाने और कपड़े धोने में समय बिताना और अपने पति से मेरे साथ हुए झगड़ा ( युद्ध ) को दूर रखने का प्रयास करना।
तो आप उस माहौल में उस समय क्या करती थी ? कई दिनों के लिए जुदा हो जाना और सप्ताह या दस दिन पति के साथ बातचीत छोड़ना वगैरह क्या करती थी?
उसने कहा: नहीं, बिल्कुल नहीं, बातचीत बंद कर देने की आदत बेहद घटिया हरकत और पति के साथ संबंध बिगाड़ने वाली एक दोधारी तलवार की तरह है , अगर आप अपने पति से बात करना बंद कर देती हैं, तो शुरुआत में उसके लिए यह बहुत दर्दनाक प्रक्रिया हो सकती है। शुरुआत में वह आपसे बात करना चाहेगा और बात करने की कोशिश करेगा। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते जाएंगे उसे इसकी आदत हो जाएगी। यदि आप एक सप्ताह के लिए बात करना बंद कर देते हैं, तो यह आप से दो सप्ताह तक नहीं बोलने की क्षमता देगा और शायद हो सकता है आपके बिना रहना भी सीख लेग। अपने पति को ऐसी आदत डाल दो की आपके बिना वह घुटन महसूस करने लगे, जैसे कि आप उसके लिए ऑक्सीजन हैं , और आप वह पानी है जिसे पीकर वह जिंदा रह रहा है। यदि हवा बनना है, तो शांत और सौम्य रहें। धूल भरी और तेज हवाएं न बनें।
उस्के बाद तुमने क्या किया ?
महिला ने कहा: मैं घंटे दो घंटे बाद एक गिलास जूस का या एक कप चाय बना कर उनके पास जाती और बहुत विनम्रता से कहती : लीजिए चाय पी लीजिए! मुझे यकीन होता था कि वह उस क्षण इस चाय या जूस को तरस रहे होते थे। मेरे पति के साथ मेरी अदाएं और बातचीत ऐसी होती थी कि मानो हमारे बीच गुस्से या लड़ाई की कोई बात हुई ही नहीं थी।
जबकि अब मेरे पति ही मुझसे आग्रह करते थे और मुझसे बार-बार पूछते थे कि क्या मैं उनसे नाराज तो नहीं हूं। और हर बार मैं उन्हें जवाब देती कि नहीं, मैं बिल्कुल भी नाराज नहीं हूं। उसके बाद हमेशा अपने अशिष्ट व्यवहार और दुर्व्यवहार के लिए माफी मांगते और मुझसे घंटों प्यार भरी बातें करते।
तो क्या आप उनके इन प्यार भरे शब्दों पर विश्वास और यकीन कर लेती ?
हां बिल्कुल !, मैं उन बातों पर बिल्कुल यकीन करती थी, मैं अज्ञानी और अनपढ़ नहीं हूं।
क्या आप यह कहना चाहती हो कि मैं अपने पति की उन बातों पर विश्वास और यकीन कर लूं जो उन्होंने मुझसे गुस्से में कही थी और उन बातों पर यकीन ना करूं जो उन्होंने मुझे शांति से और प्रेम से कही है !
तो फिर आपका स्वाभिमान और आत्मसम्मान कहां गया ?
कैसा सम्मान और कैसा स्वाभिमान? क्या इसी का नाम सम्मान है कि आप एक गुस्सैल क्रोधित व्यक्ति की कड़वी बातों पर विश्वास करते हैं और उसे अपने आत्मसम्मान का मामला बनाते हैं, लेकिन उस बात पर ध्यान नहीं देते की वह प्यार भरे माहौल और शांत स्थिति में आपसे क्या कह रहा है!
मैं गुस्से की उस स्थिति में दिए गए अपमानजनक और कड़वे शब्दों को तुरंत भूला कर उनके प्यार भरे और मीठे शब्दों को ध्यान से सुनती थी।
हां! एक सुखी और प्रेममय , खुशहाल और प्यार भरे जीवन का रहस्य एक महिला के मन में है, लेकिन यह उसकी जुबान से जुड़ा हुआ है।