Today's Draupadi and Subhadra - 1 in Hindi Short Stories by आशा झा Sakhi books and stories PDF | आज की द्रौपदी और सुभद्रा - 1

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आज की द्रौपदी और सुभद्रा - 1

स्त्री मन बहुत विचित्र है जिससे स्नेह करता है उसके लिए अपना सर्वस्व निछावर कर देता है।जो भी उसका अपना है,चाहे वो प्रेम हो,पति ,बच्चा या उसका घर हो।स्त्री हर चीज अपने परम स्नेही से बाँट लेती है।हर बार ये सत्य नहीं होता कि स्त्री अपना पति किसी दूसरी स्त्री के साथ नहीं बांट सकती।पर उससे ही ,जिससे उसे सबसे ज्यादा लगाव हो,जिससे वो खुद से ज्यादा भरोसा करती हो ,स्नेह करती हो।
शुभी और अंशिका भी ऎसी ही दो सखियां हैं जो दो शरीर एक आत्मा हैं। उनको तो भगवान ने भी ऐसी हस्त रेखाएं दीं जो एक दूसरे से उलझी हैं।शुभी व अंशिका दोनों हमउम्र सखियां हैं। उनके बीच सगी बहनों से भी ज्यादा गहरा प्रेम है।साथ खेलना ,स्कूल जाना,उनके बीच किसी भी बात का परदा न था।अंशिका जहां चेहरे से औसत पर पढ़ाई में होशियार है वहीँ दूसरी तरफ शुभी अनुपम सुंदरी,पर शिक्षा के क्षेत्र में सरस्वती माता की कृपा सौंदर्य के मुकाबले दशांश भी नहीं मिली। कहने का मतलब पढ़ाई में औसत से भी थोड़ा कम ही।अंशिका के पिता एक सरकारी कर्मचारी हैं तो वहीं शुभी के पिता एक व्यापारी।पर दोनों की ही सामाजिक व पारिवारिक पृष्ठभूमि लगभग समान ही है।दोनों के परिवारों में भी बहुत प्रेम ,स्नेह व सम्मान है।
।दोनों का जन्म भी एक ही दिन बस कुछ घण्टों के अंतराल पर हुआ था।उनके जन्म के समय जब उनकी जन्मपत्रिका बनवाई गई तो पंडित जी ने एक विचित्र बात कही थी ।उन्होंने कहा था कि ये दोनों एक दूसरे की पूरक हैं।दोनों का साथ हमेशा रहेगा। इन दोनों को बांधने वाली डोर भी एक ही होगी। भगवान ने दोनों को किस तरह की डोर में बांधा है ये तो भविष्य के गर्भ में है।भविष्य भी समय आने पर ही प्रकट होता है। दूसरी बात उन्होंने ये बताई थी कि शुभी के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान देना, इसके नक्षत्र उसके बीमार होने का संकेत दे रहे हैं।
समय के साथ दोनों पलती - बढ़ती रहीं।जब वो दोनों कक्षा आठवीं में रहीं , अचानक ही शुभी काँपने लगी और हाथ - पैर अकड़ते हुए बेहोश हो गई। शिक्षिका के साथ -2 सारी कक्षा घबरा गई कि शुभी को क्या हो गया। अभी तो ठीक थी ,अचानक ही ये सब। उसके घर सूचना भेजकर उसे घर पहुंचाया गया।उसके पिता जी ने उसे चिकित्सक को दिखाया तो उन्होंने जाँच करने केबाद यही कहा घबराने की कोई बात नहीं है। हजारों में ऐसा एकाध के साथ हो जाता है। समय के साथ ये दौरे खत्म हो जायेगे। जो दवाइयां दी है उनको समय से देते रहना। इन दौरों की वजह से अक्सर शुभी की पढ़ाई में व्यवधान उत्पन्न होता।तो अंशिका घर आकर उसे पढ़ाती।दोनों सखियों में आपसी प्रेम व समझ बढ़ती ही गयी।
जैसे-तैसे दोनों ने दसवीं की परीक्षा दी।शुभी ने बड़ी मुश्किल से दसवीं पास की।अंशिका को बहुत अच्छे नम्बर मिले ,पर उसे अपने से ज्यादा शुभी के पास होने की खुशी हुई।शुभी को भी खुद को पास होने की खुशी हुई क्योंकि उसके पास होने में खुद से ज्यादा अंशिका की मेहनत रही।अब दोनों के ही रास्ते जुदा हो गए।अंशिका ने जहाँ विज्ञान विषय लिया ,वहीं शुभी ने कला विषय के साथ आगे बढ़ने का निश्चय किया।शुभी को पता है कि बीमारी के कारण उसका कोई भविष्य नहीं है।वहीं अंशिका के सामने एक सुखद भविष्य बाँहे पसारे उसका इंतजार कर रहा है।शिक्षा के क्षेत्र मेंदोनों ने ही पांच वर्षों का सफर अलग -2 तय किया। अंशिका की व्यस्तता के कारण उनका मिलना भी इन वर्षों में कम हुआ ,पर आत्मीयता में रत्ती भर भी अंतर न आया।
ऐसे ही शुभी के दौरों में भी कोई कमी न आई ,बल्कि कुछ बढ़ ही गए। भले ही इसका कारण उसका अकेलापन और जीवन के प्रति उसका नकारात्मक दृष्टिकोण ही क्यों न रहा हो। समय की भी अपनी चाल है,उसके अनुसार सभी को आगे बढ़ना ही होता है।समय की इसी गति का परिणाम रहा कि स्नातक पूर्ण होते ही उसके पिता ने एक व्यवसायी के सुपुत्र से उसका विवाह कर दिया।संजोग कुछ ऐसा बैठा कि जिन दिनों ही अंशिका का विवाह हुआ शुभी बीमार होने के कारण विवाह में सम्मिलित न हो सकी।
इधर शुभी के घरवालों ने भी शुभी के विवाह करने का विचार बनाया।जब लड़के वालों से देखने आए तो सुभी बहुत खुश थी, पर पता नहीं कैसे उसकी खुशियों को ग्रहण लग गया।लड़के वालों के सामने ही शुभी को दौरा पड़ गया।इसका दुखद परिणाम ये हुआ कि लड़के वालों ने उसके पिता पर अपनी बीमार लड़की थोपने का आरोप लगाकर रिश्ता वहीं रोक दिया।इससे उनकी सामाजिक बदनामी भी कुछ इस तरह हुई कि भविष्य में शुभी की शादी होने की सभी सम्भावनाएं भी धूमिल हो गईं। अब तो शुभी हर पल उदास रहने लगी।उसने इस उदासी और अकेलेपन को ही अपनी जिंदगी मान लिया,और एक बेरौनक जीवन जीने लगी।
इधर अंशिका अपनी शादी के एक माह बाद मायके लौटी तो उसने अपनी सभी सहेलियों के लिये एक पार्टी का आयोजन किया।जब वो पार्टी का निमंत्रण देने वो शुभी के घर पहुँची तो उसे देख कर उसका दिल धक से रह गया।कहाँ तो हमेशा गुलाबों से खिली रहने वाली अपनी दोस्त को छोड़कर गयी थी पर अब जो मिल रही है वो निस्तेज से चेहरे वाली ,खामोशी की गुड़िया लग रही है। जब उसे शुभी की शादी टूटने का पता चला तो उसे बड़ा दुख हुआ।उसने शुभी की खुशियां लौटाने का ,उसे फिर से वही गुलाब की कली बनाने का फैसला किया मन ही मन।
दोनों सखियों ने ढेर सारी बातें की। पर अंशिका ने महसूस किया कि शुभी वहां होते हुए भी पूरी तरह से वहां न थीं। वो उसकी सब बातें सुन रही थी ,जबाब भी दे रही थी पर उसकी बातों से उसके मन में एक गहरी उदासी भी बढ़ती हुई महसूस की आंशिक ने।सुभी के पूछने पर अंशिका अपनी ससुराल में बारे में बताने लगी।ससुराल में ससुर जी, एक नंद और पति ही हैं। सासु मां का हाल ही में निधन हुआ ,जिस कारण धवल की शादी बहुत जल्द करनी पड़ी । पति व ससुर जी मिलकर अपना व्यवसाय संभालते हैं।ननद अभी छोटी है पढ़ रही है 12वीं में।
उसके पति बहुत ही हँसमुख व मिलनसार हैं। अपनी शादीसुदा जिंदगी के बारे में भी बहुत सी बातें उसने शुभी को बतायीं।जिसे सुनकर उसके मुंह से एक ठंडी आह सी निकली।मन ही मन बोली- काश! ये सुख मुझे भी मिल सकता।अंशिका ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोला- जरूर मिलेगा ।तुम निराश क्यों होती हो ,मैं हूँ न। पर सुभी ने उससे सिर्फ इतना ही कहा- तुझे तो सब पता है न ।मुझे झूठे सपने मत दिखा।मैं ऐसे ही ठीक हूँ।
अगले दिन पार्टी में आने का वादा ले दोनों सखियाँ विदा हुई। अगले दिन सुभि का मन तो नहीं था पर अंशिका को वादा किया था तो उसे निभाने के लिए जाने को तैयार होने लगी। जब वो पार्टी में पहुंची तो पता चला उसका ही इंतजार हो रहा था।सबने मिलकर बहुत मजे किये।
आंशिका जब शुभी को धवल से मिला रही थी तो शुभी धवल को देखती ही रह गयी।5.8" का एक सुदर्शन युवक , सुभी ने अंशिका को धीरे से कोहनी मारते हुए कहा- यार अपने पतिदेब को सबसे बचा कर रखना। कहीं किसी की नजर न लग जाये। बेटा ,तेरी ही नजर लगेगी वरना किसी और में इतनी हिम्मत नहीं है की मेरे पतिदेव की ओर नजर उठाकर भी देख सके। इतना कहकर दोनों सखियाँ खिलखिला कर हंस दीं। हँसी की आवाज सुनकर धवल ने उनकी हंसीं में शामिल होते हुए कहा- क्या बात है,किस बात पर इतनी हंसी आ रही है? जरा हमें भी बताइये ,हम भी हंस ले थोड़ा सा।ये तो हम दोनों सखियों के बीच की बात है जीजा जी,शुभी ने जबाब दिया।तभी अंशिका ने सुभी को टोकते हुए कहा- यार ,जीजाजी मत बोल। धवल नाम है इनका ,वही बोल।हाँ शुभी जी,अंशिका सही बोल रही है।धवल ने अंशिका का समर्थन करते हुए कहा।ठीक है ,आगे से ध्यान रखूंगी सुभी ने उत्तर दिया।सभी ने पार्टी का खूब आनंद लिया।। उस पार्टी में कुछ समय के लिए शुभी अपने सारे दुख ,अकेलापन सब भूल गयी।घर जाते समय शुभी के चेहरे पर एक अलग ही चमक थी जिसे अंशिका ने महसुस कर लिया।
अगले दिन अंशिका को भी अपने ससुराल वापस लौटना था तो वो तैयारी करने लगी। अंशिका का ससुराल उसके मायके से लगभग 100 किमी की दूरी पर था। शुभी ,अंशिका से रोज फोन पर बातें करती ,आखिर वो उसकी एकलौती सहेली जो थी ।पर घर गृहस्थी के चक्कर में फंसी अंशिका कभी कभी जबाब न दे पाती । कभी बात करते करते बीच में ही बिना जबाब दिए ही रख देती की बाद में बात करती हूं पर अफसोस कि वो फिर जल्दी न आता । कई दिन इंतजार करने के बाद सुभी को ही फोन लगाना पड़ता। परिस्थितियों को समझते हुए शुभी ने भी अंशिका को परेशान करना सही न समझा। इससे एक बार फिर शुभी को अकेलेपन ने घेर लिया ।अपना अकेलापन दूर करने के लिए वो अकसर पास के पार्क में जा बैठती ।
एक दिन की बात है शुभी पार्क जाते समय किसी से टकरा गयी ।टकराने वाले ने उसे गिरने से बचाते हुए कहा-- किसके ख्यालों में खोई हैं आप, जो आस पास भी ध्यान नहीं हैं आपका।सॉरी व थैंक्स यु बोलते हुए जब उसने निगाह उठाकर देखा तो सामने धवल को पाया।आश्चर्य मिश्रित खुशी के साथ उसने पूछा - आप यहाँ कैसे? क्या अंशिका भी आई हैं ,और आप यहां कैसे? धवल ने कहा- बताऊँगा , पर क्या कुछ देर तुम मेरे साथ पार्क में बैठोगी। मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करना है।हां ,चलो मैं तो प्रतिदिन यहॉं आती हूँ। बड़ा सुकून मिलता है।। दोनों पार्क के एकांत में एक बैंच पर जा बैठते हैं। कुछ देर की खामोशी के बाद धवल शुभी से पूछता है - क्या उसने किसी से प्यार किया है? प्यार के बारे में उसके क्या ख्याल हैं। प्यार शब्द सुनकर शुभी चौंक जाती है। वो धवल को गौर से देखने लगती है। पर धवल उसी शांत भाव से पूछता है- क्या हुआ,इसमें इतना चौंकने वाली क्या बात है। मैं अभी बड़ी उलझन में हूँ। ये बात में अंशिका से नहीं पूछ सकता और फिर अंशिका और मैं ,दोनों ही आपको अपना मानते हैं। तो इसलिए ही आपसे पूछ रहा हूँ।क्या आप मेरी उलझन दूर करने में ,मेरी मदद करेंगी? कुछ देर खामोश रहने के बाद शुभी जबाब देती है । मैंने कभी किसी से प्यार नहीं किया है। ठीक है ,. ये तो मेरे पहले सवाल का जबाब हुआ।
दूसरे सवाल का जबाब भी तो दीजिये। जरूरी है देना,धवल की बात पर पलटवार करते हुए शुभी ने कहा। जी, बहुत जरूरी है ।मेरी सारी उलझन तो इसी कारण है धवल भी उसी सुर में बोला। ठीक है तो फिर सुनिए प्यार के बारे में मेरे विचार।
" प्यार एक खूबसूरत अहसास होता है ।इसमें चेहरे की सुंदरता से भी ज्यादा मन की खूबसूरती मायने रखती है। प्यार सिर्फ भावनाओं का खेल है। मुझे लगता है कि जिसे भी प्यार होता है वो दुनिया का खुशनसीब इंसान होता है। क्योकि प्यार एक साधारण से व्यक्ति को भी खास बना देता है। ऐसा व्यक्ति, जिसमें दूसरे की जान बसती है। जिसे देखकर कोई दूसरा सांस लेता है। पर उससे भी ज्यादा खुशनसीबी की बात तब होती है जब दो प्यार करने वाले शादी की मंजिल तक पहुंचते हैं। " अक्सर देखा जाता है कि बहुत से लोग मंजिल पर नहीं पहुंच पाते। कुछ परिवार व समाज की मजबूरी में साथ छोड़ देते हैं ,कुछ स्वार्थ में साथ नहीं चल पाते।बरहाल नतीजा बीच रास्ते में ही साथ छोड़कर दूसरे रास्ते पर चलना ही होता है।
धवल ताली बजाते हुए बोला--वाह, बहुत लाजबाब विचार हैं आपके। बस एक सवाल का जबाब और दीजिये - क्या प्यार करते समय आयु, पद, सामाजिक व पारिवारिक स्थिति बीच में आ सकती है? शुभी बोली- मेरे हिसाब से तो नहीं। ये तो जिससे भी ,जब भी होना होता है ,हो जाता है । प्यार पर किसी का जोर नहीं चलता है। न तो ये आयु देखकर होता है न पद- प्रतिष्ठा । ये तो दिल मिले का सौदा है । जी आपकी सभी बातों से पूर्णतया सहमत हूँ। अब मैं आपसे जो कुछ भी कहने जा रहा हूँ उसे ध्यान से सुनना ।
बहुत कुछ सोच समझ कर ही जबाब देना। जब मैंने आपको पहली बार देखा ,तब से ही आपको अपना दिल दे चुका हूं।आपकी सुंदरता पर मरने वाले तो लाखों होंगे ,पर मैं तो आपकी सादगी पर मर मिटा हूँ।हर पल सिर्फ आपका ही ख्याल रहता है। किसी भी काम में मन नहीं लगता। यहाँ तक कि अंशिका की तरफ देखने का भी मन नहीं होता है। आप ही बताइये ,मैं क्या करूँ।आपकी सहेली की घर -गृहस्थी ,उसकी सुख - शांति अब आपके हाथ में है।सुभी ने चिल्ला कर कहा- आप होश में तो हैं।आपको पता भी है कि क्या बोल रहे हैं आप। आपको याद है कि नही की आप मेरी सहेली के पति हैं। और आप अपनी पत्नी की ही सबसे अच्छी सहेली से प्रणय निवेदन कर रहे हैं। मैं अपने हाथों से अपनी प्यारी सखी के घर में क्यों आग लगाऊँ।आपको अंशिका में क्या कमी नजर आती है जो उसके साथ बेबफाई करने के बारे में सोच रहे हैं।आपको शर्म आनी चाहिए ऐसा सोचते हुए भी। धवल ने उसे समझाते हुए कहा- शांति से विचार करना जरा मेरी बातों पर। ऐसे यूँ जल्दबाजी में न कुछ बोलना है और न ही कुछ सोचना है आपको । ये दोनों काम घर जाकर आराम से अकेले में करना , सोचने के लिए बहुत वक्त दूँगा आपको मैं।अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई है ।
आपकी शादी का टूटना, उसकी वजह आपकी बीमारी,आपकी तन्हाई,अकेलापन , माता पिता की चिंता आपके लिए -- ये सब में जानता हूँ ,समझता भी हूँ। मैं आपसे प्यार करता हूँ इसलिए आपको यूँ अकेलेपन से जूझते हुए, रोज रोज टूटते हुए नहीं देख सकता।आपको शायद पता नहीं है फूल भी यदि डाली पर ही लगा रह जाए तो कुछ समय बाद वो भी वहीं लगा -लगा ही मुरझा जाता है ।
वही बिखर जाता है।यदि फूल की खुशबू का उपयोग न किया जाए तो वो भी अपना अस्तित्व खो देता है। हम लोग तो फिर भी एक आम इंसान हैं।मुझे आपकी फिक्र है इसलिए आपके बारे में सोच रहा हूँ। आपको मेरी एक सलाह है मेरा न सही ,किसी और का ही सही प्यार आप अपने दिल में बसा कर तो देखो ,आपकी बीमारी ऐसे छू हो जाएगी कि जैसे कभी थी ही नहीं।आपको पता भी नहीं चलेगा इस बात का। आपके माता- पिता भी आपकी चिंता में डूबे रहते हैं दिन - रात।जब तक वो हैं ,तब तक तो सब ठीक है पर उनके जाने के बाद? भाई - भाभी भी भला किसी के हुए हैं । परिवार वाले बहुत ज्यादा अच्छे भी हुए तो सिर पर छत ,खाना दे सकते हैं।पर क्या जीवन में उत्साह और उमंग दे सकते हैं? अरे, जीवन में आपको भी तो कोई चाहिए,जो आपका अपना हो। आप जिसका आप इंतजार कर सकें, देर से आने पर जिसे उलाहना दे सकें। जिससे आप रूठे और जो आपको मनाए। जिसके लिए आप स्वादिष्ट खाने बनाये और जो तारीफ में उंगलियां चाटने की बात कहे। बहुत सुंदर लग रही हो ,ये रंग बहुत खिलता है तुम पर।जिसकी ये बातें सुनकर शरमा कर कह सको ,आप भी न और ये बोलते हुए चेहरा सुर्ख लाल हो जाये।
क्या आपको ये लगता है कि मैं आपके लायक नहीं? यदि ऐसा है ,तो कोई बात नहीं। पर ऐसा नहीं है तो मेरी बातों पर अवश्य विचार करिएगा। मेरी सलाह है एक बार अपनी सहेली से भी पूछियेगा इस विषय में।वो आपसे बहुत प्यार करती है, सही सलाह देगी आपको। एक अंतिम बात और बस एक बार मेरी बातों पर गौर करिएगा । बस एक बार---- दिल से कोशिश करना मेरा प्यार महसूस करने की। मेरा वादा है आपसे,आपकी बीमारी का ख्याल भी फिर आपके मन में न आएगा।इतना बोल धवल चला जाता है।जाते - जाते मुड़कर इतना जरूर बोलता है- मैं पांच दिन बाद आऊंगा ,इसी जगह अपना जबाब पाने।तब तक आराम से सोचना मेरे बारे में।
क्रमशः