5 - vyavsaay aur hamari bhavnaye in Hindi Motivational Stories by Rajesh Maheshwari books and stories PDF | अर्थ पथ - 5 - व्यवसाय और हमारी भावनायें

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अर्थ पथ - 5 - व्यवसाय और हमारी भावनायें

व्यवसाय और हमारी भावनायें

हम जब उद्योग, व्यवसाय या नौकरी में किसी एक का चयन करते है तो हमें बहुत सावधानीपूर्वक निर्णय लेना चाहिए क्योंकि हम अपने भविष्य का निर्धारण कर रहे होते है। आज इन तीनो क्षेत्रों में अनेक अवसर उपलब्ध है। हमें इनमें से चयन करना होगा कि हम किस उद्योग, कैसे व्यापार और किस प्रकार की नौकरी में जाना चाहते है। जीवन में सफलता के लिए कोई आवश्यक नही है कि आपके पास पूंजी का बहुत बडा भंडार हो। ऐसे अनेक उदाहरण है जिनमें थोडे से संसाधन जुटा कर ही कडी मेहनत और परिश्रम के बल पर बहुत बडी सफलताएँ प्राप्त की गई हैं। नदी अपने उदगम में एक पतली सी रेखा होती है पर वह धीरे धीरे आगे बढकर विषाल रूप ले लेती है। किसी ने सच ही कहा है -

अगर न देते साथ कहीं निर्झर-निर्झरिणी,

तो गंगा की धार क्षीण रेखा रह जाती।

यदि हमारी नीयत साफ हो, हृदय में ईमानदारी ,तन में परिश्रम की क्षमता, मन में धैर्य , मस्तिष्क में विवेकपूर्ण मनन व चिंतन हो तो हम सकारात्मक सृजन करके मिट्टी को भी सोना बना सकते है। हमारे देश के प्रसिद्ध उद्योगपति धीरूभाई अंबानी का उदाहरण हमारे सामने है। उन्होंने बचपन में पेट्रोल पंप पर भी नौकरी की थी। सूत के व्यापार के क्षेत्र में प्रवेश करके अपने अथक परिश्रम, लगन एवं राष्ट्र प्रथम की भावना से वे देश के प्रमुख उद्योगपति बने। आज अखिल भारतीय स्तर पर जो भी उद्योगपति जैसे टाटा, बिडला, बाँगड आदि स्थापित है, उन्होंनें अपने जीवन की शुरूआत बहुत छेाटे स्तर से की थी। वे लगातार संघर्ष करके आज इस मुकाम पर पहुँचे है। उन सभी ने हमारे देश की सभ्यता, संस्कृति एवं संस्कारों को संरक्षण प्रदान किया है।

उद्योग प्रमुख रूप से पांच प्रकार के होते है, गृह उद्योग, कुटीर उद्योग, लघु उद्योग, मध्यम उद्योग और बडे उद्योग। गृह उद्योग, कुटीर उद्योग और लघु उद्योग आज देष में रोजगार उपलब्ध कराने के आधारस्तंभ है। इन उद्योगो की स्थिति दयनीय होती जा रही है क्योंकि जीएसटी कर प्रणाली आने के बाद इनको मिलने वाली एक्साइज की छूट समाप्त हो गयी है जिससे उन्हें मध्यम और बडे उद्योगों से सीधा मुकाबला करना पड रहा है और उच्च वेतन, गुणवत्ता पूर्ण उत्पादन, जीएसटी जैसे करों के कारण लागत मूल्य बढ जाता है और इस कारण कुटीर एवं लघु उद्योगों को चला पाना बहुत कठिन है।

कुटीर एवं लघु उद्योगों की स्थापना के लिए मदद करने हेतु केंद्र और राज्य के स्तर पर अलग अलग प्रकोष्ठ है जो कि उद्योगों को तकनीकी व आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए बनाए गये है परंतु वे अपना दायित्व सही ढंग से नही निभा रहे हैं। ईमानदार उद्यमी परेशान और बेहाल हो रहा है। इन परिस्थितियेां के कारण मध्यम और बडे उद्योग ही बाजार में टिके हुए है क्योंकि उनके पास पर्याप्त पूंजी और तकनीकी साधन है, वे भ्रष्टाचार और प्रतिस्पर्धा के बीच भी अपना अस्तित्व बनाए रखने की क्षमता रखते है।

आज सभी जगह ईमानदारी, सच्चाई और नैतिकता का द्रोपदी के समान चीरहरण हो रहा है। मंहगाई और भ्रष्टाचार सुरसा के समान बढ रही है। हमारे समाज में युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव जैसे ना जाने कितने बुद्धिमान और बलशाली बेबस होकर सिर झुकाकर बैठे है। वे न जाने किस उलझन में है। द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म और कर्ण जैसे अनेक शूरवीर इस सामाजिक पतन को देखकर भी चुप रहकर मानो उनका समर्थन ही कर रहे हैं। शकुनि मामा घर घर में पैदा होकर विवादों को जन्म दे रहे है। देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे मनीषी धृतराष्ट्र और गांधारी के समान अपने अंधत्व का बोध करा रहे है। जनता अपेक्षा कर रही है कि कोई साहसी, पराक्रमी अर्जुन के समान रथ पर सवार हो एवं सदाचार, सद्चरित्र और नैतिकता पर आधारित जीवन का पुनर्जन्म कर ले। देश में क्रांति का शंखनाद होकर ऐसे कौरवों का अंत हो।

जीवन में मित्रता बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यदि हमें एक सच्चा मित्र भी मिल सके तो हमें अपने आप को धन्य समझना चाहिये। आप जिन्हें अपना मित्र या हितैषी समझते हैं वे कहाँ तक आपके हित-चिन्तक हैं यह समझना बहुत कठिन होता है। यह भी हो सकता है कि वे मन ही मन में आपकी उन्नति व तरक्की से ईष्र्या रखते हों। ऐसे मित्र आपके प्रति कृतज्ञता न रखते हुए अहसानमन्द भी नहीं रहेंगे। मित्र तीन प्रकार के होते हैं, सामाजिक मित्र, व्यावसायिक मित्र एवं निजी मित्र। व्यवसायिक मित्रता अत्यंत कठिन है। सामाजिक और निजी मित्रता का व्यवसाय से कोई संबंध नही रहता हैं। निजी एवं सामाजिक मित्र कितने भी हो सकते है लेकिन सदैव ध्यान रखना चाहिए कि यदि वे तुम्हें कोई सलाह दे तो अच्छी तरह सोच समझकर निर्णय लेना चाहिए। यदि जीवन में सच्ची मित्रता मिल जाती है तो जीवन के अधिकांष अभाव स्वमेव ही समाप्त हो जाते हैं।

सेठ पुरुषोत्तम दास नगर के प्रसिद्ध उद्योगपति थे जिन्होंने कठिन मेहनत और योग्यता से अपने उद्योग का निर्माण किया था। उनके एक मात्र पुत्र राकेश को विदेश से पढ़कर आने पर उद्योग से संबंधित सारी जानकारी सौंप दी गई। राकेश होशियार एवं परिश्रमी था किन्तु वह चाटुकारिता को नहीं समझ पाता था और सहज ही सब पर विष्वास कर लेता था।

उसने उद्योग के संचालन में आधुनिकता लाने हेतु परिवर्तन करने के लिये अपने परिचित पढ़े-लिखे डिग्रीधारियों की नियुक्ति की। उसके इस बदलाव से पुराने अनुभवी अधिकारी गण अपने को उपेक्षित अनुभव करने लगे। नये अधिकारियों ने कारखाने में नये उत्पादन की योजना बनाई एवं राकेष को इससे होने वाले भारी मुनाफे को बताकर सहमति ले ली और पुराने अनुभवी अधिकारियों को नजरन्दाज कर दिया।

इस नये उत्पादन के संबंध में पुराने अधिकारियों ने राकेश को आगाह किया था कि वर्तमान मशीनों से ऊँवी गुणवत्ता वाले इस प्रकार के माल का उत्पादन संभव नहीं है। नये अधिकारियों ने अपनी लुभावनी और चापलूसी पूर्ण बातों से अपनी बात का विश्वास दिला दिया कि ऐसा उत्पादन संभव है। कम्पनी पुरानी साख के कारण बिना सैम्पल देखे ही करोड़ो का आर्डर अग्रिम राशि के साथ प्राप्त हो गया। यह देखकर व संभावित मुनाफे को सोचकर राकेश व उसके मित्र नये अधिकारी गण फूले नहीं समा रहे थे। जब कारखाने में इसका उत्पादन करने का प्रयास किया गया तो सभी प्रयासों के बावजूद माल गुणवत्तापूर्ण नहीं बन पा रहा था। यह देखकर राकेश के सभी मित्र अधिकारियों ने अपने हाथ खड़े कर दिये और कुछ तो नौकरी छोड़कर भाग खड़े हुए। राकेश अत्यन्त दुविधा पूर्ण स्थिति में था और चिन्ताग्रस्त था कि यदि अपेक्षित माल नहीं बनाया गया तो कम्पनी की साख हमेशा को समाप्त हो जाएगी और अब उसके मित्रों की चापलूसी भरी बातें कचोटने लगीं थीं।

राकेश ने इन कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य को बनाये रखा और अपने पुराने अधिकारियों से उपेक्षा के लिये माफी मांगते अब आगे क्या किया जाये इस पर विचार हेतु अधिकारियों, कर्मचारियों और मजदूरों की बैठक बुलाई। सभी ने एक मत से कहा कि कम्पनी की साख को बचाना हमारा पहला कर्तव्य है। कम्पनी के अधिकारियों ने एक मत से कहा कि इस माल के निर्माण और समय पर भेजने हेतु हमें उच्चस्तरीय मशीनरी की आवश्यकता है। किसी भी मूल्य पर मिले पर हमें वह तत्काल खरीद लेना चाहिये। और विदेशो से सभी मशीनों का आयात किया गया। फिर दिन-रात एक करके सबने माल का उत्पादन करके निर्धारित समय पर सभी क्रेताओं को भिजवा दिया। इस सारी कवायद से कम्पनी को मुनाफा तो नहीं हुआ किन्तु उसकी साख बच गयी जो किसी भी उद्योग के लिये सबसे महत्वपूर्ण बात होती है। राकेश को भी यह बात समझ आ गयी कि अनुभव बहुत बड़ा गुण है एवं चापलूसों की बातों में आकर स्वविवेक का उपयोग न करना एक बड़ी भूल होती है। हमें अपने पुराने अनुभवी व्यक्तियों को कभी भी नजरन्दाज नहीं करना चाहिये। क्योंकि व्यवसाय का उद्देश्य केवल लाभ कमाना नहीं होता और इसे भावनाओं से जोड़ दिया जाये तो प्रभाव बहुत गहरा होता है।