पहली माचिस की तीली
अध्याय 10
टेलीफोन की घंटी लगातार बज रही थी, दोपहर को सो रहे सरवन पेरूमाल नींद से उठ कर बैठे।
"यस...! सरवन पेरूमल हियर...."
दूसरी तरफ से पुलिस कमिश्नर बात कर रहे थे।
"सर अचानक एक आकस्मिक घटना घट गई ।"
"क्या...?"
"आज सुबह आपने जिन तीन लोगों को सुरेश, कमल कुमार और एल्बोस रिहा किया था उन तीनों को किसी ने किडनैप कर लिया।"
"क... क्या....?"
"हां सर.... घर के सामने जो दीवार थी उस पर हाथ से लिखे एक पोस्टर चिपकाया हुआ था।"
"क्या पोस्टर...?"
"न्याय की देवी लंगडी हो गई। उसकी चिकित्सा करना चाहता हूं। चिकित्सा के लिए सुरेश, कमल कुमार और एल्बोस इन तीनों के खून की जरूरत है। अन्याय को जलाने वाली पहली माचिस की तीली।"
"पहली माचिस की तीली?"
"यस।"
"मेरे धमकी भरे पत्र में भी यह पहली माचिस की तीली यही लिखा था सर...."
"यह कोई समाज के विरोध में काम करने वालों का काम होगा..... कोर्ट जाते समय आते समय सुरक्षा का ध्यान रखना जरूरी है..."
"मेरे कोर्ट के जीवन में इस तरह की बातें मैंने बहुत देखी है कमिश्नर साहब। पुलिस के लोग एक अलग संस्था बनाकर तीव्रता से काम करें तो समाज विरोधी आवाज को बंद कर सकते हैं।"
"अलग एक ग्रुप बना दिया है जस्टिस साहब। किडनैप किए हुए तीनों लोगों को 12 घंटे के अंदर वापस लाने का हमने पक्का इरादा कर लिया।"
"उन्हें रिहा कराना पड़ेगा... नहीं तो कोर्ट के फैसले का सम्मान चला जाएगा...." सरवन पेरूमाल बात करके रिसीवर को रखते समय अजंता अंदर आई।
"अ... अप्पा....."
"हां...."
"थोड़ा उठ कर आइए..."
"क्यों क्या बात है...?"
"आइए... बताती हूं...." बोलती हुई अजंता चलने लगी तो वह बेटी के पीछे सरवन पेरूमाल चलने लगे।
अजंता बंगले के बाहर बगीचे में ले जाकर सामने वाले दीवार पर चिपकाये हुए पोस्टर को दिखाया ।
लाल स्याही से लिखा हुआ 4-5 दीवारों पर साफ दिखाई दे रहा था।
नजरें पहली पोस्टर पर गई।
सरवन पेरुमाल
तुम
शरणागत हुए
किससे...?
दूसरा पोस्टर ऐसा पूछा।
बेकार कागज के टुकड़ों लिए
न्याय को तुम
नाश कर सकते हो?
तीसरा पोस्टर आग सा जला।
तुम्हारी एक पत्नी
है।
शादी की उम्र की एक लड़की
है।
अस्मिता की पवित्रता का मतलब
उनसे पूछ कर देखो
चौथा पोस्टर धमकी वाला।
न्यायाधीश !
तुम्हें बदलना पड़ेगा।
नहीं तो
दूसरा हाथ दूसरा पैर
लेंगे।
पोस्टरों को पढ़कर सरवन पेरूमाल का चेहरा काला पड़ गया। फिर भी अपने डर को बिना दिखाएं हल्के मुस्कुराए।
"यह सब बेकार लोगों का काम है। सड़क पर चलने वाला कुत्ता हमें देख कर भौंके तो हमें परवाह किए बिना ही जाना पड़ेगा...."
"अप्पा...! कुत्ता किसी एक को देखकर बिना कारण के नहीं भौकेगा.... वह कोई गलती करें तब ही ...."
"कुत्ता पागल हो जाए तो भी भौंकेगा...."
"अप्पा....! आपने जो गलती की, प्रकाश में आ गया है। अब उसे छुपाने से कोई फायदा नहीं.... जनता अब पहले जैसे नहीं है। जनता ने सब पर ध्यान देना शुरू कर दिया है...."
सरवन पेरुमाल चिड़चिड़ाते हुए आगे के गेट पर जो सिक्योरिटी था उसे देखकर चिल्लाये।
"रामस्वामी..."
"साहब..."
रामस्वामी राइफल के साथ भाग कर आ कर भव्यता से - बाहर की तरफ खड़ा हुआ।
"इस पोस्टर को किसने चिपकाया?"
"नहीं मालूम साहब।"
"तुम गेट पर ही तो खड़े हो...? तुम्हें बिना पता चले यहां कोई आकर पोस्टर चिपका के चला गया...?"
"साहब... सुबह से मेरा पेट ठीक नहीं है... दो तीन दफा टॉयलेट को चला गया था। ऐसे में मेरे पीछे पोस्टर को चिपका दिया ऐसा लगता है..."
"पहले इन सब को साफ ढंग से फाड़ कर फेंक दो।"
"ठीक है साहब...."
सिक्योरिटी रामास्वामी रोड की तरफ भागा तो अजंता ने सरवन पेरुमाल को देखा।
"अप्पा....! दीवार पर चिपकाए हुए को आदमी फाड़ कर फेंक सकता है। परंतु मन के अंदर चिपकाए हुए पोस्टर को आप कैसे फाड़ के फेंकोंगे...?
सरवन पेरूमाल मुस्कुराए। "तुम जाकर रसोई में कुछ काम है तो देखो यह सब तुम्हारे लिए बेकार की बातें हैं। कल सुबह 10:00 बजे तुम्हें जर्मनी से लड़का देखने आ रहा है। उसे ही याद करो और किसी बात को मत सोचो...."
"अप्पा...."
"क्या बात है बेटी...?"
"मुझे शादी नहीं करना।"
"क्यों बेटी..."
"मेरा मन ठीक नहीं है।"
"यह मन ठीक नहीं है। ये शरीर ठीक नहीं है यह सब एक-दो दिन की बात है फिर सब ठीक हो जाएगा।"
अमृतम आवाज देती हुई तेजी से आई। "यह कैसे ठीक होगा जी? मन में इतने बड़े भार को लेकर कोई खुश कैसे रह सकता है....!"
लाल चेहरे से सरवन पेरूमाल अपने अंगुली को ऊंचा किया।
"यह देखो...! मेरी इच्छा से ही इस घर में सब कुछ होगा। मुंह बंद रखो और जो मुंह में आया बोलो तो मुझे बहुत गुस्सा आएगा। मेरा गुस्सा भी एक सीमा तक ही होगा। फिर..."
अपनी बात को रोक कर पत्नी को और बेटी को बारी बारी से देख कर अपनी आवाज को धीमी करके बोले।
"फिर... इस घर में सिर्फ तुम ही लोग रहोगे। मैं बाहर चला जाऊंगा...."
अमृतम और अजंता सहम से गए और सरवन पेरूमाल को देखा तो वे लापरवाही के साथ चलते हुए अपने कमरे की तरफ गए।
दुर्गा नगर।
शाम के 5:00 बजे सुंदर पांडियन, कृष्णकांत के घर का पता लगा कर सामने जाकर खड़ा हुआ। गेट जरा खुला हुआ था।
धीरे से धकेला।
गेट बिना आवाज किए थोड़ा आगे आकर पीछे हुआ।
झांक कर देखा।
हरी-हरी घास का लॉन -
उस पर कुर्सी डालकर कृष्णकांत बैठे हुए दिखे।
हाथ हिला कर बुलाया।
"आओ।"
सुंदरपंडियन के अंदर घुसते ही पोर्टिको में खंभे से बंधा हुआ डाबरमैन भौंकने लगा।
कृष्णकांत कुत्ते की तरह मुड़कर हाथ को ऊंचा कर उसे रोका वह फिर चुप हो गया।
सुंदरपंडियन सकुचाते हुए चलकर इधर-उधर देखने लगा ।
बंगला निशब्द था। वहाँ कोई मनुष्य नहीं दिखा।
वह कृष्णाकांत के सामने जाकर खड़ा हुआ। उनके हाथ में शाम का अखबार मोड कर डालते हुए "बैठो" बोले।
उनके सामने जो पॉलीमर कुर्सी थी उस पर सुंदरपांडियन संकोच के साथ बैठा।
उसे कुछ देर देखने के बाद धीरे से शुरू हुए कृष्णकांत।
"मुकुटपति पेट्रोल लेने की बात को तुमने देखा यह तुम्हारा सौभाग्य है। हमारा दुर्भाग्य.... मैं सीधे ही विषय पर आ जाता हूं।"
"आइए..."
"तुम्हें कितना चाहिए...?"
"क्या...?"
"रुपया।"
"क्यों...?"
"पेट्रोल की बात को बाहर ना बताने के लिए..."
सुंदरपंडियन हंसा।
"आपको नहीं मालूम क्या रेट...? आपने तो सबके लिए एक रेट रखा होगा..."
"एक लाख रुपए देता हूं... लेकर अलग हो जा।"
"यह रेट नहीं चलेगा.... लाख रुपए आज हजार रुपए जैसे..."
"ठीक है... तुम्हें कितना चाहिए।"
"मांगू.... तो आपको गुस्सा आएगा।"
"मांगो.."
"आपने एक लाख रुपए दूंगा बोला ?"
"हां..."
"उसे 50 से गुणा करो तो कितना ?"
"पचास लाख...."
"वही मेरा रेट है...."
कृष्णकांत के चेहरे पर जो चश्मा था उसे सदमे के साथ उतारा।
"यह तो डाका है...?"
"डाका डाला हुआ रुपए ही तो मांग रहा हूं।"
"तुम जो सोच रहे हो ऐसा कुछ नहीं है। कुछ रुपए कमाए बस इतना ही। दो लाख देता हूं। लेकर चले जाओ...."
"मैंने जो मांगा पचास लाख। आप जो बोल रहे हो दो लाख। इतना अंतर नहीं होना चाहिए। और थोड़ा ऊपर आइए..."
सुंदर पांडियन बोल रहा था तभी उसके पीछे चलने की आवाज सुनाई दी।
मुड़कर देखा।
मुकुटपति और नवनीत आ रहे थे। सुंदरपांडियन संकोच से उठ कर खड़ा हुआ ।
"बैठो भाई...! क्यों खड़े हुए? तुम्हारी समस्या को बात करके खत्म करने के लिए ही तो यह भी आए हैं।"
मुकुट पति और नवनीत सुंदरपंडियन के दोनों तरफ खड़े होकर उसके कंधे पर हाथ रखा।
नवनीत ने पूछा।
"क्या... ? रेट जमा नहीं....?"
"वह... जो....."
"इतना कम मांगना चाहिए....? मांगा तो एक करोड़ रूपया नहीं मांगना चाहिए...?"
"...."
"हम लोग बहुत सालों से कष्ट पाकर कमाए पैसों को पेट्रोल के कारण दिखाकर उसे उड़ा कर ले जाना चाह रहे हो... यह कोई न्याय है...?"
मुकुटपति साहस के साथ बोला।
"ठीक है... आप मेरे लिए कितना रुपए दे सकते हो....?"
"कुछ भी नहीं दे रहे हैं सुंदर पांडियन।"
"इन्होंने दो लाख रुपए देने को बोला था।"
"वह एक मिनट में कैंसिल हुआ।"
"क्या बोल रहे हो....?"
"बहरूपिया अब तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा..."
"मैं पुलिस में जाकर बात बता दूं तो क्या होगा पता है....?"
"तुम पुलिस में नहीं जा सकते।'
"क्यों...?"
"तुम्हें जिंदा इस बंगले के बाहर भेजें तभी ना... पुलिस के पास जाओगे...?"
मुकुट पति कमर से एक चाकू को, और नवनीत छाती की तरफ से एक रिवाल्वर निकाल लिया।
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