Ulajjn - 15 in Hindi Moral Stories by Amita Dubey books and stories PDF | उलझन - 15

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उलझन - 15

उलझन

डॉ. अमिता दुबे

पन्द्रह

रविवार को सुबह दस बजे अंशिका सोमू के मम्मी-पापा के साथ कलिका के यहाँ आ गयी। वह सोमू के साथ खड़े होकर लाॅन में की जाने वाली सजावट देख रही थी कि गेट की घण्टी बजी। गेट खुलने पर सामने अपने पापा को देखकर वह हतप्रभ रह गयी। मारे खुशी के उसके मुँह से एक शब्द नहीं निकला। हाॅ जैसे-जैसे लम्बा लाॅन पारकर पापा पास आते गये उसकी आँखों से झर-झर आँसू गिरने लगे। पापा जब बिल्कुल पास आ गये तब उसे होश आया और वह पापा से लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगी। वह इतना बिलखी कि उसे सम्हालने के लिए सौमित्र की मम्मी, बुआ और दादी को आना पड़ा।

दादी के डाँट लगाने पर अंशी बड़ी मुश्किल से चुप हुई। फिर पापा के पास सोफे पर बैठ गयी। धीरे-धीरे सभी लोग उन दोनों को छोड़कर बाहर चले गये। अंशी ने सबसे पहले दादी माँ का हाल पूछा फिर अपनी सभी सहेलियों का सबसे बाद में पड़ोस वाली आण्टी का। अंशिका को यह आण्टी कभी नहीं अच्छी लगीं। वे अक्सर मम्मी के पास आकर बैठ जाती थीं और उल्टी-सीधी सलाह दिया करतीं थीं, दादी के खिलाफ भड़काया करती थीं। आज तक अंशी ने कभी ये बात पापा या दादी को नहीं बतायी लेकन आज एक घण्टे में उसने सब कुछ कह डाला। जो कुछ उसके मन में था। उसने यह भी कहा कि पड़ोसी आण्टी का फोन मम्मी के लिए यहाँ भी आता रहता है और वे खूब नमक-मिर्च लगाकर दादी से हुई बातचीत मम्मी को बताती हैं यही काम वे वहाँ भी करती थीं।

पापा ने समझाया - ‘अंशी बेटा ! तुम्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए इन बातों में पड़कर तुम अपने लक्ष्य से भटक जाओगी। याद रखो तुम्हें बड़ा काम करना है। इन छोटी-छोटी ’बाधाओं की ओर ध्यान मत दो। आज नहीं तो कल सब कुछ ठीक हो जायेगा और दुर्भाग्य से नहीं ठीक हो सका तो आदत पड़ जायेगी। लेकिन तुम्हारी जिन्दगी का बहुमूल्य समय बेकार हो जायेगा। मैं मानता हूँ कि तुम्हें बहुत तनाव है, बहुत सारे तुम्हारे प्रश्न अनुत्तरित हैं जिसका जवाब न तुम्हारी मम्मी दे रही हैं और न ही मैं दे पा रहा हूँ। लेकिन प्लीज अंशी बेटा तुम इन प्रश्नों में अभी मत उलझो अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगाओ क्योंकि यही पढ़ाई तुम्हें अच्छा इंसान बनायेगी।

अंशिका को जज साहिबा की बात अनायास याद हो आयी। उसने पूरा विवरण पापा को बताया और यह भी कहा कि जज मैडम ने उसे यह आश्वासन दिया है कि वे कोई ऐसा काम नहीं होने देंगीं जो अंशिका के इच्छा के विपरीत हो। पापा ने उसकी बात ध्यान से सुनी और फिर वही बात दोहरा दी कि इन बातों पर ध्यान मत दो।

अचानक अंशिका बिफर गयी बोली - ‘पापा कैसे ध्यान न दूँ ? मुझे आप लोगों की लड़ाई में पिसना पड़ रहा है। मुझे आपकी और दादी माँ की बहुत याद आती है। मैं मम्मी से बहुत नाराज हूँ उनकी एक भी बात मुझे अब अच्छी नहीं लग रही है मैं उनके साथ एक भी दिन नहीं रहना चाहती मुझे यहाँ बिल्कुल अच्छा नहीं लगता मुझे अपने साथ ले चलिये।’

पापा ने प्यार से सिर पर हाथ फेरते हुए कहा - ‘मेरी बहादुर बेटी ! परेशान नहीं होते तुम तो बहुत हिम्मती हो मैं सबकुछ ठीक कर लूँगा। तुम्हारे एक्जाम्स में कुछ ही दिन बचे हैं अच्छे से पढ़ाई कर इम्तेहान दो फिर मैं तुम्हें अपने साथ ले चलूँगा और जब तक तुम नहीं चाहोगी तुम यहाँ वापस नहीं आओगी।’

‘लेकिन पापा मुझे अपना वही पुराना घर पुराना माहौल चाहिए जिसमें मैं अपनी मम्मी अपने पापा और प्यारी-प्यारी दादी माँ के साथ रहती थी।’ अंशिका मानो जिद्द पर उतारू थी।

‘बेटा! मैं कोशिश करुँगा कि तुम्हारी मम्मी और मेरे बीच जो गलतफैमियाँ हैं वे दूर हो जायें और हम फिर साथ-साथ रहें लेकिन अंशी बेटा! इस तरह उतावली से तो काम नहीं चलेगा तुम रो-रोकर खुद भी परेशान होगी और मुझे भी परेशान करोगी। सोचो अभी थोड़ी देर बाद जब मैं यहाँ से चला जाऊँगा और जब भी तुम्हें याद करुँगा तुम्हारा रोने वाला चेहरा ही मुझे याद आयेगा सोचो कितना दुःख होगा मुझे।’ पापा का स्वर दुःखी लग रहा था।

अंशिका ने झट से आँसू पोंछ लिये ‘एक मिनट पापा’ कहकर वह बाथरूम में घुस गयी और अच्छी तरह से हाथ-मुँह धोकर बाहर आयी। तब तक सौमित्र के पापा, फूफा जी भी कमरे में आ गये थे। पापा से इजाजत लेकर अंशिका बाहर आ तो गयी लेकिन उसे बार-बार यही लगता रहा कि पापा अभी चले जायेंगें।

हुआ भी यही पापा चाय नाश्ता कर वापस चले गये। जाते-जाते अंशिका से प्राॅमिस कर गये कि जब अंशिका रिजल्ट निकलेगा तब वे जरूर आयेंगे और उसे अपने साथ ले जायेंगें। अंशिका ने टोका था - ‘पापा क्या आप इक्जाम खत्म होने के तुरन्त बाद नहीं आ सकते मुझे लेने।’

‘नहीं बेटा ! तुम्हारे रिजल्ट के बाद हम तुम्हें अपने साथ ले चलेंगे। मैं तुम्हारे भविष्य से खिलवाड़ तो नहीं कर सकता।’ पापा ने कहा।

अंशिका ने हाँ में गरदन तो हिला दी लेकिन उसे पक्का पता है कि पापा के साथ मम्मी कभी नहीं भेजेंगीं। उनका बस चले तो सब कुछ उलट पलट डालें। अगर वे जान जायें कि आज पापा यहाँ आयें थे तो अंकल-आण्टी से भी झगड़ा कर लें। उसकी तो खूब पिटायी हो जाये। अंशिका उदास हो गयी क्या मुसीबत है इतनी बड़ी बात कि आज इतने महीनों बाद उसने पापा को देखा है किसी को बता भी नहीं सकती। अरे भाई दीवारों के भी कान होते हैं।’

सौमित्र के पुकारने पर अंशिका दूसरी ओर चली गयी। लेकिन रह-रहकर उसकी आँखों के सामने पापा का चेहरा घूमता रहा। बाद में काफी देर तक उसका मन नहीं लगा। शाम को आण्टी के कहने पर उसने कपड़े बदले और लाॅन में कलिका दीदी के साथ खड़ी हो गयी। धीरे-धीरे लोग आने लगे। पत्रकारों ने दीदी को घेरकर रखा था वे तरह-तरह के सवाल कर रहे थे और दीदी जवाब दे रहीं थीं। दीदी जिस आत्मविश्वास से बात कर रही थीं उसे देखकर लग रहा था कि दीदी इन सब बातों की आदी हैं लेकिन सौमित्र और अंशिका अच्छी तरह जानते हैं कि दीदी इण्डिया में पहली बार कैमरा फेस कर रही हैं। हाँ, विदेश में ऐसा कुछ हुआ हो तो वे नहीं जानते।

चीफ गेस्ट के आने के बाद दीदी ने अपना आर्टिकल पढ़ा। स्पष्ट उच्चारण, सरल अंग्रेजी और भावों के अनुसार स्वर के उतार-चढ़ाव ने कलिका के भाषण को और अध्ज्ञिक प्रभावकारी बना दिया। आर्टिकल पढ़ने से पहले उन्होंने अपनी उपलब्धि के लिए अपनी प्रिंसिपल, टीचर्स, टूर लीडर सहित अपनी नानी माँ यानि सौमित्र की दादी के आशीर्वाद को मुख्य बताया। उन्होंने यह भी कहा कि मेरी नानी माँ के कारण ही मुझे इस दस दिवसीय टूर प्रोग्राम में सम्मिलित होने का मौका मिला और मेरे हिस्से में यह उपलब्धि आयी। सोमू ने देखा अचानक सबकी निगाहें कलिका दीदी के साथ-साथ दादी माँ पर एक क्षण के लिए ठहर गयीं कई पे्रस फोटोग्राफरों ने तो उनकी फोटो भी खींची।

सोमू का सीना गर्व से चैड़ा हो गया। कलिका दीदी ने वास्तव में सबका नाम रौशन किया था।

खाना-पीना खत्म होते-होते रात हो गयी। सब लोग हँसी खुशी विदा हो गये। चलते समय दादी ने बुआ से कहा - ‘देखा आज हमारी गुड़िया के कारण हमारा कितना मान-सम्मान हुआ।’ सोमू ने बात बीच में पकड़ ली- ‘दादी ! अभी तो जब कल के अखबार में आपकी फोटो के साथ कलिका दीदी की फोटो छपेगी तब देखियेगा आपके पास कितने फोन आते हैं। सारी बुड्ढी दादी अफसोस करेंगीं कि कलिका दीदी उनकी बेटी क्यों नहीं हुई। इस स्मार्ट सी लेडी के घर क्यों पैदा हुई।’

‘बहुत बड़ी-बड़ी बातें करने लगा है रे सोमू !’ बुआ जी ने प्यार से देखा - ‘कहाँ से सीखा ये सब।’

‘अपनी गर्ल फ्रैण्ड से।’ सोमू का उत्तर था।

‘कौन गर्ल फ्रैण्ड ? अंशिका वह तो बहुत सीध्ज्ञी बच्ची है।’ बुआ को आश्चर्य हुआ।

‘ध्ज्ञत् बुआ, अंशिका कोई गर्ल फ्रैण्ड है मेरी। वह तो क्लासमेट है। मेरे साथ घर में भी पढ़ती है।’ सोमू ने रहस्य बनाया।

‘तो आखिर तेरी गर्ल फ्रैण्ड है कौन ? हम भी जानें और कभी हमें भी मिलवाओ उससे।’ कलिका दीदी भी उत्सुक हो गयीं।

मम्मी और दादी मुस्कुराने लगीं। बुआ की जिज्ञासा और बढ़ने लगी।

सोमू ने रहस्य खोला - ‘आप मेरी गर्ल फ्रैण्ड से अच्छी तरह मिली हैं और खूब एडमायर भी करती हैं कलिका दीदी।

‘अब बोलो भी बातों में क्यों बहला रहे हो।’ बुआ ने उतावली दिखायी।

‘मेरी गर्ल फ्रैण्ड तो ये हैं’ कहते हुए सोमू ने दादी माँ के गले में बाहें डाल दीं -‘देखा कितनी प्यारी, क्यूट और समझदार हैं मेरी गर्ल फ्रैण्ड।’

‘हाँ सच सोमू ! तेरी गर्ल फ्रैण्ड तो मुझे भी बहुत पसन्द हैं। वे मेरी भी बेस्ट फ्रैण्ड हैं बल्कि मेरी तो रोल माॅडल हैं नानी माँ। कहकर कलिका दीदी ने दूसरी ओर से दादी के गले में बाहें डाल दीं।’ कुर्सी पर बैठी दादी ने दोनों को दुलार से चिपका लिया। तब तक निक्की और मिक्की भी पास आ गये। पापा ने मोबाइल के कैमरे से इस दृश्य को कैद कर लिया।

चाची, मम्मी और बुआ एक साथ बोली - ‘कलिका तुम्हारी तरह सोमू की गर्ल फ्रैण्ड हमारी भी रोल माॅडल हैं। हम कामना करते हैं कि माँ जी की तरह ही हमारे विचार अगली पीढ़ी को रास्ता दिखायें। सबको पे्रम के सूत्र में पिरोने का काम तो माँजी ने ही किया है।’

दादी माँ ने सोमू का माथा चूमते हुए कहा लेकिन मेरा हनुमान तो सोमू ही है जो हर मौके पर मेरा सहायक होता है। सोमू प्यारा बच्चा है हर बच्चे को इसी की तरह बड़ों का आदर करना चाहिए और छोटों को प्यार दुलार साथ ही अपने साथियों की उलझन को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।

सोमू फिर उलझन में है। इस बार उसकी उलझन का कारण अभिनव का मौसेरा भाई मानव है। बोर्ड एक्जाम्स बहुत पास आ गये हैं। सभी बच्चे मेहनत से पढ़ाई करने में लगे हैं। स्कूलों में भी हर दिन रिवीजन टेस्ट हो रहे हैं जिसके द्वारा टीचर्स बच्चों में कम्प्टीशन की भावना पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं। सबकुछ ठीक चल रहा था। अपनी बीमारी से निपटकर अभिनव कायदे से पढ़ने भी लगा था कि इस बार दशहरे की छुट्टियों में उसकी मौसी का बेटा मानव चार दिनों के लिए उनके घर रहने आया। मौसी मौसाजी के साथ किसी रिश्तेदार की रिंग सैरेमनी में सम्मिलित होने कलकत्ता जा रही थीं। मानव की पढ़ाई में हर्ज न हो इसलिए उसे अभिनव के यहाँ छोड़ गयीं। अभिनव की मानव से पटती भी खूब थी इसलिए उसका आना अभिनव को बुरा भी नहीं लगा।

सुबह की ठण्डी हवा का आनन्द लेने के लिए अभिनव मानव के साथ बालकनी में खड़ा हो गया कि अचानक मानव ने अभिनव से पूछा तुम कार चला लेते हो ! अभिनव ने कहा - ‘चला तो लेता हूँ लेकिन पे्रक्टिस नहीं है। वैसे पापा चलाने भी नहीं देते मैंने तो ड्राइवर से चुपके-चुपके सीख ली। एक बार पापा को पता चल गया तो खूब नाराज हुए। ड्राइवर को नौकरी से निकालने की धमकी भी दे डाली।’

‘तुम्हारे पापा कुछ ज्यादा ही डरते हैं अभिनव ! मेरे पापा तो पिछले एक साल से मुझसे कार चलवा रहे हैं। जब हम सब साथ में जाते हैं तो पापा बगल में बैठते हैं और मैं कार चलाता हूँ। अब तो मैं एक्पर्ट हो गया हूँ। जब हम कभी लाॅग रूट पर जाते हैं तो मैं खूब तेज कार चलाता हूँ मेरी कार तो जैसे हवा में उड़ती है।’ मानव डींगें मारने लगा।

अभिनव चुप रहा। वह जानता था कि अगर पापा ये सब जान जायेंगे तो बहुत गुस्सा करेंगे इसलिए उसने बात वहीं समाप्त कर दी। अगले दिन पापा टूर पर चले गये। दोपहर मम्मी को कहीं लेडीज संगीत में जाना था। ड्राइवर उन्हें छोड़कर गाड़ी गैरिज में लगाकर चाबी दे गया। क्योंकि मम्मी अपनी सहेली के साथ लौट कर आने वाली थीं। मानव कुछ देर चाबी घुमाता रहा उससे खेलता रहा फिर अभिनव से बोला- ‘चलो ! जरा एक ड्राइव ले आयें।’