गूगल बॉय
(रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास)
मधुकांत
खण्ड - 19
पहले तो गूगल घर में बने बाँके बिहारी मन्दिर में जाकर कभी-कभी वन्दना करता था। विशेषकर तब जब उसको परीक्षा देने जाना होता था या किसी बड़े काम के लिये जाना होता या कोई बड़ी सफलता हाथ लग जाती थी...परन्तु जब से उसे कुर्सी से ख़ज़ाना मिला है, तब से वह नियमित रूप से मन्दिर में पूजा-पाठ करने लगा है। अब उसको पूरा विश्वास हो गया है कि उसका जो भी काम बन रहा है, वह बाँके बिहारी जी की कृपा से बन रहा है।
गूगल के अन्दर बहुत सृजन शक्ति थी, वह प्रत्येक काम को नये ढंग से करना चाहता था। दुकान पर तैयार होने वाले लकड़ी के सामान में भी वह कुछ ऐसी कलाकारी कर देता, जिससे वह विशेष बन जाती। बाज़ार में जो वस्तु एक हज़ार की मिल जाती, उसी वस्तु की क़ीमत ग्राहक ख़ुशी-ख़ुशी बारह सौ दे देता। अपना शोरूम बनवाने के लिये गूगल ने एक आर्किटेक्ट से उसका नक़्शा बनवा तो लिया था, परन्तु अधिकांश सलाह गूगल स्वयं ही कारीगरों को देता था।
प्रतिदिन की दिनचर्या के अनुसार गूगल बाँके विहारी जी की आरती कर रहा था तो उसके फ़ोन की घंटी बजी। एक बार उसका ध्यान उस ओर गया, परन्तु फिर उसने अपना ध्यान पूजा करने में लगा लिया।
पूजा करके बाहर निकला तो उसका ध्यान फ़ोन पर गया। कॉल ज़िला रेडक्रास के सचिव की आयी थी। न जाने क्या आवश्यक काम हो, सोचकर उसने तुरन्त फ़ोन मिला लिया।
‘जय रक्तदाता गूगल जी’, आज सचिव महोदय ने उसे उसके नाम के साथ ‘जी’ लगाकर सम्बोधित किया।
‘जय रक्तदाता सर, सेवा बताओ,’ गूगल ने विनम्रतापूर्वक पूछा।
‘गूगल जी, आज तो आपको आपकी सेवा का सम्मान मिला है। आपको बहुत-बहुत बधाई। आपकी रक्तदान सेवाओं के लिये दो अक्तूबर को राजभवन चण्डीगढ़ में आपको महामहिम राज्यपाल द्वारा सम्मानित किया जायेगा।’
‘वाह सचिव महोदय, यह तो बाँके बिहारी जी की अनुकम्पा और आपके सहयोग के कारण सम्भव हुआ है। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार।’
‘एक समाचार और, इस बार अपने ज़िले की रेडक्रास टीम को सर्वाधिक रक्त एकत्रित करने के कारण प्रदेश में सर्वश्रेष्ठ कार्यों के लिये चयनित किया गया है। इसलिये आप दो अक्तूबर को हमारे साथ चलना।’ सचिव महोदय समाचार सुनाते हुए चहक रहे थे।
‘वाह जी वाह, कमाल हो गया। आपको भी बहुत-बहुत बधाई।’
‘गूगल जी, इस ख़ुशी के अवसर पर आज दोपहर बाद चार बजे मेरे कार्यालय में एक बैठक है। सभी रक्तदानी संस्थाओं के प्रतिनिधियों को बुलाया है और उपायुक्त महोदय भी इस बैठक में आयेंगे, इसलिये आप अवश्य समय से आ जाना।’
‘मैं समय से पहुँच जाऊँगा, आप मेरी ओर से निश्चिंत रहें।’
‘पुनः आपको बधाई और आपका धन्यवाद।’
गूगल फ़ोन रखकर पुनः बाँके बिहारी जी की सेवा में उपस्थित हुआ और नतमस्तक होकर बुदबुदाया - ‘बाँके बिहारी जी, तेरी माया अपरम्पार है।’
‘क्या बात है गूगल, आज पूजा में इतना समय कैसे लग गया?’ माँ ने गूगल से पूछा।
‘क्या बताऊँ माँ, बाँके बिहारी जी की फ़ुल कृपा हो रही है। मैं पूजा कर रहा था तो रेडक्रास सोसायटी के सचिव का फ़ोन आया। पूजा करने के बाद मैंने पूछ लिया कि कैसे फ़ोन किया था तो उन्होंने ख़ुशी का समाचार सुनाया तथा बधाई दी। माँ, तुम्हारे आशीर्वाद और बाँके बिहारी जी की कृपा से दो अक्तूबर को राज्यपाल जी तुम्हारे गूगल को सम्मानित करेंगे। यह सम्मान लेने के लिये तुम भी साथ चलना।’
नारायणी शायद मना करती, परन्तु इतनी बड़ी ख़ुशी के अवसर पर उसने मना करना उचित नहीं समझा और कहा - ‘बेटे, यह तो बहुत ही ख़ुशी का समाचार है। बाँके बिहारी जी का आशीर्वाद तुम पर सदा बना रहे। मैं इस अवसर पर तेरे साथ अवश्य चलूँगी। पहले तू नाश्ता कर ले, फिर मिठाई लाना, मोहल्ले भर में बाँटूँगी।’
माँ का आशीर्वाद पाकर गूगल का मन बहुत प्रफुल्लित हो उठा। साथ ही उसके मन में उमंग जागी कि यह शुभ समाचार अपनी अरुणा के साथ साझा करूँ, लेकिन इस उसकी यह इच्छा इस समय पूरी नहीं हो सकती थी, क्योंकि माँ उसे नाश्ते के लिये पुकार रही थी। ख़ुशी के मारे भूख तो जैसे ग़ायब ही हो गयी थी, फिर भी माँ की ख़ुशी के लिये वह रसोई में चला आया, क्योंकि वह जानता था कि यदि उसने नाश्ता नहीं किया तो माँ भी कुछ नहीं खायेंगी।
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डॉ. मधुकांत
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