Jindagi mere ghar aana - 22 in Hindi Moral Stories by Rashmi Ravija books and stories PDF | जिंदगी मेरे घर आना - 22

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जिंदगी मेरे घर आना - 22

जिंदगी मेरे घर आना

भाग- २२

शरद उसे देखते ही एकदम अटेंशन की मुद्रा में खड़ा हो गया और झुक कर फूल आगे बढ़ा दिए.विमूढ़ सी नेहा ने फूल थाम लिए पर कुछ बोल ही नहीं पाई. थैंक्स भी शायद होठों में ही रह गया. नेहा ने शरद को बैठने का इशारा किया...पर शरद तब तक नहीं बैठा, जब तक नेहा नहीं बैठ गई....ये आर्मी के एटिकेट्स. अभी शरद यूनिफ़ॉर्म में नहीं था और टी शर्ट जींस में एक दुबले-पतले लडके सा लग रहा था. उम्र जैसे उसे छू कर भी नहीं गई थी. नेहा थोड़ी सी कॉन्शस हो गई. ऑफिस में शरद ने उसे क्रिस्प कॉटन की साड़ी और चश्मे में देखा और अब ढीले-ढाले सलवार कुरते में.जाने कैसी लग रही होगी. वो इतनी उलझन में थी कि कैसे बात शुरू करे, समझ ही नहीं पा रही थी. अच्छा हुआ, सोनमती ने उबार लिया. वो पानी का ग्लास लेकर आई थी और अब पूछ रही थी, “दीदी जी चाय बनाऊं या कॉफ़ी ? “

अब मानो नेहा के बोल फूटे...थूक गटकते हुए उसने पूछा “क्या लेंगे...?”

“ कुछ भी..सादा पानी भी ठीक है “..शरद ने ग्लास दिखाते हुए, मुस्कराकर कहा.

“चाय बना लो...” कहती नेहा शरद की तरफ मुखातिब हुई..”यहाँ कैसे ? “

“ अब ऑफिस में तो प्रिंसिपल से मुलाकात हुई थी तो सोचा यहाँ पुरानी नेहा से मिल लूँ..”

“नहीं...आई मीन इस शहर में कैसे “ नेहा ने थोड़ा झेंपते हुए कहा.

“ क्यों भई हम आर्मीवालों को बस फ्रंट पर लड़ते ही रहना चाहिए....हम कुछ दिन सिविलियंस की तरह नहीं जी सकते...मैंने कार्ड भिजवाया तो था “ शरद ने हंसते हुए कहा.

अब नेहा को गुस्सा आ गया. आया है तब से ताने ही दिए जा रहा है, “मेरा ये मतलब नहीं था “ जरा गुस्से में बोली. उसने सिर्फ नाम पढ़ा था...और शरद से मिलने के बाद दिमाग में इतनी उथल पुथल हो गई कि दुबारा कार्ड पर नजर ही नहीं डाली कि पोस्ट का पता चले.

शरद भी उसकी नाराजगी समझ गया. समान्य स्वर में बोला, “ यहाँ दो वर्षों के लिए डेपुटेशन पर हूँ. पंखुरी मेरी कज़िन की बेटी है. उसके हसबैंड का ट्रांसफर हो गया है. इसकी पढाई को लेकर बहुत परेशान थी. तुम्हारे स्कूल का बहुत नाम है. उसकी इच्छा थी, यहाँ पढ़े पर मिड सेशन में एडमिशन नहीं मिलेगा यही सोच कर डर रही थी. जब उसे पता चला कि मेरी पोस्टिंग यहाँ हुई है तो उसने मुझे कॉन्टैक्ट किया.मैंने कहा कोशिश कर के देखता हूँ और देखो तुम मिल गई...कोशिश कामयाब हो गई...थैंक्स “ बात खत्म कर सीधा नेहा की तरफ देखने लगा.

शरद बहुत अनौपचारिक होकर बात कर रहा था. पर नेहा सहज नहीं हो पा रही थी. एक बात यह भी थी कि शरद को पता था वह नेहा से मिलने जा रहा है. वह मानसिक रूप से तैयार था जबकि नेहा के लिए यह मुलाक़ात बिलकुल अप्रत्याशित थी. और यह घर था उसका....यहाँ प्रोफेशनल आवरण के पीछे छुप पाने की सुविधा भी नहीं थी. उसे शरद पर बहुत गुस्सा भी था...बहुत शिकायतें थीं. वह मिलने क्यूँ आया, मुलाकातें क्यूँ बढाना चाह रहा, समझ नहीं पा रही थी. उसकी नीस को एडमिशन तो मिल गया फिर वह उसके घर पर क्यूँ आ गया.?...शायद सिर्फ थैंक्स कहने आया हो, बेकार ही वह उलटा सीधा सोच रही है. ये आर्मीवाले कर्ट्सी बहुत निभाते हैं न. नेहा ने खुद को समझाया और फिर थोड़ी सहज हो गई. पर बात क्या करे. शरद ने ही कहा...”बहुत अच्छी जगह है ये.मुझे अंदाजा नहीं था, मार्केट में भी जरूरत की सारी चीज़ें मिल जाती हैं “

“ हाँ शिमला पास ही है न.... ना भी मिले तो ऑर्डर करने पर अगले दिन ही आ जाता है. दिन में कई बसें शिमला से आती रहती हैं “

“जब से आया हूँ यहाँ बारिश ही हो रही है....ऐसा ही मौसम रहता है ? ”

“पहाड़ों का मौसम तो ऐसा ही होता है...ठंढ के दिनों में भी बारिश हो जाती है.”

जगह -मौसम सबका जिक्र हो गया..अब क्या राजनीति पर बात करे ?...टॉपिक खत्म दोनों चुप.....फिर शरद ने धीरे से पूछा, “अंकल आंटी कैसे हैं ? “

“ठीक हैं....लखनऊ में ही हैं “

“और निलय...”

“ भैया जर्मनी में है..इंडियन फॉरेन सर्विस में है “ नेहा यथासम्भव स्वर को भावहीन रखने की कोशिश कर रही थी. जिसमे पुराने परिचय का जरा भी अक्स ना हो.

“वाऊ ग्रेट...यानी निलय ने यू.पी.एस.सी क्रैक कर लिया, वाह...अंकल कितने आशंकित थे कि सैनिक स्कूल के बाद वो एन.डी.ए की बजाय दिल्ली चला गया. कम्पीट कर पायेगा या नहीं...आई एम सो हप्पी फॉर हिम “ शरद की आवाज़ में दोस्त की सफलता पर जेनुईन ख़ुशी थी.

पर नेहा ने ठंढे स्वर में कहा...”मुझे तो कभी शक था ही नहीं...भैया क्वालीफाई कर ही जाता. सेकेण्ड चांस नहीं लिया वरना आइ.ए.एस. भी बन जाता पर उसे फॉरेन सर्विस का ही आकर्षण था “

“ऑफ कोर्स....ऑफ कोर्स....निलय पढने में बहुत तेज था.कोई शक होना भी नहीं चाहिए.

दोनों ही एक दूसरे के विषय में बातें करने से बच रहे थे. तभी सोनमती, बड़े से ट्रे में नाश्ता सजाये आ गई. सोनमती ने बिना कुछ निर्देश दिए ही, अपने मन से कटलेट बना लिए थे. एक प्लेट में केक-मठरी और काँच की खूबबसूरत सी कटोरी में गुलाबजामुन भी थे. नेहा की ही भंवे सिकुड़ गईं पर सोनमती को अंदाजा हो गया था कि इतने सुंदर फूल लाने वाला कोई साधारण मेहमान नहीं है.अच्छी खातिरदारी तो बनती है.

शरद भी चौंक गया था,...”इतना सारा... सिर्फ चाय ही काफी थी “

“ ले लीजिये आपलोगों को कैलोरी की क्या चिंता....दो राउंड दौड़ेंगे सब बराबर हो जाएगा “

पहली बार नेहा ने शरद से मुखातिब हो कुछ कहा था पर ‘आप’ भी कहा था.शरद को इस औपचारिकता में अजनबीपन की गंध कुछ ज्यादा ही आ रही थी. काँटे से कटलेट कट करते हुए बोला, “कभी सोचा नहीं था तुम यहाँ ऐसे मिल जाओगी...”


“सोचा हुआ कब होता है....” नेहा ने कुछ कटाक्ष से कहा तो शरद ने नजरें उठा सीधा उसकी आँखों में देख लिया. नेहा ने खिडकी की तरफ नजरें घुमा लीं. अतीत का एक लम्हा तैरते हुए दोनों को छूकर गुजर गया.

शरद ने सोनमती के पाक कला की खूब तारीफ़ की और चाय खत्म कर उठ खड़ा हुआ. नेहा बाहर तक छोड़ने आई. शरद ने बरामदे से नीचे कदम रखते हुए, धीरे से पूछा..” मैं फिर आ सकता हूँ ? ”

“अंss...”.नेहा बिल्कुल हडबडा गई.

“मैं फिर आऊंगा...” कहता शरद खुल कर मुस्करा दिया फिर बोला, ‘प्रिंसिपल का नम्बर तो है, पर्सनल नम्बर मिल जाए तो इन्फॉर्म कर के आऊंगा, फिर तुम ऐसे घबरा नहीं जाओगी.

यानी कि शरद ने नोटिस कर लिया वह समान्य नहीं थी. गुस्सा आ गया नेहा को.थोड़ी रुखाई से बोली, ‘मेरा कोई पर्सनल नंबर नहीं है ‘

“दैट्स ओके....अभी मत दो “और अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कराता हुआ, हाथ हिलाता हुआ चला गया. नेहा ठगी सी खड़ी रह गई. शायद सामान्य रूप से मांगता तो वह नम्बर दे भी देती, भले ही उसके गुडमॉर्निंग-गुडनाईट से बाद में पछताती. पर वो कुछ ज्यादा ही नार्मल बिहेव कर रहा है. बीच के वर्षों की कोई गिनती ही नहीं...शरद गिल्टी फील कर रहा है या अपनी लाइफ से बोर हो चुका है. जो भी हो नेहा को कुछ लेना देना नहीं. वो एक स्टूडेंट के गार्जियन की तरह ही उसे ट्रीट करेगी.

यही सब सोचते अंदर आई तो सोनमती आँखों में हज़ारों प्रश्न लिए खड़ी थी. आजतक बिना स्कूल से सम्बन्धित किसी काम के यूँ नेहा से मिलने कोई नहीं आया था.

” ये फूल कितने सुंदर हैं न...” सोनमती कह ये रही थी और जानना कुछ और चाह रही थी.
“ मेरे भैया के दोस्त हैं...यहीं पोस्टिंग हुई है उनकी. फूल पानी में डालकर वास में रख दे.” कहती नेहा कमरे में चली गई...सोनमती को इस से अलग और क्या बताये.