bagi atma 11 in Hindi Fiction Stories by रामगोपाल तिवारी (भावुक) books and stories PDF | बागी आत्मा 11

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बागी आत्मा 11

बागी आत्मा 11

ग्यारह

माधव ने जब से आशा को विदा किया था । गरीबों को सताना छोड दिया था। वह सोचनं लगा-‘ बे-मतलब गरीबों को परेशान भी क्यों किया जाये। उन पर रखा क्या है ? जो उन्हें कश्ट दिया जाये। माधव ने अपने दल के सिद्धान्त बदल डाले थे। गनीमत यह कि माधव की बातों से दल के सभी लोग सहमत हो गये थे। बडे़-बडे़ सेठ साहूकारों के दरवाजों पर दस्तकें दी जाने लगीं।

गरीबों में यह बात तेजी से फैलती जा रही थी कि माधव गरीबों को नहीं सताता। गरीब और मध्यम वर्ग के लोग चैन का जीवन व्यतीत करने लगे थे। धनिक वर्ग के लोग अधिक चिन्ता में रहने लगे थे। जिस क्षेत्र में माधव पहुंच जाता वहां के धनी मानी लोग स्वयं अपने आदमी को उसके पास भेज देते। माधव का हुक्म टालने की उसमें हिम्मत न थी। बिना परिश्रम के सभी समस्याएं हल होने लगीं थी। इस क्रम में माधव ने काफी धन इकट्ठा कर लिया था। लूट खसोट, मारकाट के मौके तो आये, पर टल गये।

माधव घर जाने की तैयारी करने लगा। बहुत दिनों बाद अपने कस्बे की ओर जा रहा था। उसने अपने दल को भी उस ओर चलने का आदेश दिया। ग्वालियर से आगे निकलकर जौरासी क्षेत्र में रेलवे लाइन के किनारे-किनारे आगे बढ़े, सोचा आंतारी कस्बे के बगल से निकल जायेंगे। सचेत होकर आंगे बढ़ते चले जा रहे थे।

रेल्वे लाइन डालने के लिये काटी गई पहाड़ियों के बीच से गुजरना चाहते थे माधव ने इधर-उधर दृश्टि दौड़ाई कोई नजर नहीं आया। सभी एक लाइन से चले जा रहे थे। रात होने को थी। आवाज सुनाई पड़ी-‘बागी पहाड़ी के नीचे हैं।’

ऊपर से फायर हुआ। सभी बागी मौत के मुंह में थे। सभी पोजीशन लेने मुड़े। बुरी तरह फंस गये। गोलियां बरसने लगीं। माधव पीछे हट गया। तीन साथी जो आगे के लिये भागे थे सभी को गोलियां लग चुकी थीं।

कुछ साथी पीछे लौट पड़े थे। वे पत्थर की टोरों की ओट लेकर गोलियां चलाने लगे थे। ये निचाई पर थे। पुलिस ऊंचाई पर थी। कान के पास से सनसनाती हुईं जब गोलियां निकल जातीं तो लगता प्राण गये। पुलिस हावी होती जा रही थी। माधव के दल ने और पीछे पोजीशन लेने के लिए और पीछे हटना चाहा, पर हट पाना मुश्किल हो गया।

घायल साथी घिसिट कर आगे निकल गये। अब वे भी सुरक्षित स्थान का आश्रय ले चुके। उनमें से एक ने गोलियां चलाना शुरू कर दी थीं। माधव का साहस बढ़ गया। पुलिस दोनों की मार से सुरक्षित होने पीछे हटी। माधव को मौका मिलगया। पीछे एक मन्दिर की छतरी बनी थी। अब माधव इसकी आड़ में हो पुलिस पर वार करने लगा।

अन्धकार गहरा हो गया। तभी वहां से ट्रेन के गुजरने का संकेत सिगनल से दिखा। सभी का ध्यान उस ओर गया। माधव के दल ने वक्त का लाभ उठाना चाहा। ट्रेन आने से पहले माधव पटरी के पार हो गया। इस तरह माधव ने अपनेे घायल साथियों के पास जाने का इरादा पक्का कर लिया। जैसे ही ट्रेन गुजरी। माधव ट्रेन के वेग के साथ दौड़ा और घाटी के उस पार पहुंच गया।

ट्रेन गुजर गई। गोलियां चलना फिर शुरू हो गयीं। अब की बार घायलों की ओर तेजी से गोलियां चलने लगीं। ख्ह देखकर पुलिस ने गोलियां चलाना बन्द कर दीं।

अन्धेरा गहरा होने लगा माधव आगे बढ़ गया। पीछे वाले साथियों को स्वर के गुप्त संकेत से इशारा किया कि मैं आगे आगे चल रहा हूँ। आप लोग चले आये। अ बवह सुरक्षित स्थान पर पहंुच कर साथियों की प्रतीक्षा करने लगा। घायल साथियों की मरहमपट्टी करने लगा। एक की हालत गम्भीर थी गोलियां उसके शरीर में थीं रात के अंधेरे में गोलियां निकालना कठिन था।

साथियों की प्रतीक्षा करते आधा घण्टा व्यतीत हो गया। तब कहीं दल के लोग वहां आ पाये। अब सभी उन्हें ऐसी जगह ले जाना चाहते थ,े जहां डॉक्टर को बुलाया जा सके। आंतरी स्टेशन तक का रास्ता पार करने में रात्री के दस बज गये। पैसीजर ट्रेन के आने का समय हो गया। साथियों के भरोसे घायलों को छोड़ माधव ने ग्वालियर से डॉक्टर लाने का प्रोग्राम बना डाला। सारी रूपरेखा मित्रों को समझा दी। पैसेंजर ट्रेन आ गई। माधव ने अपना बेश बदलकर ट्रेन का टिकट लिया और ट्रेन में बैठ गया।

ग्वालियर में कोई बड़ा डॉक्टर तो ग्वालियर से बाहर आने तैयार न हुआ।

माधव को एक नाम याद आया। डॉक्टर मलहोत्रा चन्द्रबदनी नाके पर रहता है। सोचा- वह पैसे के लालच में चला जायेगा। यह सोचते हुये वह डॉक्टर के घर पहंुचगया। दरवाजे पर वैल लगी थी। दबाया ! थोड़ी देर से डॉक्टर ने दरवाजा खोला पूंछा क्या बात है ?

‘मरीज है सख्त बीमार है।‘

‘कहां है मरीज ?‘

‘मरीज यहीं शहर में नाका चुंगी के पास होटल में है।‘

‘बहुत दूर है उसे यहीं ले आओ।‘

‘साहब वह लाने लायक नहीं है आप जरा जल्दी कीजिए।‘

‘जानते हो मेरी रात में कहीं जाने की फीस पचास रूपए है माधव ने झट कहा -‘जानता हूँ।‘ डॉक्टर ने अब माधव से पूछा।

‘उसे क्या बात हो गई हैं ?‘

‘साहब उसके घाव है चोट लगी है। आपरेशन भी करना पड़ सकता है।‘

‘लेकिन वहां आपरेशन बिना थियेटर के कैसे होगा ? भइया तब तो उसे बड़े अस्पताल भर्ती करवा दो।‘

‘लेकिन डॉक्टर साहब आप साथ चलें, जो फीस होगी दे दूंगा। मरीज को साथ लिवा लाये।‘

‘ठीक है चलता हूँ, ,पर कोई पुलिस-उलिस का केस तो नहीं है।‘ भाई एक बार फंस चुका हूँ। डरता हूँ।’

‘आप चिन्ता न करें साहब ऐसी कोई बात नहीं है। अरे जो बात होगी। आप से कौन छिपी रहेगी। आप जरा जल्दी कीजिए। बात सुनकर डॉक्टर अन्दर चला गया। थोड़ी देर में बैग लिए हुए डॉक्टर उपस्थित हो गया। बोला चलो -

‘कैसे पहुंचेगे वहां तक ?‘ माधव बोला -

‘साहब कोई साधन तो नहीं है तांगा देखते हैं।‘

डॉक्टर क्रोध में आ गया।- ‘यहां इस समय तांगे मिलने वाले नहीं हैं। इससे तो मैं अपनी मोटर साइकिल निकाल लेता हूँ। लेकिन पेट्रोल का खर्च देना पड़ेगा।‘

माधव झट से बोला- हां हां साहब जो होगा दे दूंगा। डॉक्टर ने एक सटर खोलकर मोटर साइकिल निकाली। माधव को पीछे बिठाया और गाड़ी स्टार्ट कर दी।

नाका चुंगी के होटल एक एक करके पीछे छूटने लगे। डॉक्टर ने मोटर साइकिल की रैफ्तार धीमी कर दी। यह देख माधव ने पीछे से पिस्तौल अड़ा दी और बोला- ‘तेज चले चलो नहीं तो ं ं ं।‘

‘गोली मार दोगे। मरीज नहीं बचाना।‘

‘मरीज तो तब बच पायेगा जब डॉक्टर मरीज के पास पहुंचेेगा।’

‘लेकिन इस तरह तो काई डॉक्टर किसी मरीज के नाम पर विश्वास न करेगा।‘

‘जब डॉक्टर मरीज के पास पहुंच जायेगा तब समझ जायेंगे। सच क्या है ? झूठ क्या है ? क्या उचित अनुचित है। ?‘

‘तुम कौन हो ?‘

‘माधव डाकू का नाम तो आपने सुना होगा ?‘

‘हां ं ं ं ं हां ं ं ं सुना ं ं ं तो ं ं ं है।‘ माधव नाम सुनते ही उसकी घिघी बंध गई।

‘आप घबरायें नहीं। धोखा नहीं दूंगा। वैसे जो कहता हूँ करके दिखला देता हूँ। पुलिस मेरे नाम से कांपती है। मेरे तीन साथियो के गोली लगी है।‘

‘मुझे बाद में पुलिस परेशान करेगी।‘

‘कोई मरीज मृत्यु से जूझ रहा है और आपको पुलिस की परेशानी की पड़ी है। मरीज की सेवा करना डॉक्टर का फर्ज है।‘ माधव गुर्राया तो वह बोला -

‘फर्ज का निर्वाह तो तन-मन से करूंगा। पर इस तरह काम करने में उतना मन नहीं रहता।‘

‘मजबूरी है डॉक्टर ! मौत का विकल्प है, आपके कानून में भी तो इन लोगों के लिये मौत है।‘

‘आप लोग सरकार से हाजिर होने की बात क्यों नहीं करते ?‘

‘डॉक्टर बात तो चला रहे हैं। सरकार भी तो इतनी जल्दी झुकने वाली नहीं है।‘

‘बातें करते करते में जौरासी की घटी निकलकर आंतरी स्टेशन पर पहुंच गए। दल तक पहुंचते-पहुंचते रात्री के साढ़े बारह बज गये। मरीजों की हालत गम्भीर हो गई थी। गोलियां लगने से खून बह रहा था। हवा तेज चल रही थी। आपरेशन की व्यवस्था का अभाव था। स्थिति देखकर डॉक्टर बोला -

‘भइया इस स्थिति में ऑपरेशन करना सम्भव नहीं है। खून बहुत निकल चुका है। खतरा बढ़ गया है।‘

माधव बोला -‘डॉक्टर आप तो ऑपरेशन करें। कैसे भी इनके शरीर से गोलियां निकलना चाहिए।

एक नाले की खाई में आपरेशन की व्यवस्था करली। टार्च के प्रकाश में आपरेशन करना प्रारम्भ कर दिया। पहले ऐसे मरीज को लिया जो सरलता से निपटाया जा सकता था। उसके शरीर से गोली निकालने में देर न लगी। जांघ में गोली लगी थी इसलिए परेशानी अधिक नहीं हुई। डॉक्टर की मदद स्वयं माधव कर रहा था।

उसके बाद तत्काल रामसिंह को लिटाया गया। इसके कन्धे में गोली लगी थी। पहले वाले से इसकी स्थिति गम्भीर थी। आपरेशन करने में एक घण्टा लग गया। पट्टी बांध दी गयी। उसे आराम से लिटा दिया गया।

अब बल्देव पंजाबी का नम्बर था। पेट में गोली लगी थी पर राम सिंह से स्वस्थ दिख रहा था। लेकिन जैसे ही पेट से बंधा फेटा खोला। खून तेजी से बहने लगा। घाव देखकर माधव भी घबड़ा गया। स्थिति गम्भीर हो गई। डॉक्टर ने साहस करके आपरेशन करना शुरू कर दिया।

गोली गहरे पर थी। गोली खोजते-खोजते एक घण्टा हो गया। खून तेजी से बह रहा था। डॉक्टर भी कोई अच्छा न था काम चलाऊ था। आपरेशन के बीच में डॉक्टर ने कई बार कहा-‘ इसे बड़े अस्पताल में ले जाना पड़ेगा।’

माधव हर बार कहता-‘ वहां ले जाना असम्भव है। डॉक्टर आपरेशन में लगा रहा। इसी क्रम में आधा घण्टा और व्यतीत हो गया। तब कहीं गोली दिखी। अन्दर से गोली निकालते ही खून तेजी से बहना शुरू हो गया। बेहोशी आ गई। सभी समझ रहे थे बच पाना मुश्किल है। डॉक्टर बोला - इसे खून चाहिए। खून देने को सभी तैयार थे। मगर साधनों का अभाव, व्यवस्था कर पाना सम्भव न हुआ।

सुबह के चार बज गये। सुरक्षित स्थान पर पहुंचने का समय हाथ से निकलता जा रहा था। इसी समय उसने दम तोड़ दिया। अब माधव ने आदेश दिया। डॉक्टर जी आप स्टेशन पहंचें। वहीं, आप की गाड़ी खड़ी है उससे बापस चले जायें। उसे सौ सौ के दस नोंट देकर विदा कर दिया गया।

उस साथी को ऐसी जगह डाल दिया गया, जहां से लोगों की सुबह सुबह नजर में न आये। जिससे दल को दूर निकल जाने का समय मिल जायेगा। उसका सारा सामान और बन्दूक इत्यादि लेकर सभी वहां से चल पड़े। चलते-चलते सुबह के पांच बज गये। अन्य दोनों घायल साथी ठीक थे। धीरे-धीरे वे भी साथ चलने लगे। सड़क पार कर कुई- भटपुरा के जंगलो में वैजनाथ बााब के स्थान पर लगभग दिन के आठ बजे पहंुच पाये।

सारा दिन व्यतीत करने की सोचकर यहीं रूक गये। सभी दुःखी थे। एक साथी का बिछोह खल रहा था। आज कुछ खाने-पीने में भी मन नहीं लगा। सभी समझ रहे थे। मृत्यु साथी की नहीं स्वयं की हुई है।

बल्देव के घर वालों को जाकर सांत्वना देना आवश्यक था। दिन भर तो यों ही कटा। रात्री में फिर यात्रा शुरू हो गई। आज बल्देव के घर के लोगों को सांत्वना देने सारा दल रवाना हो गया।