Mukammal Mohabbat 5 in Hindi Fiction Stories by Abha Yadav books and stories PDF | मुकम्मल मोहब्बत - 5

Featured Books
Categories
Share

मुकम्मल मोहब्बत - 5


माथे पर हाथ के स्पर्श का एहसास हुआ तो पलकें खुद-व-खुद खुल गईं.जोशी आंटी माथे पर हाथ रखे पूँछ रही थीं-"नील,बेटा, तबीयत तो ठीक है?"
मैंने आँखें खोलीं तो अपनी स्थिति का भान कर झेंप गया. कपड़ें चेंज करना तो दूर की बात जूते तक नहीं खोले थे.

"सफर की थकान थी.लेटा तो आँख लग गई. मैं ठीक हूँ."मैंने उठते हुए कहा.

"अच्छा, तुम नहा लो.तरोताजा हो जाओगे. मैं तुम्हारे लिए चाय के साथ प्यार की पकौड़े तलती हूँ."वह आश्वत् होकर बोलीं.


"अरे,आंटी, क्या करेगीं पकौड़े बनाकर. अंकल खायेंगे नहीं. मैं चाय के साथ नमकीन और बिस्किट ले लूंगा."अंकल की बीमारी सुनकर मुझे अच्छा नहीं लग रहा था कि आंटी मेरे लिए परेशान हो.


"तुम्हें पंसद है.इतने दिन बाद आये हो.फिर जाने कब पलटोगे."कहते हुए आंटी वापस चलीं गईं.


नहाने के बाद, मैंने सबसे पहले अंकल से मुलाकात की. वह अपने बेडरूम में लेटे पेपर पढ़ रहे थे. मैंने जाकर उनके पाँव छुएं तो उन्होंने पेपर एक ओर रख दिया.

"तुम्हारी आंटी ने बताया था कि तुम आ गये हो.इस बार बड़ी लम्बी वापसी हुई."उनका शरीर कमजोर लेकिन आवाज स्वस्थ थी.

"दूसरे कामों में उलझ गया था.आप कैसे हैं?"साईड में पड़ी कुर्सी खींचकर में उनके पास बैठ गया.

"अब ठीक हूँ. कमजोरी है, वह भी चली जायेगी."उन्होंने उठने की कोशिश की तो मैंने उन्हें सहारा देकर बैठा दिया.

"अंकल, इतनी बड़ी बात हो गई. आपने फोन भी नहीं किया. मैं गैर तो नहीं था."मैंने शिकायत की.



"अरे,एक ही बात है.अवनव साथ था.वह देहली शिफ्ट हो गया है. मैंऔर तुम्हारी आंटी महीने भर उसके साथ रहे. अच्छी देखभाल की उसने."कहते हुए उनकी आँखों में अवनव के लिए प्यार उमड़ आया था.

"आपको गेस्ट रूम बेचना पड़ा. मुझे फोन कर दिया होता. मैं भी आपका बेटा हूँ.व्यवस्था कर लेता."मैंने उलहना दिया.


"जब तक स्वयं सामर्थ हो .बच्चों को क्या कस देना."कहते हुए उनके चेहरे पर आत्मविश्वास चमक आया.

मुझे उनका यह आत्मविश्वास बहुत अच्छा लगता है. वरना जवान इकलौते बेटे के गुजर जाने के बाद इंसान रेशा-रेशा बिखर ही जायेगा.

अवनव ने बताया था मुझे. मेरठ से यहां आते हुए अंकल के बेटे-बहू कार ऐक्सिडेंट में चल बसे थे.तभी से अवनव जरूरत पड़ने पर अंकल-आंटी का साथ देता है.

आंटी चाय -पकौड़े लेकर आयीं तो मैंने साईड में पड़ी टेबल बेड़ के साथ लगा दी.

"अंकल के लिए नाश्ता..."दो कप चाय और पकौड़े की प्लेट देखकर मैंने पूँछा.


"अभी अनार का जूस दिया है. चाय लेते नहीं हैं."आंटी बेड पर बैठते हुए बोलीं.

पकौड़ों की खुशबू से मेरी भूख खुल गई. मुझे प्याज के पकौड़े बहुत पंसद हैं. वह.भी आंटी के हाथ के.

"पकौड़े लो."आंटी ने प्लेट मेरी ओर बढ़ाई.

"आप नाहक परेशान हुईं."मैंने पकौड़े उठाते हुए कहा.

"यह सब तुम्हारे और अवनव के आने पर ही बनता है. तुम्हें तो पता है. काफी दिन से यह परहेज पर हैं."आंटी बोली.

"हां,आंटी, जब कोई साथ देने बाला हो तभी खाने का मजा है."कहते हुए मुझे ऐनी की याद आ गई. मुझे लजीज व्यंजन पंसद हैं. ऐनी ऑयली कहकर रिजेक्ट कर देती है. पता नहीं क्यों लड़कियों को मोटापे की इतनी चिंता रहती है कि जीभ के स्वाद से ही वंचित रह जाती हैं.

"शायद अवनव से भी काफी समय से नहीं मिले हो."अंकल ने पैर फैलाते हुए कहा.

"काम में इतना उलझा रहा कि मिलना हो ही नहीं पाया."मैंने चाय का आखिरी घूंट भरते हुए कहा.

"हां,कैरियर संभालने का वक्त आता है तो व्यस्तता बढ़ ही जाती है."अंकल ने एक गहरी सांस ली.

"जब अपनी जिंदगी जी लो तो समय इस कदर लम्बा हो जाता है कि कटता ही नहीं."कहते हुए आंटी उदास हो गई.

"अरे,आंटी, आपका बागवानी का शौक ऐसा है कि फुरसत ही न होने दे.घर का काम.फिर पेड़ों की देखभाल."मैंने आंटी के मन हल्का करना चाहां. मैं बातावरण को बोझिल होने नहीं देना चाहता था.

"हां,नील,पेड़-पौधों के साथ भी एक जीती जागती जिदंगी जीता है इंसान. यह भी बच्चों की तरह ही सुख देते हैं. कलियों का चटखना, फूलों का खिलना,फल बनना. उनका बढ़ना सब इंसानी जिदंगी का ही एहसास कराता है."आंटी दार्शनिक हो उठी थीं.


"इसीलिए इन्हें फल और फूल बाले पेड़ पंसद हैं."अंकल लेटते हुए बोले.

"मैं भी सेब और अखरोट के फल देखता हूं."मैने हँसते हुए कहा.

"सुबह तुमने सेब तोड़े थे.खाने के साथ देना."अंकल ने कहा.


"फल खाने का मजा तो पेड़ से तोड़कर खाने का है.वह भी माली की आँख बचाकर."मैंने हँसते हुए कहा. मुझे अपना बचपन याद आ गया. पड़ोस की शर्मा आंटी के गार्डन से अमरूद तोड़ना. माली के दौडाने पर फेंक कर भाग आना.

"अरे,आंटी की आँख बचाने की जरूरत नहीं. जब चाहें पेड़ से तोड़कर खा लो."अंकल को भी हँसी आ गई.

"डिनर में बैगन का भुरता और चावल चलेगा."आंटी ने चाय के बर्तन समेटे हुए पूँछा.

"इतने पकौड़े खिलाकर डिनर भी?"मैने पेट पर हाथ फेरा.

"अभी सात बजा है .दस बजे तक भूख लग आयेगी."कहकर अंकल मुस्कुरा दिए.

"आप ,डिनर में क्या लेगें?"मैंने अंकल से पूँछा.

"मूंग की दाल की खिचड़ी .दही के साथ."आंटी हँसकर बोली.

"मैं भी यही लूंगा."मैंने जल्दी से कहा. पकौड़ों से पेट भर गया था. जायदा कुछ खाने की इच्छा भी नहीं थी.

"ठीक है."कहते हुए आंटी चाय के बर्तन लेकर निकल गईं.

आंटी के बाहर जाते ही मैं भी उठ खड़ा हुआ.
"अंकल, आप आराम करें. मैं बाहर घूमकर आता हूँ."कहते हुए मैं बेडरूम से बाहर निकल गया.


क्रमशः